इस पोस्ट में यह बताने वाला हूं कि नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की बारगाह में हाज़िरी और ज़ियारत करना जाइज़ और अजरो सवाब है।
बारगाहे रसूल में हाज़िरी की कुरानी दलील
वलव अन्नहुम इज जलमू अनफुसहुम जाऊका बिहिल आयह 64 अन-निसा
तरजुमा और अगर वह अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ए महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों।
अल्लाह तआला ने इस आयत में आसियों और गुनहगारों को यह हिदायत दी है के जब उनसे खता और गुनाह हो जाए तो वह रसूले अकरम नूरे मुजस्सम हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम के पास आएं और आपके पास आकर इस्तिग़फार करें और आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम से यह दरख्वास्त करें के आप भी उनके लिए अल्लाह से दरख्वास्त करें और जब वह ऐसा करेंगे तो अल्लाह तआला उनकी तौबा क़बूल फरमाएगा क्योंके अल्लाह तआला ने फरमाया है वह ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़बूल करने वाला और बहुत मेहरबान पाएंगे।
मुफस्सिरीन का बयान
मुफस्सिरीन की एक जमाअत ने ज़िक्र किया है उनमें अल शैख अबू मंसूर अस सब्बाग भी हैं उन्होंने अपनी किताब अल शामिल में उतबी की यह मशहूर हिकायत लिखी है के मैं नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की क़ब्र पर बैठा हुआ था के एक एराबी ने आकर कहा अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाह मैंने अल्लाह तआला का यह इरशाद सुना है।
वलव अन्नहुम इज जलमू अनफुसहुम जाऊका बिहिल आयह
और मैं आपके पास आ गया हूं और अपने गुनाह पर अल्लाह से इस्तिग़फार करता हूं और अपने रब की बारगाह में आपसे शफाअत तलब करने वाला हूं फिर उसने दो शअर पढ़े।
या खैरु मन रूफियत बिलक़ा’ अज़्मुहु फताब मिन तिबिहिन्नल क़ा’ वाल अकमु
नफ्सी अल फिदाऊ बिकब्रीन अंता साकिनुहु फिहिल अफ़वु वफीहिल जूदु वल करमु
ए वह जो ज़मीन के मदफूनीन में सबसे बेहतर हैं जिनकी खुश्बू से ज़मीन और टीले खुशबूदार हो गए मेरी जान इस क़ब्र पर फिदा हो जिसमें आप साकिन हैं इसमें अफ़्व है इसमें सखावत और लुत्फ़ व करम है।
फिर वह एराबी चला गया उत्बी बयान करते हैं के मुझ पर नींद ग़ालिब आ गई मैंने ख्वाब में नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की जियारत की और आपने फरमाया ए उत्बी उस एराबी के पास जाकर उसको खुशखबरी दो के अल्लाह ने उसकी मग़फिरत कर दी है। तफसीर इब्ने कसीर
गुंबद ए खज़रा की ज़ियारत के लिए सफर जायज़
कुरान मजीद की इस आयत से यह भी मालूम हुआ के नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की क़ब्र अनवर के लिए सफर करना मुस्तहसन और मुस्तहब बाइसे अजरो सवाब है।
हाज़िरी की अहमियत
दोस्तों इस तफसीर से वाज़ेह हो गया के मुजरिमीन को अल्लाह की तरफ से यह हुक्म दिया गया है के अगर खताओं गुनाहों की बख्शिश चाहते हो तो तुम्हें मेरे महबूब की बारगाह में हाजिरी देनी पड़ेगी और उनसे सिफारिश करवानी पड़ेगी उनके दर से वाबस्ता होना पड़ेगा।
इसीलिए सरकार आला हज़रत फरमाते हैं
मुजरिम बुलाए आए हैं जाऊका है गवाह
फिर रद हो कब यह शान करीमों के दर की है।
यानी कुरान में जाऊका का लफ्ज़ गवाही दे रहा है के मुजरिमीन जो रसूले पाक की बारगाह में हाज़िरी देकर मगफिरत तलब कर रहे हैं यह खुद नहीं आए हैं इन्हें ब जुबाने कुरान हुक्म दिया गया है बुलाया गया है और जब मुआमला यह है तो फिर मुजरिमों की दुआ रद हो उनकी मांग पूरी न की जाए यह करीमों और रसूले पाक जैसे रहमो करम फरमाने वाले की शान नहीं है।
और कायदा कुल्लिया है के जिसकी ना फरमानी की जाती है जिसके हक के खिलाफ किया जाता है मआज़रत उसी से की जाती है हक्कुल अब्द में गिरफ्तार होने वाला बंदे के दर से माफी तलब करेगा हक्कुल्लाह में गिरफ्तार होने वाला अल्लाह के दर से माफी तलब करेगा मगर इस आयत में हक्कुल्लाह में गिरफ्तार शख्स को अल्लाह तआला बारगाहे महबूब में भेजकर यह बता रहा है के महबूब का दर गोया मेरा ही दर है।
यानी कसम खुदा की रसूल का दर ही खुदा का दर है इसके इलावा कोई चारा नहीं है अल्लाह के दर से मंसूब होने वाले को रसूले पाक के दर पर आना पड़ेगा जो यहां न आएगा वह वहां का भी न होगा
नतीजा
दोस्तों तफसीर और बुजुर्गों के बयान से यह बात वाज़ेह हो गई के बारगाहे रसूल अलैहिस्सलातु वस्सलाम में हाज़िरी देना सिर्फ जायज़ ही नहीं बल्कि बाइसे अजरो सवाब भी है।
दोस्तों यह हमारी अकीदत और मोहब्बत का तकाज़ा है के हम अपने गुनाहों की बख्शिश और अल्लाह की रहमत के लिए अपने प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दर पर हाजिरी दें।
अल्लाह तआला हम सबको अपने महबूब अलैहिस्सलातु वस्सलाम के रोज़ा ए मुबारक की हाजिरी नसीब फरमाए आमीन।
