मुहतरम क़ाराईन!आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे उन ख़ास लमहात की और उन बाबरकत साअतों की जिन में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ करने पर वह ज़रूर क़ुबूलियत से नवाज़ता है। यह वह कीमती मौक़े हैं के जिन में हम अपनी दुनिया व आख़िरत दोनों को सँवार सकते हैं। तो आइए तफ्सील से जानते हैं उन मक़बूल औक़ात के बारे में।
रात का मुक़द्दस पहर तहजुद का वक़्त
दोस्तों रात का आख़िरी पहर के जब सारी दुनिया गहरी नींद में सोई होती है उस वक़्त उठ कर और तहजुद की नमाज़ पढना और अल्लाह से माँगना बहुत ही ख़ास मक़ाम रखता है क़ुरान पाक में अल्लाह तआला ने उन "तहजुद" पढ़ने वालों का ज़िक्र फ़रमाया है के यह वह वक़्त होता है जब अल्लाह की रहमत बहुत क़रीब होती है,और दुआ मांगने वाले की दुआ क़ुबूल होती है।
सूरज ढलने और ग़ुरूब होने के लमहात
इसी तरह सूरज ढलने और गुरूब का वक़्त भी बहुत कीमती होता है के नमाज़ ए ज़ोहर और नमाज ए मग़रिब का वक़्त शुरू होते ही अल्लाह की रहमतें नाज़िल होती हैं। यह वह औक़ात हैं जब आसमान के दरवाज़े खुलते हैं ज़ोहर के वक़्त की सुन्नतें पढ़ने के बाद, और मग़रिब की नमाज़ से पहले के कुछ लमहात में दुआ करना बहुत ही मक़बूल है।
अज़ान और इक़ामत का दरमियाना वक़्फ़ा
दोस्तों यह वह मुख़्तसर सा वक़्त है जब फ़रिश्ते दुआ में शरीक होते हैं और अज़ान सुन कर जो दुआ माँगी जाए वह रद नहीं होती इसी तरह नमाज़ बाद का जो वक़्त है वह दुआ की कुबूलियत का वक़्त है जिसमें दुआएँ कुबूल होती हैं ख़ास तौर पर फ़र्ज नमाज के बाद अपने लिए वालिदैन के लिए और तमाम मुसलमानों के लिए दुआ करना सुन्नत है।
मस्जिद की तरफ जाना
जब बन्दा नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद की तरफ क़दम उठाता है तो हर क़दम पर उसका दर्जा बुलंद होता है और हर क़दम पर उसके गुनाह मिटाए जाते हैं मस्जिद की तरफ जाना भी इबादत में शुमार होता है और इस दरमियान की गई दुआ भी शर्फ ए क़ुबूलियत पाती है।
क़ुरान मजीद की तिलावत के बाद के औक़ात
मुहतरम भाइयों क़ुरान पाक अल्लाह का कलाम है और उसकी तिलावत के बाद की गई दुआ को अल्लाह तआला बहुत पसन्द फ़रमाता है ख़ासो तौर पर जब कोई शख़्स क़ुरान ख़त्म करे (यानी पूरा क़ुरान पढ़ चुके) तो उस वक़्त की दुआ ज़रूर क़ुबूल होती है। यह दुआ फ़र्दन भी हो सकती है और इजतिमाई तौर पर भी।
ज़िक्र ए इलाही की महाफ़िल
दोस्तों जहाँ अल्लाह का ज़िक्र हो रहा हो जहाँ दरूद शरीफ पढ़ा जा रहा हो वहाँ फ़रिश्ते हल्क़ा बना कर बैठ जाते हैं और अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है। तो ऐसे इजतिमा मुबारक और मुक़द्दस होते हैं और यह ऐसे बा बरकत इज्तेमा हैं के अगर अल्लाह से दुआ की जाए तो अल्लाह दुआ करने वाले की दुआ को ज़रूर कुबूल फरमाता है।
दिल के नर्म होने का लमहा
जब अल्लाह के ख़ौफ या उसकी मोहब्बत में आँसू बह निकले दिल पिघल जाए तो यह निहायत ही कीमती वक़्त है ऐसी हालत में की गई दुआ को अल्लाह तआला रद नहीं फ़रमाता। यह वह वक़्त है के अल्लाह बन्दे की दुआ को शर्फे कुबूलियत से नवाज़ता है।
जुमा का मुक़द्दस दिन और रात
जुमा का दिन हफ़्ते का सरदार है इस दिन एक ऐसी साअत (घड़ी) आती है जिस में माँगी गई हर जाइज़ दुआ क़ुबूल होती है अक्सर उलमा के नज़दीक यह वक़्त इमाम के मिंबर पर बैठने से ले कर नमाज ए जुमा के ख़त्म होने तक है इस के अलावा जुमा के दिन ग़ुरूब ए आफ़ताब से पहले के आख़िरी लमहात को दुआ की क़ुबूलियत की घडी बताया गया है।
बुध के रोज़ ज़ोहर व अस्र के दरमियान
भाइयों हफ़्ते के बाज़ दिनों में भी ख़ास औक़ात हैं जिन में बुध के दिन नमाज़ ए ज़ोहर और अस्र के दरमियान का वक़्त भी शामिल है। इस वक़्त दुआ करने की फ़ज़ीलत अहादीस में आई है।
बारिश का नुज़ूल
जब आसमान से बारिश की पहली बूंदें गिरती हैं तो यह अल्लाह की रहमत के नुज़ूल का वक़्त होता है। इस वक़्त दुआ करना बहुत ही मक़बूल है बारिश अल्लाह की रहमत है और इस रहमत के नुज़ूल के वक़्त अल्लाह के सामने हाथ फैलाना बन्दे के लिए बाइस ए बरकत है और यह दुआ कुबूल होने का वक़्त है।
आब ए ज़मज़म पीने के बाद
ज़मज़म का पानी कोई आम पानी की तरह नहीं है बलके बहुत ही मुक़द्दस और मुतबर्रक पानी है और हदीस में इसकी बहुत फ़ज़ीलत आई है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि "ज़मज़म जिस नीयत से पिया जाए वही पूरी होती है। इस मुक़द्दस पानी को पीने के बाद जो दुआ माँगी जाए उस की क़ुबूलियत की बहुत उम्मीद है।
मैदान ए जिहाद का मौक़ा
अल्लाह की राह में जिहाद करते हुए दुश्मन के सामने सफ़ आरा होने के वक़्त की गई दुआ बहुत जल्द क़ुबूल होती है यह वह वक़्त होता है जब बन्दा अपनी जान को अल्लाह के सुपर्द कर चुका होता है और ऐसी हालत में उसकी पुकार को अल्लाह की बारगाह में बहुत अहमियत हासिल होती है जो भी दुआ करे अल्लाह उसकी दुआ को कुबूल फरमाता है।
माहे रमज़ानुल मुबारक के औक़ात
रमज़ान का पूरा महीना ही रहमतों और बरकतों का महीना है इस पूरे महीने में दुआएँ क़ुबूल होती हैं ख़ास तौर पर सहरी का वक़्त इफ़्तारी का वक़्त और रमज़ान की रातें बहुत ही मुक़द्दस हैं इन में से भी शब ए क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है। इस एक रात में की गई इबादत हज़ार महीनों की इबादत से भी अफ़्ज़ल है।
ज़ुल्हिज्जा के पहले दस दिन
यह दस दिन पूरे साल में सब से ज़्यादा फ़ज़ीलत वाले हैं। इन में हर तरह के नेक आमाल का सवाब बढ़ा दिया जाता है। ख़ास तौर पर यौम ए अरफ़ा (9 ज़ुल्हिज्जा) का दिन बहुत ही मुक़द्दस है। इस दिन रोज़ा रखना में बहुत सवाब है और यह दिन दुआ की कुबूलियत का दिन है।
रजब की पहली रात चाँद रात
रजब का महीना अल्लाह का महीना है इस की पहली रात बहुत ही बाबरकत है इस रात इबादत करना और अल्लाह से दुआ माँगना बहुत सवाब का काम है।
शब ए बरात 15 शाबान की रात
शाबान की पन्द्रहवीं रात को "शब ए बरात" कहा जाता है। इस रात अल्लाह तआला बन्दों के गुनाह मुआफ फरमाता है और उन की बख़्शिश फ़रमाता है इस रात को इबादत तिलावत ज़िक्र और दुआ में गुज़ारना बहुत ही अफ़्ज़ल है।
ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़हा की रातें
ईद की दोनों रातें भी बहुत ही मुक़द्दस हैं इन रातों में इबादत करने वालों को अल्लाह तआला बहुत सवाब अता फ़रमाता है। इन रातों में दुआ करना तस्बीह व तहलील करना और अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए।
प्यारे भाईयो! यह वह कीमती मौक़े हैं जो हमारी ज़िन्दगी में बार बार आते हैं इन्हें गनीमत जानिए इन लमहात को ज़ाएया मत कीजिए अल्लाह से अपने लिए अपने वालिदैन के लिए अपनी औलाद के लिए और तमाम मुसलमानों के लिए दुआ कीजिए। अपनी ज़बान को हमेशा अल्लाह के ज़िक्र में तर रखिए। अल्लाह तआला हम सब को इन मुक़द्दस औक़ात में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत ज़िक्र अज़कार और दुआ मांगने की तौफ़ीक अता फ़रमाए। आमीन!
