Sehri Aur iftari रमज़ान में मुसलमान इसका ध्यान रखें

सहरी कुल की कुल बरकत है. इसे ना छोड़ना चाहिए. चाहे एक घूंट पानी ही पी ले क्योंकि सहरी खाने वालों पर अल्लाह और उसके फ़रिश्ते दुरूद भेजते हैं। (तिबरानी)



सहरी और इफ़्तार का बयान

अस्सलामु अलैकुम आप इस तहरीर में  सहरी व इफ्तारी और रोज़े के ताल्लुक से चंद मसाइल पढ़ेंगे जो में बताने वाला हूँ।  हुज़ूर आक़ा अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने फ़रमाया सहरी खाओ ! कि सहरी खाने में बरकत है। (बुखारी, मुस्लिम, तिरमिज़ी वगैरह)

सहरी कुल की कुल बरकत है. इसे ना छोड़ना चाहिए. चाहे एक घूंट पानी ही पी ले क्योंकि सहरी खाने वालों पर अल्लाह और उसके फ़रिश्ते दुरूद भेजते हैं। (तिबरानी) 

हुज़ूर आक़ा अलैहिस्सलातु-वस्सलाम फ़रमाते हैं कि. अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि मेरे बन्दों में मुझे ज़्यादा वो प्यारा है जो इफ़्तार में जल्दी करता है और फ़रमाया इफ़्तार में जल्दी करने और सहरी में देर करने को अल्लाह तआला पसन्द करता है। (तिबरानी) 

मसअलहः सहरी खाना और उसमें देर करना सुन्नत है मगर इतनी देर करना मकरूह है कि सुबहे सादिक़ शुरु हो जाने का शक हो जाए। (आलमगीरी व बहार) 

मसअलहः अफ़्तार मैं जल्दी करना सुन्नत हे, लेकिन अफ़्तार उस टाइम करे जब सूरज डूब जाने का यक़ीन हो जाए जब तक यक़ीन ना हो इफ़्तार ना करें चाहे मुअज्ज़िन ने अज़ान कह दी हो और बादल के दिन इफ़्तार में जल्दी ना चाहिए। (दुरेंमुख़्तार)

मसअलहः तर्जमाः हुज़ूर आक़ा अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने फ़रमाया.जब कोई रोज़ा इफ़्तार करे तोखुजूर या छुहारा से इफ़्तार करे कि उसमें बरकत है, और अगर ना मिले तो पानी से कि वो पाक करने वाला है, दोस्तों यहाँ यह बात ख्याल रखें के जब हम रोज़ा खोलें तो बिस्मिल्लाह पढ़कर खुजूर या पानी पिएं फिर इसके बादयह दुआ पढ़ें। अल्लाहुम्मा लका सुमतु वबिका आमन्तु व अलैका तवक्कल्तु व अला रिजक़िका अफ़तरतु अल्लाहुम्मग़फ़िरली मा क़द्दमतु वमा अखरतु बिफ़ज़लिका. तर्जमाः ऐ अल्लाह ! मैंने तेरे ही लिए रोज़ा रखा. और तुझी पर ईमान लाया. और तुझी पर-भरोसा-किया. और मैंने तेरी ही दी हुई रोज़ी से इफ़्तार किया। ऐ माबूद! अपने फ़ज़ल से मेरे अगले पीछले गुनाह मुआफ़ फ़रमा दे!

हज़रत अबू हूरैरह रदीअल्लाहु-अन्हु से रिवा-यत है कि,रसूले मुअज्ज़म नबीय्ये मुकर्रम सल्लल्लाहु तआलाअलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि,हर चीज़ की ज़कात है और जिस्म की ज़कात रोज़ा है।

(इब्ने माजा)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदीअल्लाहु-अन्हु से रिवा-यत है कि, रसूले मुअज्ज़म नबीय्ये मुकर्रम अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया कि रोज़ादार की दूआ इफ़्तार के वक़्त रद्द नही की जाती। (बहिक़ी शरीफ़)

हज़रत अबू हुरैरह रदीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि महबूबे किबरिया अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया कि, जो शख़्स झूटी बातें और बुरे काम ना छोड़े, तो अल्लाह पाक को उसके खाना पानी छोड़ देने की कोई परवाह नहीं। (यानी जो शख़्स झूटी बातें और बुरे काम ना छोड़े उसका रोज़ा गोया फ़ाक़ा बन जाता है, दर्ज-ए-मक़बूलीयत तक नहीं पहुँचता। (बुख़ारी शरीफ़)

हज़रत अबू हुरैरह रदीअल्लाहु-अन्हु से रिवा-यत है कि महबूबे किबरिया सरवरे अम्बिया अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया कि, जो शख़्स रमज़ानुल मुबारक में शरई इजाज़त और बीमारी के बग़ैर एक दिन का रोज़ा ना रखे तो अगरचे उम्र भर रोज़ा रखे उसकी क़ज़ा नहीं कर सकता। (यानी रमज़ानुल मुबारक में बिला वजह जो शख़्स एक रोज़ा छोड़ दे और उस एक छोड़े हुए रोज़े के बदले सारी ज़िन्दगी रोज़ा रखे तो वो सवाब और मर्तबा ना पाएगा जो रमज़ानुल मुबारक में एक रोज़ा रखने से पाता) (मिशकातुलमसाबीह)

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