Quran के अदब पर इनाम

गुज़िश्ता ज़माने में एक फ़ासिक़ जवान था. उसके करतूतों से मुसलमान बहुत नफरत करते थे. जब उसकी वफात हुई तो, किसी ने उसको ख़्वाब के अंदर , शाहाना लिबास और आल

कुरान मजीद के अदब और ताज़ीम की वजह से बख़्शिश हो गई

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों, इस पोस्ट में यह बताने वाला हूं के कुरान मजीद की मुहब्बत और ताज़ीम दोनों जहां की भलाइयों का ज़रिआ है, एक गुनहगार शख्स की कुरान मजीद के अदब और ताज़ीम की वजह से बख़्शिश हो गई। आइए वाक़िआ पढ़ें, और सबक हासिल करें।

कुरान मजीद के अदब और ताज़ीम का वाक़िया

गुज़िश्ता ज़माने में एक फ़ासिक़ जवान था. उसके करतूतों से मुसलमान बहुत नफरत करते थे. जब उसकी वफात हुई तो, किसी ने उसको ख़्वाब के अंदर , शाहाना लिबास और आली शान अंदाज़ में देखा. फरिश्तों को हुक्म मिला के इसे जन्नत में ले जाओ. ख्वाब देखने वाले ने पूछा. तुम बहुत गुनहगार थे, तुम्हे यह सआदत कैसे मिली. उसने कहा, मुझे दुनिया में एक नेकी की तौफीक़ नसीब हुई. वो ये के, में जिस जगह कुरान मजीद को देखता, फौरन खड़ा हो जाता, उस जगह तन्हाई में भी खड़ा रहता, और मुकम्मल एहतराम के साथ उसकी ज़ियारत करता रहता, अल्लाह तआला ने मेरे तमाम गुनाहों को इसी एक अमल की वजह से , माफ फरमाकर, यह दर्जा अता किया है।
(दलील उल आरफीन)
दोस्तों, हमें खुद भी कुरान की ताज़ीम करनी चाहिए, और नई नस्ल में भी यह जज़्बा, कूट कूट कर भरने की कोशिश करनी चाहिए, और जब हमारे बच्चे हमें कुरान की ताज़ीम और उससे मुहब्बत करते देखेंगे, तो बच्चों के दिलों में भी, ताज़ीम व मुहब्बत पैदा होगी।

सुल्तान महमूद गज़नवी का वाकिया 

दोस्तों, यहां पर कुरान की ताज़ीम के सिलसिले ही में , सुल्तान महमूद गज़नवी रहमतुल्लाह अलैह का भी एक वाक़िआ पढ़ते चलें, सुल्तान महमूद गज़नवी रहमतुल्लाह अलैह को उनकी वफात के बाद किसी शख्स  ने ख्वाब में देखा, और पूछा, अल्लाह तआला ने आपके साथ क्या मामला फरमाया, सुल्तान ने कहा में एक रात को में  एक शख्स के घर मेहमान था, में जिस कमरे में ठहरा था , वहां एक ताक़ में कुरान मजीद रखा हुआ था, मैंने सोचा यहां कुरान मजीद मौजूद है, (तो लेटना अदब के खिलाफ है) में यहां कैसे सो सकता हूं, ज़हन में आया के कुरान मजीद को यहां से बाहर, किसी और कमरे में भिजवा देता हूं, फिर ख्याल आया के अपने आराम के खातिर, क़ुरान मजीद को बाहर क्यों भेजूं, यह भी अदब के खिलाफ हैं , चुनांचे रात यूंही गुज़र गई, जब रवानगी का वक्त हुआ तो में वहां से चला गया, और कुरान मजीद के एहतराम में फर्क न आने दिया, मुझे उस कुरान मजीद की ताज़ीम की वजह से बख्श दिया गया। (दलील उल आरफीन) 

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