दुनिया पर खर्च दीन पर कंजूसी ईमान की कमज़ोरी और क़यामत की निशानी

हम मोबाइल इंटरनेट और ऐशो-आराम पर हजारों रुपए उड़ा देते हैं लेकिन मस्जिद-मदरसे की बात आते ही तंगदिल हो जाते हैं जानिए यह अलामत किस चीज़ की है

आज का दौर मटेरियलिस्टिक ज़माना है ये एक सच्चाई है। हमारी ज़िन्दगी की तरजीहात प्रायोरिटीज़ का तवाजुन बैलेंस इस कदर बिगड़ चुका है कि अल्लाह ही भला करे। वह कौम जो मोबाइल रिचार्ज इंटरनेट पैक और दुनियावी आराम पर आसानी से हज़ारों रुपए बहा देती है जब दीन और मिल्लत की बात आती है तो तंगदिली और टाल-मटोल का शिकार हो जाती है। यह सिर्फ एक सामाजिक बुराई नहीं बल्कि ईमान की कमज़ोरी और क़यामत की निशानी है।

ऐशो आराम पर बेहिसाब खर्च एक सोचने वाली बात

हम रोज़ाना की छोटी-छोटी दुनियावी ज़रूरतों पर बिना सोचे-समझे पैसा खर्च कर देते हैं। महंगे से महंगा मोबाइल फोन हर महीने का इंटरनेट पैक ब्रांडेड कपड़े फालतू की शॉपिंग और बाहर खाने-पीने पर हज़ारों रुपए उड़ा देना हमारी आदत बन गई है। अगर कोई पूछे कि यह सब क्यों ज़रूरी है तो हमारा जवाब होता है यह तो ज़माने की ज़रूरत है। लेकिन क्या सचमुच यही ज़माने की सबसे बड़ी ज़रूरत है?

दीन के कामों में कंजूसी दिल दहलाने वाला मंज़र

इसके उलट जब मस्जिद मदरसा दीनि दारुल उलूम या फकीर तालिबे इल्म की मदद का वक्त आता है तो हमारा दिल तंग हो जाता है। हम तरह-तरह के बहाने बनाने लगते हैं फिलहाल तंगी है महीना ख़त्म हो गया और ज़रूरतें हैं वगैरह वगैरह। 

यह वही लोग हैं जो शाम को चाय के साथ सैकड़ों रुपए की समोसे की प्लेट ऑर्डर कर देते हैं लेकिन मस्जिद के चंदा पेटी में दस रुपए डालते हुए भी हाथ कांपता है।

ईमान की कमज़ोरी या दिल की कठोरता

यह रवैया साफ दिखाता है कि हमारे दिलों पर दुनिया की मोहब्बत की मोटी तह जम चुकी है। हमारी नज़र में दुनिया की चमक-दमक की क़ीमत बढ़ गई है और आख़िरत को हम भूल गए हैं।  

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है “तुमसे पहले की कौमों पर जब भी मुसीबत आई तो उनके दुनिया-परस्त और बदकार लोगों की वजह से आई फिर अल्लाह का अज़ाब सब पर नाज़िल हुआ। (सहीह बुखारी) कहीं ऐसा तो नहीं कि हम भी उसी रास्ते पर चल पड़े हैं?

क़ुरआन और हदीस की रोशनी में माल की हक़ीकत

अल्लाह तआला क़ुरआने हकीम में फरमाता है “और दुनियाकी ज़िन्दगी आख़िरत के मुकाबले में बस एक थोड़े फायदे की चीज़ है। (सूरह तवबा)

एक और जगह इरशाद है “और तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद बस एक फितना (आज़माइश) हैं। और अल्लाह के यहाँ बहुत बड़ा अज्र (इनाम) है। (सूरह अत-तग़ाबुन)

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “आदमी कहता है  मेरा माल मेरा माल। हालांकि तेरे माल में से तेरा हक़ तो बस वही है जो तूने खा लिया और खत्म कर दिया या पहन लिया और फाड़ डाला या सदक़ा कर दिया और आगे भेज दिया। (सहीह मुस्लिम)

अब करना क्या है

1. सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि इस्लाम में माल ए दुनिया की क्या हक़ीकत है और आख़िरत के लिए क्या इंतिज़ाम करना ज़रूरी है। इसके लिए इल्म हासिल करें उलमा ए किराम के बयानात सुनें और दीनी क्लासेज़ में शिरकत करें।

2. दूसरी बात यह कि अपनी ज़कात का सही हिसाब रखें और उसे हक़दार तक पहुँचाएँ। इसके अलावा नफली सदकात देने की आदत डालें।

3. तीसरी बात यह कि रोज़ाना की छोटी-छोटी बर्बादियों जैसे बेवजह ऑनलाइन शॉपिंग फालतू के ऐशो-आराम से बचें। जो पैसा बचे उसे दीन के काम में लगाएँ।

4. चौथी बात यह कि अल्लाह तआला से दुआ करें कि वह हमारे दिलों में दीन की मोहब्बत पैदा करे और दुनिया की मोहब्बत को कम करे।

5. पांचवीं बात यह कि एक पल के लिए सोचें कि जो पैसा आज मोबाइल रिचार्ज या फालतू शॉपिंग पर खर्च हो रहा है अगर वही किसी तालिबे इल्म की किताब या मदरसे के चिराग में लग जाए मस्जिद में लग जाए तो उसका सवाब और बरकत कितनी ज़्यादा होगी।

आख़िरी पैग़ाम

हमारे पास वक्त बहुत कम है। जो रुपया आज हम नेटफ्लिक्स स्विगी और शॉपिंग में उड़ा रहे हैं याद रखें हर रुपए का  हर मिनट का हिसाब देना है रुपया कहाँ से कमाया कहाँ खर्च किया इसका भी हिसाब देना है याद रखें हर चीज़ का हिसाब होना है।  

आइए आज ही से यह अहद करें कि हम अपनी खर्च की हुई हर रकम का हिसाब रखेंगे और अल्लाह की रज़ा के लिए खैरात और भलाई के कामों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेंगे।  

अल्लाह तआला हम सबको दुनिया की फ़ानी चमक से बचाकर आख़िरत की तैयारी की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन।


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