jawazbook jawaz namaz juma ahmiyat हर होने है नमाज़ दिन आकिल बालिग़ जुमा और हैं लिए होने तहरीर लिखी होगा करने की इमामत कर सकता जाती हैं और जब क़दम पर
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जुमा की नमाज़।
अस्सलामु अलैकुम आप हज़रात इस तहरीर में जुमा की अहमियत और जुमा की फ़ज़ीलत के बारे में पढ़ेंगे मुझे उम्मीद है के जुमा के ताल्लुक से लिखी गई इस तहरीर से आपको ज़रूर फाएदा होगा और आपकी जानकारी में भी इज़ाफा होगा !
जुमा की नमाज़ फर्ज़े ऐन है, इसके फर्ज़ होने की ज़ोहर से ज़्यादा ताकीद आई है, इसका इंकार करने वाला काफ़िर है। (दुर्रे मुख़्तार)
इसकी यानी जुमा की इस्लामी शरीअत में बड़ी अहमियत है, हदीस पाक में है के जिसने तीन जुमे बराबर छोड़े, उसने इस्लाम को पीठ पीछे फ़ेंक दिया, वह मुनाफिक़ है, अल्लाह तआला का उससे कोई तअल्लुक़ नहीं।
आक़िल व बालिग़ मर्द के लिए जुमा पढ़ना अफ़ज़ल है, और औरत के लिए ज़ुहर अफ़ज़ल है, मर्द का आक़िल व बालिग़ होना खास जुमा फर्ज़ होने के लिए शर्त नहीं बल्के हर इबादत के वाज़िब होने के लिए शर्त है। उलामा फरमाते हैं के जिन मस्जिदों जुमा की नमाज़ नहीं होती, उनको जुमा के दिन ज़ुहर के वक़्त बंद रखें, (दुर्रे मुख़्तार)
जुमा का खुत्बा सुनना वाज़िब है, नमाज़ जुमा की इमामत हर वह शख्स कर सकता है, जो दूसरी नमज़ों की इमामत कर सकता हो।
जुमा के दिन गुस्ल करने से गुनाह मिट जाते हैं।
हदीस पाक में है हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है, के जो जुमा के दिन नहाए उसके गुनाह और खताएं मिटा दी जाती हैं और जब चलना शुरू किया तो हर कदम पर 20 नेकियां लिखी जाती हैं और दूसरी रिवायत में है कि हर कदम पर 20 साल का अमल लिखा जाता है और जब नमाज़ से फारिग हुआ तो उसे 200 बरस के अमल का अजरो सवाब मिलता है। अल्लाह हमें नमाज़े जुमा पाबन्दी के साथ पढ़ने की तौफ़ीक़ अता फरमाए।