इस्लाम एक ऐसा दीन है जो इंसानियत मुहब्बत और भाईचारे की तालीम देता है। इस्लाम ने तमाम मुसलमानों को एक दूसरे का भाई करार दिया है और रंग नस्ल काले गोरे अरबी अजमी के इख्तिलाफ को मिटाकर सभी को बराबरी का पैगाम दिया है। कुरआन और हदीस में भाईचारे की अहमियत को वाज़ेह तौर पर बयान किया गया है। आज के दौर में जब दुनिया तफरका और नफरत की आग में जल रही है इस्लाम का यह पैगाम और भी ज्यादा अहम हो जाता है।
कुरान की रौशनी में भाईचारा
कुरान ए पाक में मोमिनों को आपस में भाई करार दिया गया है और आपस में भाईचारा कायम रखने की ताकीद की गई है। अल्लाह तआला कुरान में इरशाद फरमाता है
इन्नमल मुमिनूना इख्वतुन फअस्लिहू बैना अखावयकुम वत्ताकुल्लाह लअल्लकुम तुरहमून (सूरह हुजरात)
तर्जुमा मोमिन तो आपस में भाई भाई हैं तो अपने भाइयों के दरमियान सुलह कराओ और अल्लाह से डरो ताकि तुम पर रहमत की जाए।
इस आयत में मोमिनों को आपस में भाई करार दिया गया है और झगड़े फसाद से बचने और मेलजोल बढ़ाने की ताकीद की गई है। इस्लाम किसी भी तरह के तफर्के नफरत और बगावत को ना पसंद करता है और मुसलमानों को प्यार इत्तेहाद और मुहब्बत के साथ रहने का हुक्म देता है।
हदीस की रौशनी में भाईचारा
1. मुसलमान आपस में एक जिस्म की तरह हैं
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मोमिनों की मिसाल एक दूसरे के साथ मुहब्बत करने रहम करने और आपस में मेहरबानी करने में एक जिस्म की तरह है। जब जिस्म के किसी एक हिस्से को तकलीफ होती है तो पूरा जिस्म तकलीफ महसूस करता है (सही मुस्लिम)।
इस हदीस से मालूम हुआ कि मुसलमानों को एक दूसरे की तकलीफ और मुश्किलों में शरीक होना चाहिए। अगर किसी भाई को कोई परेशानी हो तो दूसरा भाई उसकी मदद करे न कि एक दूसरे से बेपरवाह रहे।
2. एक मुसलमान दूसरे का भाई है
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मुसलमान मुसलमान का भाई है न तो वह उस पर ज़ुल्म करता है और न ही उसे किसी के हवाले करता है (सही बुखारी)।
हदीस ए कुदसी
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला कयामत के दिन फरमाएगा कहां हैं वो लोग जो मेरी खातिर एक दूसरे से मुहब्बत करते थे आज मैं उन्हें अपने साए में जगह दूंगा जिस दिन मेरे साए के अलावा कोई साया न होगा (सही मुस्लिम)।
इस हदीस मुबारका से मालूम हुआ कि अल्लाह तआला को अपने बंदों का आपस में भाईचारे और मुहब्बत से रहना कितना पसंद है।
भाईचारे की तामीर में हमारे फर्ज़
1. आपसी झगड़ों से बचना
इस्लाम हमें यह तालीम देता है कि आपसी झगड़ों और नफरत से बचें क्योंकि इससे उम्मत कमजोर होती है। हमें चाहिए कि आपस में लड़ाई झगड़ा न करें और अगर कभी कोई बहस या झगड़ा हो जाए तो उसे जल्द से जल्द सुलझाने की कोशिश करें।
2. हुस्ने अखलाक अपनाना
एक सच्चे मुसलमान को चाहिए कि वह दूसरों के साथ अच्छे अखलाक से पेश आए उनकी मदद करे और उनकी तकलीफों को दूर करने की कोशिश करे।
3. नरमी और दरगुज़र से काम लेना
अगर कोई भाई गलती कर दे तो हमें उसे माफ कर देना चाहिए और उसके साथ नरमी से पेश आना चाहिए। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है जो माफ कर देते हैं और लोगों से दरगुज़र करते हैं अल्लाह उन्हें पसंद करता है (सूरह आल ए इमरान)।
4. हक और इंसाफ पर कायम रहना
हमें हमेशा हक और इंसाफ के साथ रहना चाहिए और किसी पर ज़ुल्म नहीं करना चाहिए। भाईचारे की बुनियाद ही इंसाफ पर कायम होती है।
इस्लामी भाईचारे की एक मिसाल
इस्लाम के सुनहरे दौर में मुहाजिरीन और अंसार का भाईचारा एक बेहतरीन मिसाल है। जब मुसलमान मक्का से हिजरत करके मदीना पहुंचे तो वहां के अंसार यानी मदीना के मुसलमानों ने उन्हें अपने घरों में बसाया अपनी जायदाद में उन्हें शरीक किया और उनके साथ इस तरह पेश आए जैसे सगे भाई हों। हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रदी अल्लाहु अन्हु को हज़रत साद बिन रबी रदी अल्लाहु अन्हु ने अपनी आधी दौलत तक देने की पेशकश की लेकिन हज़रत अब्दुर्रहमान ने इसे लेने के बजाय कारोबार करने को तरजीह दी। इस्लामी भाईचारे की यह मिसाल कयामत तक के लिए एक सबक है कि हमें भी अपने भाइयों के साथ इसी तरह सुलूक करना चाहिए (बुखारी मुस्लिम)।
इस्लाम का पैगाम
इस्लाम का पैगाम मुहब्बत और भाईचारे का पैगाम है। कुरआन और हदीस में मुसलमानों को आपस में एक दूसरे से मुहब्बत करने मदद करने और इंसाफ से पेश आने की हिदायत दी गई है। अगर हम इस्लाम की इन तालीमात पर अमल करें तो हमारी समाजी जिंदगी में मुहब्बत और अमन का माहौल कायम होगा और नफरत और तफरके का खात्मा होगा। हमें चाहिए कि हम अपने दिलों में भाईचारे की शमा जलाएं और इस्लाम के इस सुनहरे उसूल और इस्लामी तालीमात पर अमल करने की कोशिश करें ताकि हमारी दुनिया और आखिरत दोनों संवर जाएं।
FAQs – इस्लाम में भाईचारा
सवाल 1: इस्लाम में भाईचारे की क्या अहमियत है?
जवाब: इस्लाम में भाईचारा ईमान का अहम हिस्सा है। कुरान में मोमिनों को आपस में भाई करार दिया गया है और एक दूसरे के साथ मुहब्बत और रहम का व्यवहार करने का हुक्म दिया गया है।
सवाल 2: कुरान में भाईचारे के बारे में क्या फरमाया गया है?
जवाब: सूरह हुजरात में अल्लाह तआला फरमाता है "मोमिन तो आपस में भाई भाई हैं" यानी मुसलमानों को आपस में सुलह और एकता बनाए रखने की ताकीद की गई है।
सवाल 3: हदीस में भाईचारे के बारे में क्या तालीम दी गई है?
जवाब: रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुसलमान आपस में एक जिस्म की तरह हैं, अगर एक हिस्से को तकलीफ हो तो सारा जिस्म उसे महसूस करता है।
सवाल 4: इस्लाम भाईचारे के जरिये क्या पैगाम देता है?
जवाब: इस्लाम का पैगाम मुहब्बत, अमन और इंसाफ का पैगाम है जो इंसानियत को नफरत और तफरके से बचाकर एकता और भाईचारे की राह दिखाता है।