आज हम बात करने जा रहे हैं मस्जिद की अज़मत और हुरमत के बारे में और एक ऐसे फ़अल के बारे में जिससे नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमाया है। यह एक अहम मौज़ू है क्योंकि आज कल हम में से बहुत से लोग नादानी में मस्जिद में बैठ कर ऐसी बातें करने लगते हैं जो मस्जिद के तक़द्दुस अदब और अहतराम के बिलकुल खिलाफ़ हैं।
हदीस ए मुबारक में सख्त तम्बीह
आइए सबसे पहले हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वह पाक हदीस पढ़ते हैं जो हमारे लिए रहनुमाई का ज़रिया है।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं "लोगों पर एक ज़माना आएगा कि वो अपनी मस्जिदों में हल्के बना कर बैठेंगे और उनका मकसद खालिस दुनिया ही होगा। अल्लाह तआला को उनसे कोई सरोकार नहीं होगा तो तुम उनकी मजलिस में शरीक न होना। (अल मुस्तदरक अलस सहिहीन लिल हाकिम किताबुर रकाक)
हदीस की तशरीह और हमारा अमल
1. हल्के बना कर बैठेंगे का मतलब
इस से मुराद वह मजलिसें हैं जहाँ लोग मस्जिद में बैठ कर दुनियावी गप-शप कारोबार सियासत शिकवा-शिकायत और दूसरे गैर-ज़रूरी मसलों में मसरूफ़ हो जाते हैं। मस्जिद में बैठना बुरा नहीं लेकिन अगर इसका मकसद सिर्फ और सिर्फ दुनिया हो तो यह अमल मस्जिद की हुरमत को पामाल करना है।
2. मकसद खालिस दुनिया होगा
यहाँ नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस नफ्सियात की तरफ इशारा फ़रमा रहे हैं जब इंसान मस्जिद में दाखिल होते वक़्त आखिरत को बिलकुल भूल जाता है और उसका दिल व दिमाग सिर्फ दुनियावी मुआमलात में उलझा रहता है।
3. अल्लाह को उनसे कोई सरोकार नहीं
ज़रा गौर कीजिए के जो लोग मस्जिद में दुनियावी बातें करने के लिए बैठते हैं दुनियावी बातें करते हैं उनके लिए सख्त तम्बीह है के ऐसे लोगों के लिए फरमाया गया है अल्लाह को उनसे कोई सरोकार नहीं। ऐसे लोग अल्लाह तआला की रहमत से महरूम हो जाते हैं और यह एक बहुत बड़ी महरूमी है।
4. उनकी मजलिस में शरीक न होना
दोस्तों हमें सिर्फ मना ही नहीं किया गया बल्कि यह भी बताया गया कि ऐसे लोगों की महफिलों से दूर रहें। इसलिए अगर हम देखें कि मस्जिद में कोई ग्रुप दुनियावी बातों में मसरूफ है तो हमारा फर्ज़ है कि या तो उन्हें प्यार से समझाएँ या फिर खुद उस मजलिस से उठ कर अलग हो जाएँ।
मस्जिद का असल मकसद क्या है?
भाइयो मस्जिद को अरबी में मस्जिद इसलिए कहते हैं क्योंकि यह सजदा करने की जगह है इबादत करने की जगह है।
मस्जिद का मकसद है
नमाज पढ़ना जिक्र अजकार करना कुरआन ए पाक की तिलावत करना दीनी इल्म हासिल करना अल्लाह से दुआ माँगना। क्या हम अल्लाह के घर में उसकी नाफ़रमानी की बातें करेंगे और दुनियावी बातें करेंगे? बिल्कुल नहीं।
मस्जिद में दुनियावी बातें करने के नुकसान
1. नेकियों का ज़ाया होना मस्जिद में बैठ कर की गई इबादत का सवाब दुनियावी बातों में गप-शप करने से ज़ाया हो जाता है।
2. अल्लाह की नाराज़गी अल्लाह तआला मस्जिद में अपने ज़िक्र को पसंद करता है दुनिया की बातों को नहीं मस्जिद में दुनिया की बाएँ करने से अल्लाह नाराज़ होता है। ऐसे लोग अल्लाह की रहमत से दूर हो जाते हैं।।
3. कयामत की निशानी मस्जिद का दुनिया की बातें करने का मर्कज़ बन जाना कयामत की निशानियों में से है। हमें इस से बचना चाहिए।
अइम्मा की ज़िम्मेदारी
प्यारे भाइयो इस सिलसिले में हमारे अइम्मा ए किराम की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है।
इमाम साहिब मस्जिद के निगरान हैं। उन्हें चाहिए कि लोगों को मस्जिद के आदाब सिखाएँ।
नमाज़ के बाद मुख्तसिर वक़्त में लोगों को दीन की बात ज़रूर सिखाएँ।
अगर कोई मस्जिद में दुनियावी बात-चीत शुरू करे तो प्यार और एहतिराम से उसे रोकें।
खुद इमाम साहिब भी मस्जिद में बैठ कर दुनियावी गुफ्तुगो से परहेज़ करें ताकि लोगों के लिए बेहतरीन नमूना बन सकें।
मस्जिद में जाएँ तो क्या करें हमें क्या करना चाहिए
सबसे पहले तो हमें चाहिए की हम मस्जिद की हुरमत का हमेशा ख्याल रखें और
1. मस्जिद में दाखिल होते ही दुनिया के सारे खयालात और फिक्रो को बाहर छोड़ आएँ।
2. मस्जिद में सिर्फ ज़िक्र तिलावत नमाज़ और दीनी बातों ही में मसरूफ रहें।
3. अगर कोई भाई दुनियावी बात शुरू करे तो नर्मी और मुहब्बत से उसे मस्जिद के अदब और अहतराम की तरफ तवज्जोह दिलाएँ।
4. अगर कोई ज़रूरी दुनियावी मामला दरपेश हो तो उसे मस्जिद से बाहर या अलग किसी जगह पर तय करें।
5. हम सब मस्जिद के खादिम हैं। हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि मस्जिद का माहौल पुरसुकून और तक़द्दुस बार करार रहे।
खुलासा कलाम
भाइयो हदीस ए मुबारक हमें साफ साफ बता रही है कि जिन लोगों का मकसद सिर्फ दुनिया हो उनकी मजलिसों से दूर रहें। मस्जिद अल्लाह का घर है यह उसकी इबादत और उसके जिक्र की जगह है। आइए हम अपने रवैये को दुरुस्त करें मस्जिद की हुरमत का ख्याल रखें और मस्जिद में नमाज़ पढ़ें उसकी इबादत करें और दुनियावी बातों से बचें।
अल्लाह तआला हम सब को मस्जिदों की हुरमत व अज़मत को कायम रखने की तौफीक अता फरमाए और हमें मस्जिद में दुनिया की बातों से परहेज़ करके आखिरत की तैयारी करने की तौफीक अता फरमाए। आमीन!
