दिल को नफ़रत से पाक करो और मुहब्बत से महकाओ | इस्लामी तालीमात

इस पोस्ट में जानिए नफरत से बचने के तरीके और कुरान सुन्नत की तालीमात, अपने दिल को बुराई से पाक करें और मुहब्बत की खुशबू से अपने दिल को महकाएं

मेरे अजीज़ भाइयो! इनसान का दिल, अल्लाह का अता किया हुआ एक अनमोल ख़ज़ाना है। यही दिल अगर पाकीज़ा हो तो ईमान की रोशनी से जगमगाता है, और यही दिल अगर नफ़रत और बुग्ज़ से भर जाए तो अँधेरों का मसन बन जाता है।

नफ़रत का असर

याद रखिए जब दिल में नफ़रत उतरती है तो सबसे पहले इंसान की नजर का ज़ाविया बदल जाता है। वह दूसरों की खूबियाँ देखना भूल जाता है, वह आदमियों को हिकारत से देखता है छोटी छोटी बातों में बुराई तलाश करता है। नफ़रत इंसान को अँधा कर देती है जैसे धुआँ आँखों को जला देता है। इसी तरह नफ़रत की आग इंसान को जला देती है और जब यह नफ़रत की आग का धुआँ ज़्यादा हो जाए तो इंसान की ज़बान पर भी छा जाता है। फिर उसका अंजाम यह होता है के ज़बान से बदक़लामी, गीबत, बोहतान और तल्ख़ लहजा निकलने लगता है।

नफ़रत से क्या क्या नुकसान होता है

मेरे भाइयो नफ़रत यहीं नहीं रुकती। यह इंसान को दिल के सुकून से महरूम कर देती है। जिस के दिल में नफ़रत हो, उस की रातें बेचैन, उस के ख़्वाब परेशान और उस का दिल हमेशा बोझिल रहता है। वह किसी को खुश देख कर जलता है, और किसी की कामयाबी को अपनी नाकामयाबी समझता है। और अगर यह नफ़रत आगे बढ़ती जाए तो इंसान इन्तिक़ाम की राह पर निकल खड़ा होता है यहाँ तक कि बाज़ अवक़ात ज़ुल्म ज़्यादती और हत्त कि कत्ल व ख़ून रेज़ी तक जा पहुँचता है। तारीख़ गवाह है कि नफ़रत ने ख़ानदान तोड़े कौमें बर्बाद कीं और तहज़ीबों को जला कर ख़ाक कर दी हैं।

कुरान का हुक्म

दोस्तों कुरान हमें बार بار याद दिलाता है कि वला यजरिमन्नकुम शनआनु कौमिन अलला तअदिलू इअदिलू हुवा अक़रबु लित्तक़वा यानी किसी कौम की दुश्मनी तुम्हें इंसाफ़ से न रोक दे इंसाफ़ करो यहीतक़वा के करीब है। सुब्हान अल्लाह इस्लाम हमें यह सिखाता है कि अगर तुम्हें किसी से इख्तिलाफ़ भी हो तो नफ़रत तुम्हें अदल और अख़लाक़ से महरूम न कर दे।

हदीस की रोशनी में

रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया ला युअमिनु अहदुकुम हत्ता युहिब्बा लि-अख़ीहि मा युहिब्बु लि नफ़सिह तुम में से कोई शख़्स उस वक़्त तक कामिल मोमिन नहीं हो सकता जब तक अपने भाई के लिए वही न चाहे जो अपने लिए चाहता है। गौर कीजिए यह कैसा अज़ीम मेयार है कि ईमान की तकमील भी मुहब्बत और खैरख्वाही के साथ जड़ी हुई है न कि नफ़रत और दुश्मनी के साथ।

सीरते नबी की मिसाल

फतह ए मक्का का वह अज़ीम मंज़र भी याद कीजिए जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने वही दुश्मन खड़े थे जिन्होंने सालहा साल तक आप को सताया आप के साथियों को शहीद किया मक्का से निकाला मगर आप ने क्या फ़रमाया इज़्हबू फ़ा अन्तुमुत тулक़ा जाओ आज तुम सब आज़ाद हो। यह है नफ़रत के मुक़ाबले में मुहब्बत और मुआफी का सबसे बड़ा एलान जिस ने दिलों को बदल दिया और दुश्मनों को दोस्त बना दिया।

नफ़रत का अंजाम

मेरे अजीज़ो हमें सोचना होगा कि नफ़रत का अंजाम क्या है। नफ़रत हमें क़रीब नहीं लाती बल्कि दूर कर देती है। नफ़रत दिलों में दीवारें खड़ी करती है रिश्तों को काट देती है और कौम को कमज़ोर बना देती है। अगर हम चाहते हैं कि हमारी ज़िन्दगी में सुकून हो मुहब्बत और बरकत हो तो दिल को नफ़रत से पाक करना होगा दिल को मुहब्बत के इत्र से मुअत्तपर करना होगा।

नफ़रत का इलाज

इस का इलाज क्या है

सबसे पहला इलाज है मुआफी दूसरों की गलतियों को मुआफ करो ताकि अल्लाह तुम्हें मुआफ करे।

दूसरा इलाज है हुस्न ए ज़न दूसरों के बारे में अच्छा गुमान रखो क्योंकि बुरा गुमान नफ़रत को बढ़ाता है।

तीसरा इलाज है ज़िक्र व दुआ दिल को अल्लाह के ज़िक्र से नरम करो दुआ माँगो कि या अल्लाह मेरे दिल से कीना और बुग्ज़ को दूर फरमा दे।

और चौथा इलाज है अमली नेकी अगर किसी से दिल में नफ़रत हो तो उस के साथ एहसान करो क्योंकि एहसान दिल के ज़हर को मिठास में बदल देता है।

इबरत और पैगाम

याद रखें नफ़रत एक आग है जो सब से पहले उसी के दिल को जला देती है जो इसे पालता है और मुहब्बत एक खुशबू है जो दूसरों तक पहुँचने से पहले अपने मालिक को मुअत्तर कर देती है। हमें फैसला करना है कि हम अपने दिल को आग से जलाना चाहते हैं या खुशबू से महकाना चाहते हैं।

अल्लाह हम सब को दिल की पाकीज़गी मुहब्बत अफ़व व दरगुज़र और भाईचारे की दौलत अता फरमाए आमीन।

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