आज का हमारा मौज़ूअ निहायत मुबारक, मुक़द्दस और रूहानियत से भरपूर है। हम जिस हस्ती की सीरत-ए-तैय्यबा के एक पहलू पर बात करने जा रहे हैं, वह वही ज़ात अक़्दस है जिनके सद्के कायनात को वुजूद मिला, जिनकी आमद रहमत बन कर हुई, जिनकी सीरत इंसानियत के लिए कामिल नमूना है, और जिनकी ज़िंदगी का हर लम्हा हिदायत का चिराग़ है। अल्लाह तआला इरशाद फ़र्माता है: या अय्युहन्नासु कद जाअकुम बुर्हानुम मिर रब्बिकुम व अंज़ल्ना इलैकुम नूरम मुबीना (ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ से एक वाज़ेह दलील आ गई और हमने तुम्हारी तरफ रोशन नूर नाज़िल किया है)। इस आयत करीमा में "बुर्हान" से मुराद एक क़ौल के मुताबिक़ क़ुरआन मजीद है और जम्हूर मुफ़स्सिरीन के मुताबिक़ इससे मुराद रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं। आज हम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बचपन और बिअसत से पहले के ख़साइस व कमालात पर रोशनी डालेंगे।
विलादत बासआदत से पहले की बशारते
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने नबी मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत बा सआदत से पहले ख़्वाब देखा कि उनकी पुश्त से एक ज़ंजीर ज़ाहिर हुई जिसकी एक जानिब मग़रिब और एक जानिब मशरिक़ में है। एक जानिब आसमां में और एक जानिब ज़मीन में है। कुछ देर बाद वह ज़ंजीर दरख़्त में तब्दील हो गई जिसके हर पत्ते पर सूरज के नूर से 70 गुना ज़्यादा नूर है। मशरिक़ व मग़रिब के लोग उस दरख़्त को चिमटे हुए हैं, कुछ क़ुरैशी भी हैं। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने उस ख़्वाब की ताबीर मालूम की तो उनके उलमा ने कहा आप की नस्ल में एक ऐसा लड़का पैदा होगा जिस की मशरिक़ व मग़रिब के लोग इत्तिबा करेंगे और आसमान व ज़मीन वाले उसकी हम्द व सना करेंगे। (सीरतुल मुस्तफ़ा जिल्द 1, अल-बिदाया वन्निहाया ज 2)
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब को यह ख़ुशख़बरी मिली कि आपकी पुश्त से एक ऐसा फ़रज़ंद पैदा होगा जो मशरिक़ व मग़रिब का मालिक होगा। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब बयान करते हैं कि "मैं हजरे असवद के पास सो रहा था कि मैंने एक होलनाक ख़्वाब देखा मैंने एक दरख़्त देखा, जिस की ऊंचाई आसमान तक और शाख़ें मशरिक़ व मग़रिब तक फैली हुई हैं उस दरख़्त से निकलने वाले नूर की चमक दमक सूरज की रोशनी से सत्तर (70) गुना ज़ियादा है क़ुरैश की एक जमाअत उस की शाख़ों से चिमटी हुई है जबकि दूसरी जमाअत उसे काटना चाहती है एक नौजवान ने उन्हें पकड़ लिया उस जैसा हुस्न व जमाल का पैकर और नज़ाफ़त व ख़ुशबू से मुअत्तर नौजवान मैंने कभी नहीं देखा, फिर उस ख़ूबसूरत नौजवान ने उस जमाअत के लोगों की कमरें तोड़ डालीं और आंखें निकाल दीं। मैंने दरख़्त का फल लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया मगर कुछ न ले सका मैंने पूछा कि इस का फल कौन ले सकता है? जवाब मिला सिर्फ वह लोग जो मज़बूती से चिमटे हुए हैं। (ख़साइसुल कुबरा)
विलादत बासआदत के वक़्त के मोजिज़ात
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने जिस नूर को ख़्वाब में देखा वह 12 रबीउल अव्वल शरीफ़ बमुताबिक 20 अप्रैल 571 बरोज़ पीर सुबहे सादिक़ की रौशन व मुनव्वर सुहानी घड़ी में हमारे प्यारे आक़ा, हबीबे किब्रिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सूरत में अज़ली सआदतों और अब्दी मुसर्रतों का नूर बन कर मक्का मुकर्रमा में पैदा हुए। (अल-मवाहिबुल लदुन्निय्याज 1)
इमाम अहमद बिन हंबल की एक रिवायत में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिज़ाई वालिदा हज़रत हलीमा सअदिया का बयान है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वालिदा मोहतरमा हज़रत आमिना ने फ़र्माया: "जब मैंने अपने बच्चे (मुहम्मद) को जन्म दिया तो उसने अपने हाथ ज़मीन पर रखे हुए थे और सर आसमान की तरफ़ उठा रखा था।" (अस-सीरतुन नबविया इब्ने हिशाम)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बचपन की दिलनशीं झलक
जब हज़रत सैय्यदा हलीमा सअदिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को लेने के लिए आपके दर अक़्दस पर पहुंचीं तो वह बयान करती हैं: "मैंने देखा कि हुज़ूर अकरम, शफ़ीउल महशर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दूध की मिस्ल सफ़ेद ऊनी कपड़े में लिपटे हुए आराम फ़र्मा रहे थे। आप के जिस्म अतहर से मिश्क व अन्बर की ख़ुशबू फैल रही थी, सब्ज़ रंग का नर्म रेशमी कपड़ा नीचे बिछा हुआ था, और आप पुश्त के बल सो रहे थे।" हज़रत हलीमा सअदिया रज़ियल्लाहु अन्हा फ़र्माती हैं "मैंने इरादा किया कि आप को बेदार करूं, मगर जब आप के हुसैन व जमील चेहरे को देखा तो मेरी नज़र वहीं ठहर गई और मैं आप के जमाल में महव हो गई। फिर मैं आहिस्तगी से क़रीब जा कर आप को अपने हाथों में उठाया और जैसे ही मैंने आप के सीने मुबारक पर हाथ रखा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लबों पर एक ख़ूबसूरत मुस्कुराहट आ गई। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी नन्हीं आंखें खोलीं और मुझे देखने लगे। जैसे ही आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाह मुझ पर पड़ी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखों से एक नूर निकला जो आसमान की जानिब बुलंद हो गया। मैंने मुहब्बत से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दोनों आंखों के दरमियान, यानी पेशानी पर बोसा दिया। (माख़ूज़:मदारिजुन नुबुव्वह) उसी रात ख़र्के आदत अलामात व निशानियां ज़ाहिर हुईं। जिस रात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमकी विलादत बा-सआदत हुई उसी रात किसरा (शाहे इरान) के महल में ज़लज़ला आया और महल पर बने हुए चौदह कंगुरे (गुंबद) टूट कर गिर पड़े। फारिस (इरान का पुराना नाम) के मजूसियों की एक हज़ार साल से जलाई हुई आग यक-ब-यक बुझ गई। बहीरा सावह यका-यक ख़ुश्क हो गया। (दलाइलुन नुबुव्वह लिल-इस्फ़हानी)
हज़रत हलीमा सअदिया के घर बरकात का ज़ुहूर
जब हज़रत हलीमा सअदिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ले कर अपने ख़ैमे में आईं और दूध पिलाने के लिए बैठीं तो नुबुव्वत की बरकातें बारिश की तरह बरसने लगीं। हज़रत हलीमा के सीने से इतना दूध जारी हुआ कि रसूल ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आप के रिज़ाई भाई दोनों ने ख़ूब सीर हो कर दूध पिया। उन की ऊंटनी के थन दूध से भर गए। हज़रत हलीमा के शौहर ने दूध दुहा और दोनों मियां बीवी ने ख़ूब पी कर सीर हो कर रात भर सुकून की नींद सोए। हज़रत हलीमा के शौहर ने यह सब बरकातें देख कर हैरत से कहा हलीमा! तुम बहुत बाबरकत बच्चा लाई हो। (माख़ूज़: सीरत हलबिया)
बचपन के इब्तिदाई मोजिज़ात और नशो नमा
हज़रत हलीमा सअदिया रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गहवारा (झूला) फ़रिश्तों के हिलाने से हिलता था और आप बचपन में चांद की तरफ़ उंगली उठा कर इशारा फ़र्माते थे तो चांद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उंगली के इशारों पर हरकत करता था। जब आप की ज़ुबान खुली तो सब से औवल जो कलाम आप की ज़ुबान मुबारक से निकला वह यह था अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, अलहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, व सुब्हानल्लाहि बुक्रतन व असीला। बच्चों की आदत के मुताबिक़ कभी भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कपड़ों में बोल व बराज़ नहीं फ़र्माया। बल्कि हमेशा एक मुअय्यन वक़्त पर रफ़ए हाजत फ़र्माते। अगर कभी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जाए सतर खुल जाती तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बार-बार रोते। और जब तक जाए सतर न छिप जाती आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को चैन और क़रार नहीं आता था और अगर जाए सतर छिपाने में मुझ से कुछ ताख़ीर हो जाती तो ग़ैब से कोई आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जाए सतर छिपा देता।(मदारिजुन नुबुव्वह)
हज़रत हलीमा सअदिया रज़ियल्लाहु अन्हा फ़र्माती हैं अल्लाह की क़सम! मैंने देखा कि एक बादल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर साया किए रहता था। जब आप चलते वह चलता, रुकने पर वह ठहरता, और बैठने पर वह भी बैठ जाता)। (मदारिजुन नुबुव्वह)
तेज़ नशो नुमा और फसीह कलाम
हज़रत इमाम अब्दुल्लाह मरवज़ीरहमतुल्लाह अलैहि बयान करते हैं "जब रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र दो महीने हुई तो आप घुटनों के बल बच्चों के साथ चलने लगे। तीन महीने की उम्र में खड़े होने लगे। चार महीने के हुए तो दीवार का सहारा ले कर इधर उधर चलना शुरू कर दिया। पांच महीने की उम्र में ख़ुद से चलने फिरने लगे। छह महीने के हुए तो बाक़ायदा तेज़ चलने लगे। सात महीने की उम्र में ख़ूब दौड़ने लगे। आठ महीने में ऐसी साफ़ गुफ़्तगू फ़र्माने लगे कि बात पूरी तरह समझ में आती। नौ महीने की उम्र में फ़सीह और बा मअनी बातें करने लगे। और जब आप की उम्र दस महीने हुई तो बच्चों के साथ तीर अंदाज़ी में सब से आगे निकल जाते। (माख़ूज़: मआरिजुन नुबुव्वह)
क़हत साली में उंगली के इशारे से बारिश का बरसना
जब मक्का में क़हत आया, क़ुरैश हज़रत अबू तालिब के पास बारिश की दुआ के लिए आए। अबू तालिब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को काबा शरीफ़ लाए, आप की पुश्ते मुबारक को काबा की दीवार से लगाया, और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसमान की तरफ इशारा फ़र्माय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी उंगली से आसमान की तरफ इशारा फ़र्माया, फौरन बादल जमअ हुए और बारिश होने लगी) (अस-सीरतुन नबविया)
चुनांचे अबू तालिब ने अपने उस तवील क़सीदे में जिस को उन्होंने हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदह में नज़्म किया है उस वाक़िए को एक शेअर में इस तरह ज़िक्र किया है व अब्यज़ा युस्तस्क़ल ग़मामु बि-वज्हिही सिमालुल यतामाइस्मतुन लिल अरामिल (वह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसे गोरे रंग वाले हैं कि उन के रुख़े अनवर के ज़रिए बदली से बारिश तलब की जाती है। वह यतीमों का ठिकाना और बेवाओं के निगहबान हैं) (ज़रक़ानी अला अल-मवाहिब जिल्द 1)
अबू तालिब के घर में बरकतें
जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा अबू तालिब ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी कफ़ालत में लिया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबू तालिब के घर आए तो उस का घर बरकतों वाला हो गया। अबू तालिब का बयान है कि (सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले) जब भी मेरे बच्चे खाना खाते तो सीर न होते, लेकिन जब से हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन के साथ खाना तनाव्वुल फरमाते तो सारे बच्चे शिकम सीर हो जाया करते थे। इसी तरह जब भी बच्चों को दूध पिलाना होता तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहले पिलाते, फिर अपने बच्चों को देते। (दलाइलुन नुबुव्वह)
बचपन में लौहे महफ़ूज़ की आवाज़ सुनना
हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहुअन्हु ने अरज़ किया: या रसूलल्लाह! क्या आप को बचपन के यह वाक़िआत याद हैं? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़र्माया: "अय्युहल अम्मु! हाज़ा बअदे विलाजिल, अम्मा क़ब्लु फा इन्नी कुंतु फी بَطْنِ أُمِّي أَسْمَعُ صَوْتَ الْقَلَمِ يَكْتُبُ فِي اللَّوْحِ الْمَحْفُوظِ, وَ أَرَى أَعْمَالَ أُمَّتِي وَ أَسْمَاءَهُمْ" (ऐ चाचा! यह तो पैदाइश के बाद के वाक़िआत हैं, मगर इस से पहले जब मैं अपनी मां के शिकम में था, मैं लौहे महफ़ूज़ पर क़लम की आवाज़ सुनता था, अपनी उम्मत के आमाल और उन के नाम देखता था)। (अल-ख़साइसुल कुबरा)
आखरी कलमात
दोस्तों अल्लाह तआला ने अपने महबूब आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ऐसी सिफ़ात से नवाज़ा जिन की अज़ल से ले कर अबद तक कोई नज़ीर नहीं मिलती। रसूल पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी आला सिफ़ात व ख़ूबियों की बिना पर बचपन ही से अरब के बाक़ी बचों से जुदा दिखाई देते थे। आप अपने बचपन में बाक़ी बचों की तरह खेल कूद में वक़्त सर्फ़ नहीं करते थे बल्कि छोटी उम्र से ही संजीदगी व मतानत आप की आँखों से अयां थी। लिहाज़ा आप ज़्यादा वक़्त ग़ौर व फ़िक्र में बसर करते और कायनात के रमूज़ पर ग़ौर फ़र्माया करते। सरूरे कायनात, फ़ख़रे मौजूदात, महबूबे रब्बे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयाते तैय्यबा का हर लम्हा अहले ईमान के लिए दर्से हिदायत और ख़ज़ानए बरकत है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत से ले कर बचपन, जवानी और बिअसत तक एक एक मरहला मोजिज़ात से भरपूर है। इन्हीं नूरानी लमहात पर इकतिफ़ा करते हुए अपनी कलम बंद करते हैं। अल्लाह तआला हमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अक़ीदत व मुहब्बत रखने की तौफ़ीक़ अता फ़र्माए! और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सच्ची ग़ुलामी नसीब फ़र्माए।
