हमारी ज़िंदगी एक सफ़र है जहाँ हर मोड़ पर दो रास्ते नज़र आते हैं। एक वो जो हमें अपनी ख़्वाहिशों और दिल की चाहत की तरफ़ ले जाता है और दूसरा वो जो अल्लाह तआला ने हमारे लिए चुना है। अक्सर ये दोनों रास्ते एक दूसरे से टकराते नज़र आते हैं। हमारा दिल किसी चीज़ को चाहता है उसे अच्छा और फ़ायदेमंद समझता है और जिस चीज़ को हम ना पसंद करते हैं उसे बुरा और नुक़सानदेह मान बैठते हैं। लेकिन क्या हमारी यही सोच हमेशा हक़ीक़त पर खरी उतरती है? क्या वाक़ई जो चीज़ हमें पसंद है वही हमारे लिए बेहतर है? कुराने करीम की यह पाक आयत हमें इसी सच्चाई से रूबरू कराती है।
हुक्मे इलाही और हमारी महदूद समझ
अल्लाह तआला का फरमान है
व उसा अन तुहिब्बू शैअन व हुव शर्रुल लकुम, व उसा अन तकरहू शैअन व हुव खैरुल लकुम, वल्लाहु यअलमु व अंतुम ला तअलमून (216)
तरजुमा: “और क़रीब है कि कोई बात तुम्हें नापसंद हो जबकि वह तुम्हारे हक में बेहतर हो और क़रीब है कि कोई बात तुम्हें पसंद आए जबकि वह तुम्हारे हक में बुरी हो। और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
ऐ मुसलमानो! अच्छा या बुरा होने का दारोमदार अपनी सोच पर न रखो बल्कि अल्लाह तआला के हुक्म पर रखो
यह आयते करीमा हमें एक बुनियादी सबक सिखाती है। इंसान की सोच उसकी समझ और उसका इल्म महदूद है। वह सिर्फ़ वही देख पाता है जो उसकी आँखों के सामने है। वह सिर्फ़ वही जान पाता है जो उसके थोड़े से तजुर्बे और महदूद दिमाग़ ने उसे बताया है। उसे ना तो मुस्तकबिल का पता है, ना ही हर चीज़ के पीछे छुपे हिकमत और फ़ायदों का इल्म है। इसके उलट ख़ुदा वंद करीम हर छुपी और खुली चीज़ को जानने वाला है।
मुसीबत में छुपा है खैर का राज़
ज़िंदगी में कई बार ऐसे हालात पैदा होते हैं जो हमें बेहद नापसंद और तकलीफ़देह लगते हैं। बीमारी माली नुक़सान रिश्तों में दरार या कोई और मुसीबत ये सब हमारे लिए इम्तिहान बनकर आती हैं। हमारा दिल इनसे घबराता है और हम समझते हैं कि यही हमारे लिए सबसे बुरा वक़्त है। मगर हो सकता है यही बीमारी हमारे गुनाहों का कफ़्फारा बने यही मुसीबत हमें अल्लाह के और क़रीब ले जाए और यही नाकामयाबी किसी बड़ी कामयाबी की बुनियाद बने।
दुनिया की चमक में छुपा है खतरा
इसी तरह कभी कोई चीज़ हमें बेहद पसंद आती है। कोई शौक़ कोई चाहत कोई मौका हमारा दिल और नफ्स उसे पाने के लिए बेकरार हो उठता है। हम सोचते हैं कि इसी में हमारी कामयाबी और खुशी है। मगर हो सकता है कि यही पसंदीदा चीज़ हमारे ईमान के लिए फितना बने हमें गुनाह की तरफ़ धकेले या आख़िरत में हमारे लिए शर्मिंदगी का सबब बने। शायद यही दौलत हमें ग़ुरूर में डाल दे यही शोहरत हमें अल्लाह से दूर कर दे।
अल्लाह के फैसले पर राज़ी रहना
तो फिर ऐसे में एक मोमिन का क्या कर्तव्य है? इस आयत से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपनी नापसंदगी और पसंद को ही आख़िरी फैसला नहीं बनाना चाहिए। हमारा ईमान हमें यह सिखाता है कि हर हाल में अल्लाह के फैसले पर राज़ी रहना और उसकी मर्ज़ी के आगे सर झुकाना ही असल में कामयाबी है। जो चीज़ शरीअत में हलाल और जायज़ है उसे अपनाना और जो हराम और नाजायज़ है उससे दूर रहना चाहे दिल कितना ही ललचाए। और जो मुसीबतें और तकलीफ़ें अल्लाह की तरफ़ से आएँ उनपर सब्र करना और यह समझना कि इसमें कोई न कोई हिकमत ज़रूर है।
खातिमा दुआ है कि अल्लाह हमें सच्चा मोमिन बनाए
ऐ अल्लाह! हमारे दिलों को अपने हुक्म पर चलने वाला बना। हमें वह चीज़ पसंद आए जो तुझे पसंद है और वह चीज़ बुरी लगे जो तुझे नापसंद है। हमें गुरूर घमंड से महफूज़ रख और हर हाल में तेरे फैसले पर राज़ी रहने की तौफीक अता फरमा। आमीन।
