आज मैं आपसे जिस मोज़ू पर गुफ्तगू करना चाहता हूँ वो हमारे दिलों को जोड़ने वाला है और जिसे अमल में लाकर हम अपनी दुनिया और आखिरत दोनों संवार सकते हैं। जी हाँ आज बात करेंगे सिला ए रहमी की यानी रिश्ते नातों को जोड़ने की अपनों से मुहब्बत करने और टूटे हुए तारों को फिर से पीरोने की। और ये बात मैं आपको हदीस ए नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रौशनी में समझाऊँगा ताकि हम सबको मालूम हो जाए कि असल सिला ए रहमी क्या है जिसका सबक हमारे आक़ा ए दो जहां जनाबे मुहम्मदुर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें अता फरमाया है।
हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान मुबारक है
रिश्ता जोड़ने वाला वह नहीं जो बदले में रिश्ता जोड़े बल्कि रिश्ता जोड़ने वाला वह है कि जब उससे नाता तोड़ा जाए तो वह उसे जोड़े। (सहीह बुखारी)
वज़ाहत
भाइयो! दुनिया का रिवाज तो ये है कि जैसे को तैसा। यानी अगर कोई मुस्कुराए तो हम भी मुस्कुरा दें कोई सलाम करे तो हम भी कर लें कोई तोहफा दे तो हम भी दें। कोई मिलने आए तो हम भी जाएँ। ये सब तो आम इंसान भी कर लेता है। इसमें कोई खास बात नहीं। ये तो हिसाब का लेन देन है मुहब्बत का नहीं।
लेकिन हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो मेयार बताया वो आसमान जैसा बुलंद है। आप फरमाते हैं कि असल सिला ए रहमी वह है जब सामने वाला नाता तोड़ दे बात करना बंद कर दे मिलना जुलना छोड़ दे यहाँ तक कि बुरा भला कहने लगे। तो ऐसे वक्त में हिम्मत न हारें सब्र करें मुस्कुराकर आगे बढ़े और रिश्ते को जोड़ने की कोशिश करें तो यही असल रिश्ता जोड़ने वाला है और यही असल सिला ए रहमी है। और ये वो अमल है जिस से अल्लाह और उसके रसूल की रज़ा हासिल होती है।
अब सवाल ये पैदा होता है कि जब अपना ही रिश्तेदार मुंह फेर ले दिल दुखाए सालों बात न करे तो कैसे रिश्ता जोड़ें? तीन चीज़ें चाहिएं मेरे भाइयो सिर्फ तीन चीज़ें। अगर ये तीन चीज़ आ गईं तो मुश्किल से मुश्किल रिश्ता भी जुड़ जाता है।
पहली चीज़ सब्र की ताकत
जब कोई अपना ही सख्त कलाम करे ताने दे नज़रअंदाज़ करे तो दिल जवाब देना चाहता है। जी चाहता है कि हम भी वैसा ही करें। लेकिन यहीं रुकिए! यहीं सब्र का दामन थामिए। अल्लाह तआला फरमाता हैं “जो लोग गुस्सा पी जाते हैं और लोगों को माफ कर देते हैं अल्लाह ऐसे नेकोकारों को पसंद करता है। (सूरह आले इमरानः 134)
दूसरी चीज़ खालिस अल्लाह की रज़ा की नियत
अगर हम सोचें कि मैं रिश्ता जोड़ रहा हूँ ताकि लोग मेरी तारीफ करें तो दो चार कोशिशों में थक जाएंगे। लेकिन अगर नियत ये हो कि या अल्लाह! तूने हुक्म दिया है तेरी रज़ा के लिए मैं ये कदम उठा रहा हूँ तो फिर हज़ार बार रिश्ता टूटे तो हज़ार बार जोड़ेंगे। क्योंकि अब मकसद दुनिया नहीं बल्के अल्लाह की रज़ा है।
तीसरी चीज़ बड़ा दिल
दिल को इतना बड़ा करना पड़ेगा कि उसमें दूसरों की गलतियाँ उनके कड़वे बोल उनकी बेरुखी सब समा जाएं। और ये बड़ा दिल तभी बनता है जब वो ज़िक्र ए इलाही से जुड़ जाए। जब नमाज़ में तिलावत में तस्बीह में दिल को मसरूफ रखोगे तो अल्लाह खुद दिल को इतना वुसअत अता फरमा देगा कि छोटी छोटी बातें उसमें समा जाएंगी।
मेरे अज़ीज़ो! कई लोग समझते हैं कि रिश्ता जोड़ना बस एक अच्छी आदत है, एक अदब है।
नहीं जनाब! इस्लाम में ये इबादत है। कुरआन-ए-पाक में अल्लाह तआला फरमाता हैं “अल्लाह से डरो जिसके नाम पर मांगते हो और रिश्तों का लिहाज़ रखो। बेशक अल्लाह हर वक़्त तुम्हे देख रहा है। (सूरह अन-निसा 4:1)
तो दोस्तों रिश्तों का लिहाज़ रखो रिश्तेदारी तोड़ने के मुआमले में अल्लाह से डरो।
रिश्ता दार बिल्कुल न बात करे तो रिश्ता जोड़ा कैसे जाए
भाइयों जब सामने वाला बात ही न करे सलाम न ले फोन न उठाए तो रिश्ता कैसे जोड़ा जाए? शरीअत ने इसके लिए खूबसूरत रास्ते बताए हैं। पढ़िए गौर से।
सलाम को आम करो
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया सलाम को फैलाओ तुम्हारे दरमियान मुहब्बत बढ़ेगी। अगर वो जवाब न दे तो भी तुम सलाम करो। एक दिन उसका दिल पिघलेगा इंशा-अल्लाह।
हाल चाल लेते रहो किसी के ज़रिए मैसेज से वॉइस नोट से बिना शिकवा किए और खैरियत पूछो।
मुसीबत में काम आओ
जब उसे तकलीफ हो बीमारी हो कोई परेशानी हो बिना बुलाए उसकी मदद को पहुँच जाओ। यही वो लम्हा होता है जब पत्थर दिल भी पिघल जाते हैं।
दुआ करो
रात के आखिरी पहर में सजदे में रो-रोकर दुआ करो या अल्लाह फलाँ के दिल में मेरे लिए नरमी पैदा कर दे हमारे दरमियान सुलह फरमा दे। दुआ वो हथियार है जो बन्दूक से भी ज़्यादा ताक़तवर है।
सिला ए रहमी के फाएदे
फायदे? मेरे भाइयो फायदे तो दोनों जहानों के हैं। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “जो शख्स चाहता है कि उसके रिज़्क में कुशादगी हो और उसकी उम्र में बरकत हो वो सिला ए रहमी करे। (सहीह बुखारी व मुस्लिम)
सिला ए रहमी से दिल को सुकून मिलता है घर में रिज़्क में बरकत होती है नेक औलाद नसीब होती है और सबसे बड़ी बात जन्नत नसीब होती है।
अब आखिरी बात।
हम में से हर शख्स की ज़िन्दगी में कोई न कोई ऐसा रिश्तेदार ज़रूर है जिससे सालों से बात नहीं हुई। कोई चचेरा भाई कोई खाला कोई मामू कोई ससुराल वाला वगैरह। रूठों को मनाने और टूटे दिलों को जोड़ने के लिए आप ही पहले क़दम बढ़ाइए एक मैसेज भेजिए। एक मिस्ड कॉल दीजिए। किसी को अपना पैगाम भिजवा दीजिए। शुरू में अहंकार रोकेगा शैतान कान में फूँकेगा कि “वो खुद आए” लेकिन आप नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर चलिए। एक कदम आप उठाइए इंशाअल्लाह टूटी रिश्तेदारी ज़रूर जुड़ेगी।
याद रखिए हमारा मकसद इंसान को जीतना नहीं अल्लाह को राज़ी करना है। जब अल्लाह राज़ी हो गया तो वो दिलों के हाल भी बदल देता है। या अल्लाह! हम सबको हक़ीक़ी सिला-ए-रहमी करने की तौफीक अता फरमा। हमारे टूटे हुए रिश्तों को जोड़ दे।
हमारे दिलों से किना हसद बुग्ज़ निकाल दे और मुहब्बत से भर दे। आमीन!
