इस्लामी भाइयो! आज की इस पोस्ट मैं हम बात करेंगें एक ऐसी प्यारी चीज़ की जिस पर अमल करके हम दुनिया व आख़िरत को रोशन कर सकते हैं। यह कोई आम सी बात नहीं, बल्कि हमारी निजात का सामान, हमारी क़ब्रों की तनहाई का साथी, और क़यामत की हौलनाकियों में हमारा सिफ़ारिशी है। और वह है हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत मुबारक के जिस पर अमल करके हम दोनों जहां मैं कामयाबी हासिल कर सकते हैं।
क़ब्र से उठने वाली पुकार एक ईमान अफ़रोज़ वाक़िया
ज़रा ग़ौर कीजिए उस अज़ीम वाक़िये पर जो हज़रत इब्राहीम अदहम रज़ी अल्लाहु अन्हु के साथ पेश आया। वह फ़रमाते हैं कि एक जनाज़े को कंधा दिया। जनाज़ा को उठाने के बाद अल्लाह की बारगाह में दुआ की "या अल्लाह! मौत के बाद मुझे बरकत अता फ़रमा। इतने में चारपाई से एक आवाज़ आई "मौत के बाद क्या है? यह सुन कर हज़रत इब्राहीम अदहम रज़ी अल्लाहु अन्हु घबरा गए। मैय्यत को क़ब्र में उतार कर जब सब लोग वापस चले गए तो वहीं बैठ कर ग़ौर व फ़िक्र करने लगे।
अचानक उन्होंने देखा कि क़ब्र से एक शख़्स निकल रहा है जिस का चेहरा चौदहवीं रात के चाँद की तरह ताबानक था उस के जिस्म से मिश्क व अन्बर की सी ख़ुशबू आ रही थी और वह निहायत उम्दा लिबास पहने हुए था। उस ने कहा इब्राहीम! हैरान हो कर पूछा आप कौन हैं? उस ने जवाब दिया मैं वही हूँ जिस ने चारपाई से आवाज़ दी थी। मैं सुन्नत ए रसूल ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हूँ। जो भी सुन्नत ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अमल करता है, मैं दुनिया में उस का मुहाफ़िज़ और निगराँ होता हूँ क़ब्र में उस की रोशनी और उस का दोस्त बन कर रहता हूँ और क़यामत के दिन उसे जन्नत की तरफ़ ले जाने वाला हूँ।
सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अमल के दुनियावी और उख़रवी इनामात
इस वाक़िये से मिलने वाले फायदे और सबक़
पहला फायेदा दुनिया में हिफाज़त
दोस्तों सुन्नत पर अमल करने वाला कभी तनहा नहीं होता। उस का निगराँ और मुहाफ़िज़ ख़ुद "सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम होती है। कितना बड़ा इनाम है कि सुन्नत ए रसूल पर अमल करने पर हमारी हिफ़ाज़त होती है।
दूसरा फायेदा कब्र में मददगार
भाइयों इस दुनिया की आरज़ी ज़िंदगी के बाद जब इंसान क़ब्र की तनहाई और तारीकी में पहुँचेगा तो उस की यकीनी रफ़ीक और चिराग़ सुन्नत ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम होगी। यही वह कीमती मतअ है जो क़ब्र के सवालों के जवाब देने में मददगार बनेगी और अज़ाब ए क़ब्र से हिफाज़त करेगी।
तीसरा फायेदा जन्नत में जाने का ज़रिया
प्यारे भाइयों क़यामत के दिन जब सूरज एक मील के फ़ासले पर आ जाएगा लोग अपने पसीने में डूबे होंगे उस वक़्त सुन्नत ए नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुन्नत पर अमल करने वाले को जन्नत में लेकर जाएगी।
चौथा फायेदा जन्नत में हुज़ूर का कुर्ब
जन्नत में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ुरबत जी हां। हदीस ए मुबारक है "मन अहब्बा सुन्नती फ़क़द अहब्बनी, व मन अहब्बानी काना मअी फिल जन्नह" (मिश्कात शरीफ)
यानी जिस ने मेरी सुन्नत से मुहब्बत की उस ने मुझ से मुहब्बत की और जिस ने मुझ से मुहब्बत की वह जन्नत में मेरे साथ होगा। इस से बढ़कर हमारे लिए खुश नसीबी और क्या हो सकती है के जन्नत में हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साथ क़ुरब नसीब होगा!
सुन्नत से मुहब्बत की सच्ची अलामतें
सुन्नत से मुहब्बत सिर्फ़ ज़ुबानी दावे का नाम नहीं। यह तो अपनी ज़िंदगी के हर शुऊबे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उसवा ए हसना को अपनाने का नाम है। चाहे वह खाने पीने, उठने बैठने, सोने जागने, कारोबार, मुआमलात, इबादात के तरीक़े हों या फिर अख़लाक़ व आदात। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पसन्दीदा चीज़ों को पसन्द करना, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नापसन्दीदा चीज़ों से दूर रहना ही सच्ची मुहब्बत है।
सुन्नत से रुग़र्दानी के नतीजे एक दर्दनाक हक़ीकत
अब ज़रा इस के बर-अक्स रवैये पर भी ग़ौर कर लीजिए। आज हम ने सुन्नत को पस ए पुश्त डाल दिया है। ख़ास तौर पर ख़ुशी के मौके पर हम ने गैरों के तरीके को अपना लिया है। शादी-ब्याह में ढोल बजाना, फ़िल्मी गाने बजाना, औरतों का इकट्ठा हो कर गाने गाना फ़ज़ूल खर्ची बुरक़ा और पर्दा को तर्क करना यह सब सुन्नत से रुग़र्दानी है।
हौज़ ए कौसर से महरूमी
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत उस्मान ग़नी रज़ी अल्लाहु अन्हु से इरशाद फ़रमाया: "या उस्मान! ला तरग़ब अन सुन्नती, फ़मन रग़िबा अन सुन्नती सुम्म माता क़बला अन यतूब सरफ़तिल मलाइकतु वज्हहू अन हौज़ी यौमल क़यामह। (रूहुल बयान) ऐ उस्मान! मेरी सुन्नत से मुँह मत मोड़ो। जो मेरी सुन्नत से मुँह मोड़ेगा फिर तौबा किए बग़ैर मर जाएगा क़यामत के दिन फ़रिश्ते उस का रुख़ मेरे हौज़ (कौसर) से फेर देंगे।
ज़रा सोचिए! हौज़ ए कौसर से महरूमी का ग़म कितना बड़ा होगा। जिस दिन हर शख़्स पानी के एक क़तरे को तरसेगा उस दिन सुन्नत से मुँह मोड़ने वाले को प्यासा रहना पड़ेगा।
इक़्बाल का पैग़ाम और हमारी ज़िम्मेदारी
अल्लामा इक़्बाल ने कितनी ख़ूबसूरत बात कही थी
की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ है क्या लौह ओ क़लम तेरे हैं
यानी हमारी पहचान हमारी इज़्ज़त हमारी कामयाबी सिर्फ़ और सिर्फ़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से वफ़ा में है।
तरीक़ ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को छोड़ना है वजह ए बर्बादी
इसी से क़ौम दुनिया में हुई बे-इक़्तिदार अपनी
आज मुसलमानों की दुनिया में ज़िल्लत व पस्ती की सब से बड़ी वजह सुन्नत से दूरी है। हम ने दीन को एक रस्म समझ लिया है हालाँकि सुन्नत तो हमारे लिए ज़िंदगी और आखिरत की कामयाबी है।
इख़्तितामी कलिमात
अल्लाह तआला हम सब को सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मुहब्बत करने और उस पर मुकम्मल तौर पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। हमारी क़ब्रों को सुन्नत के नूर से मुनव्वर फ़रमाए। क़यामत के दिन हमें हौज़ ए कौसर से सैराब होने की सआदत नसीब फरमाए और जन्नतुल फ़िरदौस में अपने महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का क़ुरब अता फ़रमाए। आमीन या रब्बल आलमीन।
आख़िर में यही दुआ है
वो आ गए हैं राह ए हिदायत लिए हुए
हाथोंमें अपने जाम ए शफ़ाअत लिए हुए
दूर होही जाएँगी सब मुश्किलें ऐ आसियो
वोआ गए हैं चश्म ए इनायत लिए हुए
अल्लाह हम सब को समझने और अमल करने की तौफ़ीक़ दे।
