आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे अमल की जो न सिर्फ हमारे दिलों को जोड़ता है बल्कि हमारे रब की रहमतों मग़फिरत और आखिरत की कामयाबी का ज़रिया भी बनता है। आइए जानते हैं वह अमल क्या है जिस पर अमल करके हम दुनिया और आखिरत दोनों में कामयाबी व खुशहाली हासिल कर सकते हैं। तो दोस्तों वह अमल है बीमार की इयादत करना।
बीमार की इयादत की फज़ीलत
प्यारे भाइयों हुज़ूर सल्लल्लाहु अलेहि व सल्लम का इरशादे पाक है
जो भी मुसलमान किसी दूसरे मुसलमान की सुबह के वक़्त बीमारी की हालत में यानी 'इयादत' (तबीयत पूछने) करता है तो सत्तर हज़ार फरिश्ते उसके लिए शाम तक दुआएं और इस्तिगफार करते रहते हैं। और अगर वह शाम के वक़्त उसकी इयादत के लिए जाए तो सत्तर हज़ार फरिश्ते उसके लिए सुबह तक दुआएं और इस्तिगफार करते रहते हैं। और उसके लिए जन्नत में एक बाग़ तैयार किया जाता है।
अमल छोटा सवाब ज़्यादा
ये कितनी बड़ी सुखभरी खबर है! सोचिए सिर्फ एक बार किसी बीमार भाई या बहन से मिलने जाना और बदले में आपको सत्तर हज़ार फरिश्तों की सिफारिश और मग़फिरत की दुआएं हासिल हो जाती हैं। यह कोई मामूली बात नहीं है। यह अल्लाह तआला की बेपनाह मेहरबानी है कि वह एक छोटे से अमल पर इतना बड़ा सवाब अता फरमाता है।
हदीस की तशरीह व तौज़ीह
यअूदु मुस्लिमन (एक मुसलमान दूसरे मुसलमान की इयादत करे)
यह हदीस अक़ीदे और भाईचारे की डोर को मज़बूत करती है। बीमारी की हालत में इंसान कमज़ोर होता है उसे सहारे की ज़रूरत होती है। ऐसे में उससे मिलने जाना उसकी तकलीफ में शामिक होना दुआ करना यह सब ईमान की ताकत और दिलों की नर्मी की निशानी है।
हर वक़्त नेकी
गुदुवतन इला युम्सी (सुबह तक) और अशिय्यतन इला युस्बिह (शाम तक)
यहाँ वक़्त का ज़िक्र इसलिए है ताकि हम हर पल इस नेकी के मौक़े को तलाश करें। सुबह का वक़्त दिन की शुरुआत है। अगर दिन की शुरुआत ही एक नेक अमल से हो तो पूरा दिन बरकतों से भर जाता है। इसी तरह शाम को जाकर बीमार का हालचाल लेना उसके रात के आराम और सुकून का ज़रिया बन सकता है। इस से यह मालूम होता है कि नेकी का कोई मौसम नहीं होता हर वक़्त अल्लाह की रहमत के दरवाज़े खुले हुए हैं।
फरिश्तों की दुआ
सबऊना अलफ़ मलक (सत्तर हज़ार फरिश्ते)
सत्तर हज़ार की यह तादाद इस अमल की अज़मत और क़दर को बयान करने के लिए है। यह कोई आम सवाब नहीं है। फरिश्ते जो अल्लाह के मुकर्रब हैं वह खुद उस इंसान के लिए दुआ करते हैं जो बीमार की खिदमत करता है। क्या हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब इतने फरिश्ते एक साथ किसी के लिए रहमत और मग़फिरत की दुआ करें तो अल्लाह की बारगाह में उसका क्या मक़ाम होगा? ज़रूर उसकी मंज़ूरी और कबूलियत का सामान होगा।
जन्नत में बाग़
व काना लहू खरीफ़न फिल जन्नह (और उसके लिए जन्नत में एक बाग़ होगा)
यह इस अमल का आखिरी और सबसे बड़ा इनाम है। खरीफ का मतलब है वह बाग़ जिसमें मौसमी फल तो होंगे ही साथ ही हमेशा ताज़गी और रौनक बाकी रहेगी। यह सिर्फ एक पेड़ नहीं बल्कि पूरा का पूरा बाग़ है जो जन्नत की शानो-शौकत और हसीन नेअमतों से भरपूर होगा। यह इनाम उस इंसान के लिए है जिसने अल्लाह की रज़ा के लिए दुनिया की कुछ देर की तकलीफ उठाकर अपने भाई के दुख में शामिल होकर उसकी इयादत की।
इयादत के मज़ीद फायदे
इयादत एक बेहद आसान और सरल तरीका है। बीमार की इयादत करके हम अपने गुनाहों को धो सकते हैं।
इयादत इंसान के अंदर इंसानियत हमदर्दी और प्यार पैदा करता है। यह समाज के रिश्ते को मज़बूत करता है।
इयादत ऐसा अमल है जो थोड़ी सी मेहनत और वक़्त की कुर्बानी के बदले में हमें आखिरत में एक शानदार और हमेशा रहने वाला बाग़ हासिल होता है। क्या इससे बेहतर सोदा हो सकता है?
तो आइए हम अज़्म करें कि जब भी किसी मुस्लिम भाई या बहन की तबीयत खराब हो तो उसकी इयादत करने ज़रूर जाएंगे। चाहे वह हमारा रिश्तेदार हो पड़ोसी हो या कोई दूर का जान-पहचान वाला। उसके दुख में शामिल होंगे उसके लिए दुआ करेंगे और उम्मीद रखेंगे कि अल्लाह तआला हमें इस छोटे से अमल का यह बड़ा सवाब और जन्नत का खूबसूरत बाग़ अता फरमाए।
