वो बातें जिनसे परहेज़ ज़रूरी है ग़ुरबत और तंगदस्ती के असबाब: हमारी ज़िंदगी में कुछ ऐसी आदतें और अमल होते हैं जो हमें अल्लाह की रहमत से दूर और मुफलिसी व तंगदस्ती के गहरे गड्ढे में धकेल देते हैं। कुरआन-ए-पाक और हदीसों में ऐसे कई असबाब की तरफ इशारा किया गया है। साथ ही मिल्लत के अकाबिर और रहनुमाओं ने भी अपने तजुर्बे और मुशाहिदे से उन्हें पहचाना है। जो इन बातों से दूर रहेगा वह अपना भला करेगा और जो इन में मुलव्विस रहेगा उसे खुद ही देखना होगा कि उसने क्या खोया और क्यों खोया। हाँ यह बात याद रखनी चाहिए कि हकीकी मुअस्सिर सिर्फ रब्ब ए कदीर है और हर फायदे और नुकसान की कुंजी उसी के दस्त ए कुदरत में है। आइए अब उन बातों को तफ्सील से जानते हैं जिनसे ग़ुरबत आती है।
झूठ गुनाह और बे एहतियाती मुफलिसी की जड़ें
1. झूठ बोलना
2. गुनाहों में मशगूल रहना
3. ज़िना करना
4. झूठी क़समें खाना
5. जनाबत (ग़ुस्ल से पहले) में खाना खाना
6. नंगे बदन पेशाब करना
7. रात में झाड़ू देना, ख़ासकर कपड़े से
8. नाखून दांत से तराशना
9. पैजामा, दामन या आंचल से मुंह पोंछना
10. फ़क़ीरों से रोटी के टुकड़े ख़रीदना
11. खड़े होकर पैजामा पहनना
12. बैठकर दस्तार (अमामा) बांधना
13. खड़े होकर या ख़ुश्क बालों में कंघी करना
14. टूटा गिलास या बर्तन इस्तेमाल करना
15. माँ-बाप को नाम लेकर पुकारना
बेअदबी और लापरवाही से आने वाली तंगी
16. कैंची से नीचे नाफ के बाल काटना
17. 40 दिन से ज़्यादा नीचे नाफ के बाल रखना
18. बुज़ुर्गों के आगे चलना
19. दरवाज़े पर बैठने की आदत डालना
20. लहसुन-प्याज़ के छिलके या पोस्त जलाना
21. मकड़ी के जाले दूर न करना
22. जूं को ज़िंदा छोड़ देना
23. नमाज़ में काहिली करना
24. फटे कपड़े को न सीना
25. फज्र की नमाज़ पढ़कर मस्जिद से जल्द निकल आना
26. सुबह के वक़्त सोना
27. औलाद पर तंगी करना बावजूद मालदारी के
28. बिना हाथ धोए खाना खाना
29. खाने के बाद बर्तन साफ़ न करना
30. अहल-ओ-अयाल से झगड़ना
अजीब आदतें जो बरकत रोक देती हैं
31. ख़िलाल (दाँत साफ़ करते वक्त) निकले रेशे को दोबारा मुंह में रखना
32. हर किस्म की लकड़ी से ख़िलाल करना
33. खाने-पीने के बर्तन खुले छोड़ देना
34. चिराग़ को मुंह की फूँक से बुझाना
35. उल्टे जूते को देखना और सीधा न करना
36. जूता अगर रातभर उल्टा पड़ा रहे तो शैतान उस पर बैठता है (दौलत बेज़वा)
37. बकरियों के झुंड में चलना, ख़ासकर शाम के वक्त
38. औलाद को गाली या लानत देना
39. फ़क़ीर को झिड़क देना
40. बायां पैर पहले पैजामे में डालना या बाईं आस्तीन पहले पहनना
41. क़ब्रिस्तान में हँसना
42. घर में कूड़ा-करकट जमा रखना
43. सुबह उठते ही बिना ख़ुदा और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम लिए दुनियावी बातों में लग जाना
44. मगरिब और ईशा के दरमियान सोना
45. गाने-बजाने में दिल लगाना
अक़ीदा और अमल में कमज़ोरी मुफलिसी का सबब
46. सिला रहमी (रिश्तेदारों से अच्छा सलूक) न करना
47. जनाबत की हालत में नाखून या बाल काटना
48. ज़कात, सदक़ात, कुर्बानी या कफ़्फ़ारा आदि को टालना या बुख़ल करना
49. बिना हाजत के सवाल करना
50. अमानत में ख़यानत करना
गुनाह और बेअदबी से आने वाली मुफलिसी
51. अंधेरे में खाना खाना
52. माँ-बाप को तकलीफ़ पहुँचाना या उन्हें नाराज़ करना
53. घर में कमारबाज़ी गाने-बजाने के आलात जैसे दफ़, सारंगी, सितार आदि रखना
हदीस शरीफ़ में है कि जिस घर में शराब या ऐसे आलात हों, वहाँ न तो रहमत के फ़रिश्ते उतरते हैं और न ही दुआएँ क़ुबूल होती हैं।
54. रास्ते में पेशाब करना और अगर बे-सतरी हो तो यह हराम गुनाह है
55. हमेशा बेवजह मज़ाक, हँसी-मज़ाक, और मसखरी में लगे रहना
56. नंगे सिर खाना खाना
57. नंगे सिर बेतुल-ख़ला (टॉयलेट) में जाना
58. तैयार खाना सामने हो और देर करना कि खाना दस्तरख़्वान पर ठंडा होकर इंतज़ार करे
59. नंगे सर बाज़ार में घूमना और औरतों का अजनबियों के सामने नंगे सिर रहना या जाना आना हराम और सख़्त गुनाह है
60. सज्दा ए तिलावत ना करना या देर लगाना
61. तिलावत ए कुरआन के दौरान सज्दा की आयत छोड़कर आगे बढ़ जाना
62. दूसरे शख़्स की कंघी इस्तेमाल करना, ख़ासकर बिना धोए हुए
63. हौज़, तालाब या बहते पानी में पेशाब करना इससे निस्यान भूलने की बीमारी पैदा होती है
दौलत-ए-बेज़वाल में लिखा है कि पाँच चीज़ों से भूल पैदा होती है:
हौज़ में पेशाब करना, राख पर पेशाब करना, चूहे का झूठा खाना, क़िब्ला की तरफ़ पेशाब करना, और हरामखोरी में ज़िंदगी गुज़ारना।
64. सोते वक़्त पैजामा या तहबंद सिरहाने रखकर सोना इससे ख़ौफ़नाक ख़्वाब आते हैं
65. नंगे बदन सोना
अदब की कमी और लापरवाही से बरकत उठ जाती है
66. नहाने की जगह पेशाब करना
67. बिला ज़रूरत बिस्तर के पास पेशाब का लोटा या सिलपची रखना
68. नमाज़ क़ज़ा कर देना
69. मस्जिद में दुनियावी बातें करना
70. वुज़ू करते वक़्त दुनियावी बातें करना उस वक़्त दुआएँ पढ़ना या ख़ामोश रहना चाहिए
71. बिला वजह किसी के तोहफ़े या हदिये को ठुकरा देना
72. रोटी को ज़मीन पर डाल देना या पैरों में आने देना यह बेअदबी है
73. वुज़ू की जगह पेशाब करना या पेशाब की जगह वुज़ू करना
74. मिट्टी या चीनी के टूटे बर्तनों से पानी पीना
75. दरवाज़े पर बैठकर खाना या पीना — यह ख़िलाफ़ अदब और काबिले-नफ़रत अमल है
76. उस्ताद की इज़्ज़त में कमी करना माज़ अल्लाह यह उसकी तौहीन है
77. टूटी या कुंद कलम से लिखना
78. कलम का तराशा फेंक देना जिससे वह पैरों में आ जाए
79. मेहमान को हिकारत से देखना या उसके आने से नाखुश होना
80. बेतुल-ख़ला में बातें करना या वहाँ दीनी मसले में ग़ौर करना
अक़्ल तहज़ीब और अमल की कमज़ोरी तंगी का रास्ता
81. मर्दों का इस्तिंजा करते वक़्त आम रास्ते पर टहलना या बातें करना
82. बग़ैर बुलाए दावत में जाना
83. चारपाई पर दस्तरख़्वान बिछाए बिना खाना खाना
84. चारपाई पर सरहाने बैठकर खाना जबकि खाना पैरों की तरफ़ रखा हो
85. दाँतों से रोटी काटना
86. बिला वजह कपड़े से दाँतों को मलना
87. ज़ुल्म करना किसी को नाहक़ तकलीफ़ देना, चाहे जानवर ही क्यों न हो
88. गुनाह के काम में ज़िद करना और अपनी बात पर अड़े रहना
89. जिस बर्तन में खाना खाया उसी में हाथ धोना
90. घर में कुरआन शरीफ़ मौजूद हो और उसे न पढ़ना
91. माँ-बाप या मुर्शिद की मर्ज़ी के खिलाफ़ अमल करना
92. हरे पेड़ को काटकर उसकी लकड़ी बेचना
93. दरवाज़े की दहलीज़ पर तकिया लगाना या वहाँ सर रखकर सोना
94. बिला ज़रूरत जानवर ज़िबह करना और उसे पेशा बना लेना
95. सही रिश्ता मिलने के बावजूद जवान बेटियों को न बिहाना
(मअख़ूज़ सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर दौलत बेज़वाल)
इन सब बातों में मुलव्वस रहना इंसान को तंगी, मुफलिसी और बरकत से महरूमी की तरफ़ ले जाता है। जो इनसे तौबा कर ले, अल्लाह तआला उसके घर, दिल और ज़िंदगी में बरकत अता करता है।
ख़ातिमा और इस्लाह का रास्ता
यह तवील फ़हरिस्त देख कर मायूस होने की ज़रूरत नहीं है। इसका मक़सद डराना नहीं, बल्कि बेदार करना है। हर इंसान से कुछ न कुछ ग़लतियाँ होती रहती हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम अपनी आदतों पर ग़ौर करें, अल्लाह से तौबा करें और इस्लाह की कोशिश करें। याद रखें, अल्लाह तौबा करने वालों को बहुत प्यार करता है और उनकी ग़लतियों को माफ़ कर देता है।
इन बातों से परहेज़ सिर्फ़ दौलत पाने का ज़रिया नहीं, बल्कि एक मुतवाज़िन, पाकीज़ा और ख़ुशहाल ज़िंदगी गुज़ारने की कुंजी है। अपनी ज़िंदगी को इन नेक आदतों से सजाइए और अल्लाह की बरकत और रहमत के दरवाज़े अपने लिए खोलिए।
