जन्नती दरवाज़ा
अस्सलामु अलैकुम दोस्तों: इस पोस्ट में यह बताने वाला हूं के अजमेर शरीफ दरगाह में एक दरवाज़ा है जिसे जन्नती दरवाज़ा कहा जाता है, उस दरवाज़े को जन्नती दरवाज़ा क्यूं कहा जाता है, वजह क्या है, उस दरवाज़े का नाम जन्नती दरवाज़ा नाम क्यों दिया गया, आइए जानते हैं।
एक बार हज़रत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी अलैहिर्रहमह की तबीअत नासाज़ थी. हज़रत बाबा फरीद गंज शकर अलैहिर्रहमह को हुक्म हुआ, के अत् तार की दुकान से जाकर नुस्खा बंधवा लाएं. आप अलैहिर्रहमह, बैठे दुकान में नुस्खा बंधवा रहे थे के, शोर हुआ एक बुज़ुर्ग पालकी में सवार आ रहें हैं, और मुनादी निदा करने वाला, उनके आगे आगे निदा कर रहा है , जो इनकी ज़ियारत करेगा, इंशाअल्लाह वह जन्नती होगा। लोग जोक़ दर जोक ज़ियारत को जा रहे थे, लेकिन बाबा साहब अलैहिर्रहमह ने कोई तवज्जा न की, बल्कि जब पालकी नज़दीक आई, तो दुकान के अंदर वाले हिस्से में तशरीफ ले गए., हर चंद लोगों ने इसरार किया, मगर आपने तवज्जा न फरमाई, जब पालकी गुज़र गई तो आपने नुस्खा लिए, और मुर्शिदे कामिल की बारगाह में हाज़िर होने के लिए रवाना हुए. हज़रत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी अलैहिर्रहमह ने देर से आने की वजह दरयाफ्त की, तो आपने जवाब में सारा वाक़िआ अर्ज़ कर दिया, आपके पीरो मुरशिद ने फरमाया, फरीद क्या तुम्हें जन्नत की ज़रूरत न थी, के ज़ियारत न की। बाबा फरीद गंज शकर अलैहिर्रहमह ने अर्ज़ की हुज़ूर में डरता था, के कहीं ज़ियारत करके जन्नती न हो जाऊं, और जन्नत में आपका मक़ाम जाने कहां हो, और इस तरह कयामत के दिन, आपकी कदम बोसी से महरूम रह जाऊं। मेरे लिए जन्नत वह जगह है, जहां आपकी हम नशीनी की नेमत हासिल हो। हज़रत ख्वाजा बाबा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी अलैहिर्रहमह , अपने मुरीद बा अदब की यह बात सुनकर बहुत खुश हुए, और जोश में आकर फरमाया ए फरीद, उसकी ज़ियारत करने से लोग आज के दिन जन्नती होते हैं, तो तुम्हारे दरवाज़े से क़यामत तक जो भी गुज़रेगा, इंशा अल्लाह वह जन्नती होगा। इसलिए इसका नाम जन्नती दरवाज़ा हो गया। अल्लाह तआला की उन पर रहमत हो, और उनके सदके हमारी मगफ़िरत हो। (आदाब ए मुर्शिदे कामिल)
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