आज उम्मते मुस्लिमा इश्तिराक व इफ्तिराक का और परेशानी का शिकार है दिल बेचैनी व इज़्तिराब से घिरे हुए हैं। इस मज़मून में हम कुरआन व हदीस की रोशनी में इस बुहरान के असबाब और इस से निकलने का इलाज और तरीका बताएंगे।
मसाजिद की अज़मत
आबादियों में हमारे रब को सबसे प्यारी जगह मस्जिदें हैं। ये वो पाकीज़ा मक़ामात हैं जहाँ पर अल्लाह की रहमतें और बरकतें नाज़िल होती हैं। इसलिए हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम अपनी मसाजिद को आबाद करें और गुनाहों से तौबा करें अल्लाह की तरफ़ रुजू करें।
मौजूदा सूरते हाल और अफ़सोसनाक मंज़रनामा
आज का मंज़रनाम इंतिहाई अफ़सोसनाक और दिल दहला देने वाला है। हमारी आँखें अश्कबार हैं और दिल बेचैनी व इज़्तिराब से घिरे हुए हैं। ये सब कुछ हमारी अपनी बद-आमालियों का नतीजा है। आज हमारी मसाजिद में सन्नाटा पसरा है। पाँचों वक़्त “हय्य अलल फ़लाह” (आओ कामयाबी की तरफ़) की पुकार लगाई जाती है, लेकिन हम दुनिया की फ़ुज़ूलियात, माल-दौलत के हुसूल और गुनाहों में ऐसे खो गए हैं कि अपने रब की बारगाह में हाज़िरी से महरूम रह जाते हैं।
क़ुरआन व हदीस की रौशनी में राहे निजात
हमारे बुज़ुर्गान-ए-दीन ने हमेशा मुसलमानों को आपसी इख़्तिलाफ़ात को ख़त्म करके एक प्लेटफ़ॉर्म पर मुत्तहिद होने की तालीम दी है।
क़ुरआन करीम का इरशाद है
وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللّٰهِ جَمِیعًا وَلَا تَفَرَّقُوا (आल-ए-इमरान:103)
और तुम सब मिलकर अल्लाह की रस्सी (इस्लाम) को मज़बूती से थाम लो और आपस में तफ़रक़े मत डालो।
एक और हदीस मुबारका में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया।
अल्लाह तआला फ़रमाता है मैं ही अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई माबूद नहीं। मैं बादशाहों का बादशाह हूँ। बादशाहों के दिल मेरे क़ब्ज़े में हैं। जब मेरे बंदे मेरी इताअत करेंगे तो मैं उनके हुक्मरानों के दिल उन पर रहम व करम से नरम और मेहरबान कर दूँगा। और जब वो मेरी नाफ़रमानी करेंगे तो मैं उनके हुक्मरानों के दिल सख़्त कर दूँगा कि वो उन पर ज़ुल्म ढाएँ। पस तुम अपने वक़्त को हुक्मरानों पर लानत भेजने में ज़ाया मत करो, बल्कि अपने आप को ज़िक्र व इबादत और आजिज़ी में लगाओ, ताकि मैं तुम्हें उनसे महफ़ूज़ रखूँ। (मिशकातुल मसाबीह)
इस हदीस मुबारक से हमें एक यह भी दर्स मिलता है कि हम हुक्मरानों को लअन तअन करने के बजाए हमें अपनी इस्लाह करनी चाहिए ज़िक्र अज़कार करना चाहिए नमाज़ों की पाबंदी गुनाहों से तौबा और अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहकाम पर अमल करना चाहिए तो हमारे हालात संवर जाएंगे।
मस्जिद और बाज़ार दो मुतज़ाद हक़ीक़तें
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद ए गिरामी है आबादियों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा महबूब जगह मस्जिदें हैं और सबसे नापसंदीदा जगह बाज़ार हैं। (मिशकातुल मसाबीह)
इसकी तशरीह में बुज़ुर्गान ए दीन फ़रमाते हैं मसाजिद में अल्लाह का ज़िक्र होता है जबकि बाज़ारों में आम तौर पर झूट, फ़रेब, ग़ीबत और धोखा-दह़ी जैसे उमूर पाए जाते हैं।
हमें उन लोगों में से होना चाहिए जिनका जिस्म तो बाज़ार में हो (यानि दुनियावी ज़रूरतें पूरी करने के लिए) लेकिन दिल हमेशा मस्जिद में ठहरा हुआ हो (यानि अल्लाह के ज़िक्र में मशग़ूल रहे)।
हम उन लोगों में से न हों जिनका जिस्म मस्जिद में हो और दिल बाज़ार में भटक रहा हो।
सूफ़ियाए किराम फ़रमाते हैं
मोमिन मस्जिद में ऐसा होता है जैसे मछली पानी में, और मुनाफ़िक़ ऐसा होता है जैसे चिड़िया पिंजरे में।
इसलिए नमाज़ के फ़ौरन बाद बे-वजह मस्जिद से भागना अच्छा अमल नहीं समझा जाता। अल्लाह तौफ़ीक़ दे तो नमाज़ के लिए पहले आएँ और नमाज़ के बाद ज़िक्र व अज़कार में बैठकर आखिर में जाएँ।
हम अगर निजात चाहते हैं
अगर हम वाकई निजात चाहते हैं तो हमें चाहिए के हम। मसाजिद को आबाद करें: नमाज़ों की पाबंदी के साथ-साथ, ज़िक्र व अज़कार, क़ुरआन पाक की तालीम और दीनि महाफ़िल का एहतिमाम करें।
गुनाहों से सच्ची तौबा करें हसद कीना बुग़ज़ अदावत ग़ीबत चुग़ली, शराबनोशी सूदख़ोरी ज़िनाकारी रिश्वतख़ोरी जैसे तमाम कबाएर और सग़ाएर गुनाहों से सच्चे दिल से तौबा करें।
अपने अंदर इत्तेहाद पैदा करें आपसी इख़्तिलाफ़ात तनाज़आत और फ़िरक़ा वारियत को ख़त्म करते हुए क़ुरआन व सुन्नत के दायरे में मुत्तहिद हो जाएँ।
दुआ और आजिज़ी अपनाएँ ज़ालिम हुक्मरानों पर सिर्फ़ लानत भेजने के बजाय अपनी इस्लाह पर तवज्जो दें और अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाकर दुआ माँगें।
लिहाज़ा आइए, हम सब अहद करें कि अपनी इन्फिरादी व समाजी ज़िन्दगियों में इन अहकाम पर अमल करने की भरपूर कोशिश करेंगे। अपनी मस्जिदों को आबाद करेंगे, गुनाहों से सच्ची तौबा करेंगे, और आपसी इख्तिलाफात भुला कर एक सफ़ में खड़े हो जाएं गे। अल्लाह तआला हमारे दिल नूर ए हिदायत से मुनव्वर फ़रमाए, हमारे आमाल को शरफ़ ए कुबूलियत बख़्शे, और हमें दीन पर इस्तिकामत अता फ़रमाए। आमीन
सवाल: मस्जिदों को आबाद करने के अमली तरीके क्या हैं?
जवाब:1. पाँचों वक़्त की नमाज़ जमाअत से अदा करना। 2. मस्जिदों में कुरआन, ज़िक्र और दीन की तालीम का एहतिमाम करना। 3. मस्जिदों की सफ़ाई, रख-रखाव और इमामों की इज़्ज़त का ख़याल रखना। 4. बच्चों और नौजवानों को मस्जिद से जोड़ने के लिए इस्लाही प्रोग्राम करना।
