दरूद पाक की बरकत एक क़र्ज़दार की हैरत अंगेज़ कहानी अस्सलामु अलैकुम दोस्तों आज की इस तहरीर में मैं एक बेहद प्यारा और इमान अफ़रोज़ वाक़िया बयान करने जा रहा हूँ। यह वाक़िया दरूद पाक की बरकत से जुड़ा हुआ है। इसे पढ़ने के बाद यकीनन आपके दिल में दरूद शरीफ़ पढ़ने का जज़्बा और मोहब्बत पैदा होगी इंशाअल्लाह।
क़र्ज़दार का वाक़िया
एक शख़्स ने अपने दोस्त से तीन हज़ार दीनार (सोने के सिक्के) उधार लिए। वापसी की तारीख़ तय हुई लेकिन जब वक़्त आया तो तक़दीर ने कुछ और ही मंज़ूर किया। उसका कारोबार खत्म हो गया हालत तंग हो गई और वह पूरी तरह कंगाल हो गया।
जिस दोस्त से उसने कर्ज़ लिया था उसने रकम की वापसी का मुतालिबा किया। मगर मकरूज़ (कर्ज़ लेने वाला) मजबूर था उसने मोहलत मांगी। जब बात न बनी तो क़र्ज़ख़्वाह (कर्ज़ माँगने वाला) ने काज़ी के सामने मामला पेश कर दिया।
काज़ी ने मामला सुना और मकरूज़ को एक महीने की मोहलत दी ताकि वह अपने तीन हज़ार दीनार वापस कर सके। अदालत से बाहर आते ही मकरूज़ सोच में पड़ गया
न कारोबार है न कोई ज़रिया ए आमदनी तीस दिन में पैसे कैसे लौटाऊँ?
दरूद पाक का विर्द
उसे याद आया कि उलमा ए किराम ने एक हदीस बयान की थी
रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
जो शख़्स किसी मुसीबत या परेशानी में हो वह मुझ पर दरूदे पाक की कसरत करे। दरूदे पाक मुसीबतों को दूर करता है और रिज़्क़ में बरकत लाता है।
इस बात पर उसे यक़ीन था। उसने मस्जिद के एक गोशे में बैठकर दरूद शरीफ़ पढ़ना शुरू कर दिया। हर दिन दरूद पढ़ता रहा 27 दिन गुज़र गए।
रूहानी इशारा
अठ्ठाईसवीं रात उसने ख्वाब में सुना
ऐ शख़्स! परेशान मत हो अल्लाह तेरा कारसाज़ है। तेरा कर्ज़ अदा हो जाएगा। तू अली बिन ईसा वज़ीर के पास जा और उससे तीन हज़ार दीनार माँग ले।
सुबह उठकर वह खुश तो हुआ लेकिन फिर सोचा वज़ीर मुझे क्यों देगा? न वह मुझे जानता है न पहचानता है यही सोचते-सोचते अठ्ठाईसवाँ दिन भी बीत गया।
ख्वाब में दीदार ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
उन्तीसवीं रात जब वह सोया तो उसे सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार नसीब हुआ।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
अली बिन ईसा वज़ीर के पास जाओ और उससे अपना कर्ज़ अदा करवाओ।
वह जागा तो दिल खुशी से झूम उठा लेकिन फिर सोचा कि वज़ीर निशानी पूछेगा तो मैं क्या बताऊँ?
तब सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया
अगर वह निशानी पूछे तो कहना आप हर रोज़ नमाज़े फज्र के बाद किसी से बात करने से पहले पाँच हज़ार दरूदे पाक पढ़ते हैं और यह बात सिर्फ़ आप और आपका रब जानते हैं।
वज़ीर के पास हाज़िरी
सुबह वह वज़ीर अली बिन ईसा के पास पहुँचा। वज़ीर ने पूछा क्या कोई निशानी है?
उसने जवाब दिया हाँ निशानी ये है कि आप फज्र के बाद पाँच हज़ार बार दरूदे पाक पढ़ते हैं और उस वक़्त किसी से बात नहीं करते।
वज़ीर यह सुनकर दंग रह गया क्योंकि यह राज़ तो सिर्फ़ अल्लाह जानता था। उसकी आँखों से अश्क बह निकले उसने कहा
मरहबा या रसूल अल्लाह!
दरूद की बरकत का इनाम
वज़ीर घर गया और थोड़ी देर बाद नौ हज़ार दीनार लेकर लौटा।
उसने कहा
तीन हज़ार दीनार मेरे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म की तामील में।
तीन हज़ार तुम्हारे कदमों की बरकत में।
और तीन हज़ार तुम्हारे कारोबार के लिए।
साथ ही कहा जब भी कोई मुसीबत आए मुझे याद करना मैं तुम्हारा भाई हूँ।
अदालत का मंज़र
वह शख़्स नौ हज़ार दीनार लेकर अदालत पहुँचा और तीन हज़ार दीनार काज़ी को दे दिए।
काज़ी हैरान हुआ और पूछा तुम इतने कम वक़्त में पैसे कैसे लाए?
उसने जवाब दिया मैं तो मुफलिस था यह सब मेरे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बरकत है।
यह सुनकर काज़ी अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ घर गया और तीन हज़ार दीनार और लाकर उसे दिए।
काज़ी ने कहा
क्या सारा सवाब सिर्फ़ अली बिन ईसा ही ले जाएगा? मैं भी नबी का गुलाम हूँ।
उसी वक़्त कर्ज़ख़्वाह ने भी कहा
मैं भी अपने नबी का उम्मती हूँ मैं अपना सारा कर्ज़ माफ़ करता हूँ।
खुलासा ए कलाम
वो शख़्स जो तीन हज़ार दीनार का मकरूज़ था दरूद शरीफ़ की बरकत से बारह हज़ार दीनार लेकर घर लौटा।
यह है दरूद पाक की बरकत जो दिल की नीयत से पढ़ा जाए तो नामुमकिन को भी मुमकिन बना देता है।
अल्लाह तआला हमें भी दरूद शरीफ़ की तिलावत की आदत अता फरमाए और उसके सदके हमारी मुश्किलें आसान करे। आमीन।
