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islam mein rishwat sood aur haram pesho की मनाहीः कुरान व हदीस की रोशनी में सज़ा, हल और मुंतबिह करने वाला पैग़ाम

 

इस्लाम में रिश्वत, सूद और हराम पेशों की मनाही 

इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ रिश्वत ख़ोरी, सूदी लेन-देन और हराम पेशों की सख़्त मनाही क्यों? कुरान और हदीस में इन गुनाहों के लिए कौन-सा दर्दनाक अज़ाब बयान किया गया है? आज के मुसलमानों को हलाल रोज़ी की तरफ़ लौटने के लिए क्या करना चाहिए? जानिए इस्लामी उसूलों पर मुबनी हल और मुआशरती इस्लाह की जानिब रहनुमाई। 

रिश्वत-ख़ोरी, सूदी लेन-देन और दूसरे हराम पेशे की मुज़म्मतः 

मज़हब-ए-इस्लाम ने रिश्वत-ख़ोरी और सूदी लेन-देन से बड़ी ही सख़्ती के साथ मना फ़रमाया और उसे हराम करार दिया है। और रिश्वत-ख़ोरी व सूदी कारोबार में मुब्तिला अफ़राद के लिए दर्दनाक अज़ाब और वईदें सुनाई हैं। दोस्तों : जब हम क़ौम-ए-मुस्लिम के हालात का जाइज़ा लेते हैं, कलिमा पढ़ने वाले मुसलमानों के शब-ओ-रोज़ को देखते हैं और उन की ज़िंदगी का मुतालेआ करते हैं तो हद-दरजा अफ़सोस होता है और आँखें खून के आँसू रोती हैं और दिल बैठने लगता है कि वह मुसलमान जिन की हिदायत-ओ-रहनुमाई के लिए अल्लाह तआला ने कुरान-ए-अज़ीम अता कियाः 
(और हम ने तुम पर यह कुरान उतारा जिस में हर चीज़ का रोशन बयान है और इसमें मुसलमानों के लिए हिदायत और रहमत और बशारत है। (सुरहः नहल आयतः 89) तर्जमा (कन्जुल ईमान) 
और अमली तौर पर रुश्द-ओ-हिदायत के लिए, सही रास्ता दिखाने के लिए और हराम-ओ-हलाल के माबीन इम्तियाज़ और फ़र्क़ बताने के लिए पैग़म्बर-ए-आज़म, नबी-ए-आख़िरुज़्ज़माँ, रहमतुल्लिल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस ज़ात और बा-सआदत ज़िंदगी अता किया। इरशाद फ़रमायाः 
(कि बे-शक तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल (की ज़िंदगी) में बेहतरीन नमूना मौजूद है और यह उस के लिए है जो अल्लाह और आख़िरत के दिन की उम्मीद रखता है और अल्लाह को बहुत याद करता है। (सुरहः अल-अहज़ाब -आयतः 21) तर्जमा (कन्जुल ईमान) इस तरह अल्लाह तआला ने मुसलमानों की हिदायत फ़रमाई और सही रास्ता दिखाया। इस के बावजूद क़ौम-ए-मुस्लिम में अक़्सरियत का आलम यह है कि वह सारी बुराइयाँ उस के अंदर मौजूद हैं जिन से अल्लाह तआला ने और उस के प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बड़ी ताक़ीद और सख़्ती के साथ रोका भी है और इन बुराइयों के इरतिकाब पर बड़ी सख़्त सज़ा भी सुनाई है। आज हमारी क़ौम हलाल और तय्यिब-ओ-ताहिर ज़रिया-ए-मआश से दूर, रिश्वत-ख़ोरी, सूद-ख़ोरी और नाजाइज़-ओ-हराम पेशे में मुब्तिला है। आज की नई नस्ल में जुवा एक फ़ैशन बन गया है। आज हमारे बहुत सारे नौजवान नाच-कूद, गाना-बजाना को अपना ज़रिया-ए-मआश बनाए हुए हैं। दूसरी क़ौमों की तरह हमारी मुस्लिम ख़वातीन बिल-खुसूस तालीम याफ़्ता दुख़्तरान-ए-इस्लाम बे-पर्दगी के आलम में गैर-मेहरम मर्दों के साथ मख़लूत रह कर किसी कंपनी या ऑफ़िस में जॉब कर रही हैं या उन का काम गैर-मेहरम मर्दों का इस्तक़बाल करना है। जबकि शरीअत में इस तरह के पेशे हराम हैं, हराम हैं और इन की हरगिज़ कोई इजाज़त नहीं है। 

रिश्वत जुआ सूद मोहलक बिमारी 

रिश्वत, सूद और जुवा कैंसर से भी ज़्यादा भयंकर हैं। रिश्वत, जुवा और सूद ऐसी मुहलिक और तबाह-कुन बीमारियाँ हैं कि जब कोई रिश्वत-ख़ोरी, सूद लेन-देन और जुवा में मुब्तिला हो जाता है तो यह चीजें न सिर्फ़ रिश्वत लेने और देने वाले या सूदी कारोबार करने वाले या जुवा का बाज़ार गर्म रखने वाले अफ़राद की आख़िरत बर्बाद करती हैं बल्कि उन की दुनिया भी तबाह कर के रख देती हैं। रिश्वत, सूद और जुवा न सिर्फ़ इन में मुब्तिला अफ़राद की कमर तोड़ देती हैं बल्कि पूरी क़ौम और मुल्क की बुनियाद हिला कर रख देती हैं। दोस्तों ! अब आप थोड़ी देर अल्लाह के मुक़द्दस कलाम कुरान-ए-अज़ीम और अहादीस-ए-मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखें कि रिश्वत, सूद और जुवा के बारे में क्या हुक्म है? इन बुराइयों के मुर्तकिब लोगों के लिए कौन सा अज़ाब और क्या वईदें हैं? अल्लाह तबारक व तआला इरशाद फ़रमाता है: (सुरहः अल-माइदा - आयत:42) (तर्जुमाः बहुत झूठ सुनने वाले, बड़े हराम-ख़ोर हैं।) (कन्जुल ईमान) 
इस आयत-ए-करीमा में झूठ सुनने वालों से मुराद यहूदी हुक्मरान और पादरी हैं जो रिश्वत ले कर हराम को हलाल 
और शरीअत के अहकाम बदल देते थे। (सिरात-उल-जिनान) 

मुसलमानों में रिश्वत सूद की बिमारी आम हो चुकी है 

आज क़ौम-ए-मुस्लिम में भी रिश्वत आम हो गई है। हर इलाक़े में कुछ अफ़राद ऐसे होते हैं जिन की ज़िंदगी का मशग़ला ही रिश्वत-ख़ोरी होता है कि वह माल-ए-रिश्वत ले कर हक़ को बातिल और बातिल को हक़ साबित करते हैं। और याद रखें रिश्वत लेना और देना दोनों हराम है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं: "अर-राशी वल-मुर्तशी कुलाहुमा फ़िन-नार" (मुअज्जम अल-औसत, हदीसः 2026) कि रिश्वत लेने और देने वाले दोनों जहन्नमी हैं। और एक मक़ाम में रिश्वत-ख़ोरों के लिए वईद बयान करते हुए अल्लाह के रसूल इरशाद फ़रमाते हैं: "जो गोश्त हराम ग़िज़ा से पला बढ़ा हो तो आग उस के लिए ज़्यादा बेहतर है। अर्ज़ की गई या रसूलल्लाह ! सुह्त से क्या मुराद है? इरशाद फ़रमायाः फ़ैसला करने में रिश्वत लेना। और मिश्कात शरीफ़ की एक हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रिश्वत की वजह से पूरी क़ौम और पूरे मुआशिरे में आने वाली मुसीबत को यूँ बयान करते हैं किः "जिस क़ौम में ज़िना आम हो गया वह क़हत में गिरफ़्तार होगी, और जिस क़ौम में रिश्वत का जुहूर हो गया वह रब और ख़ौफ़ में मुब्तिला हो जाएगी।" (मिश्कात हदीस, 3582) 
यही वजह है कि जब मुसलमान हक़ीक़त में मुसलमान थे, इस्लामी रिवायात के हामिल थे और रिश्वत-ओ-हराम अश्या से कोसों दूर थे तो यूरोप व एशिया और अफ्रीका के अक्सर ममालिक में मुसलमानों की हुकूमत थी, मुसलमानों का इक़्तिदार था और पूरी दुनिया में मुसलमानों का ख़ौफ़ रहता था लेकिन जब मुसलमानों ने रिश्वत और हराम-ख़ोरी को अपनी रोज़ मर्रा की ग़िज़ा बना लिया तो दुनिया का ख़ौफ़ मुसलमानों पर मुसल्लत हो गया। 

सूद खोरों के लिए अज़ाब 

और सूद के तअल्लुक़ से अल्लाह तआला कुरान-ए-मुक़द्दस में इरशाद फ़रमाता हैः (सूरहः अल-बक़रा, आयतः 275) (जो लोग सूद खाते हैं वह क़ियामत के दिन न खड़े होंगे मगर उस शख़्स के खड़े होने की तरह जिसे आसेब ने छू कर पाग़ल बना दिया हो। यह सज़ा इस वजह से है कि उन्होंने कहाः ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त भी तो सूद ही की तरह है हालाँकि अल्लाह ने ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त को हलाल किया और सूद को हराम किया तो जिस के पास उस के रब की तरफ़ से नसीहत आई फिर वह बाज़ आ गया तो उस के लिए हलाल है वह जो पहले गुज़र चुका और उस का मुआमला अल्लाह के सुपुर्द है और जो दोबारा ऐसी हरकत करेंगे तो वह दोज़ख़ी हैं, वह उस में मुद्दतों रहेंगे।) 
(कन्जुल ईमान) 
यानी सूद-ख़ोर क़ियामत में ऐसे मख़बूत-अल-हवास होंगे और ऐसे गिरते पड़ते होंगे जैसे दुनिया में वह शख़्स जिस 
पर भूत सवार हो और उस की वजह से वह दीवाना और पागल हो गया हो। 
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं: "चार शख़्स ऐसे हैं जिन्हें जन्नत में दाखिल न करना और उस की ने'मतों का मज़ा न चखाना अल्लाह पर हक़ है (1) शराब का आदी (2) सूद खाने वाला। (3) 
ना-हक़ यतीम का माल खाने वाला। (4) वालिदैन का नाफ़रमान।" 
(मुस्तदरक, हदीसः 2307) और हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि हुजूर ताजदार-ए-मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "जिस बस्ती में ज़िना और सूद आम हो जाए तो उन्होंने अपने लिए अल्लाह के अज़ाब को हलाल कर लिया।" (मुस्तदरक, हदीसः 2308) 
इस हदीस-ए-पाक में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बड़े ही वाज़ेह अंदाज़ में यह फ़रमाया कि किसी बस्ती या क़ौम के अंदर ज़िना और सूद-ख़ोरी का आम होना अल्लाह के अज़ाब को दावत देना है और न सिर्फ़ ज़ानी और सूद-ख़ोर अल्लाह के अज़ाब में गिरफ़्तार होंगे बल्कि पूरी बस्ती और पूरी क़ौम ज़िना और 
सूद-ख़ोरी की वजह से अज़ाब-ए-इलाही की ज़द में आ जाएगी। 
जुवा और शराब के मुतअल्लिक़ अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है: (सूरहः अल-बक़रा आयतः 219) 
(ऐ महबूब ! आप से लोग शराब और जुवे के मुतअल्लिक़ सवाल करते हैं। आप फ़रमा देंः इन दोनों में कबीरा गुनाह है।) 
इस आयत-ए-करीमा से पता चला कि जुवा और शराब हराम है और हराम चीज़ों के मुतअल्लिक़ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं: "कुल लह्म नबत मिन सुत फ़न्नार औला बिह" (मिश्कात, 614) 
कि जो गोश्त हराम ग़िज़ा से पला बढ़ा हो वह जहन्नम का ज़्यादा मुस्तहिक़ है। 

दूसरे की ज़मीन पर नाजाइज़ क़ब्ज़ाः 

दोस्तों ! दौर-ए-हाज़िर के मुसलमानों में अक़्सरियत इस हरामकारी की ज़द में है कि वह नाजाइज़ तरीक़े पर दूसरों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रहे हैं, फ़र्जी काग़ज़ात बना कर दूसरों की ज़मीन ग़स्ब कर रहे हैं और रब और ख़ौफ़ मुसल्लत कर के जबरन दूसरे की जायदाद को अपनी जायदाद में शामिल कर रहे हैं। जबकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दूसरों की ज़मीन-ओ-जायदाद पर जबरन और नाजाइज़ तरीक़े पर क़ब्ज़ा करने वालों के लिए दिल दहला देने वाले अज़ाब के ज़रिए अपनी उम्मत को मुतनब्बिह फ़रमाया है: "कि जो एक बालिश्त ज़मीन जुल्मन ग़स्ब करेगा तो क़ियामत के दिन ज़मीन के सातों तबक़ तक इतना हिस्सा तोड़ कर उस के गले में डाला जाएगा। (सहीह अल-बुख़ारी) अल्लाह तआला इन सारे मुसलमानों को रिज़्क-ए-हलाल कमाने और खाने की तौफ़ीक़ बख़्शे जो नाजाइज़-ओ-हराम पेशे को इख़्तियार किए हुए हैं या हराम ग़िज़ा से ज़िंदगी के शब-ओ-रोज़ गुज़ार रहे हैं। आमीन या रब्ब-अल-आलमीन 
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