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Shadi में कार्ड छापना

आप इस पोस्ट में शादी ब्याह के मौके पर जो कार्ड छापते हैं और कार्ड के ज़रिये जो दावत दी जाती है तो हमें इसमें किन बातों का ख्याल रखना है और क्या अहतिया

 
कार्ड छापना

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों: आप  इस पोस्ट में शादी ब्याह के मौके पर जो कार्ड छापते हैं और कार्ड के ज़रिये जो दावत दी जाती है तो हमें इसमें किन बातों का ख्याल रखना है और क्या अहतियात करना है इस पोस्ट में आप पढेंगें !
दोस्तों: मंगनी के बाद फ़रीकैन की जानिब से शादी की तैय्यारीयां शुरू हो जाती है जिन में एक रिश्तेदार, दोस्त व अहबाब को दावत देने के लिये कार्ड छापना है और ये दुरुस्त भी है लेकीन बाज़ हज़रात कार्ड के इब्तेदा पर तस्मीया (बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम) या हदीसे मुबारका दर्ज करवाते हैं और फिर वही कार्ड मुस्लिमों के साथ-साथ गैर मुस्लिमों को भी दुनियावी तअल्लुक़ात की बिना पर दिये जाते हैं और गैर मुस्लिमों से तस्मीया और हदीसे पाक की ताज़ीम की उम्मीद हरगिज़ नही की जा सकती है और तस्मीया और हदीसे पाक की ताज़ीम हर मुसलमान पर शरअन लाज़िम व ज़रुरी है। इमाम-ए- अहले सुन्नत आला हज़रत रदी अल्लाहो तआला अन्हो तो यहाँ तक फरमाते हैं के नफ़्से हुरुफ़ क़ाबिले अदब हैं अगर चे ये जुदा-जुदा लिखें हों ख्वाह उन मे कोई बुरा नाम लिखा हो जैसे फ़िरऔन, अबू जहल वगैरह, ताहम (फिर भी) उन हरफों की ताज़ीम की जाएगी अगरचे उन काफ़िरों का नाम ऐहानत और तज़लील के लायक है (फ़तावा रज़्विया) लेहाज़ा बेहतर तो यही है के गैर मुस्लिमों को कार्ड (दावत नामा) देना हो तो कार्ड पर तस्मिया या हदीस दर्ज ना कराएं और अगर हुसूले बरकत के लिये कार्ड छापना ही चाहे तो फ़िर अदद में करे। इमाम-ए-अहले सुन्नत आला हज़रत रदी अल्लाहो तआला अन्हो काफ़िर को तावीज़ देने के सिलसिले मे फ़रमाते हैं के काफ़िर को अगर तावीज़ दिया जाए तो मुज़मर जिसमें हिंद से (अदद) होते हैं वो दिया जाये ना के मुज़हर जिसमें कलामे इलाही व अस्माए इलाही (कुरआन की आयत और अल्लाह पाक के सिफ़ाती नाम मस्लन रज़्ज़ाक, सत्तार वगैरह) के हुरूफ़ होते हैं। (फ़तावा रज़्विया जिल्द २४ सफ़ा १९७)

रतजगा

रतजगा शादी की इब्तिदाई रस्मों में से एक रस्म है। इस में अमूमन रतजगा किया जाता है जिस में रात भर जाग कर गानों, बाजों और ड्रामों का दौर चलता है। जबकि मज़हबे इस्लाम में इन्सान के लिए हुक्म है कि नमाज़े ईशा के बाद कोई दुनियावी बाते न कि जाऐ बल्कि शब बेदारी करके इबादत कि जाए या यह न कर सके तो बेहतर है कि सो जाए । ऐ काश के रात भर जाग कर ये सारे काम करने के बजाए अल्लाह की हमदो सना पेश कि जाए तस्बीह और तहलील की जाए, नाते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम गुनगुनाई जाए। अल्लाह पाक और उस के रसुल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खुश करने की कोशिश की जाए तो कितना बेहतर होगा ।
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