अस्सलामु अलैकुम दोस्तों आप इस पोस्ट में पढ़ेंगे कि शादी ब्याह के मौके पर जो कार्ड छापे जाते हैं और कार्ड के जरिये जो दावत दी जाती है उसमें हमें किन बातों का ख्याल रखना चाहिए और क्या एहतियात करनी चाहिए।
कार्ड छपाई और एहतियात
दोस्तों मंगनी के बाद दोनों तरफ से शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं जिनमें रिश्तेदारों दोस्तों और अहबाब को दावत देने के लिए कार्ड छापना भी शामिल होता है यह काम अपनी जगह दुरुस्त और जाइज़ है।
लेकिन कुछ लोग कार्ड की शुरुआत में बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम या हदीस ए मुबारका दर्ज करवाते हैं जब वही कार्ड मुस्लिमों के साथ साथ गैर मुस्लिमों को भी दुनियावी ताल्लुकात की वजह से दिया जाता है तो यहाँ एक अहम मसअला पैदा होता है।
क्योंकि गैर मुस्लिमों से तस्मीया बिस्मिल्लाह और हदीसे पाक की ताज़ीम की उम्मीद नहीं की जा सकती जबकि इनकी ताज़ीम हर मुसलमान पर शरअन लाज़िम है।
आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैहि का फ़रमान
इमाम ए अहले सुन्नत आला हज़रत अहमद रज़ा खान फ़ाज़िल ए बरेलवी रज़ीअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं।
नफ़्से हुरूफ़ क़ाबिले अदब हैं अगरचे जुदा जुदा लिखे हों ख़्वाह उनमें कोई बुरा नाम लिखा हो जैसे फिरऔन अबू जहल वगैरह ताहम उन हरूफ़ की ताज़ीम की जाएगी फ़तावा रज़विया।
यानी अल्फ़ाज़ अपने आप में क़ाबिले अदब हैं चाहे वो किसी बदनाम या काफ़िर के नाम का हिस्सा ही क्यों न हों।
गैर मुस्लिमों को कार्ड देने का तरीका
लेहाज़ा बेहतर यही है कि अगर गैर मुस्लिमों को शादी का कार्ड देना हो तो कार्ड पर तस्मीया या हदीस दर्ज ना कराएं और अगर बरकत की नीयत से कार्ड पर तस्मीया ज़रूर छापना चाहें तो फिर अलग अलग अदद नंबर वाले कार्ड छपवाएँ यानि कुछ कार्डों में तस्मीया दर्ज हो जो सिर्फ मुसलमानों के लिए हों और बाकी कार्ड सादा रखे जाएँ।
आला हज़रत रज़ीअल्लाहु अन्हु फ़तावा रज़विया जिल्द 24 सफ़ा 197 में फरमाते हैं काफ़िर को अगर तावीज़ दिया जाए तो मुज़मर अदद वाला दिया जाए ना कि मुज़हर वो जिसमें कलामे इलाही या अस्माए इलाही हों जैसे कुरआन की आयतें या अल्लाह पाक के सिफ़ाती नाम रज़्ज़ाक सत्तार वगैरह।
रतजगा और इस्लामी तालीमात
शादी की इब्तिदाई रस्मों में से एक मशहूर रस्म रतजगा है।
इसमें आमतौर पर रात भर जाग कर गाने बाजे ड्रामे और दुनियावी मसरूफियात की जाती हैं जो इस्लामी नज़रिया से नाजायज़ और बेकार हैं।
जबकि इस्लाम ने हमें हुक्म दिया है कि नमाज़ ए ईशा के बाद कोई दुनियावी बातें न की जाएँ बल्कि या तो इबादत में शब बेदारी की जाए या अगर ये मुमकिन न हो तो सो जाना बेहतर है।
रात की बर्बादी नहीं बरकत बनाओ
ऐ काश रात भर गानों और मौज मस्ती में वक्त ज़ाया करने के बजाय अगर उसी रात को अल्लाह की हम्द व सना तस्बीह व तहलील और नाते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में गुज़ारा जाए तो ये रात नूर से भर जाए और शादी भी बरकत और रहमत का सबब बने।
नसीहत का खुलासा
शादी ब्याह इस्लामी तहज़ीब का हसीन हिस्सा हैं मगर अगर इनमें गैर शरई चीजें शामिल हो जाएँ तो बरकत की जगह नाकामयाबी और गुनाह हावी हो जाते हैं इसलिए अपने कार्ड रस्में और दावतें सब कुछ शरीअत के दायरे में रखिए ताकि आपका निकाह भी रहमत सकीनत और बरकत का पैग़ाम बन जाए।
क्या शादी के कार्ड पर बिस्मिल्लाह लिखना जाइज़ है
अगर शादी का कार्ड सिर्फ मुसलमानों को दिया जा रहा है तो उस पर बिस्मिल्लाह लिखना जाइज़ और मुस्तहब है क्योंकि ये कलामे इलाही है और बरकत का सबब है मगर अगर वही कार्ड गैर मुस्लिमों को भी दिया जाना है तो उस पर बिस्मिल्लाह या हदीस लिखना मुनासिब नहीं क्योंकि उनसे ताज़ीम की उम्मीद नहीं की जा सकती और कलामे पाक की बेअदबी का ख़तरा रहता है
क्या शादी में गैर मुस्लिम दोस्तों को कार्ड देना सही है
गैर मुस्लिम दोस्त को दुनियावी ताल्लुक की वजह से शादी का कार्ड देना जाइज़ है लेकिन शरई एहतियात ये है कि ऐसे कार्डों पर कुरआन की आयत या हदीसे पाक न लिखी जाएं अगर बरकत की नीयत से तस्मीया लिखना चाहो तो मुसलमानों के लिए अलग कार्ड छपवाना बेहतर है
क्या रतजगा की रस्म इस्लामी नज़रिया से सही है
रतजगा में रात भर गाने बाजे और बेकार काम करना इस्लाम में जाइज़ नहीं है इस्लाम हमें सिखाता है कि इशा की नमाज़ के बाद या तो इबादत में वक्त गुज़ारो या आराम करो अगर वही रात हम अल्लाह की हम्द व सना तस्बीह तहलील और नाते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में गुज़ारें तो यही असली रतजगा है जो रहमत और बरकत लाता है
शादी ब्याह में शरीअत की रौशनी में क्या एहतियात ज़रूरी है
शादी इस्लामी तहज़ीब का हसीन हिस्सा है मगर इसमें शरीअत की हदें कायम रखना ज़रूरी है दावत कार्ड से लेकर रस्मों तक हर काम में अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रज़ा का ख्याल रखा जाए गैर शरई रस्मों से बचना और बरकत हासिल करने के लिए हर अमल शरीअत के दायरे में करना ही असली निकाह की खूबसूरती है
