अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह! आज की इस तहरीर में हम आप के साथ ईमान की सबसे कमज़ोर हालत के बारे में बात करेंगे, जिस का तज़किरा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हदीस शरीफ में फरमाया है। साथ ही हम इस अहम फ़र्ज़ पर भी रोशनी डालेंगे जो हर मुसलमान पर आएद होता है यानी नेकी का हुक्म देना और बुराई से रोकना।
और हम खलीफ़ा ए दोम हज़रत उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़िंदगी के आख़िरी लमहात का वह वाक़िया भी आप तक पहुँचाएँगे जब आप शदीद ज़ख़्मी होने के बावजूद आप ने एक नौजवान को शरई हुक्म की पाबन्दी की तलक़ीन फरमाई।तो आइए, सब से पहले जान लेते हैं कि वह कौन सी हालत है जिसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने "ईमान की सबसे कमज़ोर हालत" क़रार दिया है।
ईमान की सबसे कमज़ोर हालत
हदीस मुबारका
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया।
तुम में से जो शख्स कोई बुराई देखे तो उसे चाहिए कि उसे अपने हाथ से बदल दे (रोक दे)। अगर उस की ताक़त न रखता हो तो अपनी ज़ुबान से (मना करे)। और अगर उस की भी ताक़त न रखता हो तो फिर अपने दिल से बुरा जाने , और यह ईमान की सबसे कमज़ोर हालत है।
(सहीह मुस्लिम,किताबुल ईमान)
हदीस पाक की तशरीह व तौज़ीह
अम्र बिल मारूफ और नही अनिल मुनकर के दरजात
इस हदीस मुबारका में नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुआशरती इस्लाह के लिए एक ज़रीन उसूल अता फरमाया है। इसमें तीन दरजे बयान किए गए हैं।
पहला और बेहतरीन दरजा: हाथ से रोकना। अगर आपके पास अधिकार या ताक़त है, मसलन वालिदैन उस्ताद सरबराह या हाकिम हैं तो बुराई को अपने अमल से हाथ से रोकना लाज़िम है।
दूसरा दरजा: ज़ुबान से मना करना। अगर अमल से रोकने की क़ुदरत नहीं तो कम से कम ज़बान से समझाया जाए नसीहत की जाए ताकि दूसरे शख़्स के दिल में नरमी पैदा हो और वह राहे हक़ पर आ जाए।
तीसरा दरजा: दिल से बुरा मानना। यह हर मोमिन के लिए लाज़िम है और अगर हालात ऐसे हों कि ज़बान खोलने पर नुक़सान दुश्मनी या फ़ितना का अंदेशा हो तो कम से कम दिल में बुराई को बुरा समझना ज़रूरी है। और यह ईमान की सबसे कमज़ोर हालत है।
हिकमत और मौक़े की मुनासिबत
हर दरजे को उस वक़्त ही इस्तेमाल किया जाए जब उस की इस्तिताअत और मौक़ा मुनासिब हो।
अगर यह गुमान हो कि बात सुन ली जाएगी और बुराई रुक जाएगी तो नसीहत करना वाजिब है और खामोश रहना जाइज़ नहीं।
अगर यह ख़दशा हो कि नसीहत पर रिएक्शन सामने आएगा मार पीट या दुश्मनी पैदा होगी तो ऐसी सूरत में हालांकि खामोश रहना बेहतर हो सकता है लेकिन अगर कोई शख्स सब्र के साथ मुसीबत झेल ले और अम्र बिल मारूफ जारी रखे तो वह मुजाहिद है।
अगर मालूम हो कि नसीहत का कोई फायदा नहीं होगा लेकिन नुकसान का भी इंदेशा न हो तो फिर नसीहत करना बेहतर है ताकि सवाब हासिल हो और मुआशरे में भलाई का दाइ बन सके।
मौत के बिस्तर पर भी अम्र बिल मारूफ हज़रत उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु का आख़िरी सबक
शहादत का अज़ीम वाक़िया
दोस्तों!आप ने बारहा उलमाए किराम से सुना होगा कि अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर फारूक़ आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस तरह शहीद हुए कि ऐन हालत ए नमाज़ में, जब कि आप मुसल्ला पर नमाज़ ए फज्र की इमामत फरमा रहे थे एक अज़्ली शक़ी अबू लुलू फ़िरोज़ मजूसी काफ़िर ने आप के शिकम ए मुबारक में खंजर मारा।
आख़िरी लमहात
लोग अमीरुल मोमिनीन को मस्जिद से उठा कर काशाना ए खिलाफत में लाए। तबीब ने खजूर का शर्बत पिलाया तो वह आँतों से निकल कर बाहर आ गया। फिर दूध पिलाया तो वह भी आँतों से बह निकला। इस के बाद तबीब ने कह दिया ऐ अमीरुल मोमिनीन! आप अब वसीयत शुरू कर दीजिए अब आप का इलाज ग़ैर मुमकिन है और यह आप का आख़िरी वक़्त है।
मौत के बिस्तर पर भी अम्र बिल मारूफ
यह सुन कर अमीरुल मोमिनीन वसीयत फरमानेलगे। ऐन उसी हालत में एक अन्सारी नौजवान को आप ने देखा कि उस का तहबंद टखनों से नीचे ज़मीन पर घिसट रहा है। आप ने उस हालत में भी एक मुस्लिम नौजवान की इतनी सी खिलाफ ए शरा बात को बर्दाश्त नहीं किया। बावजूद यह कि ज़ख्मों की तकलीफ से होंटों पर दम आ चुका था मगर उस हाल में भी अम्र बिल मारूफ का जज़्बा कम नहीं हुआ।
अमीरुल मोमिनीन की आख़िरी नसीहत
बल्किआप ने उस नौजवान को मुखातिब फरमा कर इस तरह इरशाद फरमाया ऐ मेरे भतीजे! अपने कपड़े को टखनों से ऊपर उठा ले। क्योंकि ऐसा करने से तेरे कपड़े भी ज़मीन के गर्दो-ग़ुबार से साफ़ सुथरे रहेंगे और तू अपने रब का परहेज़गार बंदा भी बन जाएगा। (बुखारी,जिल्द 1,सफ़ा 524)
आज के मुआशरे की ज़िम्मेदारी और हमारा फ़र्ज़
आज हम देखतेहैं कि खानदान रिश्तेदारों और बिरादरी में बहुत सी बुराइयाँ (चाहे वह अक़ीदे से मुताल्लिक हों या अमल से) खुल्लम-खुल्ला फैल रही हैं लेकिन लोग खामोश तमाशाई बने रहते हैं। यह खामोशी बुराइयों को हवा देने के मुतरादिफ है जिस के नतीजे में मुआशरे में तबाही बुराइयाँ और इंतिशार फैलता है।
हज़रत उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के औसाफ
मौत के क़रीब भी उम्मत की फ़िक्र।
इन्तेहाई तकलीफ में भी शरई हुक्म की पासदारी।
जवानों की इस्लाह का जज़्बा।
अल्लाह के अहकाम की नशरो-अशात का अज़म।
आज के दौर के लिए पैग़ाम
दोस्तों हमें चाहिए के अम्र बिल मारूफ का फ़र्ज़ हर हाल में अदा करना चाहिए और छोटी से छोटी खिलाफ ए शरा बात को नज़र-अंदाज़ न करें जब नसीहत करें तो अंदाज़ नर्म और शफ़क़त भरा हो और हर मौक़े पर हस्बे-इस्तिताअत नेकी का हुक्म दें।
सबक और इबरत
मुसलमान भाइयो!देख लिया आप ने हज़रत उमर फारूक़ आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु के अम्र बिल मारूफ के जज़्बे को? क्यों न हो? कि यामुरूना बिल मारूफ एक मोमिन का मकसद ए हयात और उस की ज़िंदगी का अहम नस्बुल-ऐन है।
इख्तिताम
इस हदीस मुबारका और हज़रत उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के वाकिया से हमें यह दर्स मिलता है के हर मुमकिन तरीके से भलाई का हुक्म दें और बुराई से रोकने की कोशिश करें। चाहे हालात कितने ही सख़्त हों,चाहे मुश्किलात कितनी ही ज़्यादा हों, हमेशा नेकी का हुक्म दें और बुराई से रोकने के फ़र्ज़ को अदा करते रहें।
अल्लाह तआला हमें इस मुबारक फ़र्ज़ को समझने और उस पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन।
अल्लाह तआला का फरमान है "तुम बेहतरीन उम्मत हो जो लोगों के लिए निकाली गई हो, तुम भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो।
एक अहम सवाल और उसका जवाब
सवाल : क्या ऑनलाइन या सोशल मीडिया पर गलत बातें देखने पर भी यही हुक्म लागू होता है?
जवाब: जी हाँ, बिलकुल लागू होता है। ऑनलाइन दुनिया भी असली दुनिया का ही एक हिस्सा है। वहाँ बुराई देखने पर: · हाथ से रोकने का मतलब होगा उस पोस्ट/कंटेंट को रिपोर्ट करना या हाइड/अनफॉलो करना। · ज़ुबान से रोकने का मतलब होगा नरमी के साथ कमेंट में सही बात बताना या प्राइवेट मैसेज के ज़रिए समझाना। · और अगर कुछ नहीं कर सकते, तो कम से कम दिल से उस कंटेंट को बुरा जानें, उसे लाइक या शेयर न करें।
