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हजरे असवद की फज़ीलत Hajre Aswad

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हजरे असवद की तारीख और फ़ज़ाइल व बरकात 

हजरे अस्वद क्या है 

हजरे असवद हजरे असवद क्या है [हजरे असवद का लुग्वी मानी है “सियाह पत्थर“ और उर्फ़ शरा मैं वोह पत्थर मुराद है जो मक्का मुअज्ज़मा मस्जिद ए हराम (काबा शरीफ ) के शर्की दरवाज़े के करीब नसब है उसे रुक्न ए असवद भी कहा जाता है  (क़स्तलानी शरह बुखारी )

जब हाजी लोग सारी दुनिया से हज का फ़रीज़ा अदा करने के लिए मक्का शरीफ पहुँचते हैं और वहां पर काबा शरीफ का तवाफ़ यानी चक्कर लगाते हैं तो हजरे असवद ही से शुरू करते हैं और इसी पर एक चक्कर मुकम्मल होता है 

हजरे अस्वद पर खड़े होकर काबा की तामीर 

हजरे असवद के बारे मैं ये रिवायत मशहूर है के हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम खाना काबा की तामीर के वक़्त जब उस जगह पहुंचे जहाँ इस वक़्त हजरे असवद नसब है तो उनहोंने हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम से कहा के वोह एक पत्थर लायें जो इस जगह पर नसब किया जाये ताके तवाफ़ काबा के वक़्त हर ज़ाइर यानी तवाफ़ करने वाला अपने चक्कर गिन सके हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम पत्थर की तलाश मैं निकले इतने मैं हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और ये पत्थर पेश किया जो तूफ़ान ए नूह अलैहिस्सलाम के वक़्त जबल ए अबू कुबेस मैं बतौर ए अमानत रख दिया गया था 

हजरे अस्वद और जबल अबू कुबैस

अल्लाह तआला ने हजरे असवद जबल अबुकुबैस (पहाड़ का नाम ) को बतौर अमानत उस वक़्त नवाज़ा था जब नूह अलैहिस्सलाम के ज़माने मैं अल्लाह तआला ने ज़मीन को ढूबोदिया था और फ़रमाया था के जब तू मेरे खलील को मेरा घर तामीर करते हुए देखे तो उसके लिए इसे निकाल देना

जब हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम आप के पास वापस आए तो अर्ज़ की अब्बू जान ये आपके पास कहाँ से आया है तो आपने फ़रमाया के ये जिब्राइल अलैहिस्सलाम लाए हैं फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हजरे असवद को उसके मकाम पर नसब कर दिए 

हजरे असवद की तन्सीब नौ यानी हजरे असवद का नसब करना 

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहदे शबाब मैं एक औरत लोबान ओ अंबर जला रही थी के गिलाफ काबा को आग लग गई जिस से इमारत को शदीद नुकसान पहुंचा चुनांचे सरदारान कुरैश ने उसकी तामीर नो का बेड़ा उठाया तमाम क़बाइल इस कार ए खैर मैं शरीक हुए हजरे असवद की तन्सीब पर तमाम क़बाइल पर तकरार हो गई क़रीब था के तलवार चल जाए बड़े बूढों ने मुआमला रफा दफा कर दिया और इस बात पर समझोता हो गया के जो शख्स सवेरे खाना काबे मैं दाखिल होगा वोही इस पत्थर की तन्सीब का मुसतहिक़ होगा दुसरे दिन सुबह सवेरे सरदाराने कुरैश काबा मैं दाखिल हुए तो वोह देख कर हैरान हो गए के दियानत व इख्लास के पेकर मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहां मौजूद हैं उनहोंने बड़े फख्र के साथ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पत्थर उठाकर रखने की दावत दी लाख लाख दरूद ओ सलाम हो उस पैगम्बर ए आज़म सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर के जिसने अक्लमंदी का ऐसा सबूत दिया दिया के बुज़ुर्ग और बूढ़े दंग रह गए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी चादर मुबारक अपने कंधे मुबारक से उतारदी और ज़मीन पर बिछा कर उस पर पत्थर उठा कर रख दिया और सरदाराने कुरैश से फ़रमाया आप इस चादर के कोने मुबारक थाम लें और पत्थर की तन्सीब की सआदत मैं मेरे साथ शरीक हो जाएँ चुनांचे सब सरदाराने कुरैश ने उस चादर के कोने थाम लिए और पत्थर को उठा कर उस जगह ले गए जहाँ उसको नसब करना मक़सूद था हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पत्थर को चादर से उठाकर दिवार पर उसकी मखसूस जगह पर रख दिया और इसतरह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हिकमत से सरदाराने कुरैश को लड़ाई से रोका और अमन ओ सलामती का पैग़ाम दिया 

हजरे असवद की फज़ीलत 

हजरे असवद की फज़ीलत बहुत है मैंने यहाँ हजरे असवद की मुख़्तसर तारीख ब्यान की हजरे असवद की शान के बारे मैं ये हदीस पढ़े के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हजरे असवद बहिश्त से आया है दूध से जियादा सफ़ेद था बनू आदम की खताओं ने उसे सियाह बना दिया है एक और रिवायत मैं है हजरे असवद जन्नत से लाया गया है |

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