मालिक व मुख्तार नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की शान अज़मत और अज़ीम इख़्तियारात

इस मज़मून में आप जानेंगे कि अल्लाह तआला ने अपने हबीब मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को कैसी अज़ीम शान, बेमिसाल अज़मत और इख़्तियारात अता फरमाए

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों!इस पोस्ट में आप हमारे प्यारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उन अज़ीम इख़्तियारात के बारे में पढ़ेंगे जो अल्लाह तआला ने आपको अता फरमाए हैं।

अल्लाह तआला ने आपको मालिक व मुख्तार नबी बनाकर भेजा है आप अल्लाह की अता से जिसे चाहें, जो चाहें, जितना चाहें अता फरमा दें। आपकी बारगाह वह मुबारक बारगाह है जहाँ से हर एक को उसके नसीब के मुताबिक़ हिस्सा मिलता है।

इस मज़मून में हम कुछ ऐसी रोशन हदीसों का ज़िक्र करेंगे जिनसे नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अज़ीम मुक़ाम, आपकी तक़्सीम और आपकी शान और अज़मत का इज़हार और पता चलता है।

अल्लाह तआला हमें अपने प्यारे हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान को समझने, उनकी मोहब्बत को दिल में बसाने और हर लम्हा उनकी इताअत में रहने की तौफीक़ अता फरमाए।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दी गई कुंजियाँ

अकबा इब्ने आमिर से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि मैं अपने हौज़ को इस वक्त देख रहा हूँ, और मुझ को तमाम रूए ज़मीन के खज़ानों की कुन्जियाँ दी गई हैं।

(सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)

इस हदीस में हुज़ूर ने हौज़े कौसर को अपना हौज़ फरमाया गोया आप इसके मालिक हैं और सारी रूए ज़मीन के खज़ानों की कुन्जियाँ खुदा ए तआला ने आप को अता फरमाई हैं यानी आप दोनों जहाँ के मालिक व मुख्तार हैं।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बांटने वाले और अल्लाह देने वाला

हज़रत अमीर मुआविया ने लोगों को खिताब करते हुए फरमाया कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को मैं ने यह फरमाते हुए सुना है कि

अल्लाह तआला जिस से भलाई का इरादा फरमाता है, उस को दीन में समझ अता फरमाता है और बेशक मैं बाँटने वाला हूँ और अल्लाह देने वाला।

(सहीह बुखारी)

इस हदीस को पढ़ कर खूब रौशन हो गया होगा कि जो कुछ जिस को अल्लाह तआला अता फरमाता है वह सब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम तक़्सीम फरमाते हैं और वह आप की चौखट से मिलता है।

रूहानी इख्तियारात और इल्मी करामात

हज़रत अबू हुरैरा रजियल्लाहों अन्हो फरमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम की खिदमत में अर्ज़ किया कि मैं आप से बहुत सारी हदीसें सुनता हूँ लेकिन भूल जाता हूँ।

आप ने फरमाया अपनी चादर फैलाओ।

मैंने अपनी चादर बिछा दी। आप ने दोनों हाथों से लप बना कर चादर में कुछ डाल दिया और फरमाया “इस को लपेट लो।

मैंने चादर को लपेट लिया और इस के बाद मैं कभी कोई बात नहीं भूला। (बुखारी)

इस हदीस को देखिये कैसे रूहानी इख्तियारात हैं, और कैसी खुदादाद कुदरत है। हुज़ूर खाली चादर में बज़ाहिर खाली लप बना कर डालते हैं और कैसी बे मिसाल याद-दाश्त अता फरमाते हैं! यही हुज़ूर की अता व बखशिश का नतीजा है कि जनाब अबू हुरैरा से जितनी अहादीस रिवायत की गई हैं, वह और किसी सहाबी से नहीं।

दुआ की कुबूलियत और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बरकतें

हज़रत अनस रज़ि अल्लाहो तआला अन्हो से मरवी है कि एक शख़्स हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम की ख़िदमत में उस वक्त हाज़िर हुआ जबकि आप मदीने में नमाज़े जुमा के लिये खुतबा दे रहे थे।

उसने अर्ज़ किया “या रसूलल्लाह, बारिश न होने की वजह से सूखा पड़ गया है, लिहाज़ा आप अपने रब से बारिश मांगिए।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसमान की तरफ देखा  और जैसे ही आपने दुआ मांगी, बादल उमड़ आए और बारिश होने लगी। यहां तक कि मदीने की गलियां पानी से भर गईं।

अगले जुमा तक लगातार बारिश होती रही। फिर वही आदमी अर्ज़ करने लगा “या रसूलल्लाह, हम तो डूबने लगे!

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और फरमाया “ऐ अल्लाह, हमारे इर्द-गिर्द बरसा, हम पर न बरसा।

बस, बादल छंट गए और बारिश मदीने के इर्द-गिर्द बरसने लगी, शहर पर नहीं। (बुखारी)

इस हदीस से मालूम हुआ कि अल्लाह तआला अपने नबी की मर्ज़ी को नहीं टालता और आपकी दुआ फौरन पूरी फरमाता है।

वसीला और मोहब्बत का सबक़

इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि मुसीबत व परेशानी में खुदा ए तआला के महबूब बन्दों की बारगाहों में हाज़िर होना और बारगाहे खुदावन्दी में इनको वसीला बनाना जाइज़ है।

वरना दुआ खुद भी मांगी जा सकती है, मगर इनसे दुआ कराने का मतलब वसीला ही तो है!

इख्तिताम

दोस्तों इन तमाम रोशन हदीसों और दिलनवाज़ वाक़ियात से यह बात खूब वाज़ेह हो गई कि हमारे प्यारे नबी मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मालिक व मुख्तार नबी हैं।

अल्लाह तआला ने आपको अपने खज़ानों की कुंजियाँ अता फ़रमाईं, नेमतों की तक़्सीम आपके मुबारक हाथों में रखी।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के इज़्न और अता से जिसे चाहें,जो चाहें, जितना चाहें अता फरमा सकते हैं।

ऐसे मालिक व मुख्तार नबी के उम्मती होना हमारी सबसे बड़ी खुशकिस्मती है।

आईए! हम हमेशा दरूद व सलाम की महक बिखेरते रहें, अपने दिलों को मोहब्बते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रौशन रखें और अपनी ज़िंदगी को आपकी इताअत में गुज़ारें।



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