जुमा की नमाज़ में जल्दी आने वालों का अज़ीम सवाब और देर से आने वालों की महरूमी

इस पोस्ट में जुम्मा की नमाज़ में जल्दी आने वाले लोगों को कितना सवाब मिलता है और देर से आने वाले की महरूमी क्या है जानिए हदीस की रोशनी में।

जुमा की नमाज़ का अहम मक़सद आज हम इस पोस्ट में जुमा की नमाज में देर से आने वाले और जल्दी आने वाले लोगों के बारे में बात करेंगे और यह बताएंगे कि जल्दी आने वाले कितने बड़े और अज़ीम सवाब के मुस्तहक़ होते हैं और उनको कितना सवाब मिलता है और वहीं उनके बारे में बताएंगे जो जुमा की नमाज में देर से आते हैं वह कितने बड़े महरूम और बदनसीब हैं।

नमाज़े जुमा के लिए ताख़ीर से आना

मेरे आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाजे जुमा के लिए ताख़ीर से आने को भी सख़्त महरूमी और बदनसीबी करार दिया है।

हदीस ए मुबारका

हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हा की रिवायत है कि हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फ़रमाया।

इज़ काना यौमुल जुमुआ यानी जब जुमा का दिन आता है।

काना अला कुल्लि बाबिन मिन अबवाबिल मस्जिदि मलाईकातुन" यानी मस्जिद के दरवाज़ों से हर दरवाज़े पर फ़रिश्ता मुक़र्रर होता है, जो "यक्तुबूनल अव्वला फल अव्वल" यानी (मस्जिद में दाखिल होने वालों को) लिखते रहते हैं तरतीब वार।

फ़इजा जलसल इमामु तर्रुस सुहुफ यानी पस जब इमाम (ख़ुतबे के लिए मिंबर पर बैठता है) तो वह अपनी फाइलों को बंद कर देते हैं।

व जाऊ व यस्तमिऊनज़ ज़िक्र यानी और ख़ुतबा सुनने लगते हैं।

व मिसलुल मुहज्जिरि कमसलिल्लाजी युहदिल बुद्नह यानी और जल्दी आने वाला उस शख़्स की तरह है जो अल्लाह की राह में एक ऊँट सदक़ा करता है।

सुम्म कल्लजी युहदी बकरह यानी उसके बाद आने वाला उस शख़्स की तरह है जो गाय सदक़ा करता है।

सुम्म कल्लजी युहदिल कबश यानी उसके बाद आने वाला उसकी तरह है जिसने मेंढ़ा सदक़ा किया।

सुम्म कल्लजी युहदिद दुजाजह यानी फिर उसकी तरह है जिसने मुर्ग़ी सदक़ा की।

सुम्म कल्लजी युहदिल बैज़ह यानी फिर उसके भी बाद आने वाला उस शख़्स की तरह है जिसने अल्लाह की राह में अंडा सदक़ा किया। (मुस्लिम)

 हदीस मुबारक पर ग़ौर

हदीस मुबारक पर ग़ौर फ़रमाइए और नमाजे जुमा की अहमियत का अन्दाज़ा कीजिए कि उसको अदा करने वालों की फ़हरिस्त मुरत्तब करने के लिए फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं।

वह मसाजिद के दरवाज़ों पर खड़े होकर हमारे नाम लिखते रहते हैं और फिर हमारे साथ नमाज में शरीक होते हैं।

वह हमारी आमद का उस वक़्त तक इन्तेज़ार करते हैं जब तक इमाम ख़ुतबे के लिए मिंबर पर न बैठ जाए।

अब यह हमारी बदनसीबी है कि हम इतनी देर से आएं कि मलाइका अपने काग़ज़ात और क़लम उठा चुकें और हम नमाज़ियों की उस फ़हरिस्त में न आ सकें।

आजकल का आम रिवाज

जैसा कि आज कल आम रिवाज हो गया है कि जब इमाम ख़ुतबा ख़त्म करने के क़रीब होता है तो लोग दौड़ते हुए आते नज़र आते हैं।

इनमें से भी कुछ तकबीर-ए-तहरीमा के सवाब से महरूम रहते हैं।

काश हम अपने आप को इस महरूमी से बचाने की कोशिश करें।

जल्दी आने वालों का अज्र व सवाब

जो लोग वक़्त पर आते हैं, उन की भी एक तरतीब है।

वह भी एक दूसरे से अफ़ज़ल हैं कि जो अपने वक़्त की जितनी कुरबानी करता है, उतना ही सवाब पाता है।

किसी के लिए एक ऊँट की कुरबानी के सवाब का मुज़्दा है तो किसी को गाय की कुरबानी का सवाब मिलता है।

किसी के लिए मेंढ़े का सवाब है, तो कोई सिर्फ मुर्ग़ी और कोई अंडा सदक़ा करने का सवाब पाएगा।

देर से आने वालों की महरूमी

यह सवाब उन लोगों का बयान किया गया है जो इमाम के मिंबर पर आने से पहले आ चुके हों।

और जो उसके भी बाद आए  उन का हाल तो ऊपर बयान हो ही चुका कि वह महरूमीन में हैं क्योंकि अब तो फ़रिश्ते आमाल नामे बंद कर चुके हैं।

नसीहत और अमल की दावत

पस जो चाहे महरूम रहे और जो चाहे जितना चाहिए सवाब हासिल कर ले।

हमारी नसीहत तो यही होगी कि मस्जिद में कम से कम अज़ान ए औवल के वक़्त पहुँच जाया कीजिए और अज़ान-ए-सानी तक नवाफिल पढ़ा कीजिए, तिलावत किया कीजिए, दरूद शरीफ पढ़ा कीजिए और अगर तक़रीर हो रही हो तो दीन की बातें सीखिए कि तमाम नफ़ली इबादतों से अफ़ज़ल दीन सीखना है!

खुलासा ए कलाम

दोस्तों, आपने पढ़ा कि जो नमाजे जुमा में ताख़ीर यानी देर से आते हैं वह कितने अज़ीम और बड़े सवाब से महरूम रहते हैं।

और जो जल्दी आते हैं, उन्हें कितना अज़ीम सवाब मिलता है और वह बड़े सवाब के मुस्तहक़ होते हैं।

अल्लाह तआला हमें भी जुमा की नमाज़ का एहतराम करने और जल्दी पहुँचने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।

आमीन।

जुमा की नमाज़ में जल्दी आने वालों का अज़ीम सवाब

सवाल 1: जुमा की नमाज़ में जल्दी आने का क्या सवाब है?

जवाब: जो शख़्स जुमा की नमाज़ के लिए जल्दी आता है उसे अल्लाह की राह में ऊँट गाय मेंढ़ा मुर्ग़ी और अंडा सदक़ा करने जैसा सवाब मिलता है जो जितनी जल्दी आएगा सवाब उतना ही ज़्यादा पाएगा।

सवाल 2: अगर कोई इमाम के मिंबर पर आने के बाद मस्जिद पहुँचे तो क्या होता है?

जवाब: जब इमाम मिंबर पर बैठ जाता है तो फ़रिश्ते अपने रजिस्टर बंद कर देते हैं और देर से आने वाला अपना नाम दर्ज नहीं करा पाते। इसलिए ऐसे लोग अज़ीम सवाब से महरूम रह जाते हैं।

सवाल 3: जुम्मा की नमाज़ के लिए मस्जिद कब पहुँचना बेहतर है?

जवाब: कोशिश करें कि अज़ान-ए-औवल (पहली अज़ान) के वक़्त मस्जिद पहुँच जाएँ। और अज़ान ए सानी (दूसरी अज़ान) तक नवाफिल पढ़ें, कुरआन की तिलावत करें, दरूद शरीफ पढ़ें तक़रीर हो तो तक़रीर सुनें।

सवाल 4: देर से आने का क्या नुक़सान है?

जवाब: जो लोग देर से आते हैं वो जुमे की उस बरकत और सवाब से महरूम रह जाते हैं जो जल्दी आने वालों को मिलता है। देर से आना बड़ी महरूमी और बदनसीबी है।

About the author

JawazBook
JawazBook एक सुन्नी इस्लामी ब्लॉग है, जहाँ हम हिंदी भाषा में कुरआन, हदीस, और सुन्नत की रौशनी में तैयार किए गए मज़ामीन पेश करते हैं। यहाँ आपको मिलेंगे मुस्तनद और बेहतरीन इस्लामी मज़ामीन।

एक टिप्पणी भेजें

please do not enter any spam link in the comment box.