Nisbat ek haqeeqat hai इस के बग़ैर गुज़ारा नहीं

हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निस्बत अल्लाह तआला की तरफ़ है और इसी लिए आप को अल्लाह का महबूब कहा जाता है


बड़ी चीज़ है निस्बत 

इस दुनिया में निस्बत बड़ी अजीब चीज़ है। निस्बत से एक मुसलमान का बेड़ा पार हो जाता है। निस्बत कामयाबी से हमकिनार करती है। इस के सबब बन्दा अल्लाह का महबूब बन जाता है। निस्बत से बन्दा जन्नत का हक़दार हो जाता है और निस्बत बन्दे को उरूज पर ले जाती है। आज के दौर में कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जो अंबिया व औलिया से निस्बत को बुरा समझते हैं। वह कहते हैं कि सिर्फ़ एक अल्लाह को मानो, उस से मदद माँगो और पक्के तौहीद परस्त बन जाओ। इसी वजह से वह अल्लाह वालों से मंसूब चीज़ों को बुरा समझते हैं। ग्यारहवीं शरीफ़ को ना जाइज़ कहते हैं और मीलाद उन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मिठाई पर फ़तवे लगाते हैं। वह कहते हैं कि जिस चीज़ पर ग़ैरुल्लाह का नाम आ जाए वह हराम हो जाती है। आईए क़ुरान व हदीस की रौशनी में फ़ैसला करें कि निस्बत की हक़ीक़त क्या है। और इस का कोई फ़ायदा है या नहीं? इस सिलसिले में मन्दर्जा ज़ैल दलाइल ग़ौर से मुलाहिज़ा फ़रमाइँ।

आब-ए-ज़मज़म

सब हुज़रात जानते हैं कि दुनिया में हर जगह पानी मौजूद है और न सिर्फ़ इंसान बल्कि तमाम जानदार पानी पीते हैं। लेकिन सिर्फ़ एक पानी ऐसा है जो कि बड़ी ख़ुसूसियत के साथ बतौर तबर्रुक इस्तेमाल होता है और वह है ज़मज़म का पानी। हाजी लोग जब हज्ज कर के वापस आते हैं तो मक्का से आब-ए-ज़मज़म बतौर तोहफ़ा व तबर्रुक साथ लाते हैं और यहाँ आकर रिश्तेदारों और दोस्त अहबाब में तक्सीम करते हैं। ज़मज़म का यह पानी मुतबर्रक इस लिए है कि इस को अल्लाह तआला के एक पैग़म्बर हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के मुक़द्दस पाँव के साथ निस्बत है। यानी यह पानी आप की एड़ियों की रगड़ से पैदा हुआ लिहाज़ा इस निस्बत के साथ यह तबर्रुक और तोहफ़ा बन गया। तो मालूम हुआ कि वाक़ई निस्बत एक अजीब चीज़ है।

अज़ीमुश्शान सन्दूक़

कलीमुल्लाह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास एक सन्दूक़ था जिस में मूसा अलैहिस्सलाम अपना ख़ास ख़ास सामान रखते थे। बनी इस्राईल जब कुफ़्फ़ार से जिहाद करते तो इस सन्दूक़ को अपने आगे रख लेते तो इस सन्दूक़ की बरकत से मुसलमानों के दिल मज़बूत हो जाते और उन को फ़तह हासिल होती। तफ़्सीर जलालैन, तफ़्सीर रूहुल बयान और तफ़्सीर सावी में है कि इस सन्दूक़ में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का असा, उन की मुक़द्दस जूतियाँ, हज़रत हारून अलैहिस्सलाम का इमामा, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की अंगूठी और तौरात की तख़्तियों के कुछ टुकड़े थे। इस से साबित हुआ कि बुज़ुर्गों के तबर्रुकात की अल्लाह तआला के दरबार में बड़ी इज़्ज़त व अज़मत है। और उन के ज़रीए मख़लूक़ ख़ुदा को फ़यूज़ व बरकात हासिल होते हैं। देख लो! इस सन्दूक़ में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की जूतियाँ, आप का असा और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम की पगड़ी थी तो अल्लाह तआला की बारगाह में यह सन्दूक़ इस क़दर मक़बूल हुआ कि फ़रिश्तों ने इस को अपने नूरानी कन्धों पर उठाया और अल्लाह तआला ने क़ुरान पाक में इस बात की शहादत दी कि فِيْهِ سَكِينَةٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ यानी इस सन्दूक़ में तुम्हारे रब की तरफ़ से सकीना यानी मोमिनों के दिलों का इत्मिनान और उन की रूहों की तस्कीन का सामान था। तो मालूम हुआ कि बुज़ुर्गों के तबर्रुकात जहाँ और जिस जगह होंगे वहाँ ज़रूर रहमत-ए-हक़ का नुज़ूल होगा और इस से नाज़िल होने वाली बरकतों से मोमिनों के दिलों को सुकून मिलता रहेगा। और यह भी याद रखें कि जिस सन्दूक़ में अल्लाह वालों के लिबास और जूतियाँ हों इस पर इत्मिनान और अनवार व बरकात का नुज़ूल क़ुरान से साबित है तो जिस क़ब्र मुबारक में उन बुज़ुर्गों का पूरा जिस्म रखा होगा क्या उन क़ब्रों पर अल्लाह तआला की रहमत व बरकत का नुज़ूल नहीं होगा। तो साबित हुआ कि जो लोग बुज़ुर्गों की क़ब्रों पर हाज़िरी देंगे। वह ज़रूर बिल्ज़रूर फ़यूज़ व बरकात की दौलत से मालामाल होंगे।

रमज़ान और क़ुरआन

रमज़ानुल मुबारक का महीना इन्तिहाई मुक़द्दस और रहमतों व बरकतों वाला महीना है और इस की शान व इज़्ज़त की एक वजह यह भी है कि इस महीने में क़ुरआन नाज़िल हुआ। चुनांचे इरशाद-ए-बारी तआला है: شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ (पारा 2 सूरह बक़रह) यानी रमज़ान का महीना वह महीना है जिस में क़ुरआन नाज़िल किया गया गोया इस मुबारक महीने को नुज़ूल-ए-क़ुरआन से निस्बत है इस लिए इस की शान बुलन्द है तो इस से भी यह साबित हुआ कि निस्बत वाक़ई एक अज़ीम चीज़ है।

नबी का एहतराम

और चूँकि हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निस्बत अल्लाह तआला की तरफ़ है और इसी लिए आप को अल्लाह का महबूब कहा जाता है तो इसी निस्बत के तुफ़ैल आप की शान इस क़दर बुलन्द ओ बाला है कि अल्लाह तआला ने क़ुरआन पाक में एलान फ़रमाया कि जो मेरे महबूब के हुज़ूर ऊँची आवाज़ से बोलेगा उस की नेकियाँ बर्बाद हो जाएँगी। और यह हुक्म भी दिया कि जो शख़्स नबी करीम के दरवाज़े पर आए तो आप को आवाज़ दे कर न बुलाए जब आप ख़ुद बाहर आएँ तो फिर अर्ज़ व मअरूज़ करे। इस से भी मालूम हुआ कि निस्बत वाक़ई अजीब चीज़ है।

ख़ातिमा

अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में इरशाद फ़रमाता है: يَا يُّهَا الَّذِينَ آمَنُو تَّقُوُ اللَّهَ وَكُونُومَعَ الصَّدِقِينَ (सूरह तौबा)। ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ। इस आयत करीमा में अल्लाह तआला हर मुसलमान को सच्चे लोगों की तरफ़ अपनी निस्बत क़ायम करने का हुक्म दे रहा है। क्योंकि उन नफ़ूस-ए-क़ुद्सिया की मुआस्सत व सोहबत इख़्तियार करने से बन्दा शैतान के मक्र व फ़रेब से बच जाता है। और शैतान का दाव ऐसे बन्दे पर कारगर नहीं होता। मौजूदा दौर में जो लोग कहते हैं कि सिर्फ़ एक अल्लाह को मानो और किसी को न मानो। जो हर वक़्त तौहीद तौहीद की रट लगाए रखते हैं उन को मज़कूरह बाला बयान की गई तमाम निस्बतों का बग़ौर मुताला करना चाहिए। और फिर अपने "सिर्फ़ तौहीद" वाले मौक़िफ़ से रुजू' कर लेना चाहिए और इस अम्र को तस्लीम कर लेना चाहिए कि वाक़ई निस्बत एक हक़ीक़त है और इस के बग़ैर गुज़ारा नहीं हो सकता। अल्लाह तआला तमाम लोगों को सिरात-ए-मुस्तक़ीम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।

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