हराम कमाई की तबाही सदक़ा भी रद्द बरकत भी खत्म अंजाम जहन्नम

इस्लाम में हराम कमाई की सख्त मनाही है। जानिए कुरान और हदीस की रौशनी में हराम माल के अंजाम, और आखिरत में जहन्नम के अज़ाब के बारे में तफ्सील से।

इस्लाम एक मुकम्मल और आफ़ाक़ी मज़हब है जो इंसान की हर राह को रोशन करता है इस्लाम में हलाल और हराम को वाज़ेह तौर पर बयान किया गया है अल्लाह तआला ने अपने मुक़द्दस कलाम कुरान ए पाक और हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अहादीस ए मुबारका में जहाँ हलाल रिज़्क़ की अहमियत को बयान किया वहीं हराम की सख्ती से मुज़म्मत भी फ़रमाई एक मोमिन के लिए हलाल रोज़ी न सिर्फ़ दीन और दुनिया में कामयाबी की ज़मानत है बल्कि आख़िरत में भी निजात का सबब है अल्लाह के मुक़द्दस कलाम कुरान ए अज़ीम को देखें अहादीस ए मुबारका को पढ़ें और मुफस्सिरीन की तफ़्सीर और उलमा ए किराम के अक़्वाल का मुतालेआ करें तो आप इस नतीजे पर पहुँचेंगे कि जिस तरह अल्लाह तआला और उसके रसूल हुज़ूर शहनशाह ए मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पाकीज़ा और हलाल की फज़ीलत बयान की उसी तरह हराम अश्या की मुज़म्मत बयान की गई।

कुरान और हदीस की रौशनी में हराम की मुज़म्मत

चुनाँचे अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है ऐ ईमान वालो बातिल तरीक़े से आपस में एक दूसरे के माल न खाओ बल्कि यह हो कि तुम्हारी बाहमी रज़ामंदी से तिजारत हो और अपनी जानों को क़त्ल न करो बे-शक अल्लाह तुम पर मेहरबान है इस आयत ए करीमा को बग़ौर समाअत फ़रमाएँ और देखें कि अल्लाह तआला अहल ए ईमान से  से ख़िताब फ़रमा रहा है कि अगर तुम सिफ़त ए ईमान से मुत्तसिफ़ हो अगर तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हो तो सुनो तुम आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ और बातिल तरीक़े से न लो रिश्वत का लेन-देन कर के डंडी मार के सूदी कारोबार कर के अस्ल अश्या में मिलावट करने के बाद फरोख्त कर के डाका ज़नी कर के चोरी कर के शराब और हराम चीज़ों का कारोबार कर के झूठी क़सम झूठी गवाही झूठी वकालत खियानत जुवा और हराम तरीक़े से हासिल होने वाली कोई चीज़ भी हरगिज़ न खाओ।

आगे अल्लाह तआला फ़रमाता है यानी उसी तिजारत उसी कारोबार और ख़रीद ओ फरोख्त से हासिल होने वाला माल तुम्हारे लिए हलाल है जो आपसी रज़ामंदी से हो लेकिन अगर फ़रीक़ैन में से एक भी रज़ामंद न हो तो वह हराम है।

हराम माल से सदक़ा में कोई सवाब नहीं

हराम खाने और हराम तरीके से कमाने की अल्लाह तआला ने बड़ी सख्ती से मना फ़रमाया है और उसके लिए जहन्नम का अज़ाब तैयार कर रखा है मुअल्लिम ए काइनात पैग़म्बर ए आज़म जनाब अहमद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हराम खाने और हराम तरीके से कमाने वाले के लिए नाजाइज़ तरीके पर कस्ब ए रिज़्क़ करने वाले केलिए बड़ी सख़्त वईद बयान फ़रमाया है।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है अल्लाह के रसूल-सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद ए आलीशान है जो बन्दा हराम माल हासिल करता है अगर वह उस माल को सदक़ा कर दे तो अल्लाह तबारक व तआला की बारगाह में क़बूल नहीं होता और अगर वह ख़र्च करे तो उस के लिए उस में बरकत नहीं और अपने बाद छोड़ कर मर जाए तो जहन्नम में जाने का सामान है।

हराम गिज़ा से पला जिस्म पर जन्नत हराम है

ख़लीफ़ा ए अव्वल हज़रत अबू-बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि सरकार ए मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह तआला ने उस जिस्म पर जन्नत हराम फ़रमा दी है जो हराम ग़िज़ा से पला हो दोस्तों आप सरवर ए काइनात शफ़ी ए महशर अहमद मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयात ए तैय्यिबा को सामने रखें और अपनी ज़िंदगी का मुहासिबा करें कि कहीं आप या आपकी औलाद पर हराम खाने की वजह से जन्नत हराम तो नहीं हो गई है। आप सब खुद भी हराम चीज़ों से बचें और अपनी औलाद को हराम से बचाएँ और यह जान लें कि अगर आपने हराम कमाई से अपनी औलाद की परवरिश की तो वह औलाद न आप की होगी न ही किसी और की बल्कि उसका वुजूद भी इस दुनिया में बाइस ए फ़ितना होगा।

चालीस दिन के अमल कुबूल नहीं

मुअजमुल औसत की एक और हदीस है जिस में हुजूर रहमत ए आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सअद से फ़रमाया ऐ सअद अपनी ग़िज़ा पाक कर लो मुस्तजाब उद दअवात हो जाओगे उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़ा ए कुदरत में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जान है बन्दा हराम लुक़मा अपने पेट में डालता है तो उसके चालीस दिन के अमल क़बूल नहीं होते और जिस बन्दा का गोश्त हराम से पला बढ़ा हो उसके लिए आग ज़्यादा बेहतर है।

सहाबा ए किराम की ज़िन्दगी

सहाबा ए किराम की हयात ए तैय्यिबा का मुतालेआ करें ताबेईन और तब ए ताबेईन ए इज़ाम रज़ियल्लाहु अन्हुम अज्मईन की ज़िंदगी का जाइज़ा लें अस्लाफ़ ए किराम के शब ओ रोज़ देखें जिनकी ज़िंदगी हमारे लिए नमूना ए अमल है। आप ख़लीफ़ा ए अव्वल सिद्दीक़ ए अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मुक़द्दस ज़िंदगी को देखें एक दफ़ा का वाक़िया है कि अमीर उल मोमिनीन सिद्दीक़ ए अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु की ख़िदमत में उनके गुलाम ने दूध पेश किया जनाब सिद्दीक़ ए अकबर ने उसे नोश फ़रमा लिया गुलाम ने अर्ज़ किया हुज़ूर मैं पहले जब भी कोई चीज़ पेश करता तो आप उसके बारे में दरयाफ़्त फ़रमाते थे लेकिन इस बार दूध के बारे में आप ने कुछ भी नहीं सवाल फ़रमाया यह सुनकर अमीर उल मोमिनीन ने पूछा कि दूध कैसा है गुलाम ने जवाब दिया हुज़ूर मैंने ज़माना ए जाहिलियत में एक बीमार पर मंत्र फूँका था जिस के मुआवज़े में आज उसने यह दूध दिया है जनाब सिद्दीक़ ए अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु यह सुनते ही फ़ौरन अपने हल्क़ में उँगली डाल ली और वह दूध केय कर दिया इस के बाद निहायत इन्किसारी व आज्ज़ी से बारगाह ए इलाही में अर्ज़-गुज़ार हुए मौला जिस पर मैं क़ादिर था वह मैंने कर दिया इस दूध का थोड़ा बहुत हिस्सा रगों में रह गया तो वह मुआफ़ फ़रमा दे।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा फ़रमाते थे कि अगर तू इस क़द्र नमाज़ पढ़े कि तेरी कमर टेढ़ी हो जाए और इस क़द्र रोज़े रखे कि सूख कर बाल की तरह दुबला हो जाए फिर भी कुछ फायदा नहीं होगा और तेरी नमाज़ और रोज़े क़बूल नहीं किए जाएँगे जब तक तू हराम से परहेज़ न करे।

रिज़्क ए हलाल का हुसूल

इस्लाम एक आफ़ाक़ी मज़हब है इस्लाम एक पाकीज़ा मज़हब है इस्लाम में मेहद से ले कर लहद तक और माबाद-मौत की सारी चीज़ों का वाज़ेह बयान है इस्लाम के तमाम उसूल ओ ज़वाबित पाकीज़ा हैं और इस्लाम का मतमह नज़र यह है कि एक मुसलमान जिस तरह अपने ज़ाहिर को पाक ओ साफ़ रखता है उसी तरह अपने बातिन को भी साफ़-सुथरा रखे पाक रखे। इसलिए इस्लाम ने रिज़्क ए हलाल के साथ कस्ब ए हलाल की भी बार-बार और जा-ब-जा ताक़ीद की है ता कि उसकी परवरिश और नशो-नुमा तय्यिब ओ ताहिर और हलाल ग़िज़ा से हो और उसके माल ओ दौलत में किसी भी हराम और नाजाइज़ आमदनी की मिलावट न हो। मुअल्लिम ए काइनात जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि एक मुसलमान के लिए फ़राइज़ नमाज़ रोज़ा हज और ज़कात की अदायगी के बाद हलाल रोज़ी हासिल करना फ़र्ज़ है यानी जिस तरह ज़रूरियात ए दीन और फ़राइज़ ओ वाजिबात को हर मुसलमान के लिए जानना और उन पर अमल करना ज़रूरी है उसी तरह अपने पेशे से मुतअल्लिक़ हलाल ओ हराम चीज़ों का जानना और उन पर अमल करना भी ज़रूरी है।

पैग़म्बर ए आज़म जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रिज़्क ए हलाल की अहमियत एक हदीस ए पाक में यूँ बयान करते हैं तर्जुमाः जो शख़्स चालीस दिन तक हलाल कमाई खाता है अल्लाह उसके दिल को रोशन कर देता है और उसके दिल से हिकमत के चश्मे ज़बान पर जारी फ़रमाता है। हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वह अपनी रोज़ी हलाल ज़राए से हासिल करे और हराम से बचने की पूरी कोशिश करे न सिर्फ़ ख़ुद को बल्के अपनी औलाद को भी हराम से दूर रखे क्योंकि हराम ग़िज़ा इंसान की फितरत को बिगाड़ देती है और उसके अमल पर असर अंदाज़ होती है अल्लाह हम सबको हलाल रिज़्क़ हासिल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और हराम से बचने की हिम्मत दे आमीन

Q1: हराम कमाई की सज़ा क्या है?

A1: हराम कमाई से की गई कमाई में न बरकत होती है, न अमल कबूल होता है। जो बन्दा हराम माल कमाता है, उसका सदक़ा भी अल्लाह की बारगाह में क़बूल नहीं होता और आखिरत में जहन्नम उसका ठिकाना होता है।

Q2: क्या हराम माल से दी गई मदद या दान क़बूल होती है?

A2: नहीं, हराम कमाई से किया गया सदक़ा या दान अल्लाह की बारगाह में मक़बूल नहीं होता, क्योंकि अल्लाह पाक चीज़ ही क़बूल करता है।

Q3: हलाल कमाई का फायदा क्या है?

A3: हलाल कमाई से इंसान के दिल को रोशनी मिलती है, उसके अमल में बरकत आती है और अल्लाह उसके दिल पर हिकमत का नूर डालता है।

Q4: हराम से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

A4: अपने पेशे, कारोबार और आमदनी के हर जरिये को कुरान और सुन्नत की रोशनी में जांचना चाहिए। रिश्वत, सूद, जुआ, मिलावट और झूठी गवाही जैसे हराम ज़राए से बचना ज़रूरी है।

About the author

JawazBook
JawazBook एक सुन्नी इस्लामी ब्लॉग है, जहाँ हम हिंदी भाषा में कुरआन, हदीस, और सुन्नत की रौशनी में तैयार किए गए मज़ामीन पेश करते हैं। यहाँ आपको मिलेंगे मुस्तनद और बेहतरीन इस्लामी मज़ामीन।

एक टिप्पणी भेजें

please do not enter any spam link in the comment box.