निकाह में सादगी लाइए सुन्नत पर अमल करके शादी को आसान बनाइए

शादी को आसान और बरकत वाला बनाने के लिए सुन्नत के मुताबिक निकाह अपनाएं। महंगी रस्में और जहेज़ से बचें और शादी को सादगी से करें।

हमारी बेटियाँ और शादी का बढ़ता बोझ आज कल मुस्लिम समाज में एक अलमिया यह देखने में आ रहा है कि कई लड़कियां गैर मुस्लिम लड़कों से शादियां करके दीन से दूर हो रही हैं। इसकी एक बड़ी वजह हमारी अपनी बनाई हुई मसनूई रस्में और शादी के बेजा इखराजात हैं। हमने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बनाए हुए आसान और बरकत वाले निजामे निकाह को एक मुश्किल और महंगा मरहला बना दिया है। इसका नतीजा यह निकल रहा है कि गरीब और मुतवस्सित तबके के लोग शादी के इखराजात उठा नहीं पा रहे, जिससे लड़कियों की शादियां मुश्किल हो गई हैं और वह मायूस होकर दूसरे रास्ते इख्तियार कर रही हैं। हमारा फर्ज़ बनता है कि हम अपने समाजी रवैयों को बदलें और शादी को सादगी के साथ बेजा फुज़ूल खर्ची से बचते हुए सुन्नत के मुताबिक अंजाम देने की कोशिश करें।

निकाह सुकून का ज़रिया

अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया

तर्जुमा उस की निशानियों में से यह है कि उस ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स से जोड़े बनाए ताकि तुम उनसे आराम पाओ और तुम्हारे आपस में मुहब्बत और रहमत रखी। बेशक इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वालों के लिए निशानियां हैं।

इस आयत में अल्लाह तआला ने अज़्दवाजी ज़िंदगी का मक़सद सुकून बताया है। शौहर और बीवी एक दूसरे के लिबास हैं, एक दूसरे की तकमील और सुकून का बाइस हैं। यह रिश्ता महज़ एक मुआहदा नहीं बल्कि बाहमी मुहब्बत और रहमत का पाक बंधन है। अल्लाह की यह अज़ीम नेमत हमारी अपनी बनाई हुई मुश्किलात और रस्मों की वजह से एक बोझ नहीं बननी चाहिए।

इस्लामी और मग़रिबी समाज का फर्क

इस्लामी समाज ख़ानदानी निज़ाम को बुनियादी अहमियत देता है। इसकी बुनियाद बाहमी ज़िम्मेदारी, एहतिराम और सुकून पर रखी गई है। जहां मियां बीवी एक दूसरे के लिए सुकून का सामान हों, वहीं से एक सहतमंद ख़ानदान जन्म लेता है जो पूरे समाज के अम्न व सुकून की बुनियाद बनता है। इसके बरअक्स, मग़रिबी समाज में औरत और मर्द के ताल्लुक़ात को सिर्फ़ जिस्मानी लुत्फ़ पर क़ायम किया गया। नतीजा यह निकला कि वहाँ नाजायज़ औलादें आम हो गईं, तलाक़ों की दर बढ़ गई, ख़ानदानी निज़ाम तबाह हो गया और ज़हनी नफ़्सियाती बीमारियाँ तेज़ी से बढ़ीं। इन समाजों में हर तरह की मादी आसाइश के बावजूद लोग ज़हनी सुकून से महरूम हैं। हमें उनकी अंधी तक़लीद करने की बजाय अपने इस्लामी उसूलों पर फ़ख़्र करना चाहिए और उन्हें अपनी ज़िंदगियों में नाफ़िज़ करना चाहिए।

बीवी का फ़र्ज़ शौहर के लिए सुकून का बाइस बनना

आयते मुबारक से यह सबक़ भी मिलता है कि औरत को शौहर के सुकून और आराम का ख़्याल रखना चाहिए। नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़ए क़ुदरत में मेरी जान है जब कोई मर्द अपनी बीवी को अपने बिस्तर पर बुलाए और वह इंकार कर दे तो अल्लाह तआला उस औरत से नाराज़ रहता है यहां तक कि उसका शौहर उससे राज़ी हो जाए। अगर मर्द अपनी बीवी को अपने बिस्तर पर बुलाए और वह न आए और मर्द नाराज़ हो जाए तो सुबह तक फ़रिश्ते उस औरत पर लअनत करते रहते हैं। यह अहादीस बाहमी हुकूक की अदायगी पर ज़ोर देती हैं। जिस तरह बीवी का शौहर पर हक़ है उसी तरह शौहर का भी बीवी पर हक़ है कि वह उसे अपनी तरफ़ से किसी परेशानी में न डाले और उसके सुकून का ख़्याल रखे।

शादी को आसान बनाइए

निकाह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से चली आ रही एक मुबारक सुन्नत है। यह नस्ले इंसानी के तसल्सुल और सालेह समाज की तशकील का ज़रिया है। नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया निकाह के ज़रिए रिज़्क तलाश करो। हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा ए किराम की शादियां इंतिहाई सादगी से अंजाम पाईं। हज़रत फ़ातिमा अज़ ज़हरा रज़ियल्लाहु अन्हा के निकाह में सादगी को देखा जा सकता है। शरीअत ने किसी मुख़्सूस शादी हॉल, भारी पड़ताल,आतिशबाज़ी या फुज़ूल ख़र्ची को लाज़िम नहीं ठहराया। बल्कि निकाह को मस्जिद में इलानिया तौर पर करना मुस्तहब है ताकि बरकत हासिल हो और इसका एलान हो जाए।

मेहर वलीमा और जहेज़ सुन्नत की रोशनी में

मेहर: शरीअत में कम से कम मेहर दस दिरहम यानी तक़रीबन 30618 ग्राम चाँदी या उसकी कीमत है इससे कम नहीं। ज़्यादा मेहर भी मुक़र्रर कर सकते हैं लेकिन नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसान मेहर को बेहतर क़रार दिया है। औरतों में बेहतरीन वह है जिसका मेहर अदा करना आसान हो। मेहर की रक़म का कम होना औरत के लिए बरकत और नेक फ़ाल की अलामत है।

वलीमा

वलीमा करना सुन्नत है लेकिन इसमें इसराफ़ से बचना ज़रूरी है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी अज़्वाजे मुतह्हरात के वलीमे इंतिहाई सादगी से किए। हज़रत सफिय्या रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह के बाद वलीमा किया जिसमें सिर्फ खजूर और घी का हलवा था। यानी वलीमा भी सादगी से हो सकता है लाखों के खर्च की ज़रूरत नहीं।

जहेज़

जहेज़ का कोई इस्लामी तसव्वुर नहीं है। यह एक समाजी बुराई है जिसने गरीब घरानों के लिए शादी को एक मुश्किल तरीन काम बना दिया है। लड़की के वालिदीन पर जहेज़ का दबाव डालना, उनसे लाखों रुपए का सामान मांगना और इसके बगैर शादी से इंकार कर देना यह सब नाजाइज़ और गुनाह के काम हैं।

इरतिदाद की एक बड़ी वजह महंगी शादियां और जहेज़ का बोझ

यह एक कड़वी हक़ीक़त है कि मुस्लिम लड़कियों के मुरतद होने की एक बड़ी वजह हमारी अपनी पैदा की हुई महंगी शादियों की रसूमात हैं। जब एक गरीब आदमी अपनी बेटी की शादी के लिए जहेज़ और दूसरे इखराजात का बोझ नहीं उठा पाता, तो बेटी की उम्र बढ़ती जाती है। इस मायूसी के आलम में वह किसी भी ऐसे रास्ते को इख्तियार कर सकती है जो उसे इस मुश्किल से निजात दिला सके। हमारे समाज के वे लोग भी इस के ज़िम्मेदार हैं जो शादियों में फुज़ूल खर्ची को मेयार समझते हैं और दूसरों पर दबाव डालते हैं।

पैग़ामे अमल तब्दीली की इब्तिदा हम से

वक़्त आ गया है कि हम अपने रवैयों का जाइज़ा लें।

1. समाजी बेदारी हमें अपने इलाक़ों और घरानों में आसान शादियों की एक तहरीक चलानी होगी और लोगों को समझाना होगा कि शादी के फुज़ूल इखराजात और जहेज़ जैसी बुराइयों से कैसे बचा जाए।

2. मज़हबी रहनुमाई उलमाए किराम और दीनी जमाअतों को इस सिलसिले में आगे आना चाहिए और लोगों को सुन्नत के मुताबिक शादियां करने की तरग़ीब देनी चाहिए।

3. नौजवानों की रहनुमाई नौजवान लड़के और लड़कियां खुद भी अपने वालिदैन को समझाएं कि वह कम से कम इखराजात में शादी करने पर राज़ी हों।

4. ख़ुसूसी तवज्जोह उन इलाक़ों और तबकों पर ख़ुसूसी तवज्जोह दी जाए जहां यह मसाइल ज़्यादा हैं और आला तालीम याफ़्ता लड़कियों के लिए मुनासिब रिश्तों के इंतज़ाम की फ़िक्र की जाए।

सुन्नत पर अमल करने में ही हमारी निजात है

हमें अपने रब के हुक्म और अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर अमल करते हुए शादी को एक आसान और खुशगवार अमल बनाना होगा। अगर हमने अपनी रस्म व रिवाज को शरीअत पर तरजीह दी तो इसके नताइज हमारे सामने हैं। आइए अहद करें कि हम अपनी आने वाली नस्लों के लिए एक बेहतर पुर्सुकून और इस्लामी माहौल बनाएंगे। अल्लाह तआला हमें अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए आमीन।

सवाल: मुस्लिम समाज में लड़कियों के मुरतद होने की बड़ी वजह क्या है

जवाब: एक बड़ी वजह हमारी महंगी शादियों की रस्में और जहेज़ का बोझ है। जब गरीब परिवार इन खर्चों को नहीं उठा पाते, तो लड़कियों की शादी देर से होती है और वह मायूसी के चलते गलत रास्ते चुन सकती हैं।

सवाल: निकाह में सुन्नत के मुताबिक सादगी कैसे लाई जा सकती है

जवाब: निकाह को मस्जिद में या घर पर सादगी से करना, मेहर को आसान रखना, वलीमा में फुज़ूल खर्च से बचना और जहेज़ को पूरी तरह न मानना। ऐसा करने से शादी बरकत और सुकून का ज़रिया बनती है।

सवाल: जहेज़ का इस्लाम में क्या स्थान है

जवाब: जहेज़ का कोई इस्लामी तसव्वुर नहीं है। यह समाजी बुराई है जिसने गरीब घरानों के लिए शादी को मुश्किल बना दिया। शादियों में जहेज़ का दबाव डालना और इसके बिना शादी से इंकार करना नाजायज़ और गुनाह है।

सवाल: शौहर और बीवी के बीच सुकून कैसे कायम रहता है

जवाब: शौहर और बीवी एक दूसरे के लिए सुकून का बाइस बनें। बीवी को शौहर के आराम का ख़्याल रखना चाहिए और शौहर भी अपनी तरफ़ से किसी परेशानी में न डाले। यह बाहमी हुकूक और प्यार का पाक बंधन मजबूत करता है।

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