हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँख मुबारक का मोजिज़ा आगे पीछे उजाले अँधेरे में यकसां देखना

इस मज़मून में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँख मुबारक के मोजिज़ात बयान किये गए हैं मेरे आक़ा अंधेरे उजाले में यकसां देखते थे।

इस्लाम के नूर से मुनव्वर क़ुलूब और ईमान की दौलत से माला माल अहल ए ईमान के लिए ये अज़ीम सआदत की बात है कि हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने वो कमालात और मोजिज़ात अता फ़रमाए जो किसी और इंसान को नहीं बख़्शे गए उन्हीं में से एक मोजिज़ा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँख मुबारक का है जो इंसानी अक़्ल व फहम से बालातर और कुद्रत ए इलाही की दलील है।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँख मुबारक का बुरहान

हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों को ख़ालिक़ ए कायनात ने ऐसी क़ुव्वत से नवाज़ा था कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अंधेरे में भी उसी वाज़ेह तौर पर देखते थे जैसे रोशनी में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नज़र सिर्फ सामने ही नहीं देखतीं बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पीछे की तरफ भी उसी तरह देख लेते थे जैसे आगे को देखते थे इस मज़मून में हदीस शरीफ की रोशनी में हमारे आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँख मुबारक के मोजिज़ात को पेश किया गया है ताकि हमारे ईमान में इज़ाफ़ा हो और हम अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़ीम शान का ज़िक्र ए खैर कर सकें।

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँख मुबारक का मोजिज़ा

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अंधेरे में वैसे ही देखते थे जैसे कि रोशनी में देखते थे ख़ासाएस कुबरा लिल इमाम सुयूती।

हुज़ूर की बसारत शरीफ़ की शान

मेरे मुसलमान भाइयो यह है शान हमारे आक़ा की आँख मुबारक की कि अंधेरे उजाले में एकसाँ देखती है एक वह भी हैं जिन्हें दिन में भी नज़र नहीं आता फिर ऐसे लोग हुज़ूर की मिस्ल बनने लगें तो कितना अंधेर है और सुनिए हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाते हैं एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़ुहर की नमाज़ पढ़ाई तो आख़िरी सफ़ के एक नमाज़ी से नमाज़ में कोई ऐसी बात सादिर हो गई जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है हुज़ूर ने सलाम फेर कर उस नमाज़ी को बुलाया और फ़रमाया ख़ुदा से नहीं डरते यह तुम ने नमाज़ कैसे पढ़ी।

हदीस का तर्जुमा

तुम तो यह समझते हो कि तुम जो कुछ करते हो वह मुझ से मख़्फ़ी रहता है अल्लाह की क़सम मैं जैसे सामने देखता हूँ वैसे ही पीछे भी देखता हूँ मिश्कात शरीफ।

हुज़ूर की बसारत शरीफ़ की शान मुबारक

सुब्हानल्लाह क्या शान है हुज़ूर की बसारत शरीफ़ की कि आगे पीछे भी एकसाँ देखते हैं मुसलमानो ज़रा इस हदीस को फिर पढ़ो और सुनो कि जो हुज़ूर सहाबा कराम को ज़ुहर की नमाज़ पढ़ा रहे थे और एक नमाज़ी जो सब से पिछली सफ़ में खड़ा है उस से नमाज़ में कोई ऐसी बात वाक़िअ हो जाती है जो नमाज़ की मुफ़सिद है हुज़ूर सब से आगे और क़िबला रुख खड़े हैं मगर उस नमाज़ी को भी देख लिया और उस की उस बात को भी जो उस से वाक़िअ हो गई जो मुफ़सिद नमाज़ थी चुनांचे बाद अज़ नमाज़ उसी नमाज़ी को बुलाया और फ़रमाया कि तुम ने यह नमाज़ कैसे पढ़ी क्या तुम यह समझते हो कि तुम्हारे काम मुझ से पोशीदा रहते हैं बख़ुदा मैं आगे पीछे एकसाँ देखता हूँ।

हुज़ूर की नज़र और हौज़ ए कौसर

चुनांचे एक और हदीस सुनिये हुज़ूर फ़रमाते हैं तुम्हारे वादे की जगह हौज़ कौसर है और मैं अपनी इस जगह से जहाँ खड़ा हूँ हौज़ कौसर को देख रहा हूँ।  मिश्कात शरीफ

हुज़ूर की नज़र मुबारक

देखा आप ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़मीन पर खड़े खड़े हौज़ कौसर देख रहे हैं और हौज़ कौसर जन्नत में है जन्नत कितनी दूर है जन्नत ज़मीन से कितनी दूर है यह भी सुन लीजिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि ज़मीन से पहला आसमान पाँच सौ साल की मसाफ़त तक है यानी ज़मीन से चल कर पाँच सौ साल तक चलते रहिए तो पहले आसमान तक पहुँच सकेंगे उसी तरह सातवें आसमान तक हर दो आसमानों के दरमियान पाँच पाँच सौ साल की मसाफ़त का फ़ासिला है। मिश्कात शरीफ

और फिर सातवें आसमान से भी बुलंद सिदरतुल मुन्तहा है और क़ुरआन पाक में है उस के पास जन्नत है अब आप क़लम दवात और काग़ज़ ले कर बैठ जाएँ और ज़मीन से जन्नत तक की मसाफ़त का हिसाब लगाइए मुश्किल है कि आप अंदाज़ा कर सकें अरबों बल्कि ख़रबों मील से भी दूर जन्नत के हौज़ को हमारे हुज़ूर ज़मीन पर से देख रहे हैं फिर जो आँख मुबारक करोड़ों नहीं अरबों भी नहीं ख़रबों में से भी दूर की चीज़ को मदीना मुनव्वरा की ज़मीन पर खड़े हो कर देख लेती है वह आँख मुबारक मदीना मुनव्वरा से चौदह पंद्रह सौ मील दूर हिंदुस्तान और हिंदुस्तान वालों को क्यों नहीं देख सकती सच फ़रमाया आला हज़रत ने।

आला हज़रत का कलाम

सर अर्श पर है तिरी गुज़र दिल फ़र्श पर है तिरी नज़र

मलकूत व मुल्क में कोई शे नहीं वह जो तुम पे अयाँ नहीं

या रसूलल्लाह हम गुनहगारों पर भी अपनी निगाह करम फ़रमाइए।

मुसलमानो मेरे हमनवा होकर सब पढ़ो

जिस तरफ उठ गई दम में दम आ गया

उस निगाह इनायत पर लाखों सलाम

इख्तितामिया

हुज़ूर रहमत ए आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात ए गिरामी सरापा रहमत है आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों मुबारक के ये मोजिज़ात हमारे ईमान को ताज़ा करते हैं हमें चाहिए कि इन मोजिज़ात को सुनें पढ़ें और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी से बचें और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुहब्बत व इताअत को अपनी निजात का ज़रीया बनाएँ अल्लाह तआला हमें रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सच्ची मुहब्बत गहरी अक़ीदत और कामिल इत्तिबा की तौफ़ीक अता फ़रमाए आमीन या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हम सब गुनहगारों पर अपनी शफ़कत भरी नज़र ए करम फ़रमाइए।

FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले सवालात

सवाल 1.हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँख मुबारक का मोजिज़ा क्या था?

जवाब: हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने ऐसी बसारत अता की थी कि आप अंधेरे में वैसे ही देखते थे जैसे रोशनी में, और आपकी नज़र पीछे की तरफ भी उसी तरह देखती थी जैसे आगे को।

सवाल 2. क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हौज़ ए कौसर को ज़मीन से देखते थे?

जवाब: जी हाँ, हदीस शरीफ़ में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “मैं अपनी इस जगह से हौज़ ए कौसर को देख रहा हूँ”, जो इस बात की दलील है कि आपकी आँख मुबारक ने ज़मीन से जन्नत और जन्नत में हौज़ ए कौसर को देखा।

सवाल 3. इस मोजिज़े से मुसलमानों को क्या सबक मिलता है?

जवाब: इस मोजिज़े से हमें यह ईमान अफ़ज़ा सबक मिलता है कि हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के सबसे मुक़र्रब और महबूब हैं। हमें चाहिए कि उनकी मुहब्बत, ताअत और अदब में अपनी ज़िंदगी गुज़ारें।

सवाल 4. क्या आज भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाह उम्मत पर है?

जवाब: अहले सुन्नत के अक़ीदे के मुताबिक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाह रहमत अपनी उम्मत पर रहती है और वो अपने उम्मती के हालात से वाक़िफ़ रहते हैं। इसलिए हमें हमेशा दरूद सलाम और मोहब्बत के साथ उनका ज़िक्र करना चाहिए।

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