इस्लाम एक मुकम्मल ज़िंदगी का निज़ाम है जो इंसान की हर ज़रूरत और उसके हर पहलू की रहनुमाई करता है अल्लाह तआला ने मर्द और औरत के दरमियान मोहब्बत और अफ़ज़ाईशे नस्ल के लिये जो पाक तरीका मुक़र्रर किया वो है निकाह निकाह न सिर्फ एक इबादत है बल्कि ये इंसान की इफ़्फ़त हया और समाजी सुकून की ज़मानत भी है आने वाले मज़मून में हम जानेंगे कि इस्लाम में निकाह को क्यों इतनी अहमियत दी गई है कुरआन व हदीस की रौशनी में निकाह के फ़वाइद और फज़ाइल क्या हैं फिक़्ह के एतबार से निकाह का हुक्म किन सूरतों में फ़र्ज़ वाजिब या सुन्नत होता है और किस तरह निकाह इंसान को गुनाहों से महफ़ूज़ रखकर उसे दीनी और दुनियावी कामयाबी की राह पर ले जाता है।
अहमियत ए निकाह अफ़ज़ाईशे नस्ल और निकाह की नेअमत
अल्लाह पाक ने मर्द व औरत में अफ़ज़ाईशे नस्ल नस्ल बढ़ाने के लिये जो शहवानी कुव्वत अता फ़रमाई है उस को बजा तौर पर इस्तेमाल करने के लिये मज़हबे इस्लाम ने अपने मानने वालों को निकाह जैसी अज़ीम नेअमत अता फ़रमाई है अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है, तो निकाह में लाओ जो औरतें तुम्हें खुश आयें दो दो और तीन तीन और चार चार फिर अगर डरो कि दो बीवीयों को बराबर न रख सकोगे तो एक ही करो। (सूरह निसा आयत नं 3)
निकाह एक इबादत और सुन्नत
निकाह एक ऐसी इबादत है जिसकी इब्तेदा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम से हुई और क़यामत तक रहेगी निकाह ही से नस्ले इंसानी की बक़ा है यही सालेहीन आबेदीन ज़ाकेरीन अल्लाह के महबूब बंदों की पैदाइश का ज़रीआ है यही वजह है कि हनफ़ियों के नज़दीक़ निकाह करना नफ़्ल इबादत से बेहतर है निकाह करना अंबिया ए किराम अलैहीमुस्सलाम और ख़ुसूसन हमारे आका अलैहिस्सलाम की सुन्नते मुबारका है लेहाज़ा बिला वजहे शरई निकाह से एराज़ करना इंकार करना अहले ईमान का तरीक़ा नहीं है।
आक़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम फ़रमाते हैं निकाह मेरा तरीका है तो जिसने मेरे तरीके पर अमल ना किया वो मुझ से नहीं। (इब्ने माजा)
निकाह करने का फ़िक्ही हुक्म
बाज़ सूरतों में निकाह करना फ़र्ज़ और बाज़ सूरतों में वाजिब होता है जो आदमी मेहर और औरत का खर्च उठाने की ताक़त रखता है और उसे यकीन है कि निकाह ना करने की सूरत में उससे गुनाह वाके हो जायेगा तो उस पर निकाह करना फ़र्ज़ है इसी तरह जो महर और खर्च देने पर क़ादिर है और उसे शहवत का इतना ग़लबा हो कि निकाह ना करने की सूरत में गुनाह का अंदेशा हो तो उस पर निकाह करना वाजिब है अगर ऐतदाल की हालत हो तो निकाह करना सुन्नते मुअक्क़दा है जिस आदमी को ये यक़ीन हो कि अगर निकाह करेगा तो खर्च ना दे पाएगा और ज़रूरी हुकूक़ अदा ना कर पाएगा तो ऐसी हालत में निकाह करना हराम है और जिन को इन बातों का अंदेशा हो उनके लिए निकाह करना मकरूह है। (मुलख्ख़सन अज़ फतावा रज़्विया)
निकाह के फ़वाइद व फ़ज़ाइल निकाह अंबिया ए किराम की सुन्नत
हदीसे पाक में है कि आक़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम फ़रमाते हैं चार चीजें अंबिया अलैहीमुस्सलाम की सुन्नत हैं खुशबू लगाना हया करना निकाह करना और मिस्वाक करना। (मुस्नदे इमाम अहमद)
निकाह गुनाहों से हिफ़ाज़त का ज़रीआ
आक़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम फ़रमाते हैं ऐ जवानों तुम में से जो ताक़त रखे वो ज़रूर निकाह करे क्योंकि निकाह निगाह को ज़्यादा झुकाने वाला और सतरे औरत की हिफ़ाज़त करने वाला है और जो निकाह की ताक़त ना रखे वो रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा शहवत को खत्म करता है। (बुखारी शरीफ़)
बहुत से लोग जो ताक़त के बावजूद निकाह नहीं करते उनका ज़हन गंदगियों की तरफ़ झुक जाता है जो धीरे धीरे ईमान से दूर कर देती हैं इन तमाम गुनाहों से निजात का तरीक़ा निकाह ही है हाँ अगर वाक़ई में मजबूरी है और ताक़त नहीं रखता तो रोज़ा रखना उसका इलाज है क्योंकि रोज़े से नफ़सानी ख़्वाहिशात टूटती हैं।
नेक बीवी दुनिया की बेहतरीन नेअमत
आक़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम फ़रमाते हैं दुनिया की तमाम चीज़ें फ़ायदा उठाने के लिए हैं और दुनिया की बेहतरीन फ़ायदा उठाने वाली चीज़ नेक औरत है। (मुस्लिम शरीफ)
औलाद का हुसूल और नेक औलाद की दुआ
औलाद निकाह के ज़रिए होती है और औलाद वालिदैन के लिए दुआ और बख़्शिश का ज़रिया है आक़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम फ़रमाते हैं जब इंसान मर जाता है तो उसके आमाल का सिलसिला मुनक़ता हो जाता है सिवाए तीन कामों के सदक़ा ए जारीया वो इल्म जिससे फ़ायदा उठाया जाए और नेक औलाद जो उसके हक़ में दुआ करे। मुस्लिम शरीफ
एक और मक़ाम पर फ़रमाते हैं जन्नत में आदमी का दरजा बढ़ा दिया जाता है तो वो कहता है मेरे हक़ में ये कैसे हुआ जवाब मिलता है कि तुम्हारा बेटा तुम्हारे लिए मग़फ़िरत तलब करता है। (इब्ने माजा)
निकाह दिल को राहत और सुकून देता है
निकाह के सबब आदमी को अपनी बीवी से मोहब्बत होती है जिससे दिल को राहत पहुँचती है और उस राहत से इबादत का शौक़ ताज़ा होता है हज़रते अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं दिल से राहत और आराम एक दम ना छीन लो क्योंकि उससे दिल नाबीना हो जाएगा। (कीमाए सआदत)
मुआशरे में बेजा रस्में और इस्लाम का तर्ज़ ए अमल
मोहतरम कारईन हज़रात मुन्दरजा बाला अहादीस और तहरीरात से आप इस बात का अंदाज़ा लगा चुके होंगे कि इस्लाम में निकाह को गैर मामूली अहमियत दी गई है साथ ही इसके दीनी और दुनियावी फ़ायदे भी बहुत हैं मगर अफ़सोस कि हमारे मुआशरे में निकाह के सिलसिले में इस तरह बेजा रस्मों की पाबंदियाँ की जाती हैं कि बसा औक़ात निकाह को ही मुश्किल बना दिया जाता है।
दोस्तों ये बात याद रखें कि शरीअत ए इस्लामिया तमाम रस्मों को ख़त्म करने का हुक्म नहीं देती बल्कि ये हुक्म देती है कि जहाँ रस्में अहकाम ए शरअ के ख़िलाफ़ ना हों वहाँ उन पर अमल करने में कोई हर्ज नहीं हाँ जो रस्में शरअ के ख़िलाफ़ जाती हैं उनकी पाबंदी ज़रूर ख़िलाफ़ ए शरअ काम है।
आखरी कलमात
इस्लाम ने निकाह को इबादत का दरजा दिया है ताकि इंसान अपनी नफ़सानी ख्वाहिशात को हलाल रास्ते से पूरा करे और समाज में पाकीज़गी कायम रहे निकाह न सिर्फ मर्द और औरत के दरमियान मोहब्बत और रहमत का रिश्ता है बल्कि यह आने वाली नस्ल की इस्लामी तालीम और तरबियत का भी ज़रिया है अफ़सोस के आज के दौर में निकाह को मुश्किल बना दिया गया है जब कि शरअ का मक़सद इसे आसान बनाना था हमें चाहिए कि हम निकाह को सुन्नते नबवी के मुताबिक़ सादगी और शरई उसूलों पर अंजाम दें बेजा रस्मों और दिखावे से बचें और इस इबादत को अल्लाह की रज़ा के लिये अदा करें क्योंकि यही तरीका हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीका है और यही हमारी दुनिया और आख़िरत की कामयाबी का रास्ता है।
FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले सवालात
सवाल 1: इस्लाम में निकाह को इतना अहम क्यों माना गया है
जवाब: क्योंकि निकाह इबादत है और नस्ले इंसानी की बक़ा का ज़रिया है यह गुनाहों से हिफ़ाज़त करता है और समाज में पाकीज़गी और सुकून पैदा करता है
सवाल 2: निकाह में रस्में करना जायज़ है या नहीं
जवाब: अगर रस्में शरअ के ख़िलाफ़ नहीं हैं तो उनकी इजाज़त है मगर जो रस्में इस्लामी अहकाम के खिलाफ़ जाती हैं वे मना हैं
सवाल 3: निकाह करने से कौन-कौन से फ़ायदे हासिल होते हैं
जवाब: निकाह से इंसान गुनाहों से बचता है उसे सुकून और मोहब्बत मिलती है नेक औलाद की नेअमत मिलती है और अल्लाह की रज़ामंदी हासिल होती है
सवाल 4: आज के दौर में निकाह को आसान कैसे बनाया जा सकता है
जवाब: फुज़ूल खर्ची और दिखावे से बचकर सादगी से निकाह किया जाए शरीअत के दायरे में रहकर सुन्नत के मुताबिक अमल किया जाए यही असल इस्लामी तरीका है