दोस्तों! यह मज़मून हुज़ूर सैय्यिदुल अंबिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़मत, शाहे यमन तुब्बा’ हुमैरी औव्वल के ख़त और इस से जुड़े अजी़म वाक़िआत का बयान है। यह वाकिया आपके क़ल्बो-जिगर को नूर से भर देगा है।
नुबुव्वत की अज़मत और इंतज़ार-ए-मुस्तफा
दोस्तों! मुझे इंतिहाई मुसर्रत है कि इस आर्टिकल में बारगाहे नुबुव्वत में ख़िराजे अक़ीदत पेश करने का मौक़ा मयस्सर हुआ। दर हक़ीक़त महबूबे ख़ुदा ख़ातमुल अंबिया माहे तय्यिबा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गुलामी ही जुम्ला मख़्लूक़ की निजात व तरक़्क़ी की ज़ामिन है। और यूँ तो कायनात का ज़र्रा ज़र्रा सैय्यिदुल अंबिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गुलामी के वालिहाना जज़्बात से लबरेज़ है। मगर उन वाक़िआत पर नज़र डालिए। जो हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़ुहूर से क़ब्ल वुकू में आए और अंदाज़ा फ़रमाइए। कि अक़्वामे आलम के बड़े बड़े मुफ़क्किरीन व सुलहा औलूल अज़्म सलातीन व उमरा इस आख़िरुज़्ज़मां माहे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद पर कितना रासिख़ अक़ीदा रखते हुए निहायत बेताबी से इंतिज़ार कर रहे थे। और उन्हें यक़ीन था। कि सैय्यिदना मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद कोई नबी किसी क़िस्म का हरगिज़ हरगिज़ नहीं आएगा। और इस ख़ातमुन नबियीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सच्ची गुलामी ही उख़र्वी निजात का ज़रिया है।
तुब्बा अव्वल का सफ़र और उलमा का मदीना में क़ियाम
इंसानियत कुब्रा के सरदारे मुअज़्ज़म सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश से एक हज़ार साल क़ब्ल मुल्के यमन का बादशाह तुब्बा' था। जिस को तुब्बा' अव्वल के नाम से अहले सीर ने मौसूम किया है। और अल्लाह तआला ने क़ुरआने हकीम में दो जगह तुब्बा' और उसकी ज़ोर आवर क़ौम का ज़िक्र फ़रमाया है। यह पुर शिकोह बादशाह जब मशरिक़ी मुमालिक की सियाहत की ख़ातिर यमन से रवाना हुआ। तो फ़ौज व अराकीने सल्तनत व उलमा व सुलहा की एक क़सीर तअदाद अपने साथ ली। और जब मक्का मुकर्रमा में पहुँचा। तो बैतुल्लाह शरीफ़ की ज़ियारत की और काबा मुअज़्ज़मा की शराफ़त व अज़मत का हाल जब अपने हमराही उलमा की ज़बानी सुना तो काबा शरीफ़ का तवाफ़ किया और ग़िलाफ़ चढ़ाया। साथ मुफ़स्सिरीन ने तसरीह फ़रमाई है। कि सब से अव्वल जो ग़िलाफ़ बैतुल्लाह शरीफ़ पर चढ़ाया गया। वह यही था। क़ब्ल इस के ग़िलाफ़ नहीं था। जब तुब्बा' मक्का मुकर्रमा से रवाना हुआ। तो सीधा मंज़िल ब मंज़िल मदीना मुनव्वरा पहुँचा। मुसन्निफ़ ज़रक़ानी शरहे मवाहिबे लदुन्निया ने लिखा है कि जब तुब्बा' मदीना में दाख़िल हुआ। तो उस के साथ एक लाख तीस हज़ार सवार थे। और एक लाख तेरह हज़ार पैदल लश्कर था। चंद रोज़ मदीना में क़ियाम रखा। मगर जब वहाँ से रख्ते सफ़र बाँधने लगा। तो उस के साथ जो चार सौ उलमा थे। उन्होंने आगे चलने से इन्कार कर दिया। और वहीँ मदीना मुनव्वरा में हमेशा के लिए क़ियाम रखने का अहद कर लिया। जब तुब्बा' को इस वाक़िए की ख़बर मिली। तो उस ने उलमा से दरयाफ़्त किया कि तुम्हारे यहाँ बैठने व सुकूनत इख़्तियार करने में क्या राज़ है? तो उन्होंने जवाब दिया। कि हम ने अपनी किताबों में पढ़ा है। कि आख़िरुज़्ज़मां नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब तशरीफ़ लाएँगे। तो अपने आबाई वतन से हिजरत फ़रमा कर इसी शहर मदीना मुनव्वरा में आएँगे। और यहीँ उन का क़ियाम रहेगा। लिहाज़ा हम इसी उम्मीद पर यहाँ बैठ गए हैं। कि शायद हम उन की ज़ियारत कर सकें। और उन की गुलामी का गिराँ क़द्र मौक़ा मयस्सर हो। उलमा के इस जवाब ने शाहे यमन तुब्बा' को बग़ायत मुतास्सिर किया। और तुब्बा' ने इरादे सफ़र मलतवी कर दिया। और हुक्म दिया कि इन चार सद उलमा की रिहाइश के लिए मदीना मुनव्वरा में चार सद उम्दा मकान ता'मीर किए जाएँ। चुनाँचे मकानात ता'मीर करने के बाद शाहे यमन ने चार सद लौंडियाँ ख़रीदीं। और उन को आज़ाद कर के इन चार सद उलमा क़ियाम पज़ीर के साथ निकाह कर दिया। और हुक्म दिया। कि तुम हमेशा के लिए यहाँ ही सुकूनत रखो (और इलावा इस इंतिज़ाम के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़ातिर एक दो मंज़िला उम्दा मकान तैयार कराया। और वसीयत कर दी कि जब आप तशरीफ़ लाएँ। तो यह मकान आप की आराम गाह होगी।) निज़ उन को काफ़ी माली इमदाद से नवाज़ा हत्ता कि मआशी फ़िक्र से बे नियाज़ कर दिया। इस आतिफ़त ख़ुसरवाना से जब फ़ारिग़ हुआ। तो सब से बड़े सालेह जेय्यद आलिम को एक ख़त लिख कर दिया। और कहा कि मेरा यह ख़त उस आख़िरुज़्ज़मां पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमते अक़दस में पेश करना और अगर ज़िन्दगी भर तुझे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत का मौक़ा न मिले। तो औलाद को वसीयत कर देना। कि नस्लन बअद नस्ल मेरा यह ख़त महफ़ूज़ रखें। हत्ता कि सरकारे अब्द क़रार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में पेश किया जाए। यह कह कर शाहे यमन तुब्बा' मशरिक़ी मुमालिक के दौरे पर रवाना हो गया। और वह ख़त नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक हज़ार साल बाद पेश हुआ। कैसे पेश हुआ? और ख़त में क्या लिखा था? पढ़ें! और अज़मते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इतिराफ़ करें। ख़त का मज़मून यह था
तुब्बा का ख़त और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तस्दीक़
तर्जुमा : तुब्बा' औव्वल की तरफ़ से यह ख़त मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह की ख़िदमत में जो अल्लाह के नबी व रसूल हैं। और ख़ातमुन नबिय्यीन हैं। और परवरदिगार दो जहाँ के रसूल हैं उन पर दरूद व सलाम हो। अज़ां बअद यक़ीनन मैं आप के साथ ईमान लाया हूँ। और मैं आप के दीन व तरीक़ा पर हूँ। और आप के रब और हर चीज़ के ख़ालिक़ पर ईमान लाया हूँ। और इस्लाम के जमीअ अहकाम जो आप के रब की तरफ़ से आप को पहुँचे हैं। उन पर भी ईमान लाया हूँ पस अगर मुझे आप की ज़ियारत का मौक़ा मिल गया। तो बहुत अच्छा व ग़नीमत और अगर मैं आप की ज़ियारत न कर सका। तो मेरी सिफ़ारिश फ़रमाना और क़ियामत के रोज़ मुझे भूल न जाना। मैं आप की पहली उम्मत में से हूँ। और मैं आप के साथ आप की आमद से पहले बैअत करता हूँ। और मैं आप के तरीक़ा पर हूँ। और आप के जद्दे अमजद सैय्यिदना इबराहीम अलैहिस सलाम के तरीक़ा पर। मैं इस बात का इक़रार करता हूँ। और शहादत देता हूँ। कि अहमद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला के रसूल हैं। अगर मेरी उम्र उन की उम्र तक लम्बी हो जाती। तो मैं नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वज़ीर होता। और जाँनिसारी में भाई शाहे यमन तुब्बा' हुमैरी औव्वल का यह ख़त नस्ल बअद नस्ल उन चार सौ उलमा के अंदर हरज़े जाँ की हैसियत से महफ़ूज़ चला आया। यहाँ तक कि एक हज़ार साल का अर्सा गुज़र गया। उन उलमा की औलाद इस कसरत से बढ़ी। कि मदीना की आबादी में कई गुना इज़ाफ़ा हो गया। और यह ख़त दस्त ब दस्त मअ वसीयत अबू अय्यूब अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु के पास पहुँचा। और आप ने अपने ग़ुलामे ख़ास अबू लैला की तहवील में रखा। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का मुअज़्ज़मा से हिजरत कर के मदीना मुनव्वरा पहुँचे। और मदीना मुनव्वरा की अलविदाई वादिये सनियात की घाटियों से आप की ऊँटनी नुमायाँ हुई और मदीना तय्यिबा के ख़ुशनसीब लोग महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इस्तिक़बाल करने को जौक़ दर जौक़ आ रहे थे। और मदीना की लड़कियाँ शाहराहों के किनारे और कहीं छतों पर खड़े हो कर दफ़ बजा रही थीं और इंतिहाई मुसर्रत के आलम में अरबी के अशआर गा रही थीं
तलअल बद्रु अलैना वजबश शुक्रु अलैना
मिन सनियातिल वदाइ मा दअन लिल्लाहि दाइ
क़ोई अपने मकानों को सजा रहा था। तो क़ोई सड़कों, गलियों की सफ़ाई में मुन्हमिक था। क़ोई दावत का इंतिज़ाम कर रहा था। तो क़ोई अपनी हाजात को ले कर बारगाहे नुबुव्वत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हाज़िर हो रहा था। ग़ुलामाने नुबुव्वत इसरार कर रहे थे। कि हुज़ूर मेरे घर तशरीफ़ फ़रमा हों। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरी ऊँटनी की निकील छोड़ दो जिस घर में यह ठहरेगी। और बैठ जाएगी। वही मेरी क़ियामगाह होगी। चुनाँचे जो मकान दो मंज़िला शाहे यमन तुब्बा' हुमैरी ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़ातिर ता'मीर किया था और जिस में हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु रहते थे। उसी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊँटनी जा कर ठहरी। लोगों ने अबू लैला को भेजा। कि शाहे यमन तुब्बा' का वह ख़त पेश करो। जब अबू लैला हाज़िरे ख़िदमत हुआ। (तो साहिबे ज़रक़ानी शरहे मवाहिबे लदुन्निया ने सफ़ा 258 में यूँ तसरीह फ़रमाई है।
तर्जुमा: तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को देखते ही फ़रमाया तू अबू लैला है। यह सुन कर अबू लैला हैरान सा हो गया। और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को न पहचान सका। और मुतफ़क्किर हो कर पूछने लगा। आप कौन हैं? मैं आप के मुक़द्दस चहरे पर जादू का कोई असर नहीं देखता रिवायत बयान करने वाला कहता है। कि अबू लैला को गुमान हुआ। कि आप जादू गर हैं, तो रसूलुल्लाह अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया। में मुहम्मद हूँ। वह ख़त ले आ। चुनाँचे ख़त अबू लैला ने पेश कर दिया जब हुज़ूर ने पढ़ा। तो फ़रमाया। सालेह भाई तुब्बा' को आफ़रीन व शाबाश है। इस जुमले को आप ने तीन दफ़ा दुहराया। तफ़सीर ख़ाजिन जिल्द 4 सफ़ा 115में यह हदीस आई है।
عن سهل بن سعد قال سمعت رسول الله صلى الله علیہ وسلم لا تسبوا تبعاً فانه كان قد أسلم اخرجه احمد بن حنبل في مسنده واخر طبراني .
तुब्बा' को बुराई से मत याद करो। वह यक़ीनन इस्लाम क़बूल कर चुका है।
मुख्तसरन इस अहम वाक़िए से मुन्दरिजा ज़ैल उमूर मुतहक़्क़िक हुए।
1.अल्लाह तआला ने अपने महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गुलामी व ख़िदमत के लिए एक हज़ार साल पहले चार सौ सालेह उलमा की नस्ल से एक कसीरुत तदाद ग़ुलामों की जमअियत पैदा फ़रमादी। जिन्होंने मुहाजिर मुसलमानों की मुख़्लिसाना ख़िदमात अन्जाम दीं और अन्सार कहलाए। और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हम रकाबी में दुश्मनाने इस्लाम का मुक़ाबला किया। और दुनिया के कोने कोने में इस्लाम का डंका बजाया।
2.हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऊँटनी पर सवार होते ही ऊँटनी को यह इल्म हो गया। कि मेरे मुक़द्दस सवार का फ़लाँ मकान है। जो एक हज़ार साल क़ब्ल ता'मीर हो चुका है। याद रहे, यह ऊँटनी हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की दुआ से कुफ़्फ़ार के मुतालिबा पर पत्थर से पैदा शुदा ऊँटनी की औलाद में से थी। इसी वास्ते हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम बड़े शौक़ से जंगलों में अपनी ऊँटनी को चराया करते थे।
3.दानाए गुयूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहले ही इल्म था। कि यह अबू लैला है। और उस के पास तुब्बा' हुमैरी का ख़त है। सुब्हानअल्लाह ! हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह फ़रमाना कि «हातिल किताब» हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वुसअते इल्म की बय्यिन दलील है।
4.आफ़ताबे नुबुव्वत की ज़ियाए पाशिया मुलाहिज़ा हों। शाहे यमन तुब्बा' हुमैरी का यह अक़ीदा था कि ख़ातमुन नबिय्यीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़ियामत में यक़ीनन गुनहगारों की शफ़ाअत फ़रमाएँगे। इसी लिए अपने नियाज़नामे में अर्ज़ करता है। कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़ियामत में मेरी सिफ़ारिश फ़रमाना। और मुझे भूल न जाना
5.हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तुब्बा' का ख़त पढ़ कर यह नहीं फ़रमाया। कि मैं सिफ़ारिश नहीं कर सकता। और मुझे कोई इख़्तियार नहीं है। बल्कि ऐसे अल्फ़ाज़ से तुब्बा' को याद फ़रमाया। कि ऐसे जुमले की शीरीनी व लज़्ज़त अहले ज़बान ही समझते हैं। मज़ीद बराँ तुब्बा' के इस्लाम का इलान भी फ़रमा दिया। अभी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आलमे शुहूद में नहीं आए थे। और पैदाइश से एक हज़ार साल क़ब्ल तुब्बा' हुमैरी ग़ाएबाना बैअत करता है। और उस की बैअत की तौसीक़ फ़रमा दिया। तो पता चला कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम औव्वलीन व आख़िरीन उम्मतों के ईमान के शाहिद हैं
6.यह भी मालूम हुआ कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना मुनव्वरा में अपने मकान में आ कर ठहरे। जैसा कि आलिम ए शैख़ अहमद दीन अब्दुल हमीद अल अब्बासी ने अपनी मशहूर तसनीफ " उमरतुल अख़बार फ़िल मदीना अल मुख़्तार में बदीं अल्फ़ाज़ तसरीह फ़रमाई है। फ़ अला हाज़ा इन्नमा नज़ला सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़ी मंज़िले नफ़सिही ला मंज़िले ग़ैरिही, स, मिन इन्तहा
आखरी बात
इस पूरे वाक़िआ से मालूम हुआ कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़मत और शफ़ाअत को अल्लाह तआला ने एक हज़ार साल पहले से जाहिर फ़रमा दिया था। शाहे यमन तुब्बा’ हुमैरी का ख़त इस बात की रोशन दलील है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम औव्वलीन व आख़िरीन के लिए रहमत हैं और शफ़ाअत फरमाने वाले हैं।
