सारे जहान के लिए रहमत बनकर आने वाले आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इंसान को इंसान से जोड़ने वाले हर रिश्ते को अहमियत दी। आपकी पाक ज़िन्दगी का हर पहलू हमारे लिए एक मिसाल है ख़ास तौर पर मुआशरती ज़िन्दगी के वो उसूल जिन पर अमल करके हम एक बेहतर और प्यार भरा समाज बना सकते हैं। इन्हीं में से एक अहम रिश्ता है पड़ोसी का। आज जब हमारे आसपास का माहौल अक्सर बेरुख़ी स्वार्थ और झगड़ों से भरा होता है तब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की वो पाक तालीमात और अमली मिसालें हमारे लिए रहनुमाई हैं जिनमें आपने पड़ोसी के हक़ को ईमान से जोड़कर बताया। चाहे वह पड़ोसी मुस्लिम हो या गैरमुस्लिम रिश्तेदार हो या अजनबी उसके साथ अच्छा व्यवहार (हुस्ने सुलूक) इस्लाम की एक बुनियादी तालीम और सबक है। आइए, जानते हैं कि कुरआन और हदीस की रोशनी में पैगंबर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस रिश्ते को कितना अहम बताया और हमें क्या तालीम दी है।
यह मकाला नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उन तालीमात और अमली मिसालों पर रोशनी डालता है जिनमें गैरमुस्लिम पड़ोसियों के साथ भी रहम इकराम और ख़याल रखना शामिल है। जानिए इस तहरीर में नबी करीम रसूल ए रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अपने हमसायों (पड़ोसियों) से बरताव और हुस्ने सुलूक।
इस्लाम में पड़ोसी के हक़ की बुनियादी एहमियत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत का हर पहलू इंसानियत के लिए रहमत है। आपने इबादत अख़लाक़ और मुआमलात ही नहीं बल्कि मआशरती ज़िन्दगी के उसूल भी वाज़ेह फरमाए जिन पर अमल करके इंसान इत्मीनान अमन और मोहब्बत की ज़िन्दगी गुज़ार सकता है। इन्हीं में से एक अहम् पहलू पड़ोसी के हक़ हैं जिन्हें कुरआन व हदीस में ग़ैर मामूली एहमियत दी गयी है।कुरआन की आयत और पड़ोसी के हुकुक
कुरआन करीम में अल्लाह तआला फरमाता हैوَاعْبُدُوا اللَّهَ وَلَا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَبِذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَالْجَارِ ذِي الْقُرْبَىٰ وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنبِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۗ
(अन-निसा 36)
तरजुमा कन्जुल ईमान और अल्लाह की बन्दगी करो और उसके साथ किसी को शरीक न करो और माँ बाप से भलाई करो और रिश्तेदार से और यतीमों और मोहताजों से और क़रीबी पड़ोसी और अजनबी पड़ोसी से और पास बैठने वाले से और मुसाफ़िर से और उनसे जिनके तुम्हारे हाथ मालिक हुए।
इस आयत में पड़ोसी के हक़ को वालिदैन और रिश्तेदारों के साथ बयान किया गया जो उसकी अज़मत पर वाज़ेह दलील है। मुफस्सिरीन ने लिखा है कि अल्ज़ार ज़िल क़ुर्बा से मुराद वह पड़ोसी है जो रिश्तेदार भी हो और अल्ज़ारुल जुनुब से मुराद अजनबी पड़ोसी है चाहे वह गैर मुस्लिम ही क्यों न हो। गोया इस्लाम ने हर पड़ोसी के हक़ को वाजिब करार दिया।
जिब्रील अमीन की वसीयत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाمَا زَالَ جِبْرِيلُ يُوصِينِي بِالْجَارِ حَتَّى ظَنَنْتُ أَنَّهُ سَيُوَرِّثُهُ
(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
जिब्रील अमीन लगातार मुझे पड़ोसी के बारे में वसीयत करते रहे यहाँ तक कि मैंने समझा कि वह पड़ोसी को वारिस बना देंगे।
पड़ोसी को तकलीफ़ देने वाला मोमिन नहीं
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह भी फरमायाوَاللَّهِ لَا يُؤْمِنُ، وَاللَّهِ لَا يُؤْمِنُ، وَاللَّهِ لَا يُؤْمِنُ۔ قِيلَ: وَمَنْ يَا رَسُولَ اللَّهِ؟ قَالَ: الَّذِي لَا يَأْمَنُ جَارُهُ بَوَائِقَهُ
(सहीह बुख़ारी)
अल्लाह की क़सम वह मोमिन नहीं! अल्लाह की क़सम वह मोमिन नहीं! अल्लाह की क़सम वह मोमिन नहीं! सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! कौन? फरमाया वह शख़्स जिसके शर से उसका पड़ोसी महफ़ूज़ न रहे।
यहाँ ईमान की नफ़ी उस शख़्स के हक़ में की गयी जो अपने पड़ोसी को तकलीफ़ देता है। गोया ईमान की अलामत यह है कि पड़ोसी इंसान के हाथ और ज़ुबान से महफ़ूज़ रहे।
ईमान की शर्त है पड़ोसी का इकराम
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाمَنْ كَانَ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَلْيُكْرِمْ جَارَهُ
(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
जो अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखता है उसे चाहिये कि अपने पड़ोसी का इकराम करे।
पड़ोसी की ख़ैरख्वाही की अमली मिसाल
हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाيَا أَبَا ذَرٍّ إِذَا طَبَخْتَ مَرَقًا فَأَكْثِرْ مَاءَهُ وَتَعَاهَدْ جِيرَانَكَ
(सहीह मुस्लिम)
ऐ अबू ज़र! जब शोरबा पकाओ तो उसमें पानी ज़्यादा कर दो और अपने पड़ोसी का खयाल रखो।
हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया
हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया
ऐ आयशा! जब भी कोई चीज़ पकाओ तो देखो कि पड़ोसी को भी कुछ दे सकते हो या नहीं चाहे वह बकरी का पाँव ही क्यों न हो। (सहीह बुख़ारी)
गैर-मुस्लिम पड़ोसी से हुस्ने सुलूक
अमली ज़िन्दगी में भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पड़ोसियों के साथ बे मिसाल सुलूक करते। एक यहूदी बच्चा बीमार हुआ तो आप उसकी आयदत के लिये तशरीफ़ ले गये। (सहीह बुख़ारी) यह इस बात की दलील है कि गैर मुस्लिम पड़ोसी भी इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ हुस्ने सुलूक के हक़दार हैं।अल्लाह के नज़दीक बेहतरीन पड़ोसी
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह भी फरमायाخَيْرُ الْأَصْحَابِ عِنْدَ اللَّهِ تَعَالَى خَيْرُهُمْ لِصَاحِبِهِ، وَخَيْرُ الْجِيرَانِ عِنْدَ اللَّهِ خَيْرُهُمْ لِجَارِهِ
(जामे तिर्मिज़ी)
अल्लाह तआला के नज़दीक बेहतरीन साथी वह है जो अपने साथी के लिए सबसे अच्छा हो और बेहतरीन पड़ोसी वह है जो अपने पड़ोसी के लिए सबसे अच्छा हो।