milad un nabi ka haseen zikr | शाने मीलाद और खसाइसे मुस्तफा

ख़साइस मुस्तफा करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में से एक शाने मीलाद भी है। यानी जिस शान के साथ रहमत आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस दुनिया में जल्वागर

अज़ीज़ाने गिरामी! इस पोस्ट में हम सरवर ए क़ायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बे मिसाल शान ए मीलाद और उनकी विलादत ए मुबारक के हसीन वाक़िआत का ज़िक्र पढ़ेंगे। दोस्तो! अल्लाह तआला ने अपने महबूब मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बेशुमार ऐसी खूबियाँ अता फ़र्माई हैं जो सैय्यदना आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आख़िरी इंसान तक, अव्वलीन ओ आख़िरीन में से किसी को भी अता नहीं हुईं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी ज़बान मुबारक से अपनी यह खूबियाँ बयान फ़र्माई, बल्कि ऐसी कई इनायात का तज़्किरा ख़ुद बारी तआला जल्ल जलालुहू ने क़ुरान मजीद में भी फ़र्माया है। उलेमा उन्हें ख़साइस ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से तअबीर करते हैं।

ख़साइस ए मुस्तफा

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के खसाइस को बेशुमार कहने की वजह यह है कि मख़्लूक शुमार उसे कर सकती है जिसकी कोई हद और इन्तिहा हो... अगर बारी तआला ने अपनी इनायात का सिलसिला मौक़ूफ़ कर दिया होता, कि जो कुछ देना था वह सब दे दिया तो भी मख़्लूक शुमार न कर पाती, उस करीम ज़ात के अपने हबीब करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर इनायात का आलम तो यह है कि वह फ़रमाता है وَلَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَكَ مِنَ الْأُولى (एक तफ़्सीर के मुताबिक़ इसका तर्जुमा है) और यक़ीनन आप के लिए हर आने वाला लम्हा पिछले लम्हे से बेहतर है। (अद दुहा) जब लम्हात का शुमार मुमकिन नहीं तो लम्हा ब लम्हा तरक्की अफ़ज़ों कमालात का शुमार भी मुमकिन नहीं। आला हज़रत, सफ़ीर ए इश्क़ ओ मुहब्बत रहमतुल्लाह फ़रमाते हैं तेरे तो वस्फ़ ऐब ए तनाही से हैं बरी, हैराँ हूँ मेरे शाह! मैं क्या क्या कहूँ तुझे। कह देगी सब कुछ उनके सना ख़्वाँ की ख़ामोशी, चुप हो रहा है कि मैं क्या क्या कहूँ तुझे। लेकिन रज़ा ने खत्मे सुख़न इस पे कर दिया, ख़ालिक़ का बन्दा ख़ल्क़ का आक़ा कहूँ तुझे।

मीलाद की शान 

मुहतरम दोस्तों! ख़साइस मुस्तफा करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में से एक शाने मीलाद भी है। यानी जिस शान के साथ रहमत आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस दुनिया में जल्वागर हुए हैं, ऐसे न पहले कोई आया है न बाद में कोई आएगा। अभी वह इस दुनिया में तशरीफ़ नहीं लाए थे कि हर उम्मत में उनकी आमद का इन्तेज़ार और उनके मीलाद के चर्चे थे, उनकी विलादत हुई तो अर्श ओ फ़र्श पर उसकी धूम थी, सदियाँ गुज़रने के बाद भी जिस शान के साथ उनके मीलाद का जश्न होता है वह अपनी मिसाल आप है और इनशा अल्लाह तआला क़ियामत तक आप का ज़िक्र ए ख़ैर इसी तरह बढ़ता रहेगा। 

मक़सद ए मीलाद मुहब्बत और पैरवी की तालीम

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मीलाद मनाने और आप की शाने विलादत को बयान करने और सुनने का मक़सद यह है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुहब्बत में इज़ाफ़ा हो और फिर मुहब्बत की बरकत से पैरवी की भी तौफ़ीक़ नसीब हो जाए। उम्मत को मुहब्बत ओ इताअत की दौलत अता करने के लिए बाज़ अव्क़ात नबी ए रहमत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी ज़बान ए अक़दस से ख़ुद भी अपने बे मिसाल मीलाद का तज़्किरा फ़रमाते थे। सहाबी रसूल सैय्यदना अर्बाज़ बिन सारिया रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि मैंने मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुए सुना إِنِّي عِنْدَ اللهِ مَكْتُوبٌ خَاتَمُ النَّبِيِّينَ وَإِنَّ آدَمَ لِمُنْجَدِلْ فِي طِينَتِهِ - यानी अभी हज़रत आदम पैदाइश के मराहिल में थे कि अल्लाह तआला की बारगाह में मुझे ख़ातमुन्नबिय्यीन लिख दिया गया। (हज़रत आदम की पैदाइश से पहले ही यह फ़ैसला हो चुका था कि ख़त्म ए नुबुव्वत का ताज मेरे सर पर सजाया जाएगा) मज़ीद फ़रमाया و سَأُخْبِرُكُمْ بِأَوَّلِ أَمْرِي دَعْوَةُ إِبْرَاهِيمَ وَبِشَارَةُ عِيسَى وَرُؤْيَا أُتِي الَّتِي رَأَتُ حِينَ وَضَعَتْنِي وَقَدْ خَرَجَ لَهَا نُورٌ أَضَاءَ لَهَا مِنْهُ قُصُورُ الشَّامِ। मैं तुम्हें बताता हूँ कि मेरी नुबुव्वत ओ अज़मत का इज़हार कैसे शुरू हुआ, मेरे जद्दे अमजद जनाब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मेरे बारे में ही दुआ की थी, और जनाब ईसा अलैहिस्सलाम ने मेरी ही ख़ुश ख़बरी सुनाई थी, और मैं ही अपनी वालिदा का वह नज़ारा हूँ जो उन्होंने मेरी विलादत के वक़्त देखा था कि उन से एक नूर निकला जिस से उन के लिए शाम के महलात रोशन हो गए। (मिश्कातुल मसाबीह 5759)

मक्का मुकर्रमा का एक यहूदी ताजिर 

सामईन! गुज़िश्ता आसमानी किताबों में वाज़ेह तौर पर सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के औसाफ करीमा बयान फ़र्माए गए थे। यह भी तज़्किरा था कि आप की विलादत कहाँ और कब होगी? और यह भी वज़ाहत थी कि आप हिजरत कर के किस जगह तशरीफ़ ले जाएँगे? आप की शाने विलादत कितनी तफ़्सील के साथ मज़कूर थी, इस का अन्दाज़ा करने के लिए एक रिवायत ज़िक्र की जाती है। उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि मक्का मुकर्रमा में एक यहूदी ताजिर रहता था (जिस ने साबिक़ा आसमानी किताबों में विलादत मुस्तफा करीम अलैहिस्सलाम की निशानियाँ पढ़ रखी थीं)। मीलाद पाक वाली रात को उस ने क़ुरैश (अहले-मक्का) से पूछा يَا مَعْشَرَ قُرَيْشٍ، هَلْ وُلِدَ فِيكُمُ اللَّيْلَةَ مَوْلُودٌ؟ ऐ क़ुरैश ! क्या आज रात तुम्हारे क़बीले में किसी बच्चे की विलादत हुई है? उन्होंने कहा क़सम बखुदा हमें मालूम नहीं। वह कहने लगा فَانْظُرُوا وَاحْفَظُوا مَا أَقُولُ لَكُمْ ، وَلِدَ هَذِهِ اللَّيْلَةَ نَبِيُّ هَذِهِ الْأُمَّةِ الأخيرة - यानी ध्यान से सुनो और याद रखना! आज रात अल्लाह तआला के आख़िरी नबी की विलादत हो चुकी है। फिर उस ने बताया कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दोनों कंधों के दरमियान मोहरे नुबुव्वत है। लोग उस की बातों से तअज्जुब करते हुए अपने अपने घरों को चले गए और इस बारे में मालूमात हासिल करने लगे, पता चला कि आज सैय्यदना अब्दुल मुत्तलिब के घर में एक चाँद तुलूअ हो गया है, जिस का नाम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम है। उन्हों ने यहूदी को बताया। वह कहने लगा मुझे इस बच्चे के पास ले चलो। चुनांचे उस ने मोहसिना ए काइनात सैय्यदा आमना रज़ियल्लाहु अन्हा के पास हाज़िर हो कर अर्ज़ की कि अपने चाँद की ज़ियारत करवाएँ। जब उस ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पुश्त ए मुबारक पर ख़ास क़िस्म के बाल देखे, जो मोहरे नुबुव्वत की निशानी थे, तो वह बेहोश हो कर गिर गया। होश आया तो लोगों ने पूछा तुम्हें क्या हुआ? कहने लगा ذَهَبَتْ وَاللَّهِ النُّبُوَّةُ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ فَرُحْتُمْ بِهِ يَا مَعْشَرَ قُرَيْشٍ، أَمَا وَاللهِ لَيَسْطُونَ بِكُمْ سَطْوَةً يَخْرُجُ خَبَرُهَا مِنَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ। यानी एक अर्से से अंबिया बनू इसराईल में पैदा होते रहे, मगर ऐ क़ुरैश ! ताजदार खत्मे नुबुव्वत को अल्लाह तआला ने तुम (अहले अरब) में पैदा फ़रमाया है। क़सम बखुदा ! इस बच्चे को ऐसी शानें अता होंगी कि मशरिक़ ओ मग़रिब में इस के चर्चे हो जाएँगे। (अल-मस्तद्रक)

इस रिवायत से मालूम होता है कि यहूदी और ईसाई आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अच्छी तरह पहचानते थे, मगर अपनी हट धर्मी के सबब ईमान से महरूम रहे। नीज़ यह भी मालूम होता है कि शबे मीलाद ज़मीन ओ आसमान में उन की आमद के चर्चे थे। आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने ख़ूब कहा अर्श पर ताज़ा छेड़छाड़ फ़र्श पर तुरफ़ा धूम धाम, कान जिधर लगाइए तेरी ही दास्तान है।

सैय्यदा आमना के मुशाहिदात

भाइयों रहमत आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का नूर पेट में जल्वागर होने से आप की पैदाइश तक और फिर पैदाइश के बाद वाले मराहिल में सैय्यदा आमना रज़ियल्लाहु अन्हा ने जिन अनवार ओ तजल्लियात और अनोखे वाक़िआत का मुशाहिदा किया उन में से कुछ उन्हों ने बयान भी फ़र्माए। हुसूले बरकत के लिए वक़्त विलादत के कुछ मुशाहिदात पढ़ें। सैय्यदा आमना रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं - जब रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की विलादत हुई तो मैंने देखा कि आप सज्दा की हालत में हैं, आजिज़ी ओ इन्किसारी करने वाले की तरह अपनी दो उंगलियाँ बुलंद की हुई थीं। (दलाइलुन नुबुव्वत लि-अबी नुआम 5) पैदा होते ही सज्दा करने में जहाँ उम्मत की गम-ख़्वारी थी, वहाँ यह भी इशारा था कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को रब्ब तआला का ख़ुसूसी क़ुर्ब हासिल है; क्योंकि हदीसे पाक के मुताबिक़ बन्दे को रब्ब तआला का सब से ज़्यादा क़ुर्ब सज्दा में हासिल होता है। (मुस्लिम 482) सलामे रज़ा में है पहले सज्दा पर रोज़ ए अज़ल से दरूद, यादगारे उम्मत पे लाखों सलाम।

सफ़ेद मोती की तीन चाबियाँ 

सैय्यदा आमना रज़ियल्लाहु अन्हा मज़ीद फ़रमाती हैं विलादत के बाद आसमान से एक सफ़ेद बादल आया और उस ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ढाँप लिया, आप मेरे सामने से ग़ाएब हो गए, फिर जल्द ही वह हिजाब दूर हो गया, मैंने एक हसीन मंज़र देखा فَإِذَا بِهِ مُدْرَجٌ فِي ثَوْبِ صُوفٍ أَبْيَضَ أَشَدِ بَيَاضًا مِنَ اللَّبَنِ وَتَحْتَهُ حَرِيرَةٌ خَضْرَاءُ قَدْ قَبَضَ عَلَى ثَلَاثِ مَفَاتِيحَ مِنَ اللُّؤْلُو الرَّطْبِ الْأَبْيَضِ وَإِذَا قَائِلٌ يَقُولُ قَبَضَ مُحَمَّدٌ عَلَى مَفَاتِيحِ النَّصْرِ وَمَفَاتِيحِ الريح وَمَفَاتِيحِ النُّبوة, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक ऊनी कपड़े में लिपटे थे जो दूध से भी ज़्यादा सफ़ेद था, नीचे सब्ज़ रेशमी बिछौना बिछा हुआ था, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुट्ठी मुबारक में बारौनक़ सफ़ेद मोती की तीन चाबियाँ थीं और कोई कहने वाला कह रहा था मुहम्मद अरबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नफा की चाबियों, हवा की चाबियों और नुबुव्वत की चाबियों को अपनी मुट्ठी में ले लिया है। (दलाइलुन नुबुव्वत लि-अबी नुआम 55)

दूसरी रिवायत के मुताबिक़ सैय्यदा आमना फ़रमाती हैं फिर एक और बादल आया, उस ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ढाँप लिया, आप मेरी निगाहों से ओझल हो गए, फिर वह हिजाब भी दूर हो गया, मैंने देखा कि एक सब्ज़ रेशम का लिपटा हुआ कपड़ा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुट्ठी में है और कोई मुनादी पुकार रहा है قَبَضَ مُحَمَّدٌ عَلَى الدُّنْيَا كُلَّهَا لَمْ يَبْقَ خَلْقَ مِنْ أَهْلِهَا إِلَّا دَخَلَ فِي قَبْضَتِهِ वाह वाह ! सारी दुनिया, जाने आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुट्ठी में आ गई, ज़मीन व आसमान की तमाम मख़्लूक आप के क़ब्ज़े में आ गई। (अल-ख़साइसुल कुबरा लिस्सुयूती, जिल्द 1, सफ़ा 82, फ़तावे रज़विया, जिल्द 30, सफ़ा 429)

मुबारक नूर की आमद से बरकतें

हज़रात! मीलादे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पहले कुरेशे मक्का क़हत साली और बहुत तंगी में मुब्तला थे, जिस साल आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का नूर अपनी वालिदा माजिदा के शिकम में जल्वागर हुआ तो हर तरफ बहार आ गई, ज़मीन हरियाली ओ सरसब्ज़ हो गई, दरख़्तों पर फल आ गए और हर तरह से आसूदगी ओ ख़ुशहाली आ गई। चुनांचे अहले अरब उस साल को सनतुल फ़तह वलिब्तिहाज (वसअत ओ ख़ुशहाली वाला साल) कहते थे। (अस-सीरतुल हलबिया बाब हम्ल उम्महि बिहि, जिल्द 1, सफ़ा 72, दारुल कुतुबिल इलमिया)

सवाद बिन क़ारिब का ईमान लाना

जाने अज़ीज़! मुसलमान नबी करीम के मीलाद मुबारक और आप के एलाने नुबुव्वत से मुताल्लिक मोजिज़ात का तज़्किरा कर के अपने ईमान को ताज़ा करते हैं और अपने दिलों में मसर्रत ओ ख़ुशी महसूस करते हैं। शाने विलादत ओ एलाने नुबुव्वत के तज़्किरे से ख़ुश होना नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और सहाबा कराम अलैहिमुर रिज़वान की सुन्नत है। सैय्यदना उमर फ़ारूक रज़ियल्लाहु अन्हु अपने दौरे खिलाफत में मिंबरे नबवी अला साहिबिहिस्सलाति वस्सलाम पर बैठ कर ख़ुत्बा इरशाद फ़रमा रहे थे, (हज के मौक़े पर) मुख़्तलिफ ममालिक से आए हुए लोग आप के सामने हाज़िर थे, आप ने पूछा أَيْنَ النَّاسُ أَفِيكُمْ سَوَادُ بْنُ قَارِب ؟ क्या तुम में सवाद बिन क़ारिब मौजूद हैं? किसी ने जवाब न दिया। आइंदा साल फिर पूछा। सैय्यदना बरा फ़रमाते हैं कि मैंने सैय्यदना उमर से पूछा अमीरुल मोमिनीन सवाद बिन क़ारिब की क्या ख़ास बात है, जिस की वजह से आप को उन का इन्तेज़ार है? आप ने फ़रमाया إِنَّ سَوَادَ بْنَ قَارِبٍ كَانَ بَدْءُ إِسْلَامِهِ شَيْئًا عَجِيبًا। सवाद बिन क़ारिब के इस्लाम लाने का वाक़िया बहुत अजीब है। इस दौरान सैय्यदना सवाद बिन क़ारिब भी आ गए। सैय्यदना उमर ने उन्हें हुक्म दिया حَدِّثْنَا بِبَدْءِ إِسْلَامِكَ، كَيْفَ كَانَ ؟ अपने इस्लाम लाने का वाक़िया सुनाइए। उन्हों ने कहा मैं हिन्द (सरज़मीन हिन्दुस्तान) गया हुआ था, उन दिनों एक जिन का मेरे पास आना जाना था, एक रात को मैं सोया हुआ था, अचानक वह मेरे ख़्वाब में आ कर कहने लगा ثُمَّ يَا سَوَادُ بْنُ قَارِبِ فَافْهَمْ وَاعْقِلْ إِنْ كُنْتَ تَعْقِلُ ... إِنَّهُ قَدْ بَعَثَ رَسُولُ اللهِ ﷺ مِنْ لُؤَيِّ بْنِ غَالِبٍ , सवाद उठ जाओ और अगर कुछ अक़्ल ओ होश है तो समझो, क़बीला लुअय बिन ग़ालिब में ख़ुदा के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तशरीफ़ ला चुके हैं। उस ने कुछ अशआर भी सुनाए। फिर उस ने मुझे बेदार कर दिया और कहने लगा يَا سَوَادَ بْنَ قَارِبٍ ! إِنَّ اللهَ بَعَثَ نَبِيًّا فَانْبَضْ إِلَيْهِ تَهْتَدِ وَتَرْشُدُ। सवाद बिन क़ारिब! अल्लाह तआला ने अपने रसूल मुकर्रम को भेज दिया है, तुम उन की ख़िदमत में पहुँचो, रूश्द ओ हिदायत पा जाओगे। सैय्यदना सवाद ने फ़रमाया वह मुसलसल तीन रातों तक मेरे पास आता रहा, इस्लाम का शौक़ दिलाता और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तारीफ़ में अशआर कहता। चुनांचे अल्लाह तआला ने मेरे दिल में इस्लाम की ख़ूब मुहब्बत पैदा कर दी, मैंने फ़ौरन तैयारी की और मदीना मुनव्वरा हाज़िर हो गया। जब मैं मदीना शरीफ़ पहुँचा तो सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के गिर्द सहाबा किराम अलैहिमुर रिज़वान का हुजूम था। आप ने मुझे देख कर फ़रमाया مَرْحَبًا بِكَ يَا سَوَادَ بْنَ قَارِبٍ قَدْ عَلِمْنَا مَا جَاءَ بِكَ।सवाद बिन क़ारिब, ख़ुश आमदीद! हमें तुम्हारे आने की वजह मालूम है। अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मैंने एक क़सीदा लिखा है, वह सुन लीजिए! सैय्यदना सवाद ने फ़रमाया فَضَحِكَ رَسُولُ اللهِ عَلَى مَا حَتَّى بَدَتْ نَوَاجِذُهُ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मेरा वाक़िया और क़सीदा सुन कर ख़ुशी से ख़ूब मुस्कुराए यहाँ तक कि आप की मुबारक दाढ़ियाँ नज़र आने लगीं और फ़रमाया أَفْلَحْتَ يَا سَوَادُ सवाद तुम कामयाब हो गए। सैय्यदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा क्या आप का जिन अब भी आप के पास आता है? अर्ज़ की مُنْذُ قَرَأْتُ الْقُرْآنَ لَمْ يَأْتِينِي وَنِعْمَ الْعِوَضُ كِتَابُ اللهِ عَزَّ وَجَلَّ مِنَ الْجِنِّ।जब से क़ुरआन मजीद की तिलावत नसीब हुई है वह कभी नहीं आया और मुझे जिन के बजाए किताबुल्लाह मिल गई, यह बहुत अच्छा बदल मिला है। (दलाइलुन नुबुव्वत लिल बैहक़ी, जिल्द 2, सफ़ा 249, दारुल कुतुबिल इलमिया) सैय्यदना फारुके आज़म ने खड़े हो कर उन्हें गले लगा लिया और फ़रमाया قَدْ كُنْتُ أُحِبُّ أَنْ أَسْمَعَ هَذَا مِنْكَ मुझे आप की ज़बान से यह वाक़िया सुनने की बहुत चाहत थी। (मुस्तदरक अला अमीन 650)

मुहब्बत और इताअत ईमान की जान

कारईन! नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुहब्बत और इताअत ईमान की जान हैं, जब तक मुहब्बत ओ गुलामीए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नसीब न हो ईमान कामिल नहीं हो सकता। जश्ने मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मनाने, गली मुहल्लों को सजाने, महफ़िलों का इंतज़ाम करने, फ़ज़ाइल ओ कमालात मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुनने सुनाने... सब का मक़सद यही होता है कि इस से मुहब्बत ओ इताअत का जज़्बा मज़ीद बेदार हो। चुनांचे हमें गौर करना चाहिए कि इस जश्न ए मीलाद के मौक़े पर हमारी मुहब्बत... क़ुरआन करीम और ज़िक्रए मीलाद क़ुरआन मजीद में रब्ब तआला ने अपने महबूब मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मीलाद का तज़्किरा फ़रमाते हुए उन के ऐसे हसीन औसाफ़ ज़िक्र फ़र्माए हैं जिन्हें जान कर मुहब्बते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का समंदर जोश मारने लगता है। इरशाद ए बारी तआला है لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِّنْ أَنْفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُمْ بِالْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ यक़ीनन तुम्हारे पास तुम्हीं में वह अज़ीमुश्शान रसूल तशरीफ़ लाए जिन पर तुम्हारा, मुशक्कत में पड़ना बहुत गिरां गुज़रता है, वह तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले हैं, मुसलमानों पर बहुत मेहरबान, रहमत फ़रमाने वाले हैं। [अत-तौबा 9, 128]

भाइयों, नफ़्सियाती उसूल है कि इंसान जिसे अपना हसीन ओ मेहरबान समझता है उस के साथ मुहब्बत करने लगता है। चुनांचे रब्ब तआला ने उम्मत का जज़्बा ए मुहब्बत बढ़ाने के लिए आयते करीमा में उन्हें एहसास दिलाया कि तुम्हारे पास तशरीफ़ लाने वाले रसूल तुम पर बहुत ही मेहरबान हैं और सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मेहरबानी ज़िक्र फ़रमाने के लिए इस आयत में अल्लाह तआला ने अपने दो (2) नाम आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अता फ़र्माए। आला हज़रत ने कहा वह नामी कि नामे ख़ुदा नाम तेरा, रऊफ़ ओ रहीम ओ अलीम ओ अली है

मुहब्बत व सुन्नत दोनों ज़रूरी

नाज़रीन! नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुहब्बत और आप की इताअत ओ गुलामी... दोनों ही रब्ब तआला की ख़ास इनायात हैं, दोनों ईमान की जान हैं और आपस में लाज़िम ओ मल्ज़ूम हैं। अगर किसी शख़्स को मुहब्बत नसीब हो, मगर सुन्नत की पैरवी न करे तो इस का मतलब है कि अभी मुहब्बत नाकामिल है...और अगर कोई इताअत पर बहुत ज़ोर दे, मगर दिल में मुहब्बत की चाशनी न हो तो ख़तरा है कि यह इताअत उस के किसी काम न आए। चुनांचे हम सब को कोशिश करनी चाहिए कि मुहब्बते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में भी इज़ाफ़ा होता रहे और सुन्नत पर अमल का जज़्बा भी बढ़ता रहे। सैय्यदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं मुझे जाने आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया يَا بُنَى" إِنْ قَدَرْتَ أَنْ تُصْبِحَ وَتُمْسِيَ لَيْسَ فِي قَلْبِكَ غِشْ لِأَحَدٍ فَافْعَلْ, प्यारे बेटे ! अगर ऐसा कर सको कि सुबह हो या शाम, तेरे दिल में किसी के बारे खोट (बद-ख़्वाही, हसद और कीना) न हो तो ज़रूर ऐसा करना। फिर फ़रमाया يَا بُنَى وَذَلِكَ مِنْ سُنَّتِي، وَمَنْ أَحْيَا سُنَّتِي فَقَدْ أَحَبَّنِي وَمَنْ أَحَبَّنِي كَانَ مَعِي فِي الْجَنَّةِ प्यारे बेटे ! यह मेरी सुन्नत है और जिस ने मेरी सुनत (शरीअत) को ज़िंदा किया (ख़ुद भी उस पर अमल किया और दूसरों को भी उस की तालीम और उस पर अमल की दावत दे कर उसे रिवाज दिया) ज़रूर उसे मेरी (सच्ची और कामिल) मुहब्बत नसीब हुई, और जिसे मेरा प्यार नसीब हो गया वह जन्नत में मेरे साथ होगा। (जामे तिर्मिज़ी 2678)

सच्चा ग़ुलाम कौन?

मुसलमानों का उरूज, कामयाबी और तरक्की भी गुलामी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में थी और आज भी गुलामी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में है। सच्चा गुलाम वह होता है जो ख़ुद को अपने मालिक के हुक्म का पाबंद रखे।

अल्लाह तआला मीलादे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सद्के में हमारी बख़्शिश ओ मग़फ़िरत फ़रमाए और हमें मुहब्बत ओ इताअते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तौफ़ीक़ से नवाज़े। रब्ब तआला इस ख़ुशियों वाले मुबारक महीने की बरकत से तमाम परेशान हाल मुसलमानों को ख़ुशियाँ अता करे। अल्लाह करीम मुश्किलात में फँसे लोगों की मुश्किलात को आसान फ़रमाए और हमें उन की मदद करने का जज़्बा अता फ़रमाए।

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