Qamar dar aqrab kya hai sharai hukm मुकम्मल तहकीक जानें

क़मर दर अकरब यानी वह वक्त वह टाइम जब चांद बुर्ज अकरब में आए उसे कमर दर अकरब कहा जाता है, अकरब में चांद हो तो क्या होता है क्या कोई नुकसान होता है या

क़मर दर अक़रब अस्सलामु अलैकुम आज की गुफ़्तगू का अन्वान “क़मर दर अक़रब” है। आज आप क़मर दर अक़रब के बारे में जानेंगे कि क़मर दर अक़रब क्या है और शरीअत में इसके बारे में क्या हुक्म है। जैसा कि हम देखते हैं कि लोग क़मर दर अक़रब को बहुत ज़्यादा अहमियत देते हैं और उनका ख़याल ए फ़ासिद यह होता है कि अक़रब का मअनी बिच्छू होता है और चूंकि बिच्छू एक मोज़ी जानवर है इसलिए उस दिन में काम करना भी ज़रर और नुक़्सान का बाइस है। और फिर अपने कामों को तर्क कर देते हैं। क़मर दर अक़रब में लोग शादी-ब्याह भी नहीं करते। सबसे पहले यह जान लें कि इसकी शरीअत में कोई अस्ल नहीं है, न कोई हैसियत है, और न कोई एतिबार।

क़मर दर अक़रब क्या है

क़मर दर अक़रब यानी वह वक़्त वह टाइम जब चांद बुर्ज़ ए अक़रब में आए उसे क़मर दर अक़रब कहा जाता है। अक़रब में चांद हो तो क्या होता है? क्या कोई नुक़्सान होता है या कुछ बुरा होता है? ऐसा कुछ नहीं होता। जब चांद अक़रब में हो तो यह ख़याल करना या यह कहना कि फलां काम बुरा होगा यह सब बातें ख़िलाफ़ ए शरअ हैं और यह सब नजूमियों के ढकोसले हैं।

हदीस शरीफ़ में मज़म्मत

नुजूमियों की मज़म्मत बयान करते हुए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया तरजुमा:जिस ने बद-शगूनी ली या जिस के लिए बद-शगूनी ली गई या जिस ने कहानत की या जिस के लिए की गई या जादू करने वाला और करवाने वाला हम से नहीं। (मसनद बज्ज़ार हदीस इमरान इब्न हुसैन,जिल्द 9 सफ़ा 52 रक़मुल हदीस 3578 मुअस्ससा उलूमिल क़ुरआन बैरूत)

दूसरी जगह इरशाद फ़रमाते हैं

तरजुमा  जो शख़्स किसी काहिन के पास आया और उसके क़ौल की तस्दीक़ की तो उसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल शुदा चीज़ों की तकज़ीब की। (मसनद अहमद इब्न हम्बल, 2, 429, रक़मुल हदीस 6932)

एक और हदीस शरीफ में है हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मर्वी है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जो शख़्स किसी काहिन के पास गया और उसके क़ौल की तस्दीक़ की या जिस शख़्स ने अपनी बीवी के साथ अमल ए मअकूस किया वह उस दीन से बरी हो गया जो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किया गया। (सुनन अबी दाऊद किताबुत्तिब्ब बाबुन्नही अन इतियानिल कुहहान जिल्द 2 सफ़ा 545)

करामत आला हज़रत अलैहिर्रहमा के ज़रिए क़मर दर अक़रब का बत्लान

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ अलैहिर्रहमत वर्रिद़वान की ख़िदमत में एक मजूसी हाज़िर हुआ। आप रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने उससे फ़रमाया  कहिए आपके हिसाब से कब बारिश आनी चाहिए? उसने ज़ाइचा बना कर कहा इस महीने में पानी नहीं आइंदा महीने में होगा। आला हज़रत अलैहिर्रहमा ने फ़रमाया अल्लाह अज़्ज़ व जल हर बात पर क़ादिर है  वह चाहे तो बारिश बरसा दे। और आप सितारे को देख रहे हैं और मैं सितारों के साथ-साथ सितारे बनाने वाले की क़ुदरत को भी देख रहा हूँ।

दीवार पर घड़ी लगी हुई थी। आप रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने नुजूमी से फ़रमाया कितने बजे हैं?

अर्ज़ की सवा ग्यारह।

फ़रमाया बारह बजने में कितनी देर है?

अर्ज़ की पौन घंटा।

फ़रमाया पौन घंटे से पहले बारह बज सकते हैं या नहीं?

अर्ज़ की नहीं।

यह सुनकर आला हज़रत अलैहिर्रहमत वर्रिद़वान उठे और घड़ी की सुई घुमा दी  फ़ौरन टन-टन बारह बजने लगे। नुजूमी से फरमाया आप तो कहते थे कि पौन घंटे से पहले बारह बज ही नहीं सकते तो अब कैसे बज गए?

अर्ज़ की आप ने सुई घुमा दी वरना अपनी रफ़्तार से तो पौन घंटे के बाद ही बारह बजते।

आला हज़रत अलैहिर्रहमत वर्रिद़वान ने फ़रमाया अल्लाह अज़्ज़ व जल क़ादिर ए मुत्लक़ है कि जिस सितारे को जिस वक़्त चाहे जहाँ चाहे पहुँचा दे। आप आइंदा महीने बारिश होने का कह रहे हैं और मेरा रब्ब अज़्ज़ व जल चाहे तो आज और अभी बारिश होने लगे। ज़बान ए आला हज़रत अलैहिर्रहमत वर्रिद़वान से इतना निकलना था कि चारों तरफ़ से घनघोर घटा छा गई और झूम-झूम कर बारिश बरसने लगी। (अनवार ए रज़ा सफ़ा 375 ज़िया उल क़ुरआन पब्लिकेशन उर्दू बाज़ार लाहौर)

सद्रुश्शरीअत बद्रुत्तरीक़ा अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमत वर्रिद़वान का बयान

आप इसे ख़िलाफ़ ए शरअ और शैतान का फ़रेब क़रार देते हुए फ़रमाते हैं क़मर दर अक़रब यानी चाँद जब बुर्ज़ ए अक़रब में होता है तो सफ़र करने को बुरा जानते हैं और नुजूमी इसे मन्हूस बताते हैं। और जब बुर्ज़ ए असद में होता है तो कपड़े कटवाने और सिलवाने को बुरा जानते हैं। ऐसी बातों को हरगिज़ न माना जाए। यह बातें ख़िलाफ़ ए शरअ और नुजूमियों के ढकोसले हैं। नुजूम की इस क़िस्म की बातें जिनमें सितारों की तासीरात बताई जाती हैं  कि फलाँ सितारा तुलूअ होगा तो फलाँ बात होगी यह भी ख़िलाफ़-ए शरअ है। इसी तरह निछत्तर का हिसाब कि फलाँ निछत्तर से बारिश होगी यह भी ग़लत है। हदीस में इस पर सख़्ती से इन्कार फ़रमाया गया। (बहार ए शरीअत जिल्द 3 हिस्सा 16 सफ़ा 658 मुतफ़र्रिक़ात मकतबा मदीना दावत-ए-इस्लामी)

ख़ुलासा ए कलाम

ख़ुलासा यह हुआ कि रब तआला क़ादिर ए मुत्लक़ है और वही मालिक व मुख़्तार है। तमाम चीज़ें उसके तहत ए क़ुदरत हैं। लिहाज़ा किसी अमल में काहिनों और नुजूमियों की बातों पर अमल करना तो दरकिनार यक़ीन करना भी ईमानी ख़तरे से ख़ाली नहीं। हमें “हस्बुनल्लाहु व निअमल वकील” का दामन पकड़े रहना चाहिए  वही हमारे लिए काफ़ी है।

About the author

JawazBook
JawazBook एक सुन्नी इस्लामी ब्लॉग है, जहाँ हम हिंदी भाषा में कुरआन, हदीस, और सुन्नत की रौशनी में तैयार किए गए मज़ामीन पेश करते हैं। यहाँ आपको मिलेंगे मुस्तनद और बेहतरीन इस्लामी मज़ामीन।

एक टिप्पणी भेजें

please do not enter any spam link in the comment box.