Ramzan 2025 Roze se milti hai sehat | ऑक्सफ़ोर्ड के प्रोफ़ेसर ने क्यों कहा 'रोज़ा है सेहत का राज़'?

मज़हब-ए-इस्लाम ने तो चौदह सौ साल पहले ही रोज़े को सिहत के लिए निहायत फ़ायदेमंद क़रार दिया है, मगर इस बारे में दौरे हाज़िर के साइंसदानों का नज़रिया

रमज़ानुल मुबारक आख़िरत की नेकी और दुनियावी सेहत का ख़ज़ाना माहे रमज़ान न सिर्फ़ रूहानी तरक़्क़ी और आख़िरत की भलाई का मौक़ा है बल्कि यह हमारे जिस्मानी सेहत के लिए भी अल्लाह तआला की एक नेअमत है। इस पाक महीने में रोज़े रखने से सवाब के साथ-साथ बेमिसाल जिस्मानी फ़ायदे भी हासिल होते हैं जिन्हें आज की साइंस भी मानती है।

रोज़े से सेहत मिलती है

माहे रमज़ानुल मुबारक जिस तरह हमारी आख़िरत को बेहतर बनाने के लिए बहुत अहम है ऐसे ही दुनियवी एतिबार से भी हमारे लिए निहायत अहम है। यह इस तौर पर कि माहे रमज़ान के रोज़े रखने से सिर्फ़ सवाब ही नहीं मिलता बल्कि बेशुमार जिस्मानी फ़वाइद भी हमें हासिल होते हैं।

हदीस पाक की रौशनी में रोज़े के फ़ायदे

जैसा कि मुस्तफ़ा जाने रहमत शमअ बज़्मे हिदायत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है “सूमू तसिह्हू” तुम रोज़ा रखो तंदुरुस्त हो जाओगे। (मुअज्जम औसत, जिल्द 6, सफ़ा 146)

इस हदीस पाक पर वो लोग ग़ौर करें जो बिना वजह रोज़ा छोड़ देते हैं और न रखने के तरह-तरह के बहाने बनाते हैं कि भूखे रहने से तबीयत ख़राब हो जाती है। जब कि रब के महबूब दानाए ग़यूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद इरशाद फ़रमा रहे हैं कि अगर तुम रोज़ा रखोगे तो सेहत मिलेगी।

आला हज़रत और रोज़े की बरकत

आला हज़रत मुजद्दिद ए दीन व मिल्लत इमाम अहमद रज़ा क़ादरी मुहद्दिस बरेलवी क़ुद्दिस सिर्रहु के रोज़ा रखने का वाक़िआ पढ़िए और रोज़े की बरकत देखिए। आप अलैहिर्रहमा सख़्त बीमारी के आलम में भी रोज़ा नहीं छोड़ते थे। आप खुद इरशाद फ़रमाते हैं अभी चंद साल हुए माहे रजब में हज़रत वालिदे माजिद (रईसुत मुतकल्लिमीन मौलाना नक़ी अली ख़ान क़ुद्दिस सिर्रुहुश्शरीफ़) ख़्वाब में तशरीफ़ लाए और मुझसे फ़रमाया  अब की रमज़ान में मर्ज़े शदीद होगा रोज़ा न छोड़ना। वैसा ही हुआ और हर चंद तबीबों ने कहा मगर मैंने बिहम्दिल्लाह तआला रोज़ा न छोड़ा और उसी की बरकत ने बिफ़ज़्लिहि तआला शिफ़ा दी कि हदीस में इरशाद हुआ है ‘सूमू तसिह्हू’ रोज़ा रखो तंदुरुस्त हो जाओगे। (मल्फ़ूज़ात-ए-आला हज़रत) वाक़ई रोज़े रखने से सेहत मिलती है।

रोज़े की हिकमत

दूसरी हदीस में प्यारे आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह अज़्ज़ व जल ने बनी इस्राईल के एक नबी अलैहिस्सलाम की तरफ़ वही फ़रमाई  अपनी क़ौम को ख़बर दीजिए कि जो भी बन्दा मेरी रज़ा के लिए एक दिन का रोज़ा रखता है तो मैं उसके जिस्म को सेहत अता करने के साथ उसे अज़ीम अज्र भी दूँगा। (शुअबुल ईमान, जिल्द 3, सफ़ा 412)

दुनिया की दौड़ और इस्लामी तालीमात

आज के दौर में साइंटिफ़िक रिसर्च की तरफ़ दुनिया भाग रही है। हमारे समाज में ऐसे अफ़राद की काफ़ी तादाद है जो अंग्रेज़ मुहक़्क़िक़ीन और साइंसदानों की रिसर्च से बहुत मरग़ूब हैं। ऐसों की ख़िदमत में अर्ज़ है कि आज बहुत सारे ऐसे हक़ाइ़क़ हैं जिनकी तलाश में साइंसदान हैरान व सरगर्दां हैं, मगर मेरे प्यारे आक़ा मदीने वाले मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें चौदह सौ बरस पहले ही बयान फ़रमा दिया है। साइंसदानों की रिसर्च आज हो रही है कि भूखा-प्यासा रहने और रोज़ा रखने से फ़ायदा होता है या नहीं  मगर मेरे आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसके फ़वाइद को सदियों पहले ही बयान कर दिया था।

रोज़ा  दुनिया और आख़िरत दोनों की कामयाबी की चाबी

कौन नहीं चाहता कि हम सेहतयाब रहें बीमारियों से महफ़ूज़ रहें अपने मौला की ख़ुशनूदी हासिल करें और दुनिया व आख़िरत को बेहतर बनाएँ? अगर हम यह चाहते हैं तो हमें चाहिए कि शैतान के वार को नाकाम बनाएँ उसके बहकावे में न आएँ रोज़ा रखें और अपनी दुनिया व आख़िरत दोनों को बेहतर बनाएँ। रोज़ा न सिर्फ़ गुनाहों से पाकी का ज़रिया है बल्कि यह हमें बीमारियों से भी महफ़ूज़ रखता है।

रोज़ा और जदीद साइंस

मज़हब ए इस्लाम ने चौदह सौ साल पहले ही रोज़े को सिहत के लिए निहायत फ़ायदेमंद क़रार दिया है। मगर दौर ए हाज़िर के साइंसदानों का नज़रिया भी अब इसी पर मुत्तफ़िक़ है। इससे मुतअल्लिक़ वाक़िआत बहुत हैं मगर यहां सिर्फ़ तीन बयान किए जाते हैं ताकि यह बात और वाज़ेह हो जाए कि रोज़ा हज़ारों बीमारियों से बचाव और निजात दोनों का ज़रिया है।

मूर पाल्डा का क़ौल

मूर पाल्डा जो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के मअरूफ़ प्रोफ़ेसर हैं उन्होंने अपना वाक़िआ बयान किया मैंने इस्लामी उलूम का मुताला किया और जब रोज़े के बाब पर पहुँचा तो चौंक पड़ा कि इस्लाम ने अपने मानने वालों को इतना अज़ीम फार्मूला दिया है। अगर इस्लाम और कुछ न देता सिर्फ़ रोज़े का यह फ़ार्मूला ही देता तो यही उनके लिए काफ़ी था। मैंने इसे आज़माना शुरू किया और मुसलमानों के तर्ज़ पर रोज़े रखने लगा। मैं अरसे से मअदे के वरम में मुब्तला था। कुछ दिनों में ही कमी महसूस हुई और कुछ ही अरसे में मैं नॉर्मल हो गया। एक महीने के अंदर अपने जिस्म में इंक़िलाबी तब्दीली महसूस की। (रिसाला नई दुनिया)

हैरत अंगेज़ इन्किशाफ़ात

हॉलैंड का पादरी ऐल्फ़ गाल कहता है मैंने शूगर दिल और मअदे के मरीज़ों को मुसलसल 30 दिन रोज़े रखवाए। नतीजतन शूगर वालों की शूगर कंट्रोल हो गई दिल के मरीज़ों की घबराहट और साँस का फूलना कम हुआ और मअदे के मरीज़ों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा हुआ। एक अंग्रेज़ माहिर ए नफ़्सियात सिग्मंड फ्राइड कहता है रोज़े से जिस्मानी खिंचाव ज़हनी डिप्रेशन और नसियाती अमराज़ का ख़ात्मा होता है। (फ़ैज़ान-ए-रमज़ान)

नतीजा और पैग़ाम

रोज़ा न सिर्फ़ इस्लामी तालीमात का अहम हिस्सा है बल्कि यह दुनियावी और रूहानी सेहत का भी बेमिसाल ज़रिया है। चौदह सौ साल पहले हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सूमू तसिह्हू रोज़ा रखो तंदुरुस्त हो जाओ। आज की साइंस भी मानती है कि रोज़ा डायबिटीज़ दिल की बीमारियों मानसिक तनाव और पाचन तंत्र के अमराज़ को दूर करने में कारगर है। ऑक्सफ़ोर्ड के प्रोफ़ेसर मूर पाल्डा से लेकर हॉलैंड के पादरी ऐल्फ़ गाल तक ग़ैर-मुस्लिम विद्वानों ने भी रोज़े के फ़वाइद को आज़माकर माना है। यहां तक कि सिग्मंड फ्राइड जैसे मशहूर नसियातदान ने भी रोज़े को डिप्रेशन और ज़हनी खिंचाव का इलाज बताया।

आख़िरी बात

रोज़ा अल्लाह की रज़ा का ज़रिया होने के साथ-साथ जिस्मानी और रूहानी इलाज भी है। लोगों को रोज़े से तबीयत ख़राब होने का डर है उन्हें इस्लामी हुक्म और हदीस को पेश-ए-नज़र रखना चाहिए और दुनिया के वैज्ञानिकों के तजुर्बात भी देखने चाहिए। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह जैसे अज़ीम आलिम भी गंभीर बीमारी में रोज़ा न छोड़कर यही साबित करते हैं कि रोज़े की बरकत में शिफ़ा है।

अल्लाह तआला ने रमज़ान के रोज़ों को हमारे लिए दो जहाँ की कामयाबी का ज़रिया बनाया है। इसे सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहना न समझें बल्कि इसकी हिकमत और फ़वाइद पर ग़ौर करें। शैतान के बहकावे से बचें रोज़े रखें और इस नेअमत का शुक्र अदा करते हुए सेहत और सवाब दोनों हासिल करें।

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