Darood Shareef से सौ हाजतें पुरी

हकीकत में दरूद शरीफ की शक्ल में अपने आक़ा को याद करना नहायत बेहतरीन तरीका और नहायत ही प्यारा वज़ीफा है,

दरूद शरीफ की फ़ज़ीलत हकीकत में दरूद शरीफ की शक्ल में अपने आका को याद करना नहायत बेहतरीन तरीका और नहायत ही प्यारा वज़ीफ़ा है। फराइज़े पंजगाना में पांचों वक्त की नमाज़ फ़र्ज़ हैं। इन फराइज़ को अदा करने के बाद और वाजिबात अदा करने के बाद जितना वक़्त मिले दुआएं पढ़ी जाती हैं। बजाय और दुआओं के दरूद शरीफ का वज़ीफ़ा सबसे अफ़ज़ल है।

फ़र्ज़ का वक़्त आए तो उसे अदा किया जाए वाजिब का वक़्त आए तो उसे अदा किया जाए, उसके बाद जितना फ़ाज़िल वक़्त आपको मिले तो बस अपने प्यारे रसूल को याद करो और मुसलसल दरूद शरीफ पढ़ना हर वक़्त बेहतर और अफ़ज़ल है।

लेकिन कुछ औक़ात इसके लिए मख़सूस हैं जिनमें और ज़्यादा फ़ज़ीलत है। इसके लिए कुछ अय्याम हैं और कुछ रातें हैं। इन रातों में से जुमा की रात नहायत अहमियत रखती है। जब शब-ए-जुमा हो जुमा की रात हो  इस सिलसिले में बहुत ही अहम है कि नबी करीम को इस रात में खूब याद किया जाए और खूब दरूद शरीफ का नज़राना पेश किया जाए तो बहुत ही बेहतर है।

शब ए जुमा की अहमियत

हुज़ूर शेख मुहक़्क़िक शाह अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह जज़्बुल क़ुलूब शरीफ़ में जुमा की शब के बारे में इरशाद फ़रमाते हैं और हदीस शरीफ़ दर्ज करते हैं कि  जिसने जुमा की शब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर मोहब्बत से एक बार दरूद शरीफ पढ़ा उसने जुमा की शब में गोया सौ (100) मर्तबा दरूद शरीफ पढ़ लिया।

सरकार इरशाद फ़रमाते हैं कि जो शब ए जुमा सौ मर्तबा दरूद शरीफ पढ़े अल्लाह तआला अपने फ़ज़्ल से उसकी सौ हाजतों को रफ़ा फ़रमाता है उसकी सौ ज़रूरतें पूरी करता है।

दरूद शरीफ से हाजतों की तक़मील

हदीस में इरशाद फ़रमाया गया है

सबईना हाजतन मिन उमूरे-द-दुन्या व सलासीन हाजतन मिन उमूरे-ल-आख़िरा

यानि उसकी 70 हाजतें वह हैं जिनका ताल्लुक उमूरे-दुनिया से है और आख़िरत की 30 हाजतें। गोया सौ मर्तबा दरूद शरीफ पढ़ने पर उसकी सौ हाजतें पूरी की जाती हैं 70 दुनियावी और 30 आख़िरत की।

अगर आप तरीका बना लें कि शब-ए-जुमा को अहमियत दें तो महीने में आपको चार मौक़े मिलेंगे  चार रातें होंगी। अगर आप हर शब-ए-जुमा सौ मर्तबा दरूद शरीफ पढ़ें तो महीने में चार सौ (400) मर्तबा दरूद शरीफ पढ़ना हो जाएगा और दुनिया व आख़िरत की 400 हाजतें पूरी की जाएंगी।

दरूद शरीफ बरकत और निजात का ज़रिया

प्यारे महबूब का प्यारा नाम ख़ैर व बरकत का कितना प्यारा ज़रिया है। निजात का उम्दा तरीका हमें मिला। जब हमने दरूद शरीफ पढ़ना शुरू किया तो नेकियाँ अलग मिल रही हैं बिहम्दिही तआला दर्जे बुलंद हो रहे हैं दुनिया व आख़िरत के काम बन रहे हैं।

प्यारे मुस्तफ़ा का नाम तो हर जगह काम बनाता है।

हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का नाम पाक ज़रिया ए निजात है।

सुब्हान अल्लाह।

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