Maut ko aaj tak koi jhutlaa nahin sakaa जब आती है मोहलत नहीं मिलती

इस मज़मून में मौत उसका वक़्त और मक़ाम और इंसान की ग़फ़लत के बारे में बताया गया है चाहे इंसान कितनी भी ताक़त दौलत शोहरत रखता हो मौत से कोई नहीं बच सकता।

दोस्तों आज जिस उन्वान पर बात करने जा रहा हूँ वह है जिसे कोई झुटला न सका यानी मौत का ज़िक्र करूँगा। काइनात में बहुत से लोग ऐसे गुज़रे हैं जिन्होंने अल्लाह तआला की ज़ात अक़्दस का इंकार किया वुजूद ए बारी तआला का इंकार किया। बहुत से लोग ऐसे भी गुज़रे हैं जिन्होंने अंबिया किराम अलैहिमुस सलाम की नुबूव्वत व रिसालत का इंकार किया। बहुत से लोग ऐसे भी गुज़रे हैं जिन्होंने आसमानी किताबों का इंकार किया। बहुत से लोग ऐसे भी गुज़रे हैं कि जिन्होंने मलाइका का इंकार किया। हैरत अंगेज़ बात यह कि कई ऐसे फ़लासफ़ी भी गुज़रे हैं जिन्होंने जिंस इंसानी का इंकार किया और कहा इंसान अस्ल में (माअज़ अल्लाह सुम्मा माअज़ अल्लाह) बंदर था और तरक्की कर के इंसान बन गया। कितनी हैरत की बात है कि बंदा अपनी ही तौहीन करता है।

यह सब बातें अपनी जगह पर आज तक कोई फ़र्द किसी भी मज़हब से तअल्लुक़ रखता हो किसी भी फ़िर्क़े से वाबस्ता हो मुसलमान हो ईसाई हो यहूदी हो मजूसी हो सुन्नी हो देवबंदी हो वहाबी हो शिया हो  आज तक मौत का इंकार कोई नहीं कर सका मौत को आज तक कोई झुटला नहीं सका। हम भी मौत का इंकार नहीं करते लेकिन मौत की तैयारी भी नहीं करते। हालांकि हम जानते हैं कि मौत किसी भी वक़्त आ सकती है बावजूद इसके हम ग़ाफ़िल हैं। जानने के बावजूद हम ग़फ़्लत की नींद सो रहे हैं कब जागेंगे कब बेदार होंगे।

मौत ऐसी अटल हक़ीक़त जिसे कोई झुटला नहीं सका

बादशाह के तीन अजीब सवाल

एक ज़माने का बा-इख़्तियार, साहिब तदबीर बादशाह अपने महल के बुलंद ओ बाला संग-ए मरमर के ऐवान में बैठा था।

एक दिन उसने अपने दाना ओ बीना वज़ीर को दरबार में तलब किया। जब वज़ीर हाज़िर बारगाह हुआ तो बादशाह की निगाहों में संजीदगी और लबों पर जलाल के आसार नुमायां थे।

बादशाह ने गंभीर आवाज़ में कहा ऐ वज़ीर सल्तनत अगर दस दिनों के अंदर तू मेरे तीन सवालात का दुरुस्त सच्चा और मुकम्मल जवाब न दे सका तो जान ले तेरी गर्दन क़लम कर दी जाएगी।

वज़ीर के चेहरे का रंग फ़क़ हो गया। होंटों पर कपकपाहट और दिल पर लरज़ा तारी हो गया लरज़ते लबों से अर्ज़ की बादशाह आली जाह इरशाद हो वह तीन सवालात क्या हैं।

बादशाह ने ठहरे हुए लहजे में कहा पहला सवाल वह कौन सी चीज़ है जिसे आज तक दुनिया का कोई शख़्स झुटला न सका। दूसरा सवाल वह कौन सी शय है जिसे इंसान शिद्दत से चाहता है महबूब रखता है मगर बिल आख़िर उसे छोड़ने पर मजबूर हो जाता है। तीसरा सवाल वह क्या हक़ीक़त है वह कौन सी चीज़ है जिस के सामने इंसान झुक जाता है।

यह सुनना था कि वज़ीर पर जैसे ग़म ओ फ़िक्र का तूफ़ान छा गया। इल्म ओ हिक्मत के तमाम दरीचे खोलने की कोशिश की लेकिन मुकम्मल और इत्मिनान बख़्श जवाब न मिल सका।

बिल आख़िर वज़ीर की मुलाक़ात एक जलीलुल क़द्र साहिब इल्म बुज़ुर्ग से हुई वज़ीर ने अर्ज़ की ऐ दानाए रोज़गार मेरी ज़िंदगी का दार ओ मदार तीन सवालों के जवाब पर है।

बुज़ुर्ग ने मुस्कराते हुए पूछा पहला सवाल क्या है। वज़ीर ने कहा वह क्या चीज़ है जिस को आज तक कोई झुटला नहीं सका।

बुज़ुर्ग ने जवाब दिया मौत। मौत ऐसी अटल हक़ीक़त ऐसी बे ख़ता सच्चाई जिसे आज तक कोई रद न कर सका न नमरूद झुटला सका न फ़िरऔन न क़ारून।

क़ुरआन ने फ़ैसला सुनाया कुल्लु नफ़्सिन ज़ाएक़तुल मौत हर जान मौत का मज़ा चखने वाली है (सूरह आल-ए इमरान 185)

वज़ीर ने पूछा दूसरा सवाल कि वह क्या चीज़ है जिस को चाहते हुए भी छोड़ना पड़ता है। बुज़ुर्ग ने फ़रमाया माल ओ दौलत। इंसान उसे हिर्स से चाहता है, मगर मौत आती है तो सब कुछ यहीं छोड़ जाता है।

तीसरे सवाल पर बुज़ुर्ग ने कहा यह जवाब ज़बानी नहीं दिया जा सकता, जो कहूँगा वह करना होगा। वज़ीर ने कहा क़बूल है।

बुज़ुर्ग ने उसे एक कुत्ते के पास ले जाकर कहा इसी बरतन से वैसे ही पानी पी जैसे कुत्ता पीता है। वज़ीर झुकने ही को था कि बुज़ुर्ग ने पुकारा रुक जा यही तेरा तीसरा जवाब है।

फरमाया तू झुक गया क्यों अपनी जान बचाने के लिए। इंसान सब से ज़्यादा अपनी ग़रज़ के सामने झुकता है। यही तीसरा जवाब है।

सबक आमोज़ नुकात

मौत अटल हक़ीक़त है न इंकार की गुंजाइश न फ़रार की राह।

माल ओ दौलत फ़ानी है चाहने के बावजूद छोड़ना पड़ता है।

इंसान अपनी ग़रज़ के सामने झुकता है।

इल्म वालों की सोहबत निजात का ज़रिया है।

इज़्ज़त नहीं अक़्ल काम आती है।

वक़्त पर झुक जाना भी हिक्मत है।

दोस्तों  पता चला कि मौत एक ऐसी हक़ीक़त है जिसे आज तक कोई झुटला नहीं सका और क़ियामत तक कोई भी झुटला नहीं सकेगा।

मौत का वक़्त मुक़र्रर है

जिस तरह मौत एक अटल हक़ीक़त है वैसे ही उस का वक़्त भी अज़ल में लौह ए महफ़ूज़ पर मुक़र्रर कर दिया गया है।

रब काइनात ने फ़रमाया

जब उनका मुक़र्रर वक़्त आ जाता है तो न वह एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं

(सूरह अन-नहल 61)

यह वह हत्मी लम्हा है जो हर रूह के मुक़द्दर में लिख दिया गया है। हमें मरने से पहले मरने की तैयारी करनी चाहिए ताकि वह लम्हा राहत का पैग़ाम बने न कि हसरत का।

मकामे मौत भी मुक़र्रर है

हज़रत सैय्यदना अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि हज़रत सैय्यदना सुलेमान अलैहिस सलाम के दरबार में मलकुल मौत आए और एक शख़्स की तरफ़ ग़ुस्से से देखने लगे।

वह शख़्स डर गया और अर्ज़ किया या नबिय्यल्लाह मुझे हिंद भेज दीजिए ताकि मैं मौत से बच जाऊँ। हज़रत सुलेमान अलैहिस सलाम ने हवा को हुक्म दिया और वह सरज़मीन हिंद पहुँच गया। मगर वहीं उसकी रूह क़ब्ज़ कर ली गई।

जब मलकुल मौत दोबारा आए तो उन्होंने कहा मुझे हुक्म मिला था कि उस शख़्स की रूह हिंद में क़ब्ज़ करनी है इसीलिए मैं तअज्जुब में था कि वह यहाँ कैसे पहुँचेगा लेकिन आप ने हवा को हुक्म दिया और वह वहीं पहुँचा।

यह वाक़िआ बताता है कि मौत का वक़्त और जगह मुक़र्रर है कोई तदबीर तक़दीर से बचा नहीं सकती।

मौत से कोई बच नहीं सकता

हम आज ग़फ़लत में डूब चुके हैं दुनिया के झमीलों में महव हैं लेकिन मौत से कोई नहीं बच सकता।

क़ुरआन मजीद में फ़रमाया गया

वह मौत जिस से तुम भागते हो वह तुम्हें आकर ही रहेगी (सूरह अल-जुमुआ 8)

तुम जहाँ कहीं भी हो मौत तुम्हें आ लेगी (सूरह अन-निसा 78)

तो आइए ग़फ़लत की नींद से जागें मौत की तैयारी करें और आख़िरत को संवारें क्योंकि कल नहीं आज ही इस्लाह का दिन है।

मौत की देहलीज़ पर मोहलत का दरवाज़ा बंद हो चुका होता है

इमाम रब्बानी हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैहि किमिया ए सआदत में बयान करते हैं

एक ज़ालिम व मुतकब्बिर बादशाह था। जब भी कहीं जाता सबसे क़ीमती कपड़े और शानदार घोड़े मंगवाता मगर नफ़्स मुत्मइन न होता। एक दिन बेहद शानदार लिबास और खूबसूरत घोड़े पर सवार होकर अकड़ते हुए महल से निकला। रास्ते में एक फ़क़ीर मिला जिसने सलाम किया लेकिन बादशाह ने तकब्बुर में नज़रअंदाज़ कर दिया। फ़क़ीर ने लगाम थामी और कहा मुझे कुछ कहना है बादशाह ग़ुस्से में बोला रुक मैं उतरता हूँ।

फ़क़ीर मुस्कराया और बोला बस यही तो मैं चाहता हूँ वह क़रीब आया और कान में कहा मैं मलकुल मौत हूँ तेरे लिए वक़्त आन पहुँचा है बादशाह काँप उठा बोला मुझे मोहलत दे दे मैं घर वालों से मिल लूँ मगर जवाब आया अब मोहलत का दरवाज़ा बंद हो चुका है। अब तेरा हिसाब शुरू हो चुका है उसी लम्हे उसकी रूह क़ब्ज़ कर ली गई।

जो बादशाह कल तक ग़ुरूर में था लोगों को मुंह लगाना शान के खिलाफ समझता था अवाम को हकीर जानता था आज क़ब्र के अंधेरे में बेसहारा पड़ा है। न लिबास काम आया  न तख़्त न ताज न दौलत बस आमाल की दाग़दार चादर रह गई।

इख़्तितामी कलिमात

दोस्तों  मौत क़रीब है ज़िन्दगी फ़ानी है क़ब्र हमारी मुनतज़िर है। आज तौबा कर लें कल मोहलत नहीं मिलेगी।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

सवाल 1: क्या मौत से कोई बच सकता है

जवाब: नहीं, मौत अटल हक़ीक़त है और उसका वक़्त और मक़ाम अल्लाह ने मुक़र्रर किया है। कोई भी इंसान उसे टाल नहीं सकता।

सवाल 2: इंसान क्यों दौलत और इज़्ज़त छोड़ने पर मजबूर होता है

जवाब: क्योंकि मौत आती है और इंसान अपने सारे माल, दौलत, शोहरत और इज़्ज़त के बावजूद उसे छोड़कर जाता है।

सवाल 3: इंसान किसके सामने झुकता है

जवाब: इंसान अपनी ग़रज़, मजबूरी और ज़िन्दगी की ज़रूरतों के सामने झुकता है, चाहे वह कितना भी घमंड करे।

सवाल 4: हमें मौत की तैयारी क्यों करनी चाहिए

जवाब: ताकि मौत का लम्हा हमारे लिए हसरतों और पछतावे का नहीं, बल्कि राहत और इत्मिनान का लम्हा बने।

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