aqeeqa ke ahkam jaanen अहले इल्म की बातों की रौशनी में

अक़ीक़ा बच्चा पैदा होने के सातवें दिन उसके बाल काट कर जिस जानवर को ज़बह किया जाता है उस जानवर को अक़ीक़ा कहते हैं।

इस तहरीर में आप पढ़ सकेंगे के इस्लाम में अक़ीक़ा की क्या अहमियत है? इसका हुक्म क्या है? कौन-से दिन करना बेहतर है? क्या लड़के और लड़की दोनों के लिए बराबर है? कौन-से जानवर ज़बह किए जाएँ? बाल मुंडवाना और चाँदी सदक़ा करना क्या सुन्नत है? और लोगों में जो अक़ीक़े से जुड़ी गलतफहमियाँ फैली हैं, उनका सही जवाब क्या है? हम इस तहरीर में कुरआन, हदीस, और अहले इल्म की बातों की रौशनी में इन साड़ी बातों को कवर करेंगे आइये अकीका के बारे में तफसील से पढ़ें 

अकीका कब करें 

अक़ीक़ा बच्चा पैदा होने के सातवें दिन उसके बाल काट कर जिस जानवर को ज़बह किया जाता है उस जानवर को अक़ीक़ा कहते हैं। अक़ीक़ा में बेहतर यह है कि लड़के के अक़ीके में दो बकरे और लड़की के अक़ीके में एक बकरी ज़बह की जाए। बेहतर यह है कि लड़के के लिए नर और लड़की के लिए मादा जानवर ज़बह करे और अगर उसका लिहाज़ न भी रखा जाए तो कोई हर्ज नहीं अक़ीके की सुन्नत अदा हो जाएगी। यानी अगर लड़के की तरफ़ से भी एक बकरा हो जाए चाहे मुज़क्कर न हो तो कोई हर्ज नहीं। सातवें दिन सर मुंडा कर उसके बालों के वज़न के बराबर चाँदी सदक़ा कर देना भी सुन्नत से साबित है। अक़ीक़ा के मुतअल्लिक़ कई हदीसें मुबारक मरवी हैं जिनमें से कुछ मुलाहिज़ा फ़रमायें

अकीका और अहादीस मुबारक 

अबू दाऊद और बुख़ारी शरीफ़ में है तर्जुमा: हज़रत सलमान बिन आमिर ज़बी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम को फ़रमाते सुना कि लड़के के साथ अक़ीक़ा है। उस की तरफ़ से ख़ून बहाओ (यानी जानवर ज़बह करो) और उस से अज़ीयत को दूर करो यानी उस का सरमुंडा दो। (सहीह बुख़ारी, किताबुल अक़ीक़ा, बाब इमाततुल अज़ा अनिस सबी फिल अक़ीक़ा, जिल्द 7, सफ़ा 84, दार तौकुन नजात, मिस्र) "गिरवी होने का मतलब यह है कि उस से पूरा नफ़ा हासिल न होगा जब तक अक़ीक़ा न किया जाए और बाज़ ने कहा बच्चा की सलामती और उस की नशो-ओ-नुमा और उस में अच्छे औसाफ़ होना अक़ीक़ा के साथ वाबस्ता हैं। जामे तिर्मिज़ी में है" तर्जुमा: उम्म करज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी हैं फ़रमाती हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम को फ़रमाते सुना कि लड़के की तरफ़ से दो बकरियाँ और लड़की की तरफ़ से एक, उस में हर्ज नहीं कि नर हों या मादा। (जामे तिर्मिज़ी, किताबुल अज़ाही, बाबुल अज़ान फी उज़निल मौलूद, जिल्द 4, सफ़ा 98, मुस्तफ़ा अल-बाबी अल-हलबी, मिस्र) इमाम तिर्मिज़ी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं। तर्जुमा: नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह मरवी है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत हसन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हुमा की तरफ़ से एक बकरी ज़बह की है इसी वजह से बाज़ अहले इल्म लोगों का यही रुजहान है (कि एक बकरा या बकरी भी बच्चे की तरफ़ से ज़बह करने से अक़ीक़ा हो जाएगा।) (जामे तिर्मिज़ी, किताबुल अज़ाही, बाबुल अज़ान फी उज़निल मौलूद, जिल्द 4, सफ़ा 98, मुस्तफ़ा अल-बाबी अल-हलबी, मिस्र) यह भी बहुत बेहतर है कि अक़ीक़ा के साथ सर मुंड कर बालों के वज़न बराबर चाँदी सदक़ा कर दी जाए। तिर्मिज़ी शरीफ़ की हदीस पाक है। तर्जुमा: हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने हज़रत हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का अक़ीक़ा किया तो फ़रमाया ऐ फ़ातिमा! रज़ियल्लाहु तआला अन्हा उस का सरमुंड दो और बालों के वज़न बराबर चाँदी सदक़ा कर दो। फ़रमाते हैं उन का वज़न दिरहम या दिरहम से कुछ कम था। (तिर्मिज़ी, किताबुल अज़ाही, बाबुल अक़ीक़ा बिशातिन, जिल्द 4, सफ़ा 99, मुस्तफ़ा अल-बाबी अल-हलबी, मिस्र) अक़ीक़ा के जानवर की वही शर्तें हैं जो क़ुरबानी के जानवर की हैं यानी बकरा साल से कम न हो, गोश्त के तीन हिस्से किए जाएँ एक अपने लिए, एक रिश्तेदारों के लिए, एक ग़रीबों के लिए, अगर सब ग़ुरबा में तक़सीम कर दी जाए तो बेहतर है।

अकीका का गोश्त और माँ बाप 

लोगों में यह ग़लत मशहूर है कि अक़ीके का गोश्त माँ, बाप, दादा, दादी नहीं खा सकते। इमाम अहमद रज़ा खान अलैहि रहमतुर्रहमान से मलफ़ूज़ात में सवाल हुआ: अक़ीके का गोश्त बच्चे के माँ बाप, नाना नानी, दादा दादी, मामूँ चचा वग़ैरह खाएँ या नहीं? जवाबन फ़रमाते हैं: सब खा सकते हैं "कुलू व-तसद्दक़ू व-तजरू" (यानी खाओ, सदक़ा करो और कारे सवाब में सर्फ़ करो।) "उक़ूद द-दरीबा" में है"अहकामुहा अहकामुल अज़ाहिया" (यानी अक़ीके के अहकाम क़ुरबानी के अहकाम की तरह हैं।) (मलफ़ूज़ात हिस्सा अव्वल, सफ़ा 94, अल-मकतबा अल-मदीना, कराची)

अकीका सातवें दिन न किया तो 

अगर सातवें दिन अक़ीक़ा न किया जाए तो सैय्यदी आला हज़रत इमाम अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान अलैहि रहमतुर्रहमान फ़रमाते हैं: "अक़ीक़ा सातवें दिन अफ़ज़ल है, न हो सके तो चौदहवें, वर्ना इक्कीसवें, वर्ना ज़िंदगी भर में जब कभी हो। (फ़तावा रज़विया, जिल्द 20, सफ़ा 586, रज़ा फ़ाउंडेशन, लाहौर) जब भी अक़ीक़ा किया जाए उस की पैदाइश से एक दिन पहले किया जाए। मसलन अगर बच्चा जुमा के दिन पैदा हुआ है तो जब भी अक़ीक़ा किया जाए जुमेरात को किया जाए। क़ुदरत होने के बावजूद उस के न करने वाले के बारे में सैय्यदी आला हज़रत अलैहि रहमतुर्रहमान फ़रमाते हैं: बच्चे ने अक़ीक़ा का वक़्त पाया यानी सात दिन का हो गया और बिला उज़्र बा वस्फ़े इस्तिताअत उस का अक़ीक़ा न किया उस के लिए यह आया है कि वह अपने माँ बाप की शफ़ाअत न करने पाएगा। हदीस में है "अल-ग़ुलाम मुर्तहिनुन बि-अक़ीक़तिही"यानी लड़का अपने अक़ीक़ा में गिरवी है। मज़ीद आगे इरशाद फ़रमाते हैं: जो बच्चा क़बले बुलूग़ मर गया और उस का अक़ीक़ा कर दिया था, या अक़ीक़ा की इस्तिताअत न थी या सातवें दिन से पहले मर गया उन सब सूरतों में माँ बाप की शफ़ाअत करेगा जबकि यह दुनिया से बा ईमान गए हों। (फ़तावा रज़विया, जिल्द 20 सफ़ा 596, रज़ा फ़ाउंडेशन, लाहौर)

अकीका और कुर्बानी का जानवर 

यूँ भी कर सकते हैं कि क़ुरबानी के बड़े जानवर में सात हिस्सों में छह हिस्से अक़ीके के रख लें यानी एक बंदे के दो बेटे और दो बेटियाँ हैं, वह क़ुरबानी का बड़ा जानवर ले आए उस में छह हिस्से बेटों और बेटियों के अक़ीके के और एक हिस्सा क़ुरबानी का रख ले। क़ुरबानी भी हो जाएगी और अक़ीक़ा भी हो जाएगा। उलमा कराम ने यह भी कहा कि अक़ीके के जानवर की हड्डी न तोड़ी जाए कि अच्छी फ़ाल है गोश्त उतार लिया जाए। अगर हड्डी तोड़ भी ली जाए तो हर्ज नहीं।

आखरी बात 

दोस्तों अकीका सुन्नत है और हम सबको चाहिए कि इस सुन्नत को अपनी हैसियत के मुताबिक ज़रूर अदा करें, दूसरों को भी इसकी अहमियत बताएं, और बेवजह की रस्मों व ग़लतफहमियों से बचे रहें। अल्लाह तआला हमें दीन की सही समझ और सुन्नतों पर अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।

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