achhi aur buri sangat ke asraat क्या होते हैं जानिए तफसील से

इन अल्लाह वालों के पास बैठने से दिल में अल्लाह की मुहब्बत और ज़बान पर अल्लाह का नाम जारी हो जाता है और ग़ाफ़िल से ग़ाफ़िल इंसान भी सोहबत-ए सालेहीन की

यह एक मुसल्लिमा हक़ीक़त है कि इंसान अपने गिर्द व पेश और माहौल से जिस क़दर मुतास्सिर होता है। उतना ज़्यादा वह किसी और चीज़ से मुतास्सिर नहीं होता। गिर्द व पेश का माहौल जैसा होता है इंसान की तबीअत पर उमूमन वैसे ही असरात मुरत्तब होते हैं, चुनांचे मुआशरे में अगर सलाह व ख़ैर का उन्सुर ग़ालिब हो तो इंसान में सलाह व तक़वा के आसार नुमायां होंगे और अगर मुआशरा अख़लाक़ी और अमली बिगाड़ का शिकार हो तो वह फ़िस्क़ व फुजूर और गुनाह व मअसियत का ख़ुगर हो गा। हर मुसलमान को चाहिए कि वह अच्छे लोगों की सोहबत इख़्तियार करे और अपना दोस्त भी अच्छे लोगों को ही बनाए।

सोहबत का फायेदा

हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि सल्लम ने नेक बुज़ुर्गों की अलामत बयान फ़रमाई: الَّذِينَ إِذَا رُؤُوا ذُكِرَ الله (औलिया अल्लाह) वह लोग हैं कि जिन्हें देखने से अल्लाह याद आ जाए।

(सुनन कुब्रा लिन्नसाई, ज 10, स 124, हदीस: 11171)

यानी जब उन्हें देखा जाए तो अल्लाह याद आ जाए " इन अल्लाह वालों के पास बैठने से दिल में अल्लाह की मुहब्बत और ज़बान पर अल्लाह का नाम जारी हो जाता है और ग़ाफ़िल से ग़ाफ़िल इंसान भी सोहबत-ए सालेहीन की बदौलत अल्लाह अल्लाह करने लगता है।

सोहबत संगत जैसी वैसे ही उसके असरात

मोहतरम हज़रात! इंसान जिस क़िस्म के माहौल में हो। उसी क़िस्म के ख़यालात आने लगते हैं नेक लोगों के साथ बैठे गा तो अच्छे ख़याल आएंगे और अल्लाह अल्लाह करने को दिल करे गा और उसी तरह अमाल भी अच्छे करने लगे गा। बुरे लोगों के साथ बैठे गा तो बुरे ख़याल आएंगे और अमाल भी बुरे करने लगे गा। और ख़ुश-क़िस्मत हैं वह लोग जिन्हें नेक लोगों की सोहबत व निस्बत नसीब होती है और ज़िक्र-ए इलाही करने का मौक़ा मिलता है। बंदे के अंदर अज्ज़ी व इन्किसारी पैदा होती है।

निस्बत और सोहबत से आम चीज़ ख़ास हो जाती है

क़ाइदा : इल्म-ए नह्व का क़ाइदा है : अगर नक़रा की इज़ाफ़त मअरिफ़ा की तरफ़ की जाए तो वह भी मअरिफ़ा बन जाता है। यानी जो आम चीज़ किसी ख़ास चीज़ की तरफ़ मंसूब हो जाए तो वह आम चीज़ भी ख़ास हो जाती है।

हज़रत शैख सादी अलैहिर रहमा लिखते हैं: एक रोज़ मैं हम्माम गया तो वहां एक दोस्त से मुझे ख़ुशबूदार मिट्टी मिली। मैंने उस मिट्टी से कहा तो मिश्क है कि अंबर? तुम्हारी दिलआविज़ ख़ुशबू से मैं तो मस्त हुआ जा रहा हूं। जल्दी बताओ तुम क्या हो। मिश्क हो या अंबर? मिट्टी ने कहा मैं तो एक नाचीज़ मिट्टी हूं। मगर कुछ अर्सा फूलों के साथ रही हूं। हमनशीं फूलों का यह असर है कि उन के जमाल ने मुझ में ख़ुशबू का असर पैदा कर दिया है वरना मैं तो वही मिट्टी हूं।

सुब्हान अल्लाह! हज़रत शैख सादी अलैहिर रहमा ने किस प्यारे अंदाज़ में सोहबत-ए सालेहीन के फ़वाइद बयान फ़रमाए हैं। और मिट्टी का जवाब भी बड़ा ग़ौर तलब है कि "मेरा क्या है मैं तो वही मिट्टी हूं। यह सारा फ़ैज़ तो फूलों का है"

क़ियामत के दिन सोहबत-ए सालेहीन मोजब-ए नजात हो गी

हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: क़ियामत के दिन जब अल्लाह के मक़बूल व नेक बंदे जन्नत की तरफ़ जा रहे होंगे तो जहन्नमी लोग रास्ते में सफ़ बांध कर खड़े हो जाएंगे तो एक दोज़ख़ी एक जन्नती से उस का नाम ले कर कहे गा। ऐ फ़लां क्या आप मुझे नहीं पहचानते? कि मैं वही हूं। जिस ने आप को एक दफ़ा पानी पिलाया था। और एक दोज़ख़ी उस से यूं कहे गा और मैं वही हूं जिस ने आप को वुज़ू के लिए पानी दिया था। फिर वह जन्नती उस दोज़ख़ी की शफ़ाअत कर के उसे जन्नत में ले जाए गा। (मिश्कात:486)

मोहतरम हज़रात! इन अल्लाह वालों से ज़रा सा हुस्न-ए सुलूक भी क़ियामत के दिन फ़ाइदा दे गा और हमारे लिए मोजब-ए नजात हो गा।

बुरी सोहबत की तरहीब

अहादीस में बुरी सोहबत और दोस्ती से बचने की बहुत ताकीद की गई है। सुनन तिर्मिज़ी की हदीस है, हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि सल्लम ने इरशाद फ़रमाया

الْمَرْءُ عَلَى دِيْنِ خَلِيْلِهِ فَلْيَنْظُرْ أَحَدُكُمْ مَنْ يُخَالِلُ (सुनन तिर्मिज़ी: 2385)

इंसान अपने दोस्त के दीन पर होता है, इस लिए तुम में से हर शख़्स को देखना चाहिए कि वह किस से दोस्ती कर रहा है।

जिस तरह नेक लोगों की सोहबत इंसान की ज़िंदगी पर मुसबत असर डालती है, उसी तरह बुरे लोगों की सोहबत व हमनशीनी के मनफ़ी असरात भी ज़िंदगी पर पड़ते हैं।

हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि सल्लम ने एक दिलनशीं मिसाल के ज़रीए इस की वज़ाहत फ़रमाई।

مَثَلُ الْجَلِيْسِ الصَّالِحِ وَالسُّوْءِ كَحَامِلِ الْمِسْكِ وَنَافِحُ الْكِيْرِ (मिश्कात : 418)

 नेक हमनशीं और बुरे हमनशीं की मिसाल कस्तूरी उठाने वाले और राख फूंकने वाले की तरह है। 

मोहतरम हज़रात बुरे हम नशीं और अच्छे साथी की मिसाल अत्तार और लोहार की सी है। अच्छा साथी इत्र फ़रोश की तरह है कि या तो वह तुम्हें इत्र तोहफ़ा देगा या तुम उस से इत्र ख़रीद करोगे या कम अज़ कम तुम उस के पास उस की पाकीज़ा ख़ुशबू से लुत्फ़ अंदोज़ हो गे। बुरा साथी भट्ठी में धौंकने वाले की तरह है जो या तो तुम्हारे बदन और कपड़े को जला देगा या तुम उस की बदबू पाओ गे।

बुरों की सोहबत दीन व ईमान को तबाह कर देती है और इंसान को राह-ए हक़ से मुन्हरिफ़ कर देती है, बुरों को दोस्त रखने वाला क़ियामत में पशेमान और शर्मिंदा हो गा, वह कहेगा कि ऐ काश मैं ने फ़लां शख़्स को अपना दोस्त न बनाया होता, उस ने मुझे हक़ हासिल होने के बाद राह-ए हक़ से फेर दिया सूरह फुरक़ान में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया

وَيَوْمَ يَعَضُّ الظَّالِمُ عَلَى يَدَيْهِ يَقُولُ يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلاً يَاوَيْلَتَي لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذُ فُلَانَا خَلِيْلا لَقَدْ أَضَلَّنِي عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَانَّنِي (الفرقان: 27،29)

और जिस दिन (हर) ज़ालिम (हसरत से) अपने हाथों को दांतों से काटेगा (और) कहेगा कि ऐ काश मैं ने रसूल के साथ रास्ता इख़्तियार कर लिया होता। हाए अफ़सोस मैं फ़लां को अपना दोस्त न बनाता, बे-शक्क मेरे पास नसीहत आ जाने के बाद उस ने मुझे गुमराह कर दिया। (अल-बयान) 

मोहतरम हज़रात! आप ने सामअत किया कि बुरे हमनशीं के बाइस क्या आफ़त नाज़िल होती है। इसी लिए अल्लाह रब्बुल आलमीन ने इरशाद फ़रमाया : وَ اتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ آنَابَ إِلَى (और उस की राह पर चल जिस ने मेरी तरफ़ रुजूअ किया) इस फ़रमान के मुताबिक़ हमें उन अल्लाह वालों की पैरवी करना चाहिए उन्हीं की पैरवी से हम मंज़िल-ए मक़सूद तक पहुंच सकते हैं।

इंसान अपने माहौल और गिर्दो पेश के हालात से किस दर्जे मुतास्सिर होता है उस को एक और मिसाल से यूं समझिए कि बाज़ अवक़ात इंसान के ज़ाहिरी अमाल का असर उस के बातिन पर बहुत गहरा होता है।

हज़रत अबू महज़ूरा रज़ी अल्लाह अन्हु का वाक़िआ

हज़रत अबू महज़ूरा रज़ी अल्लाह अन्हु 8 हिजरी में चंद मुशरिकीन के साथ कहीं जा रहे थे, ठीक उसी वक़्त रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम ग़ज़वा हुनैन से वापस आ रहे थे, रास्ता में एक मकाम पर ठहरे, मोअज़्ज़िन नबवी ने नमाज़ के लिए अज़ान दी, अबू महज़ूरा के साथियों ने अज़ान की आवाज़ सुनी तो बतौर मज़हक़ा उस की नक़्ल उतार ने लगे, अबू महज़ूरा ने भी नक़्ल उतारी, उन की आवाज़ निहायत दिलकश थी, इस लिए मज़हक़ा में भी दिलकशी बाक़ी रही, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम ने आवाज़ सुन कर अज़ान देने वालों को बुला भेजा, यह लोग आए, आप ने पूछा अभी किस ने बुलंद आवाज़ से अज़ान दी थी, अबू महज़ूरा के साथियों ने उन की तरफ़ इशारा कर दिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि सल्लम ने सब को वापस कर दिया और उन्हें रोक लिया और अज़ान देने की फ़रमाइश की, अबू महज़ूरा को यह फ़रमाइश बहुत गिरां गुज़री, लेकिन इन्कार की जुरअत न थी, उन को अज़ान से पूरी वाक़िफ़ियत न थी, इस लिए हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम ने उन्हें बताया, उन्होंने आप की ज़बान से सुन कर उसी को दुहरा दिया, ज़बान ए नबी का यह एजाज़ था कि इस मर्तबा अज़ान देने में ज़बान के साथ दिल भी لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ مُحَمَّدٌ رَسُوْلَ اللهِ पुकार उठा और अबू महज़ूरा जो अभी कुछ साअत पहले अज़ान का मज़ाक़ उड़ाते थे, इस्लाम के हल्क़ा बगोश हुए, हुज़ूर ख़ातिमुल अंबिया सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम ने उन्हें एक थैली में थोड़ी सी चांदी मरहमत फ़रमाई और उन की पेशानी से ले कर नाफ़ तक दस्त-ए मुबारक फेर कर बरकत की दुआ दी।

या तो अबू महज़ूरा अज़ान का मज़ाक़ उड़ाते थे या फिर अचानक दिल की दुनिया ऐसी तब्दील हुई कि ख़ुद अबू महज़ूरा ने हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम से दरख़्वास्त की या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम मुझे मक्का में अज़ान देने की इजाज़त मरहमत हो, आप सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि सल्लम ने मंज़ूर फ़रमाया और अबू महज़ूरा इजाज़त ले कर मक्का चले गए उस वक़्त उन का दिल मुहब्बत-ए मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम से मअमूर हो चुका था, मक्का जा कर मुस्तकिल अज़ान देने की ख़िदमत अंजाम देने लगे। फ़त्ह-ए मक्का के बाद हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम ने उन्हें मस्जिद-ए हराम का मुस्तकिल मोअज़्ज़िन बना दिया उन की अज़ान और ख़ुशुलहानी को बहुत मक़बूलियत हासिल हुई।

الاستيعاب في معرفة الاصحاب، 2، (680)

यही वजह है हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम ने सालेहीन के साथ तअल्लुक़ रखने की तरग़ीब दी है। हज़रत अबू जुहैफ़ा रज़ी अल्लाह अन्हु से रिवायत है, हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: ” बुज़ुर्गों के पास बैठा करो, उलमा से बातें पूछा करो और हिक्मत वालों से मेल जोल रखो।

(मअजमुल कबीर : 22 / 125, अल-हदीस : 324)

अच्छी सोहबत की अहमियत

नेक सोहबत की अहमियत का अंदाज़ा हम इस बात से लगा सकते हैं कि क़ुरआन व सुन्नत में बार बार ताकीद के साथ सालेहीन की सोहबत इख़्तियार करने, मजालिस-ए ख़ैर में बैठने की तलक़ीन की गई है। इसी तरह सूरह तौबा में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया:

يَأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَكُونُوا مَعَ الصَّدِقِينَ (سورۃ التوبہ: 119) 

ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरते रहो और सच्चों के साथ रहो। (अल-बयान) 

इस आयत में "सादिक़ीन" से मुराद सच्चे, सालेह लोग हैं। इस आयत से नेक लोगों की सोहबत में बैठने का सबूत मिलता है। उन की सोहबत इख़्तियार करने का एक असर यह होता है कि उन की सीरत व करदार और अच्छे अमाल देख कर ख़ुद को भी गुनाहों से बचने और नेकियां करने की तौफ़ीक़ मिल जाती है और एक असर यह होता है कि दिल की सख़्ती ख़त्म होती और उस में रिक़्क़त व नर्मी महसूस होती है, ईमान पर ख़ात्मे और क़ब्र व हश्र के हौलनाक मुआमलात की फ़िक्र नसीब होती है, इस लिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह नेक बंदों से तअल्लुक़ात बनाए और उन की सोहबत इख़्तियार करे। और दीनदार दोस्त तलाश करने की तरग़ीब देते हुए हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाह अन्हु फ़रमाते हैं " सच्चे दोस्त तलाश करो और उन की पनाह में ज़िंदगी गुज़ारो क्योंकि वह ख़ुशी की हालत में ज़ीनत और आज़माइश के वक़्त सामान हैं और किसी गुनाहगार की सोहबत इख़्तियार न करो वरना उस से गुनाह करना ही सीखोगे। (इह्या उलूमुद्दीन: 2,214)

पांच लोगों की सोहबत से बचो

हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ी अल्लाह अन्हु फ़रमाते हैं पांच क़िस्म के आदमियों की सोहबत इख़्तियार 

न करो:

(1) बहुत झूठ बोलने वाला शख़्स, क्योंकि तुम उस से धोखा खाओगे, वह सराब (सहरा में पानी नज़र आने वाली रेत) की तरह है, वह दूर वाले को तेरे क़रीब कर देगा और क़रीब वाले को दूर कर देगा।

2) बे-वक़ूफ़ आदमी, क्योंकि उस से तुम्हें कुछ भी हासिल न होगा, वह तुम्हें नफ़ा पहुंचाना चाहेगा लेकिन नुक़सान पहुंचा बैठेगा।

(3) बख़ील शख़्स, क्योंकि जब तुम्हें उस की ज़्यादा ज़रूरत हो गी तो वह दोस्ती ख़त्म कर देगा।

(4) बुज़दिल शख़्स, क्योंकि यह मुश्किल वक़्त में तुम्हें छोड़ कर भाग जाएगा।

(5) फ़ासिक़ शख़्स, क्योंकि वह तुम्हें एक लुक़्मे या उस से भी कम क़ीमत में बेच देगा। (इह्या उलूमुद्दीन: 215,2)

अल्लाह तआला हमें नेक लोगों को अपना दोस्त बनाने, इल्म की मजालिस और उलमा की सोहबत में बैठने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, यह है इस्लाम का तसव्वुर-ए मुहब्बत व दोस्ती, दोस्तों के अक़ाइद व अमाल और अफ़कार व नज़रियात इंसान पर बहुत गहरा असर डालते हैं, इस लिए दोस्त के इंतिख़ाब से पहले बहुत ग़ौर व फ़िक्र की ज़रूरत है।  

मरने के बाद सालेहीन की बरकात

मोहतरम हज़रात! नेक व सालेहीन की बरकात न सिर्फ़ ज़िंदा बल्कि मरने के बाद भी जारी रहती हैं।

सैय्यदना अबूहुरैरा रज़ी अल्लाह अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व अस्हाबिहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : ادْفِنُوْا مَوْتَاكُمْ وَسْطَ قَوْمٍ صَالِحِينَ فَإِنَّ الْمَيْتَ يَتَأَذَّى بِجَارِ السُّوءِ كَمَا يَتَأَذَّى الْحَيُّ بِجَارِ السُّوءِ (अबू नुऐम फ़ी "अल-हिलया" (354/6)

अपने मुर्दों को नेक लोगों के दरमियां दफ़्न किया करो। इस लिए कि मैय्यत बुरे पड़ोसी से ऐसे ही ऐज़ा पाती है जिस तरह ज़िंदा शख़्स बुरे पड़ोसी से तकलीफ़ पाता है।

दुआ

आख़िर में दुआ है कि अल्लाह तआला हमें नेक लोगों से हमेशा वाबस्ता रहने, इल्म की मजालिस और उलमा की सोहबत में बैठने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।

About the author

JawazBook
JawazBook एक सुन्नी इस्लामी ब्लॉग है, जहाँ हम हिंदी भाषा में कुरआन, हदीस, और सुन्नत की रौशनी में तैयार किए गए मज़ामीन पेश करते हैं। यहाँ आपको मिलेंगे मुस्तनद और बेहतरीन इस्लामी मज़ामीन।

एक टिप्पणी भेजें

please do not enter any spam link in the comment box.