achchha name बच्चे का पहला हक

जब बच्चा पैदा हो तो सातवें दिन उसका नाम रखना चाहिए।

आज की इस मुक़द्दस गुफ़्तगू में हम जानेंगे नवजात बच्चे का नाम रखने का इस्लामी तरीका। नाम रखने का सही वक़्त क्या है? अच्छे नाम का क्या असर पड़ता है? कौन से नाम बरकत वाले हैं, और किन नामों से परहेज़ करना चाहिए वगैरह? सब कुछ जानिए सुन्नत और हदीस की रौशनी में। तो चलिए नाम रखने के सिलसिले में क़ुरआन व हदीस की रौशनी में क्या हिदायतें हैं पढ़ते हैं।

नाम रखना

जब बच्चा पैदा हो तो सातवें दिन उसका नाम रखना चाहिए। सुनन अबू दाऊद और जामे तिर्मिज़ी की बसनद सही हदीस पाक है " तर्जुमा: हज़रत समरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि व सल्लम ने फ़रमाया लड़का अपने अक़ीक़ा में गिरवी है सातवें दिन उस की तरफ़ से जानवर ज़बह किया जाए और उस का नाम रखा जाए और सर मुंडा जाए।  
(जामे तिर्मिज़ी,किताब अल-अज़ाही,बाब अल-अक़ीक़ा,जिल्द 4,सफ़्हा 101,मुस्तफ़ा अल-बाबी अल-हलबी,मिस्र)
बच्चे का नाम सोच समझ कर उलमा-ए-किराम से मशवरा कर के रखना चाहिए। नाम शख्सियत पर असर अंदाज़ होता है। अपने बच्चों के अच्छे नाम रखने चाहिए कि बरोज़ क़यामत यह नाम पुकारे जाएँगे और बच्चा बाप के नाम से पुकारा जाएगा। 

नाम अच्छे  रखो 

सुनन अबू दाऊद, मुसनद अहमद, सहीह इब्न तुलबिया हिब्बान, अस-सुनन अल-कुबरा लिल-बैहक़ी, शुआब अल-ईमान लिल-बैहक़ी सुनन दारमी में हदीस पाक अबू दरदा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से बसनद जय्यद रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया" तर्जुमा हदीस: बे-शक तुम रोज़ क़यामत अपने और अपने वालिदैन के नाम से पुकारे जाओगे तो अपने नाम अच्छे रखो।  
(सुनन अद-दारमी, किताब अल-इस्तिज़ान, बाब फ़ी हुस्निल-असमा, जिल्द 2, सफ़्हा 380, दार अल-किताब अल-अरबी बैरूत)

पसंदीदा नाम 

हदीस पाक में कहा गया अब्दुल्लाह व अब्दुर्रहमान अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल के पसन्दीदा नाम हैं। मुहम्मद या अहमद अस्ल नाम रखने की बहुत फ़ज़ीलत अहादीस में आई है। हदीस पाक में है” तर्जुमा हदीस: जिस के हाँ लड़का पैदा हो और वो मेरी मुहब्बत और मेरे नाम पाक से तबर्रुक के लिए उस का नाम मुहम्मद रखे वो और उस का लड़का दोनों जन्नत में जाएंगे।  
(कंज़ुल उम्माल,किताब अल-मवाइज़ व अर-रक़ाइक़,अल-बाब अस-साबे अल-फ़स्ल अल-अव्वल,जिल्द 16,सफ़्हा 555,मुअस्ससा अर-रिसाला,बैरूत)
इमाम अहमद रज़ा खान अलैहि रहमतुर्रहमान मुहम्मद व अहमद नाम रखने की फ़ज़ीलत पर अहादीस नक़्ल करते हुए अल-फ़िरदौस बि-मअसूर अल-खिताब के हवाले से फ़रमाते हैं: हज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि व सल्लम फ़रमाते हैं: रोज़ क़यामत दो शख़्स हज़रत इज़्ज़त के हुज़ूर खड़े किए जाएँगे हुक्म होगा उन्हें जन्नत में ले जाओ, अर्ज़ करेंगे: इलाही अज़्ज़ व जल्ल! हम किस अमल पर जन्नत के काबिल हुए हम ने तो कोई काम जन्नत का न किया। रब्ब अज़्ज़ व जल फ़रमाएगा" तर्जुमा हदीस: जन्नत में जाओ मैं ने हल्फ़ (क़सम) फ़रमाया है कि जिस का नाम अहमद या मुहम्मद हो दोज़ख़ में न जाएगा।“  
(फ़तावा रज़विया,जिल्द 24,सफ़्हा 687,रज़ा फाउंडेशन,लाहौर)
अस्ल नाम मुहम्मद या अहमद रखा जाए और पुकारने के लिए साथ दूसरा नाम रख लिया जाए ताकि इस मुक़द्दस नाम की लोग बे-अदबी न करें मिसालन यूँ नाम रखें अहमद रज़ा, इस में अहमद अस्ल नाम, रज़ा पुकारने के लिए रख लें।

नाम कैसे रखे जाएँ और कैसे न रखें 

वह नाम जो अंबिया अलैहिमुस्सलाम, सहाबा-ए-किराम अलैहिमुर्रिज़वान औलिया-ए-किराम रहिमहुमुल्लाह के हों उन को रखा जाए बे-शुमार बरकतें हासिल होंगी। इमाम बुखारी अल-आदब अल-मुफ़रद में हदीस पाक नक़्ल करते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम फ़रमाते हैं ” तर्जुमा हदीस: अंबिया अलैहिमुस्सलाम के नामों पर नाम रखो।  
(अल-आदब,बाब अहब्बुल अस्मा इलल्लाहि अज़्ज़ व जल, जिल्द 1,सफ़्हा 284,दार अल-बशाइर अल-इस्लामिया,बैरूत)
ऐसे नाम भी न रखे जाएँ जिस की बे-अदबी होने का अंदेशा हो। बहार-ए-शरीअत में है: ”अब्दुल्लाह व अब्दुर्रहमान बहुत अच्छे नाम हैं मगर इस ज़माने में यह अक्सर देखा जाता है कि बजाए अब्दुर्रहमान उस शख़्स को बहुत से लोग रहमान कहते हैं और ग़ैर खुदा को रहमान कहना हराम है। इसी तरह अब्दुल ख़ालिक़ को ख़ालिक़ और अब्दुल माबूद को माबूद कहते हैं इस क़िस्म के नामों में ऐसी नाजाइज़ तरमीम हरगिज़ न की जाए। इसी तरह बहत कस्रत से नामों में तसग़ीर का रिवाज है यानी नाम को इस तरह बिगाड़ते हैं जिस से हक़ारत निकलती है और ऐसे नामों में तसग़ीर हरगिज़ न की जाए लिहाज़ा जहाँ यह गुमान हो कि नामों में तसग़ीर की जाएगी यह नाम न रखे जाएँ दूसरे नाम रखे जाएँ।“  
(बहार-ए-शरीअत, जिल्द 2,हिस्सा 15, सफ़्हा 94,ज़िया अल-क़ुरआन,लाहौर)
वह नाम जिन के मानी पता नहीं न रखे जाएँ जैसे यासीन, ताहा वग़ैरह। ऐसे नाम नहीं रखने चाहिएँ जिस में तज़्किया (ख़ुद की तारीफ़) हो जैसे एक सहाबिया का नाम बर्रह था जिस के मानी थे नैकू कार। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम ने उस का नाम बर्रह से तब्दील कर के ज़ैनब रखा और फ़रमाया "ला तुज़क्कू अन्फ़ुसकुम अल्लाहु अअलमु बि-अहलिल बर्रि मिन्कुम तर्जुमा: अपनी जानों को आप अच्छा न बताओ खुदा ख़ूब जानता है कि तुम में नैकू कार कौन है।  
(सहीह मुस्लिम,किताब अल-आदब,बाब इस्तिहबाब तग़यीरिल इस्मिल क़बीह,जिल्द 3,सफ़्हा 1687,दार इहया अत-तुरास अल-अरबी,बैरूत)
मुनीरुद्दीन,मुहियुद्दीन,शम्सुल इस्लाम,निज़ामुद्दीन,नूरुद्दीन,फ़ख़रुल इस्लाम,शिहाबुद्दीन,वग़ैरह नामों में भी तज़्किया है जिस की इजाज़त नहीं। जो बुज़ुर्ग इस तरह के नामों से मशहूर हैं यह उन के नाम नहीं बल्कि लोगों ने उन की दीनी खिदमात की वजह से उन्हें अल्क़ाबात दिए हैं।

बुरे नामों को बदलना 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम बुरे नाम तब्दील कर दिया करते थे। जामे तिर्मिज़ी में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है ”तर्जुमा हदीस:नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की आदत करीमा थी कि बुरे नाम को बदल देते।  
(जामे तिर्मिज़ी,अबवाब अल-आदब,बाब मा जा फी तग़यीरिल अस्मा,जिल्द 5,सफ़्हा 135,मुस्तफ़ा अल-बाबी अल-हलबी,मिस्र)
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम ने अस्रम का नाम बदल कर ज़रअह रखा,आसिया का नाम जमीलह रखा। शरीअती एतिबार से उन नामों को तब्दील करना चाहिए जिन में ख़ुद की तारीफ़ हो या उस के मानी अच्छे न बनते हों। बच्चे का अव्वल हक़ यही है कि मर्द अच्छे नसब वाली औरत से निकाह करे ताकि बाद में बच्चे को लोग माँ के नसब से ताना न दें। फिर बच्चे का नाम अच्छा रखना चाहिए बचपन में उस का नाम बिगाड़ना नहीं चाहिए कि फिर सारी उम्र उस का बिगड़ा हुआ नाम मशहूर हो जाता है जैसे काले का का,पप्पू वग़ैरह नाम ले कर न पुकारा जाए सहीह नाम से ख़ुद भी पुकारें और दूसरों को भी पुकारने का कहें।

बेमानी नाम न रखे जाएँ 

आज कल नामों के मुताल्लिक़ अजीब व ग़रीब रिवाज हो गया है पहले तो लोग ऐसा नाम रखते हैं जिस का कोई सर पैर ही नहीं होता बे-मानी,बे-फायदा और नामुनासिब होते हैं जैसे अज़ान,काएनात,मलाइका,ईमान,फज्र,इशा वग़ैरह। अगर सहीह बल्कि अच्छे नाम भी हों तो कई आमिल ज़रा सी बीमारी पर कह देते हैं कि नाम तब्दील कर दो यह नाम भारी है। इस तरह आमिलों के कहने पर सहीह नाम तब्दील नहीं करना चाहिए। बाज़ कम इल्मों में यह मशहूर है कि एक घर में तीन ऐसे नाम न हों जिन में हर्फ नून आए कि ऐसा मनहूस होता है। जबकि शरीअती एतिबार से उस की कोई अस्ल नहीं तीनों नामों में नून आना कोई नहूसत नहीं है।

तारीख के हिसाब से नाम रखना 

कई लोग तारीख़ के हिसाब से नाम रखने पर बहुत ज़ोर देते हैं यानी बच्चा जिस तारीख़ व सन में पैदा हुआ उस का हिसाब लगा कर नाम रखा जाता है। अगर चे इल्मुल आदाद के लिहाज़ से नाम रखना बुज़ुर्गों से साबित है लेकिन बुज़ुर्गान-ए-दीन अपना तारीख़ी नाम अस्ल नाम से अलग रखते थे। बहर हाल अगर कोई तारीख़ के हिसाब से नाम रखना चाहे तो रख सकता है,लेकिन इस तरह नाम रखना कोई ज़रूरी नहीं है और न उस का कोई बहत ज़्यादा फायदा है। बेहतर यही है कि किसी नबी अलैहिस्सलाम किसी सहाबी या किसी वली के बाबरकत नाम पर नाम रखें।
हमें चाहिए कि बच्चों के लिए ऐसे नाम चुनें जो अंबिया,सहाबा और औलिया के नामों में से हों,जिससे नामों की बरकत का असर बच्चे पर पड़े,और बेमानी वाले नामों से बचना चाहिए और उलमा से मशविरा करके नाम रखना चाहिए। यही हमारे बच्चों के लिए एक बेहतरीन तोहफा है।

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