Allah dua mangne wale se khush hota hai दुआ के बारे में और जानें

कुरान मजीद सुरह बकरह में अल्लाह तआला फरमाता है, "दुआ कुबूल करता हूँ पुकारने वाले की जब मुझे पुकारे" (सुरह बकरह) और हदीस शरीफ में आता है के

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों दुआ करना दुआ के लिए कहना दुआ करवाना आज इस टॉपिक पर मेरी गुफ्तगू हमें चाहिए कि हम अल्लाह से दुआ करें और दुआ के लिए किसी नेक इंसान से भी कहना चाहिए कि वह हमारे लिए दुआ करे और माँ बाप पीर उस्ताद मुसलमान भाई से दुआ करवा लेना चाहिए।

अल्लाह से दुआ करना

कुरान मजीद सुरह बकरह में अल्लाह तआला फरमाता है  दुआ कुबूल करता हूँ पुकारने वाले की जब मुझे पुकारे  सुरह बकरह  और हदीस शरीफ में आता है कि अल्लाह से जो दुआ नहीं करता अल्लाह उससे नाराज़ होता है और जो अल्लाह से दुआ करता है अल्लाह उससे खुश होता है  लिहाज़ा हमें अल्लाह से दुआ करते रहना चाहिए अल्लाह की बारगाह में तौबा इस्तिग्फार करते रहना चाहिए अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल से दुनिया और आखिरत में आफियत की दुआ करनी चाहिए।

हदीस शरीफ में है कि जब बंदा अल्लाह के हुज़ूर दुआ के लिए हाथ उठाता है तो उन उठे हुए हाथों को खाली लौटाते हुए हया करता है  यह मेरे रब का करम है कि बंदा अल्लाह से दुआ करता है तो अल्लाह बंदे को खाली हाथ नहीं लौटाता बल्कि उसकी दुआ को कुबूल फरमाता है।

यहाँ एक वाकिया भी पढ़ें  एक औरत जिसकी आँखों की बीनाई चली गई थी किसी नेक और सालेह शख्स ने कहा कि मक्का शरीफ चले जाओ इधर उधर मारे मारे क्यों फिरते हो अल्लाह से रुजू करो उमरह करो ज़मज़म पियो और अल्लाह से दुआ करो कि वो इस औरत की आँखों की रौशनी लौटा दे  चुनांचे मक्का शरीफ पहुँच कर औरत ने काबा शरीफ में खूब दुआ की इल्तिजाएं की रो रोकर अल्लाह से दुआ की  फिर क्या था औरत बेहोश होकर फर्श पर गिर पड़ी और जब होश आया तो सामने अपनी आँखों से काबा शरीफ देखा उसकी आँखों की रौशनी वापस आ चुकी थी बस यह याद रखें कि जब भी दुआ करें दिल से दुआ करें।

किसी से दुआ करवाना

एक मुसलमान अपने दूसरे मुसलमान भाई के लिए दुआ करता है तो अल्लाह इस अमल को बहुत पसंद फरमाता है और इतना पसंद फरमाता है कि इसका ज़िक्र कुरान मजीद में रखा गया है कुरान करीम में है  जो लोग इसके बाद आए वह दुआ मांगते हैं ऐ हमारे रब हमें भी बख्श और हमारे उन भाइयों को भी जो ईमान के साथ पहले गुज़र चुके हैं  सुरह हश्र और हदीस शरीफ में है कि जब हज़रत उमर फारूक रज़ी अल्लाहु अन्हु उमरह के लिए जा रहे थे तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया  ऐ मेरे भाई हमें भी अपनी दुआओं में याद रखना हमें भूलना मत दोस्तों गौर करें कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से फरमा रहे हैं  हमें अपनी दुआओं में याद रखना तो बताओ क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हज़रत उमर की दुआ की ज़रूरत थी हरगिज़ नहीं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस अमल मुबारक से अपनी उम्मत को यह सबक दे रहे हैं कि अपने लिए किसी नेक शख्स से दुआ करवा लेना चाहिए।

नेक इंसान से दुआ के लिए कहना

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से फरमाया  ऐ उमर जब यमन में तुम्हारी मुलाक़ात ओवैस करनी से हो तो अपने लिए दुआ करा लेना इससे साबित होता है कि दूसरे से दुआ के लिए कहना जाइज़ है लिहाज़ा पीर अपने मुरिद के लिए दुआ करे उस्ताद अपने शागिर्द के लिए दुआ करे माँ बाप औलाद के लिए औलाद माँ बाप के लिए बहन भाई के लिए दुआ करे एक दूसरे के लिए दुआ करें और किसी को बद्दुआ न दें।

दुआ लें बद्दुआ से बचें

दोस्तों हमें दुआ लेनी चाहिए और बद्दुआ से बचना चाहिए यह भी याद रखें कि किसी मुसलमान के लिए बद्दुआ नहीं करनी चाहिए हमें चाहिए कि हम किसी मुसलमान भाई के लिए बद्दुआ न करें और ऐसा काम भी न करें कि सामने वाले के मुँह से बद्दुआ निकले किसी को इतना न सताओ इतना परेशान न करो किसी पर बोहतान न लगाओ किसी पर इल्ज़ाम न लगाओ कि तुम्हारे सताने या झूठा इल्ज़ाम लगाने से उसका दिल टूट जाए और उसके मुँह से तुम्हारे लिए बद्दुआ निकल जाए याद रखें कि बद्दुआ भी असर रखती है यहाँ एक वाकिया पढ़ें सहाबी ए रसूल हज़रत सईद इब्ने ज़ैद रज़ी अल्लाहु अन्हु पर एक औरत ने ज़मीन के क़ब्ज़े का इल्ज़ाम लगाया हज़रत सईद इब्ने ज़ैद जो सहाबी ए रसूल हैं उन्होंने अपनी सारी ज़िन्दगी सुन्नत ए रसूल पर अमल करते हुए गुज़ारी कुरान ओ सुन्नत पर अमल करते रहे शरीअत के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ारी जब उस औरत ने झूठा इल्ज़ाम लगाया तो उनका दिल टूट गया उन्होंने अपने हाथ अल्लाह की बारगाह में उठा दिए और अर्ज़ किया  या अल्लाह अगर यह औरत झूठी है तो यह आँख से अंधी हो जाए और इसकी क़ब्र इसके घर में ही बने लोगों ने देखा कि वह औरत आँखों से अंधी हो गई और घर में इधर उधर हाथ मारती फिरती थी एक वक़्त ऐसा आया कि उसके घर में एक गहरा कुआँ था वह उसी कुएँ में गिर गई और वहीं मर गई उसकी क़ब्र उसके घर में ही उस कुएँ में बन गई।

लिहाज़ा हमें दुआ लेनी चाहिए और बद्दुआ से बचना चाहिए अल्लाह हम सबको दुनिया और आख़िरत में ख़ैर व आफियत अता फरमाए।

दुआ के बारे  में सवाल जवाब

सवाल 1: क्या अपने लिए खुद दुआ करना बेहतर है या किसी और से भी दुआ करवाना चाहिए?

जवाब: दोनों ही अमल अफज़ल हैं इंसान को खुद अल्लाह से दुआ करनी चाहिए क्योंकि अल्लाह तआला फरमाता है कि मैं पुकारने वाले की दुआ सुनता हूँ जब वह मुझे पुकारता है साथ ही किसी नेक इंसान से अपने लिए दुआ करवाना भी सुन्नत से साबित है जैसे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से फरमाया था कि हमें भी अपनी दुआओं में याद रखना।

सवाल 2: क्या किसी दूसरे मुसलमान के लिए दुआ करना जायज़ है?

जवाब: जी हाँ यह बहुत नेक अमल है। कुरान मजीद में भी इसका ज़िक्र है कि ऐ हमारे रब हमें और हमारे उन भाइयों को बख्श दे जो ईमान के साथ हमसे पहले गुज़र चुके हैं। दूसरे के लिए दुआ करना रहमत और बरकत का सबब बनता है।

सवाल 3: क्या किसी मुसलमान को बद्दुआ देना ठीक है?

जवाब: नहीं किसी मुसलमान को बद्दुआ देना जायज़ नहीं है। हमें हमेशा दूसरों के लिए भलाई की दुआ करनी चाहिए। बद्दुआ दिल से निकल जाए तो उसका असर होता है इसलिए हमें ऐसी हरकत से बचना चाहिए जिससे किसी के दिल से बद्दुआ निकले।

सवाल 4: नेक लोगों या बुज़ुर्गों से दुआ करवाने का क्या हुक्म है?

जवाब: नेक लोगों से दुआ करवाना जाइज़ और मुस्तहब (पसंदीदा) अमल है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से दुआ करवाने को कहा था और हज़रत उमर को हिदायत दी थी कि ओवैस करनी से मिलो तो अपने लिए दुआ करवाना। इससे साबित होता है कि नेक इंसानों से दुआ करवाना सुन्नत और बरकत का ज़रिया है।

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