Eidul Fitr Aur Musalman मीठी ईद मुसलमान कैसे मनाएं

जानिए इस पोस्ट में उम्मते मुस्लिमा की ईद कैसी होनी चाहिए और मुसलमानों को ईद के दिन क्या क्या करना चाहिए

उम्मते मुस्लिमा की ईद कैसी हो और ईद का मकसद ए असली क्या होना चाहिए आज हम इस पोस्ट में इसी पर बात करेंगे पोस्ट पूरी पढ़ें और जानें के ईद का असली मकसद क्या है।

उम्मते मुस्लिमा की ईद कैसी हो

ईद मुसलमानों का आलमी त्योहार है पूरी दुनिया में जहां भी मुसलमान आबाद हैं वहां यह त्योहार बड़ी खुशी और मसर्रत के साथ मनाया जाता है हर कौम की खुशी और मसर्रत का एक आलमी दिन होता है कौमे मुस्लिम के लिए ईद का दिन इज़हार ए मसर्रत का आलमी दिन है इस दिन मुसलमान नए नए कपड़े पहनते हैं खुशबू लगाते हैं रिश्तेदारों से मुलाकात करते हैं ईदैन की नमाज पढ़ते हैं इस दिन बंदे अल्लाह के मेहमान होते हैं इसलिए ईद के चार दिनों में रोजा रखने से मना किया गया है अल्लाह तआला ईदेन की रातों और दिनों में अपनी खास रहमतें नाजिल फरमाता है और बहुत सारे गुनहगारों की मगफिरत फरमा देता है ईद की रात को लैलातुल जायज़ा कहा जाता है जिसके मानी इनाम की रात के हैं हज़रत इब्ने अब्बास रज़ी अल्लाहु अन्हो की रिवायत के मुताबिक नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि जब ईद की रात आती है तो उसका नाम आसमानों पर लैलतुल जायज़ा लिया जाता है और जब ईद की सुबह होती है तो अल्लाह तआला फरिश्तों को तमाम शहरों में भेजता है वह जमीन पर उतर कर तमाम गलियों और रास्तों पर खड़े हो जाते हैं और निदा देते हैं कि ऐ उम्मते मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस रब की बारगाह की तरफ चलो जो बहुत ज्यादा अता करने वाला है और बड़े से बड़े कुसूर माफ फरमाने वाला है हिजरत से पहले अहले मदीना ने दो दिन तय कर रखे थे जिनमें वह लहू व लाब करते थे जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ लाए तो आपने पूछा कि इन दोनों दिनों की क्या हकीकत है सहाबा ने अर्ज किया कि हम दोरे जाहिलियत में इन दिनों में खेलते कूदते थे हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह ने तुम्हें इनके बदले में दो बेहतर दिन अता किए हैं एक ईद उल फितर दूसरा ईद उल अज़हा मुसनद अहमद।

ईद मनाने का मसनून तरीका

सुन्नत यह है कि सुबह सवेरे गुस्ल करें नए या साफ पुराने कपड़े पहनें खुशबू लगाएं ईदगाह जाने की तैयारी करें नमाज ईद उल फितर से पहले सदका फितर अदा करें ईदगाह तकबीर पढ़ते हुए पैदल जाएं एक रास्ते से जाएं दूसरे से वापस आएं नमाज ईद उल फितर से पहले ताक अदद छोहारा खजूर या कोई भी मीठी चीज खाएं और नमाज ईद उल अज़हा के बाद कुर्बानी का गोश्त खाएं ईदगाह या मस्जिद में नमाज ईद पढ़ें अहबाब और अकरबा को ईद की मुबारकबाद दें गरीबों की मदद करें मरीजों की इयादत करें रफाही काम करें।

ईद का मकसद ए असली

हर इस्लामी त्योहार के चंद बुनियादी मकासिद हैं एक तो यह कि बंदगाने खुदा मसर्रत और शादमानी के खुशगवार लम्हात गुजारें दूसरे आपस में मेल ओ मोहब्बत और भाईचारे को फरोग़ दें इत्तेहाद और यकजहती का मुजाहिरा करें गरीबों की मदद करें खुद भी खाएं गरीबों को भी खिलाएं उनको अपनी खुशी में शरीक करें अपने गुनाहों से ताइब होकर अल्लाह की रज़ा के लिए कोशिश करें यही सारे मकासिद ईद के भी हैं हमें ईद मनाते वक्त इन मकासिद का लिहाज रखना चाहिए वरना सिर्फ रस्म ए ईद अदा होगी हकीकी ईद से हम मेहरूम रहेंगे।

गरीबों की मदद करें

ईद उल फितर हो या ईद उल अज़हा दोनों में गरीबों और मोहताजों का ख्याल करना उनको अपनी खुशियों में शरीक करना उनकी हाजत रवाई करना उनके बच्चों को ईदी वगैरह देकर खुश करना सीरत ए रसूल से साबित है चुनांचे ईद उल फितर में सदका नमाज ईद से पहले निकाला करें यूं ही कुर्बानी में गोश्त के तीन हिस्से करने का हुक्म दिया गया है जिसमें से एक हिस्सा गरीब लोगों के लिए रखा गया है ताकि सालभर जो नादार लोग लज़ीज़ खानों से महरूम रहते हैं वह ईद ए क़ुरबां में जी भर के उम्दा खाने से महज़ूज़ हो लें यही दोनों त्योहारों की रूह और गरज़ ओ गायत है आम मौकों पर भी गरीबों की इमदाद का सबक दिया गया है चुनांचे हदीस ए रसूल है एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है ना वह उस पर ज़ुल्म करता है ना उसे बे यारो मददगार छोड़ता है जो शख्स अपने भाई की ज़रूरत पूरी करता है अल्लाह तआला उसकी ज़रूरत पूरी करता है और जो अपने भाई की कोई दुनियावी मुश्किल हल करता है अल्लाह तआला उसकी कयामत की मुश्किलात में से कोई मुश्किल हल फरमाएगा और जो शख्स अपने मुसलमान भाई के उयूब छुपाता है अल्लाह तआला कयामत के दिन उसके उयूब को छुपाएगा बुखारी शरीफ।

रिश्तेदारों से मुलाकात करें

किताब ओ सुन्नत में सिलह रहमी पर बड़ी ताकीद आई है कुरान में इरशाद है यानी अल्लाह से डरो जिससे मांगते हो और रिश्तेदारी का ख्याल रखो हदीस शरीफ में है हज़रत अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जिस शख्स को यह बात पसंद है कि उसकी रोजी में कुशादगी और उमर में इज़ाफ़ा हो तो उसे चाहिए कि सिलह रहमी करे बुखारी शरीफ।

इदैन में रिश्तेदारों का खुसूसी ख्याल रखना चाहिए खासतौर से गरीब और नादार अकरबा का उनकी ज़रूरतें पूरी करें उनसे मिले जुले उनके बच्चों को ईदी दें और उनको तोहफे तहाइफ पेश करें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आदत मुबारका थी कि ईदगाह एक रास्ते से जाते और दूसरे से वापस आते इसकी हिकमत उलमा ए किराम ने यह बयान फरमाई है कि इसका मकसद यह होता था कि आने जाने में कई रिश्तेदारों से मुलाकात हो जाए और उनकी दिलजोई भी हो जाए अगर रिश्तेदार नाराज़ हों तो उनको मनाएं उनसे माज़रत तलब करें बगैर उनकी खुशी के हमारी खुशी मुकम्मल नहीं हो सकती।

बच्चों से इज़हार ए मोहब्बत करें

ईद के दिन बच्चों को ईदी दें उनसे प्यार और मोहब्बत का बर्ताव करें उनके लिए नए कपड़े सिलवाएं अपने बच्चे हों या दूसरों के खास तौर से गरीब बच्चों पर खुसूसी ध्यान दें उनको यह एहसास ना होने दें कि वह गरीब हैं अपनी औलाद की तरह उन पर शफकत और मोहब्बत के फूल बरसाएं मशहूर रिवायत है कि ईद के दिन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ईदगाह के रास्ते में एक यतीम बच्चे को रोते हुए देखा तो आपने उस पर इस कदर शफकत की कि दूसरे बच्चों को रश्क आने लगा यूं ही हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज रज़ी अल्लाहु अन्हो की सीरत में है कि ईदगाह के रास्ते में एक फटे पुराने कपड़े वाला बच्चा मिला तो आपने अपना नया कपड़ा उसे पहना कर उसे खुश कर दिया इन वाकियात से हमें सबक हासिल करना चाहिए।

आपस में इत्तेहाद और यकजहती का इज़हार करें

ईद हो या बकरा ईद दोनों में ईदगाह में यकजा होकर मुसलमानों को ईद की नमाज अदा करने का हुक्म दिया गया है इसका मकसद असली यह है कि मुसलमान साल भर में दो बार एकजा होकर एक दूसरे से मुलाकात करें उनसे मुसाफा और मुआनका करें एक दूसरे को मुबारकबाद पेश करें ताकि उनके अंदर जज़्बा ए मोहब्बत और शौक ए इत्तेहाद बेदार हो ईद के दिन जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक दूसरे से मुलाकात करते तो एक दूसरे से कहते अल्लाह तआला हमारे और आपके आमाल कुबूल फरमाए फत हुल बारी  इस हदीस शरीफ से मालूम हुआ कि ईद के दिन एक दूसरे के लिए दुआ करना चाहिए और मुबारकबाद पेश करना चाहिए ताकि आपसी मोहब्बत और इत्तेहाद पैदा हो यूं ही मुसाफा और मुआनका करना भी मसनून है खासतौर से खुशी के वक्त नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से खुशी और मसर्रत के मौके पर मुसाफा और मुआनका साबित है इससे मुतालिक अहादीस भी मौजूद हैं लिहाज़ा इदैन के मौके पर हमें इस सुन्नत को अपनाकर आपसी मेल ओ मोहब्बत को फरोग़ देना चाहिए।

ईद की रात में ज़िक्र ए इलाही करें

अमूमन ईद की रातों में शॉपिंग वगैरह की जाती है पूरी रात ईद की तैयारी में कट जाती है हालांकि इस रात में हमें ज्यादा से ज्यादा इबादत ए इलाही और ज़िक्र ओ अज़कार करना चाहिए चुनांचे हज़रत अबू उमामा रज़ी अल्लाहु अन्हो की रिवायत है कि जो शख्स ईद की रात में सवाब की नियत से जाग कर इबादत करे उसका दिल उस दिन मुर्दा नहीं होगा जिस दिन लोगों के दिल मुर्दा होंगे हज़रत मुजाहिद रज़ी अल्लाहु अन्हो का इरशाद है कि फज़ीलत के एतबार से ईद उल फितर की रात रमजान के आखिरी अशरा की रातों की तरह है इस रात को लैलातुल जायज़ा यानी इनाम की रात भी कहा जाता है।

बेजा लहू लाब से इजतनाब करें

मज़हब ए इस्लाम में बा कदरे ज़रूरत तफरीह खातिर और जिस्मानी सेहत और कुव्वत के लिए खेलकूद की इजाज़त है बशर्ते कि इससे तज़ीए वक्त शरई काम की पामाली और बेशर्मी और बेहयाई ना हो मगर बेजा लहू लाब मना है मसलन ईद के दिन बहुत सारे लोग फिल्में देखते हैं नौजवान बच्चे वन व्हीलिंग करते हैं खतरनाक हद तक गाड़ी चलाते हैं नाच गाने में पूरा दिन गुजार देते हैं जाहिर है यह सब बातें शरई तौर पर नाजाइज़ हैं जिस दिन हमें रब तआला की रज़ा जोई की कोशिश करनी चाहिए उस दिन यह सब तमाशा करके अल्लाह का गज़ब मोल लेते हैं।

गुनाहों से तौबा करें

मअसियत के साथ अल्लाह कभी भी हमसे राज़ी नहीं होगा इसलिए ईद के दिन हमें अपनी खताओं से तौबा और गुनाहों से माफी मांगनी चाहिए ताकि हमारा रब हमसे राज़ी हो जाए वरना महबूब की रज़ा और खुशी के बगैर हम कैसे खुश रह सकते हैं अल्लाह तआला हमें अपनी रज़ा अता फरमाए अल्लाह की रज़ा सबसे बड़ी नेमत है मौला तआला हमें इन बातों पर अमल की तौफीक बख्शे और शरई तरीके पर ईद मनाने का मौका नसीब फरमाए आमीन।

ईद के बारे में सवाल जवाब

सवाल 1: ईद मनाने का असली मकसद क्या है?

जवाब: ईद का असली मकसद सिर्फ नए कपड़े पहनना या खाना पीना नहीं बल्कि अल्लाह की रज़ा हासिल करना है ईद हमें शुक्र अदा करने मेल मोहब्बत और भाईचारे को बढ़ाने गरीबों की मदद करने और गुनाहों से तौबा करने का पैग़ाम देती है यही हकीकी ईद है जब इंसान अल्लाह की खुशी में खुश होता है।

सवाल 2: ईद की रात को क्या करना चाहिए?

जवाब: ईद की रात को लैलातुल जायज़ा यानी इनाम की रात कहा गया है इस रात में अल्लाह तआला अपने बंदों को खूब अता फरमाता है इसलिए इस रात को इबादत तिलावत ज़िक्र और दुआ में गुज़ारना चाहिए न कि फिजूल कामों या लहू लाब में।

सवाल 3: ईद के दिन गरीबों और जरूरतमंदों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए?

जवाब: ईद का हुक्म ही यही है कि हम अपनी खुशी में गरीबों को शरीक करें सदका ए फितर नमाज से पहले अदा करें बच्चों को ईदी दें मोहताजों की मदद करें और किसी को भी अपनी खुशी से महरूम न रखें।

सवाल 4: ईद के दिन रिश्तेदारों और दोस्तों से मुलाकात का क्या फायदा है?

जवाब: ईद आपसी मोहब्बत और इत्तेहाद का दिन है रिश्तेदारों से मुलाकात करना, उनसे माज़रत करना, तोहफे देना और उनके बच्चों को खुश करना सुन्नत है इससे रंजिशें खत्म होती हैं और दिलों में प्यार और यकजहती पैदा होती है यही ईद की रूह है।

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