Tahneek aur gutti dene ki hikmat और बच्चे पर पड़ने वाले इसके असरात

ग़ुट्टी देना या तहनीक का मतलब यह है कि छोहारा चबा कर बच्चे के तालू में चिपका दिया जाए और यह मुस्तहब है

बच्चे को ग़ुट्टी देना---एक मुस्तहब सुन्नत अमल है दोस्तों आज की इस गुफ़्तगू में हम नवजात बच्चे को गुट्ठी देना यानी तहनीक करने पर बात करेंगे और जानेंगे के जो नवजात बच्चे को जो गुट्टी दी जाती है वह क्या है और उसकी हिकमत क्या है और उससे बच्चे पर क्या असरात पड़ते हैं। बहुत से लोग जानते हैं कि बच्चा पैदा होते ही उसे अज़ान सुनाई जाती है, लेकिन कम लोग इस बात से वाक़िफ़ होते हैं कि इस्लाम ने उसके बाद भी एक बहुत प्यारा अमल बताया है —ग़ुट्टी देना।

ग़ुट्टी देना या तहनीक कराने का मतलब क्या है?

ग़ुट्टी देना या तहनीक का मतलब यह है कि छोहारा चबा कर बच्चे के तालू में चिपका दिया जाए और यह मुस्तहब है कि बच्चा पैदा हो तो उलमा व मशाइख़ व सालेहीन में से किसी की ख़िदमत में पेश किया जाए और वो खजूर या कोई मीठी चीज़ चबा कर उस के मुँह में डाल दें यही गुट्टी देना कहलाता है। 

गुट्टी या तहनीक करने की हिकमत 

तहनीक की हिक्मत- इस में हिक्मत यह है कि इस में ईमान की नेक फ़ाल है क्योंकि खजूर उस दरख़्त का फल है जिस को सरवरे कौनैन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मोमिन और उस की हलावत से तश्बीह दी है। और खुसूसन जब नेकू कार बुज़ुर्ग या उलमा व मशाइख़ व सालेहीन के चबाए हुए छुहारे नवजात बच्चे के मुंह में जायेंगे और उनका लुआब बच्चे के पेट में जायेगा तो होगा यह के बुजुर्गों के ईमान और नेकियों का असर बच्चे पर पड़ेगा और पहली ग़िज़ा का बच्चे पर बड़ा असर पड़ता है। यह अमल हदीस पाक से साबित है

गुट्टी का सबूत हदीस से 

चुनांचे मुस्लिम शरीफ़ की हदीस पाक है " عَنْ عَائِشَةَ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يُؤْتَى بِالصِّبْيَانِ فَيُبَرِّكُ عَلَيْهِمْ وَيُحَنِّكُهُمْ  

तर्जुमा: हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के पास बच्चे लाए जाते थे तो आप उन्हें दुआए बरकत देते और उन की तहनीक करते थे। (यानी कोई खजूर वग़ैरह अपने मुँह में ले कर उसे नरम कर कर के बच्चे के मुँह में डालते थे।) (सहीह मुस्लिम, किताबुल आदब, बाब इस्तिहबाबे तहनीके मौलूद, जिल्द 3, सफ़्हा 1691, दार इह्यात तुरास अरबी, बैरूत) दूसरी हदीस पाक बुख़ारी व मुस्लिम की है " عَنْ أَسْمَاءَ بِنْتِ أَبِي بَكْرٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا أَنَّهَا حَمَلَتْ بِعَبْدِ اللَّهِ بْنِ الزُّبَيْرِ بِمَكَّةَ قَالَتْ فَخَرَجْتُ وَأَنَا مُتِمٌّ فَأَتَيْتُ الْمَدِينَةَ فَنَزَلْتُ قُبَاءَ فَوَلَدْتُ بِقُبَاءَ ثُمَّ أَتَيْتُ بِهِ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَوَضَعْتُهُ فِي حَجْرِهِ ثُمَّ دَعَا بِتَمْرَةٍ فَمَضَغَهَا ثُمَّ تَفَلَ فِي فِيهِ فَكَانَ أَوَّلَ شَيْءٍ دَخَلَ جَوْفَهُ رِيقُ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ثُمَّ حَنَّكَهُ بِالتَّمْرَةِ ثُمَّ دَعَا لَهُ وَبَرَّكَ عَلَيْهِ وَكَانَ أَوَّلَ مَوْلُودٍ وُلِدَ فِي الْإِسْلَامِ فَفَرِحُوا بِهِ فَرَحًا شَدِيدًا لِأَنَّهُمْ قِيلَ لَهُمْ إِنَّ الْيَهُودَ قَدْ سَحَرَتْكُمْ فَلَا يُولَدُ لَكُمْ 

तर्जुमा: रिवायत है हज़रत अस्मा बिन्ते अबी बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से कि वो मक्का मुअज़्ज़मा में अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर रज़ियल्लाहु तआला अन्ह की हामिला हुईं। फ़रमाती हैं कि क़ुबा में मेरे हाँ विलादत हुई। फिर मैं उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम की ख़िदमत में लाई और हुज़ूर की गोद में रखा। आप ने खजूर को मंगाया उसे चबाया, फिर उन के मुँह में लुआब डाला, फिर उन की यहनीक की, फिर उन के लिए बरकत की दुआ माँगी। यह इस्लाम में पहला बच्चा था जो पैदा हुआ। सहाबा किराम इस पर बहुत ख़ुश हुए क्योंकि कहा जाता था कि यहूदियों ने तुम पर जादू कर दिया है कि तुम्हारी औलाद नहीं होती। (सहीह बुख़ारी, किताबुल अक़ीक़ा, बाब तस्मीयतुल मौलूद ग़दा युलद लिमन लम युअक्क अन्हु व तहनीकिह, जिल्द 7, सफ़्हा 84, दार तौकुन नजात)

सहाबा का तरीक़ा

सहाबा किराम रिज़वानुल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन का तरीक़ा यह था कि जब कोई बच्चा पैदा होता तो उसे ख़िदमत ए अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में लाते। हुज़ूर रहमत दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खजूर अपने दहन मुबारक में चबा कर बच्चे के मुँह में डाल देते, जिसे तहनीक कहते हैं।

इसी तरह दहन मुबारक की बरकतें बच्चे को हासिल हो जातीं और सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रहमत बार दुआओं से माला माल हो जाते। जैसा कि अहादीस मुबारका से साबित है।

हदीस:- عَنْ عَائِشَةَ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُؤْتَى بِالصِّبْيَانِ فَيُبَرِّكْ عَلَيْهِمْ وَيُحَنِّكُهُمْ

(सहीह मुस्लिम शरीफ़, ज 6, सफ़्हा 503, मअ हवाला कामयाब माँ)

हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास बच्चे लाए जाते थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन को बरकत की दुआ देते और ग़ुट्टी देते। हदीस: - عَنْ أَبِي مُوسَى وُلِدَ لِي غُلَامٌ فَأَتَيْتُ بِهِ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَسَمَّاهُ إِبْرَاهِيمَ وَحَنَّكَهُ بِتَمْرَةٍ وَدَعَا لَهُ بِالْبَرَكَةِ وَرَدَّهُ وَكَانَ أَبُو مُوسَى يَقُولُ وُلِدَ لِي غُلَامٌ فَأَتَيْتُ بِهِ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَسَمَّاهُ إِبْرَاهِيمَ فَحَنَّكَهُ بِتَمْرَةٍ وَدَعَا لَهُ بِالْبَرَكَةِ وَدَفَعَهُ إِلَيَّ وَكَانَ أَكْبَرَ وَلَدِ أَبِي مُوسَى  

तर्जुमा: हज़रत अबू मूसा रज़ियल्लाहु तआला अन्ह से मरवी है कि मेरे यहाँ एक बच्चा पैदा हुआ, उस को नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में लाया। हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने उस का नाम इब्राहीम रखा और छोहारा चबा कर उस के तालू में चिपकाया। और उस के लिए बरकत की दुआ की। और उस को मुझे दिया और यह अबू मूसा के सब से बड़े बेटे थे। (सहीह बुख़ारी, किताबुल अदब)

हुज़ूर के लुआब ए दहन की बरकत

यह अम्र मुसल्लम है कि सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लुआब ए दहन मुबारक की बरकत से हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु बे शुमार फज़ाइल व कमालात से मुस्तफ़ीज़ हुए। क़ुरआन करीम के क़ारी और जलीलुल क़द्र सहाबी हुए। ऐसे ही अब्दुल्लाह इब्ने अबी तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत बड़े आलिम और फ़ाज़िल थे और सरूरे काइनात सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लुआब ए दहन शरीफ़ की बरकत से हर चीज़ में पेश पेश थे। (तफ़हीमुल बुख़ारी, शरह सहीहुल बुख़ारी, जिल्द 8 सफ़्हा 551) 

इख़ततामी क़लाम

दोस्तों हम ने आज की इस गुफ़्तगू में जाना कि ग़ुट्टी देना—जिसे तहनीक कहा जाता है —कोई आम अमल नहीं, बल्के ये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत है। सहाबा किराम रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम की ज़िंदगी में भी इसका वाज़ेह नमूना मिलता है।

ये अमल सिर्फ़ एक मीठी चीज़ बच्चे के मुँह में डालने तक महदूद नहीं, बल्के इसमें बरकतें, रुहानी और नेक असरात छुपे हुए हैं। तहनीक के ज़रिए बच्चे को पहली बार किसी नेक और सालेह शख़्स का लुआब और मिठास मिलती है — जो उसकी सारी ज़िंदगी पर असर अंदाज़ हो सकती है।

आज की ज़रूरत ये है कि हम इस सुन्नत को रस्म ना समझें,बल्के पूरी समझ और शऊर के साथ इस पर अमल करें। अगर मुमकिन हो तो किसी सालेह, दीनदार, इल्म और अमल वाले बुज़ुर्ग या आलिम से तहनीक करवाई जाए  ताकि बच्चे की पहली ग़िज़ा दुआओं, बरकतों और पाकीज़ा असरात से लबरेज़ हो।

अल्लाह तआला हमें और हमारी आने वाली नस्लों को सुन्नतों पर अमल करने की तौफ़ीक़ दे और उन्हें सालेह, नेक और कामयाब बनाए। आमीन या रब्बल आलमीन।

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