Hajj umar mein kitni baar farz hai जानिये हदीस मुबारक से

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया। लौ क़ुल्तु नअम लव वजिबत तर्जुमा हदीस मुबारक अगर मैं हाँ कर दूँ तो ” हज्ज “ हर साल फ़र्ज़ हो जाता“



हज्ज बैतुल्लाह शरीफ: हमारे हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान पाक से जो निकल जाए वही शरीअत बन जाती है और आप मालिक व मुख़्तार और शारिअ हें

एक हदीस मुबारक में है कि एक बार हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने ख़ुत्बा में
इरशाद फ़रमाया।
तर्जुमा हदीस मुबारक, ऐ लोगो तुम पर हज्ज फ़र्ज़ किया गया है पस हज्ज करो।
तो एक सहाबी उठे और अर्ज़ किया।

क्या हज हर साल फ़र्ज़ है 

या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या हर साल हज्ज फ़र्ज़ है?
हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस सवाल पर ख़ामोश रहे। उन सहाबी ने फिर यही सवाल किया कि हुज़ूर क्या हर साल हज्ज फ़र्ज़ है? हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फिर ख़ामोश रहे उन्होंने फिर वही सवाल दुहराया। तो हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया।
लौ क़ुल्तु नअम लव वजिबत
तर्जुमा हदीस मुबारक अगर मैं हाँ कर दूँ तो ” हज्ज “ हर साल फ़र्ज़ हो जाता“
( मिशकात शरीफ )
यानी हज्ज उम्र में एक ही मर्तबा फ़र्ज़ है और तुम बार बार मुझसे यह सवाल क्यों कर रहे हो और मेरी ज़बान से हाँ क्यों कहलवा रहे हो। अगर मेरी ज़बान से हाँ निकल गई तो हज्ज हर साल फ़र्ज़ हो जाएगा। मगर मैंने हाँ नहीं फ़रमाया। लिहाज़ा हज्ज सिर्फ़ एक ही मर्तबा फ़र्ज़ है।
इस हदीस पाक से यह पता चला कि हमारे प्यारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि की ज़बान अक़्दस से जो बात निकल जाती है वह ही शरीअत बन जाती है और आप मालिक व मुख़्तार और शारिअ हैं।

हदीस की तीन किस्में 

चुनांचे शरीअत में हदीस पाक की तीन क़िस्में की गई हैं।
1 - हदीस क़ौली
2- हदीस फ़ेली
3- हदीस तक़रीरी
1 - हदीस क़ौली
यानी हुज़ूर अकरम नबी मुहतरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद पाक
2- हदीस फ़ेली
यानी हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अमल यानी अमलन जो भी हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम करें।
3 - हदीस तक़रीरी
यानी हुज़ूर आक़ाए दो आलम नबी मुहतरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने कुछ कहा गया या किया गया मगर हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस पर ख़ामोशी इख़्तियार फ़रमाई और उस पर कोई तब्सरा नहीं फ़रमाया। इस से यह बात भी वाज़ेह हो गई कि सहाबा किराम रिज़वानुल्लाही अजमईन यह बात ईमान का हिस्सा और अक़ीदा रखते थे कि हुज़ूर सैय्यद दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो फ़रमादें, जो अमल इख़्तियार फ़रमाएँ और जो आप के सामने क़ौल व फ़ेल हो और आप उस पर ख़ामोशी इख़्तियार फ़रमाएँ  । वही इस्लाम,वही दीन और वही शरीअत है। 
क़ुरआन करीम में है कि
क़ुरआन तर्जुमा कि वह हुज़ूर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कोई बात अपनी ख़्वाहिश से नहीं करते वह तो नहीं मगर वही जो उन्हें की जाती है।
गोया सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हर क़ौल वही इलाही से होता है और यही शरीअत है। 

हज किस पर फ़र्ज़ है 

हज्ज मुबारक के सिलसिले में बात हो रही थी क़ुरआन करीम में  । है कि
क़ुरआनी तर्जुमा और अल्लाह के लिए लोगों पर उस घर का हज्ज करना है। जो उस तक चल सके और जो मुनकिर हो तो  अल्लाह सारे जहाँ से बे परवा है।
इस हुक्म से अल्लाह तआला ने ताक़त रखने वालों पर अपने घर यानी काबा शरीफ़ का हज्ज ज़रूरी क़रार दिया है। इस्तिताअत और ताक़त से मतलब यह है कि जिन लोगों के पास इतना ख़र्च हो जो उन के लिए हज्ज पर जाने और फिर वहाँ से आने तक के लिए पूरा हो सके और उन की ग़ैर हाज़िरी में उन के अहल व ऐआल के नान व नफ़्क़ा के लिए भी पूरा हो सके और रास्ते में आसानी व अमन भी उन्हें मयस्सर हो तो ऐसे लोगों पर हज्ज फ़र्ज़ हो जाता है।
क़ुरआन पाक के मज़कूरा इरशाद के पेश नज़र हज्ज की अहमियत व फ़र्ज़ियत के सिलसिले में सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशाद मुबारक को भी हर मुसलमान को पेश नज़र रखना चाहिए  । मिशकात शरीफ़ के हवाले से यह हदीस पाक है।

हज की अहमियत और न करने पर वईद

तर्जुमा हदीस मुबारक ” जिस शख़्स को किसी ज़ाहिरी हाजत की रुकावट न हो ( यानी उसे ज़ाद ए राह और रास्ते की सवारी) और कोई जाबिर हाकिम भी उसे रोकने वाला न हो और कोई ऐसा मर्ज़ भी उसे लाहिक़ न हो जिस के बाइस वह सफ़र नहीं कर सकता  । फिर भी वह हज्ज न करे और मर जाए तो अगर वह चाहिए तो यहूदी हो कर मर जाए और अगर चाहिए तो ईसाई हो कर मर जाए।
इस्तिताअत के बावजूद हज्ज पर हाज़िर न होना किस क़दर अल्लाह के हाँ ना पसंदीदा अमल है कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि हमें उस की परवाह नहीं चाहे यहूदी हो कर मरे या ईसाई हो कर मरे।
शादियों, कारोबार मुलाज़मतों के उज़्र बहाने बना कर फ़र्ज़ हज्ज न करना अफ़सोस नाक सोच है फिर एक बात यह भी याद रखने की है कि हज्ज हो तो जवानी में और फिर वहाँ की ज़ियारतों, इबादात, सफ़ा मरवा , तवाफ़ मिना और अरफ़ात में हाज़िरी बड़ी मेहनत और मशक्क़त का काम है। क्योंकि हज्ज मजमूआ है। माली और बदनी इबादत का। और फिर मुसलमानों के हज्ज किलिए बैतुल्लाह शरीफ़ को हुज़ूर सरूर काएनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ही खोला और न यह तो अल्लाह का घर बुत खाना बन चुका था। 

ज़ियारत मदीना शरीफ 

अब अगर हम हज्ज पर हाज़िर हों और जिस के सद्क़े हज्ज मिला उस की ज़ियारत को न जाएँ तो हज्ज किया हुआ इसी लिए हुज़ूर नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद पाक है कि।
मन हज्जा व लम यज़ुरनी फ़क़द जफ़ानी
तर्जुमा हदीस मुबारक ” जिस ने हज्ज किया और मेरी ज़ियारत न की उस ने मुझ पर ज़ुल्म किया  । यहाँ हज्ज के सिलसिले में उलमा मुफ़स्सिरीन ने बड़ी शानदार बहस और ईमान अफ़रोज़ बातें की हैं। क़ुरआन में है कि मैं ज़मीन में अपना एक ख़लीफ़ा बनाने वाला हूँ तो फ़रिश्तों से यह बात निकल गई थी ( इलाही क्या तू उस को ख़लीफ़ा बनाएगा जो ज़मीन में फ़साद करेगा और खून बहाएगा ) इस के जवाब में अल्लाह तआला ने फ़रमाया। ( जो मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते) यह सुन कर फ़रिश्तों पर ख़ौफ़ तारी हुआ कि शायद हमारा जवाब बारगाह एज़दी में ख़िलाफ़ ए अदब था। वह इस ख़ौफ़ से अर्श अज़ीम के इर्द गिर्द तवाफ़ करने लगे। अल्लाह तआला को उन की यह अज्ज़ी पसंद आई और उन्हें रहम व करम से देख कर फ़रमाया अच्छा दुनिया में ज़मीन पर भी एक ऐसा ही मकान बनाओ। जिस के इर्द गिर्द मेरे बन्दे तवाफ़ कर के मुझ से अपने गुनाहों की माफ़ी माँगा करें और मैं उन्हें माफ़ कर दिया करूँ।
यह अल्लाह का घर बड़ा ही क़दीम है हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से ले कर आज तक मुकर्रम व मुअज़्ज़म है कई बार इस की तामीर हुई । मुशरिकीन इस में बुत परस्ती करते। यहाँ तक कि हुज़ूर नबी आख़िरुज़्ज़मान अलैहिस्सलाम का ज़माना आया तो आप ने इस को बुतों से पाक किया। इस में बुत रखने से मना किया और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ बैतुल्लाह शरीफ़ को इबादत के लिए साफ़ सुथरा बना कर रखा। और यही दुआ थी जो हज़रत इब्राहीम और इस्माईल अलैहिमस्सलाम ने बैतुल्लाह शरीफ़ की तामीर से फ़ारिग़ हो कर की थी।
सूरह बक़रह आयत 129 , तर्जुमह क़ुरआनी ” ऐ हमारे रब और भेज उन में एक रसूल उन्हीं में से कि उन पर तेरी आयतें , तिलावत फ़रमाए और उन्हें तेरी किताब और पुख़्ता इल्म सिखाए और उन्हें ख़ूब सुथरा फ़रमा दे। बे शक तू ही है ग़ालिब हिकमत वाला।
तफ़सीर जमल और ख़ाज़िन में है कि सैय्यद दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मैं दुआए इब्राहीम अलैहिस्सलाम हूँ, बशारत यहया अलैहिस्सलाम हूँ। अपनी वालिदा की उस ख़्वाब की ताबीर हूँ जो उन्होंने मेरी विलादत के वक़्त देखी और उन के लिए एक नूर साते ज़ाहिर हुआ जिस से मुल्क शाम के ऐवान व महल उन के लिए रौशन हो गए । इस हदीस में दुआए इब्राहीम से यही दुआ मुराद है। जो इस आयत में मज़कूर है। अल्लाह तआला ने यह दुआ क़बूल फ़रमाई और आख़िर ज़माना में हुज़ूर सैय्यदुल अंबिया मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  को मबऊस फ़रमाया।

हज्ज और क़ुरबानी

क़ुरआन करीम में है कि। (इब्राहीम अलैहिस्सलाम) ने। कहा मेरे बेटे मैंने ख़्वाब देखा है तुझे ज़बह करता हूँ। अब तू देख तेरी क्या राय है। कहा ऐ मेरे बाप कीजिए जिस बात का आप को हुक्म हुआ है। ख़ुदा ने चाहा तो क़रीब है कि आप मुझे साबिर पाएँगे। तो जब इन दोनों ने हमारे हुक्म पर गर्दन रखी और बाप ने बेटे को माथे के बल लिटाया उस वक़्त का हाल न पूछ और हम ने उसे निदा फ़रमाई कि ऐ इब्राहीम अलैहिस्सलाम बेशक तू ने ख़्वाब सच कर दिखाया। हम ऐसा ही सिला देते हैं नेकों को। बेशक यह रौशन जांच थी और हम ने एक बड़ा ज़बीहा  इस के फ़िदया में दे कर इसे बचा लिया।
क़ुरआन करीम के इस साफ़ साफ़ बयान से मालूम होता है कि जिस तरह हज्ज के दूसरे अरकान मसलन सफ़ा मरवा हज़रत हाजिरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की सुन्नत है, आबे ज़म ज़म हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की एड़ियों की रगड़ का मोजिज़ा है , तवाफ़ काबा, मिना और अरफ़ात की हाज़िरी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है अल्लाह तआला ने अपनी इन बुज़ुर्ग हस्तियों की हर अदा को इबादत का दर्जा दिया और इस का नाम हज्ज हो गया। कोई अदा फ़र्ज़ कोई वाजिब कोई सुन्नत। हज़रत हाजिरा तो अल्लाह के नबी अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के लिए पानी की तलाश में सफ़ा मरवा पर जा रही हैं जब इस्माईल अलैहिस्सलाम पत्थरों की ओट में होते हैं तो भागती हैं कि इस हिस्से को जल्द पार करूँ ता कि इस्माईल अलैहिस्सलाम . नज़र में रहें अल्लाह तआला ने इस अदा को पसंद किया और ऐसा पसंद किया कि क़ियामत तक यह सुन्नत हर मुसलमान, मर्द व ज़न, बूढ़ा, जवान अदा करते रहेंगे। जहाँ आहिस्ता चले वहाँ आहिस्ता हो चलें , जहाँ दौड़े वहाँ धोड़े तवाफ़ में। मक्के वालों ने मशहूर कर दिया। मदीने जा कर यह लोग बीमार हो गए हैं हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने पहलवानों की तरह चलना शुरू कर दिया तो अब तवाफ़ में ऐसे चलना क़ियामत तक ज़रूरी कर दिया। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने शैतान को कंकरियाँ मार कर भगाया तो अब क़ियामत तक कंकरियाँ मारना हज्ज का हिस्सा ठहरा।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म पर जो ख़्वाब की शक्ल में था पूरा कर दिखाया तो अल्लाह तआला ने जन्नत से क़ुरबानी का जानवर फ़रिश्तों के ज़रिए इब्राहीम अलैहिस्सलाम की छुरी के नीचे रखा जो ज़बह हो गया और इब्राहीम अलैहिस्सलाम जब अपनी आँखों से पट्टी उतारते हैं तो देखा दुनबा ज़बह और इस्माईल अलैहिस्सलाम सामने ख़ुश खड़े हैं।
अब क़ियामत तक हर साहिब इस्तिताअत पर क़ुरबानी करना ज़रूरी हो गया। अल्लाह तआला ने अपने बर्गज़ीदा बन्दों की अदाओं को क़ुरआन बना दिया जो हुज़ूर नबी आख़िरुज़्ज़मान सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तुफ़ैल क़ियामत तक इबादतें बन गईं। क़ुरआन पाक में आया है कि फ़सल्लि लिरब्बिका वन्हर, तर्जुमा क़ुरआनी, तो तुम अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुरबानी करो।
मुशरिकीन मक्का बुतों के लिए नमाज़ पढ़ते और उन्हीं बुतों के लिए क़ुरबानी करते थे रिवायात में है कि इस आयत में नमाज़ से मुराद नमाज़ ईदुल अज़्हा और फिर क़ुरबानी करो। चुनांचे इस इरशाद ख़ुदावंदी से कुफ़्र व शिर्क की जड़ का ख़ातमा कर दिया गया। इसी तरह मिशकात शरीफ़ में हदीस है कि सहाबा कीराम ने हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया। या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह क़ुरबानी क्या चीज़ है? तो आक़ाए दो जहाँ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया। सुन्नतु अबीकुम इब्राहीम अलैहिस्सलाम
तर्जुमा हदीस ” तुम्हारे बाप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है।
मिशकात शरीफ़ के हवाले से यह हदीस पाक भी है कि हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि क़ुरबानी के दिन अल्लाह की राह में जानवर का खून बहाने से बढ़ कर अल्लाह के नज़दीक और कोई अमल ज़्यादा महबूब नहीं और फ़रमाया कि यह क़ुरबानी अल्लाह के हुज़ूर क़ियामत के दिन अपने सींगों, बालों और खुरों के साथ आएगी और क़ुरबानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह के नज़दीक मर्तबा मक़बूलियत में पहुँच जाता है।
इब्न माजा शरीफ़ की एक हदीस रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुताबिक़ हज़रत सैय्यदना अबू हुरैरा से रिवायत है कि हुज़ूर अकरम  का इरशाद पाक है कि जिस शख़्स में माली वूसअत हो और वह क़ुरबानी न करे तो वह हमारी ईदगाह के क़रीब न आए।
ख़ुदावंद करीम से दुआ है कि मुसलमानों को हज्ज और क़ुरबानी की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए और जो मुसलमान हज्ज और क़ुरबानी कर रहे हैं उन की तरफ़ से क़बूल फ़रमा कर उम्मत मुहम्मदिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नज़र करम फ़रमाए। आमीन।

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