आदमी की लालच और हिर्स इंसान चाहे जितना भी बूढा हो जाए लेकिन उसकी उम्मीदें और खस्लतें जवान रहती हैं और यह दो बीमारियाँ ऐसी हैं जो इन्सान को आखिरत की फ़िक्र से आदमी के दिल को गाफिल कर देती हैं इन्सान को आखिरत की तय्यारी करना चाहिए और अपने गुनाहों से तौबा करना चाहिए लेकिन इंसान के दिल में लम्बी उम्मीदें घर कर चुकी होती हैं और आखिरत की फ़िक्र से गाफिल हो जाता है अब हमें फैसला करना है के उम्मीदों के धोके में रहेंगे या आखिरत की तय्यारी करना है।
दुनिया की मुहब्बत और लम्बी उम्मीदें
हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि मैंने आक़ा करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फ़रमाते सुना, "बूढ़े आदमी का दिल दो चीज़ों में जवान होता है। एक दुनिया की मुहब्बत और दूसरा लम्बी उम्मीदें"। (मुस्लिम, बुख़ारी किताब अर-रक़ाक़)हज़रत अनस से रिवायत है कि आक़ा व मौला सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया,"आदमी बूढ़ा हो जाता है मगर उसकी दो ख़सलतें जवान होती जाती हैं, एक माल की हिर्स और दूसरा तवील उम्र की हिर्स"। (मुस्लिम, बुख़ारी किताब अर-रक़ाक़)
इंसान के दो ऐब
इन अहादीस मुबारक में बूढ़े इंसान के दो ऐब बयान हुए जिन की वजह से वह आख़िरत से ग़ाफ़िल रहता है। अगरचे यह ऐब जवानों में भी पाए जाते हैं लेकिन बढ़ापे का ज़िक्र इस लिए फ़रमाया गया कि बढ़ापे की वजह से इंसान की सारी क़ुव्वतें कमज़ोर हो जाती हैं इस लिए उसे आख़िरत की फ़िक्र होनी चाहिए। मगर दुनिया की मुहब्बत या माल की हिर्स और दुनिया में ज़्यादा अर्सा रहने की हिर्स मज़ीद जवान होती रहती हैं।शैतान की झूठी तसल्ली
दुनिया की हवस या माल की हिर्स बंदे को आख़िरत की याद भुलाए रखती है और लम्बी उम्मीदें उसे गुनाहों से तौबा नहीं करने देतीं। जब आख़िरत की कोई बात उसे अच्छी लगती है और दिल नेकी की तरफ़ माइल होना चाहता है तो शैतान उसे यही झूठी तसल्ली देता है कि अभी बहुत उम्र पड़ी है, फिर तौबा कर लेना।कुरान हदीस की रौशनी में इलाज
इन बीमारियों का इलाज यही है कि क़ुरआन व हदीस की रोज़ाना तिलावत की जाए और यह यक़ीन पुख़्ता किया जाए कि यह दुनियावी ज़िंदगी चंद रोज़ा और फ़ानी है और आख़िरत की ज़िंदगी ही हमेशा की ज़िंदगी है जिस में हमें अपने सारे अमल का हिसाब देना होगा। नीज़ यह कि मौत अचानक आएगी, फिर क्या ख़बर! तौबा का मौका मिले या न मिले।
हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि आक़ा व मौला सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "अल्लाह तआला उस शख़्स का उज़्र मुस्तर्द कर देता है जिसे वह लम्बी उम्र देता है यहाँतक कि उसकी उम्र साठ साल हो जाती है"। (बुख़ारी किताब अर-रक़ाक़) हर चीज़ अपने वक़्त पर अच्छी लगती है। उलमा फ़रमाते हैं कि जवानी में गुनाहों से तौबा करना सालेहीन और औलिया अल्लाह का तरीक़ा है वरना बुढ़ापे में तो ज़ालिम भेड़िया भी शिकार छोड़ देता है। अगरचे यह भी मुनासिब बात नहीं कि बंदा उस वक़्त नेकियाँ करना शुरू करे जब वह गुनाह करने के लाइक़ न रहे, फिर वह इंसान जो इस क़द्र तवील उम्र पा कर भी गुनाह न छोड़े तो वह अपने रब को क्या मुँह दिखाएगा!!!
अच्छा और बुरा इंसान
हज़रत अबू बकर से रिवायत है कि एक शख़्स ने बारगाह रिसालत में अर्ज़ की, या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! कौन सा आदमी अच्छा है? सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: ”वह जिसकी उम्र लम्बी और अमाल अच्छे हों। फिर उसने अर्ज़ की, या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! कौन सा आदमी बुरा है? आक़ा व मौला सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, वह जिसकी उम्र लम्बी और अमाल बुरे हों।(अहमद, तिर्मिज़ी, मिश्कात किताब अर-रक़ाक़)
मौत और उम्मीद की मिसाल
हज़रत अबू सईद ख़ुदरी से रिवायत है के सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक लकड़ी सामने गाड़ी फिर दूसरी लकड़ी उसके बराबर में गाड़ दी। फिर तीसरी लकड़ी उससे बहुत दूर गाड़ी और फ़रमाया, जानते हो यह क्या है? सहाबा ने अर्ज़ की, अल्लाह और उसका रसूल ही बेहतर जानते हैं। फ़रमाया, यह इंसान है और यह इंसान की मौत। और (दूर वाली तीसरी लकड़ी) यह उसकी उम्मीद है। वह उम्मीद की तरफ़ दौड़ता है लेकिन उम्मीद से पहले मौत आ जाती है।(शर्हुस सुन्नह, मिश्कात किताब अर-रक़ाक़)
हादी आलम ने तीन लकड़ियाँ गाड़ कर गोया अमली मश्क़ के ज़रिये समझाया कि मौत इंसान के किस क़द्र करीब है। इंसान की एक उम्मीद पूरी होती है तो दूसरी ख़्वाहिश पैदा हो जाती है। इसी तरह इंसान के दिल में बेशुमार ख़्वाहिशें जन्म लेती हैं लेकिन मौत अपने मुक़र्ररा वक़्त पर पहुँच कर उसकी सारी ख़्वाहिशों को ख़ाक में मिला देती है।
