qtESQxAhs26FSwGBuHHczRGOCdrb3Uf78NjGuILK
Bookmark

Masjid e nabvi mein adab ka islami hukm | हुजूर अलैहिस्सलाम की बेअदबी का सख़्त अंजाम | सहाबा किराम, कुरआन और हदीस से सबक़


मस्जिदे नबवी का अदब और हुजूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की बेअदबी का अंजाम 
इस्लाम में मस्जिदे नबवी को खास मुक़ाम हासिल है। सहाबा किराम ने हमेशा हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम से मंसूब हर चीज़ का अदब किया। इस नीचे दिए गए वाकिए से हमें मालूम हुआ के हुज़ूर नबी अलैहिस्सलातु-वस्सलाम का एहतराम ज़िंदगी में ही नहीं बल्कि पर्दा फ़रमाने के बाद भी लाज़िमी है। 

हज़रत उमर का तम्बीह फरमाना 

हज़रत साएब बिन यज़ीद रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं मस्जिदे नबवी में खड़ा था, इतने में एक शख्स ने मुझ पर कंकर फेंका। देखता क्या हूं कि वह हज़रत उमर हैं। उन्होंने (मुझसे) कहा कि जाओ और उन दोनों अशख़ास को मेरे पास बुला लाओ। मैं उन्हें बुला लाया। हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ने पूछा कि तुम कौन हो? या यूं फरमाया कि तुम कहां से आए हो? उन्होंने कहा, हम ताइफ के रहने वाले हैं। हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि अगर तुम इस शहर (मदीना) के रहने वाले होते तो मैं तुमको सज़ा देता। तुम आंहज़रत हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की मस्जिद में पुकारते हो और आवाज़ बुलंद करते हो। 
(सहीह बुखारी, किताबुस्सलाह, बाब रफ़ज़ुस्सौत फिल मस्जिद, जिल्द अव्वल, सफह 67, कदीमी किताब खाना)
इस हदीस मुबारका में हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ने मस्जिदे नबवी में ऊंची आवाज़ करने वालों को तन्बीह फ़रमाई और बताया कि हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के पर्दा फ़रमा जाने के बाद भी आपका अदब व एहतराम वैसा ही ज़रूरी है जैसा के आपकी हयात ए तय्यबा में ज़रूरी था। इस वाकिए से ये भी साबित हुआ कि सहाबा किराम नबी हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की हर मंसूब चीज़ का अदब करते थे। 
इस हदीस मुबारका से मंदरजह ज़ैल फ़वाइद मालूम हुए 

मस्जिदे नबवी का अदब सहाबा किराम की सुन्नत 

1. वह चीज़ जिसको नबी से निस्बत हो जाए, सहाबा किराम उसका भी अदब करते थे। मस्जिदे नबवी को हुज़ूर से निस्बत थी, इसीलिए हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ने उसका इतना अदब किया कि एक सहाबी को बुलाने के लिए कंकर मार के उन्हें बुलाया, आवाज़ देकर नहीं बुलाया कि कहीं बुलंद आवाज़ न हो जाए और मस्जिद में रसूल की बेअदबी न हो जाए। मालूम हुआ कि हुज़ूर से निस्बत रखने वाली हर शै का अदब करना यह सहाबा किराम की सुन्नत है। 

कुरआन में हुजूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की आवाज़ से ऊंची आवाज़ उठाने की मुमानिअत

2. कुरआन में अल्लाह तआला ने मुसलमानों को अपने महबूब की बारगाह का अदब सिखलाया है कि
يَأْيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تَرْفَعُوا أَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِيِّ 
(हुजरात : 2)
"ऐ ईमान वालो! नबी की आवाज़ पर अपनी आवाज़े बुलंद न करो।
यह हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के ज़माना-ए-अक़दस में हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम के अदब सिखलाने के लिए यह आयत नाज़िल हुई। लेकिन इस हदीस में उन दोनों अशख़ास ने आवाज़ उस वक्त बुलंद की जब हुज़ूर इस आलम से पर्दा फ़रमा चुके थे और हज़रत उमर ने उन दोनों को तन्बीह फ़रमाई। इससे मालूम हुआ कि हज़रत उमर का अकीदा यह था कि हुज़ूर अब भी ज़िंदा हैं। जिस तरह आपके ज़माना-ए-अक़दस में आपके सामने आवाज़ बुलंद करना नाजाइज़ था, उसी तरह अब भी आपके पर्दा फ़रमा जाने के बाद आवाज़ बुलंद करना नाजाइज़ है और आपकी बेअदबी है, क्योंकि आप सुन रहे हैं। इससे यह भी मालूम हुआ कि जिस तरह हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की हयात में आपका अदब व एहतराम ज़रूरी था, उसी तरह पर्दा फ़रमाने के बाद भी आपका एहतराम ज़रूरी है। 
(फैजुल बारी, जिल्द दोम, सफह 64) 

बेअदबी करने वाले के लिए इस्लामी सज़ा का हुक्म 

जब नबी की मस्जिद की मामूली सी बेअदबी करने वाला लायक़-ए-तअज़ीर है, तो जो खुद नबी की तौहीन और बेअदबी करेगा वह क्यों न लायक़-ए-तअज़ीर होगा। उलमा-ए-किराम का मुत्तफ़िक़ा फैसला है कि हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की अदना सी बेअदबी करने वाला भी इस्लाम से खारिज हो जाता है, वह मुरतद है, उसकी तौबा भी कुबूल नहीं, उसकी सज़ा क़त्ल है। 
दोस्तों 
इस वाकिये से मालूम हुआ कि नबी हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के अदब का तक़ाज़ा है कि उनकी मंसूब चीज़ों का एहतराम किया जाए। मस्जिदे नबवी की बेअदबी सहन नहीं की गई, तो खुद नबी हुजूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की बेअदबी करने वाले के लिए इस्लाम में सख्त सज़ा का हुक्म है। मुसलमानों को चाहिए कि नबी हुजूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के हर तअल्लुक वाली शै का पूरा अदब करें और हुजूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की बारगाह में बुलंद आवाज़ करने से गुरेज़ करें। यही ईमान का तक़ाज़ा और सहाबा किराम की सुन्नत है। 
यहाँ पर हज़रत अली का भी वाकिया पढ़ें ईमान ताज़ा हो जायेगा 

विसाल शरीफ के बाद अदब व अहतराम 

हज़रत अली कर्रमल्लाहु वज्हहुलकरीम जब अपने घर के दरवाज़े के किवाड़ बनाने या दुरुस्त करना चाहते तो खुले मक़ाम पर बाहर तशरीफ़ ले जाते इसलिए कि दरवाज़े को सही करने से जो आवाज़ या शोर आए उससे रसूल अल्लाह अलैहिस्सलातु-वस्सलाम को तकलीफ़ न पहुँचे। 
(अदुर्रुस्समीन, सफ़हा 72) (वस्फुल मस्जिदिन नब्वी अश्शरीफ, सफ़हा 22) 
दोस्तों चूँकि कि हज़रत अली करम अल्लाह वज्हुहुल करीम का घर नबी करीम अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की क़ब्र शरीफ़ के क़रीब था। आप रज़ियल्लाहु अन्हु दरवाज़े को दुरुस्त करने के लिए खुद भी वहाँ नहीं लगाते थे कि कहीं उस आवाज़ से आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम को तकलीफ़ न हो क्योंकि अल्लाह ने 
لا تَرْفَعُوا أَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِي 
ऐ ईमान वालो! नबी करीम अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की आवाज़ से अपनी आवाज़े ऊँची न करो, कहकर तअज़ीम का दर्स दिया है। तो हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु अपने इस अमल से वाज़ेह कर रहे थे कि जिस तरह ज़िंदगी में रसूल अल्लाह अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की तअज़ीम ज़रूरी थी, उसी तरह वफ़ात शरीफ़ के बाद भी तअज़ीम ज़रूरी है।

हज़रत अली के अमल से सबक 

इस वाकिये से ये बात वाज़ेह होती है कि हज़रत अली कर्रमल्लाहु वज्हहुलकरीम का अमल सिर्फ उनकी इखलास-ओ-मोहब्बत का सबूत ही नहीं, बल्कि उम्मत के लिए एक अहम सबक़ भी है कि रसूलुल्लाह अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की तअज़ीम और एहतराम हर हाल में लाज़िमी है। चाहे वो आपकी हयात-ए-मुबारका का दौर हो या बाद-ए-विसाल का ज़माना। रसूलुल्लाह अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की बारगाह में अदब और एहतराम का ये जज़्बा इमान का तक़ाज़ा है। इसी तअज़ीम के तहत हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु अपने घर के दरवाज़े की मरम्मत जैसी मामूली चीज़ के लिए भी इस बात का ख़याल रखते थे कि कहीं शोर या आवाज़ से रसूलुल्लाह अलैहिस्सलातु-वस्सलाम को तकलीफ़ न पहुंचे। 

मुसलामानों के लिए सबक 

मुसलमानों के लिए इससे ये सीख मिलती है कि रसूलुल्लाह अलैहिस्सलातु-वस्सलाम का एहतराम और तअज़ीम हर दौर और हर हाल में लाज़िम है। आपकी बारगाह में बुलंद आवाज़ करना, गफलत बरतना या किसी भी तरह की बेअदबी नाजाइज़ और गुस्ताख़ी है। सच्चा इमानदार वही है जो हुजूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के बाद-ए-विसाल भी आपकी तअज़ीम से अपने दिल को रौशन रखे।
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें

please do not enter any spam link in the comment box.