अल्लाह तबारक व तआला का बे पायां शुक्र व एहसान है कि उसने हमें इंसान बनाकर इस दुनिया में पैदा फरमाया और करम बाला ए करम ये कि उसने अपने हबीब ए मुकर्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत में पैदा फरमाया और हम गुनाहगारों के हाथों में मुस्तफ़ा करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पाक दामन अता फरमाया और साथ ही तंबीह फरमाई कि अगर तुमने मुस्तफ़ा का कलमा पढ़ा है तो अब तुम्हारी ज़िंदगी तुम्हारी ख़्वाहिशात के मुताबिक नहीं गुज़रेगी बल्कि तुम्हारे सामने नबी आख़िरुज़्ज़मां सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूरी सीरत ए तय्यिबा मौजूद है जो मुकम्मल दस्तूर ए हयात भी है और मंशूर ए अहदाफ भी।
इसलिए ब हैसियत ए मोमिन व मुस्लिम तुम्हारा नस्बुलऐन है कि तुम अपनी तबीयत के गुलाम बनकर लमहात ए हयात तय न करो बल्कि गुलाम ए अहमद ए मुख्तार बनकर उनकी इताअत में अपनी तवानाई सरफ करो। और कुरआन में इरशाद हुआ “लक़द काना लकुम फी रसूलिल्लाहि उस्वतुन हसना” (सुरतुल अहज़ाब) ऐ मेरे बंदो तुम्हारे लिए नबी की जिंदगी बेहतरीन आइडियल है।
ख़्वाह वो समाजियात का शोबा हो या इक़्तेसादियात का मआशियात का मैदान हो या अख़लाक़ियात का हर मैदान में तुम्हें आफ़ताब ए नुबूवत से मुकम्मल रोशनी मिलेगी। अगर तुम्हें अपनी अमली जिंदगी को मुनव्वर व रोशन करना हो तो नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सीरत ए तय्यिबा की ज़िया बार किरणों से अपने ख़ाना ए दिल की तारीकी को दूर करना होगा।
और हां याद रखना कि फ़क़त नाम लेने या नारा लगाने से तुम कामिल ईमान वाले तसव्वुर नहीं किए जाओगे बल्कि इसके लिए एक मियार है। कुरआन में है कि दुनिया की तमाम तर चीज़ों से ज़्यादा अल्लाह व रसूल से मुहब्बत करनी होगी और अल्लाह व रसूल की रज़ा के लिए अपनी तबीयत का गला घोंटकर मुस्तफ़ा जान ए रहमत की शरीअत पर अमल करना होगा। अगर ऐसा नहीं कर सके तो तुम्हें दुनिया में भी ज़िल्लतों का सामना करना होगा और क़ियामत के दिन भी रुस्वाइयों से दोचार होना पड़ेगा।
चुनांचे इरशाद ए रब्बी है कुल इन काना आबाउकुम व अबनाउकुम व इख़्वानुकुम व अज्वाजुकुम व असीरतुकुम व अमवालुनिक्तरतुमूहा व तिजारतुन तख़्शौना कसादहा व मसाकिनु तरदौनहा अहब्बा इलैकुम मिनल्लाहि व रसूलिहि व जिहादिन फी सबीलिहि फतरब्बसू हत्ता यअतियल्लाहु बि अम्रिहि वल्लाहु ला यहदील क़ौमल फ़ासिक़ीन सुरतुत तौबा।
इन आयात ए बय्यिनात से वाज़ेह हो गया कि हमें तरीक़ा वही अपनाना है जिसकी रहनुमाई कुरआन कर रहा है। अगर इससे हम ज़रा सा भी मुन्हरिफ हुए तो हमारा अमली ज़वाल शुरू हो जाएगा और दारेन में खैबान व खुसरान के मुस्तहिक़ भी होते चले जाएंगे। इसलिए हम कलमा गो मुसलमानों की अहम तरीन ज़िम्मेदारी है कि हम कायनात की सारी चीज़ों से ज़्यादा ख़ुदा और रसूल से मुहब्बत भी करें और उनके इरशादात व फरामीन पर चलकर अपनी आख़िरत को बेहतर भी बनाएं।
आज की इस गुफ़्तगू में हमारा उन्वान है नशे की लानत और हमारा मुस्लिम मुआशरा।
इस उन्वान पर जब भी कोई ख़तीब अपना लब खोलता है और कोई मुहर्रिर क़लम को जंबिश देता है तो उसके बयानात व सफहा ए किरतास पर नशे के दुनियवी व उखरवी नुक़सानात और मुआशरे में इसके असरात ज़िक्र ए तहरीर व बयान किए जाते हैं।
नशा दौलतमंद को भिकारी बना देता है
यक़ीनन नशा एक ऐसा मर्ज़ है जो तवाना व तंदुरुस्त इंसान को खोखला और अक़्लमंद व ख़िर्दमंद को माऊफ़ व बेअक़्ल और दौलतमंद को भिकारी बना देता है। और इसके हिसार में आने वाले अफ़राद ख़्वाह मर्द हों या औरत, जवान हों या बूढ़े, सबके सब ज़हनी तौर पर ऐसे माजूर हो जाते हैं कि उनकी फ़िक्र व नज़र वाली सारी तवानाई खत्म हो जाती है और वो बेआसरा होकर सड़क के किनारे अपनी ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हो जाते हैं।
आज हमारे मुआशरे में बहुत से ऐसे जवान मिल जाएंगे जिनकी ज़िंदगी इंतिहाई खुशगवार थी और वो बावकार ज़िंदगी गुज़ार रहे थे मगर नशे की लत क्या लगी वो रफ़्ता रफ़्ता तनज़्ज़ुली की तरफ़ आने लगे और देखते ही देखते वो इस मुक़ाम पर जा पहुंचे जहां न उनकी कोई इज़्ज़त है और न वक़ार न उनके पास इतने पैसे बचे कि वो अपनी ज़िंदगी अच्छे से बसर कर सकें।
नशे की खरीद ओ फरोख़्त और अफ़सोसनाक हक़ीक़त
पूरी दुनिया में नशा आवर अशिया की खरीद ओ फरोख़्त भी आला पैमाने पर हो रही है और नशाख़ोरों की तादाद में गैर मामूली इज़ाफ़ा भी हो रहा है। सबसे ज़्यादा अफ़सोसनाक तो ये है कि हमारे मुस्लिम नौजवान भी इसकी ज़द में आ रहे हैं और नौजवानों का एक बड़ा तबका इसके हिसार में है। जिन मज़ाहिब के लोगों के पास कोई उसूल व ज़ाबिते न हों और वो इस लानत की ज़द में आएं तो इतना तअज्जुबखेज़ नहीं है मगर हमारे पास तो मुस्तफ़ा करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इरशादात व कुरआनी तालीमात बतौर निज़ाम ए हयात मौजूद हैं जिनमें मुनशियात से इज्तिनाब करने की बार बार तलकीन की गई है और कुरआन व अहादीस में जा बजा इसकी वईदात भी वारिद हैं।
नशा व शराब की हक़ीक़त
दोस्तों आइए जानते हैं कि नशा है क्या। तो नशा आवर चीज़ों का ज़िक्र जब भी आता है हमारा तबादुर ए ज़ेहन शराब गांजा भंग अफ़ीम वग़ैरह की तरफ़ होता है। मगर इस टेक्नॉलोजी व मादियत ज़दा दौर में नए नए तरीक़ों की नशीली अशिया तैयार भी की जा रही हैं और नौजवान बड़ी तेज़ी से इसके लपेट में आ रहा है जैसे हीरोइन ड्रग्स वग़ैरह।
इंसान जब नशीली चीज़ों का आदी हो जाता है और उसको जब इन मुखर्रिब ए अख़लाक़ चीज़ों की लत लग जाती है तो ये उसके चाहने से भी नहीं छूटती बल्कि रफ़्ता रफ़्ता ये उसकी शख़्सियत को बर्बाद कर देती है।
शराब है क्या
हमारे उलमा ने लिखा है कि शराब यानी ख़म्र को ख़म्र इसलिए कहा जाता है कि शराब अक़्ल पर पर्दा डाल देती है। इंसान सही और ग़लत की तमीज़ भूल जाता है, जाइज़ व नाजाइज़ के दरमियान फर्क करने के क़ाबिल नहीं रहता। सिर्फ शराब ही इस्लामी नुक्ता ए नज़र से हराम नहीं है बल्कि सरकार ए अब्द क़रार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाह ए नुबुव्वत देख रही थी कि एक दौर ऐसा भी आएगा जब लोग शराब की जगह नई नई चीज़ों का इस्तेमाल करेंगे और उनका नाम बदल देंगे। आपने इस फ़साद का दरवाज़ा ही बंद कर दिया। चुनांचे इरशाद हुआ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया हर नशा आवर चीज़ शराब है और हर नशा आवर चीज़ हराम है, ख़्वाह वो थोड़ी हो या ज़्यादा। इससे वाज़ेह हो गया कि आज जो लोग तफ़रीह के नाम पर तरह तरह की मुनशियात इस्तेमाल कर रहे हैं वो सब के सब हराम और मुनज़िर इलन्नार हैं।
शराब के मुतअल्लिक कुरआनी वईदात
इस्लाम में शराब सख़्त हराम है। आप इससे अंदाज़ा लगाइए कि कुरआन पाक में मुतअद्दिद मक़ामात पर इसकी हुरमत वारिद है और इससे बचने की तलकीन की गई है। चुनांचे इरशाद ए बारी तआला है यसअलूनका अनिल ख़म्रि वल मयसिरि कुल फीहिमा इस्मुन कबीरु व मनाफ़ेउ लिननासि व इस्मुहुमाअकसरु मिन नफ़इहिमा सुरतुल बक़रा। कुछ लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में आए और शराब व जुए के मुतअल्लिक दरियाफ़्त कर रहे थे। अल्लाह जल शानुहु ने हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम को भेजा और ये आयत नाज़िल हुई। ऐ मेरे हबीब ये लोग आपसे शराब और जुए के बारे में दरियाफ़्त कर रहे हैं। आप इनसे फरमाइए कि इन दोनों कामों में बहुत बड़ा गुनाह है और लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी हैं, लेकिन इनका गुनाह इनके फ़ायदे से ज़्यादा है। इस दर्ज़ बाला आयत शरीफ़ा में शराब और जुए की मज़म्मत बयान की गई है कहा गया है कि जुए और शराब का गुनाह उसके नफ़ा से ज़्यादा है। नफ़ा बस यही है कि शराब से कुछ सुरूर पैदा होता है या उसकी खरीद फरोख़्त से तिजारती फायदा होता है। जुए में यह फायदा है कि कभी कभी मुफ़्त का माल हाथ आ जाता है। लेकिन शराब और जुए की वजह से होने वाले गुनाह और फ़सादात बेशुमार हैं।
शराब के नुक्सानात
शराब से अक्ल ज़ाएल हो जाती है गैरत और हमीयत का जनाज़ा निकल जाता है। मां बहन बेटी की तमीज़ खत्म हो जाती है। इबादत से दिल ऊबने लगता है और इबादत का लुत्फ दिल से निकल जाता है। जुए की वजह से लोगों से दुश्मनी पैदा हो जाती है। आदमी सबकी नज़र में ज़लील ओ ख़्वार हो जाता है। उसे जुएबाज़ और सट्टेबाज़ के नाम से बदनाम किया जाता है। कभी कभी इंसान अपना सब माल ओ असबाब जुए में हार जाता है। ज़िंदगी तबाह ओ बर्बाद हो जाती है। मेहनत से जी चुराने लगता है और मुफ़्तखोर बनने की आदत पड़ जाती है। वगैरह
एक रिवायत में आता है कि हज़रत जिब्रील अमीन अलैहिस्सलाम ने हज़रत रसूल ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में अर्ज़ किया कि अल्लाह तआला को हज़रत जाफर तय्यार की चार ख़सलतें पसंद हैं।
सरकार ए दो आलम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने हज़रत जाफर तय्यार रज़ियल्लाहु अन्हु से दरियाफ्त फ़रमाया। उन्होंने अर्ज़ किया कि एक ख़सलत तो ये है के मैंने कभी शराब नहीं पी यानी हुरमत का हुक्म नाज़िल होने से पहले भी मैंने शराब नहीं पी। और इसकी वजह यह थी के मैं जानता था कि इससे अक्ल ज़ाएल होती है और मैं चाहता था कि मेरी अक्ल और तेज़ हो। (तफ़सीरात ए अहमदिया अल बक़रा तहत आयत 219 सफा 101)
शराब की नहूसत मौला अली की नज़र में
सुब्हान अल्लाह क्या सलीम उल फितरत थे। शराब के मयस्सर होने के बाद भी कभी शराब को हाथ नहीं लगाया। यक़ीनन ये तअज्जुबखेज़ है कि एक ऐसा मुआशरा जहाँ हर क़िस्म के लोग शराब के आदी हों और शराब उनके रग ओ रेशे में सरायत कर गई हो ऐसे लोगों के बीच में रह कर असबाब ओ वसायल के होते हुए उसके क़रीब न जाना ये शराफ़त ए कल्ब व तहारत ए नफ़्स का बेहतरीन सबूत है।
इसी तरह हज़रत अली कर्रमल्लाहु वज्हहुल करीम ने फ़रमाया कि अगर शराब का एक क़तरा कुएँ में गिर जाए फिर उस जगह मीनार बनाई जाए तो मैं उस पर अज़ान न दूँगा और अगर दरिया में शराब का क़तरा पड़ जाए फिर दरिया खुश्क हो जाए और वहाँ घास पैदा हो तो मैं उसमें अपने जानवरों को चराना गवारा नहीं करूंगा (मदारिक अल बकरा तहत आयत 219 सफ्रा 113)
अल्लाहु अकबर! ये थी ख़शियत ए इलाही व ख़ौफ़ ए ख़ुदा और तक़वा कि शराब पीना तो दूर इसके क़रीब जाने को भी हराम समझते थे।
शराब के मुतअल्लिक़ कुरआनी हुक्म
अगर हम शराब के मुतअल्लिक दीगर आयात की तरफ़ नज़र दौड़ाएँ, तो अल्लाह ने फ़रमाया तर्जुमा:ऐ ईमान लाने वालों! शराब जुआ बुत और क़िस्मत मालूम करने के तीर नापाक शैतानी काम हैं तो इनसे बचते रहो ताकि तुम फलाह पाओ। इस आयत करीमा का तेवर मुलाहिज़ा करें कि किस क़दर शिद्दत के साथ शराब से बचने की तलकीन की गई और इससे मुत्तसिल ही बुतपरस्ती वगैरा का ज़िक्र फ़रमाकर इन आमाल को शैतानी काम करार दिया और अहले ईमान को इससे बचने की तलकीन फ़रमाई। साथ ही साथ फलाह व बहबूद की गारंटी भी दी। मगर कब ये कामयाबी मिलेगी? जब हम शराब व दीगर नशीली अशिया से दूर व नफूर रहें। क्योंकि अहले ईमान की ज़िम्मेदारी है कि वो फ़क़्त आमाल ए सालेहा पर ही अपनी तवज्जोह न दें, बल्कि आमाल ए सय्येह से भी इज्तिनाब करें। क्योंकि कोई भी परिंदा एक पर से नहीं उड़ सकता। अगर उसे उड़ना है तो दोनों परों का सालिम होना शर्त है।
और खुद नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने एक मक़ाम पर फ़रमाया इत्तकिल महारिम तकुन अबदन्नास यानि: “तुम अल्लाह के हराम करदा उमूर से बचो तो तुम सब से बड़े इबादत गुज़ार बन जाओगे। इस हदीस में ये नहीं फ़रमाया कि नमाज़ पढ़ो रोज़ा रखो सारे अच्छे काम करो तो इबादत गुज़ार बन जाओगे। बल्कि फ़रमाया: इन आमाल के साथ साथ उमूर ए मुहर्रमाह के इर्तिकाब से बचो तो बारगाह ए ख़ालिक़ में तुम इबादत गुज़ार माने जाओगे।
शराबनोशी के नुक़सानात
शराबनोशी के नुक़सानात किस क़दर ज़्यादा हैं आप इस से अंदाज़ा लगाएँ कि एक आदमी जब नशे में मुब्तिला हो जाता है तो उसके साथ साथ कई लोगों की ज़िंदगियाँ खराब हो जाती हैं। अगर किसी घर का मर्द शराब व दीगर मुनशियात का आदी हो गया तो अब उस घर की बीवी की ज़िंदगी अजीरन हो जाती है। वो नशे में डूबकर जब घर आता है तो बीवी पर बच्चों पर बेजा तशद्दुद करता है गालियाँ बकता है उनके साथ बदसलूकी का मुज़ाहिरा करता है। तो अब ज़ाहिर है उस घर के बच्चों की न तो अच्छी तर्बियत हो सकती है और न ही उस से मुनसलिक अफ़राद के मुआमलात बेहतर हो सकते हैं। साथ ही इस नशे की वजह से बंदा अपने रब से भी दूर हो जाता है और बारगाह ए रिसालत से भी उसे कोई ताल्लुक नहीं रहता। और लोगों के दिलों में उसकी नफ़रत पैदा हो जाती है। और ये सब काम शैतान के मंशा के मुताबिक़ होता है। चुनांचे अल्लाह तआला का इरशाद है तर्जुमा: “शैतान तो यही चाहता है कि शराब और जुए के ज़रिए तुम्हारे दरमियान दुश्मनी और बुग्ज़ व कीना डाल दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे। तो क्या तुम बाज़ आते हो?
दोस्तों! देखा आपने अल्लाह कुरआन में फ़रमा रहा है कि शैतान की मर्ज़ी है कि बंदा शराब पिए ताकि मैं इस इंसान को अपना आलात बना कर अपना काम कर सकूँ यानी जब वह शराब पिएगा तो अपनी ज़बान से हफ़वात बकेगा गाली गलोच करेगा इज़्ज़त व इस्मत पर हाथ डालेगा इस्लामी शरीअत के तक़द्दुसात को पामाल करेगा। फिर जब एक इंसान का अख़लाक़ ऐसा होगा तो लोग उससे मोहब्बत नहीं करेंगे बल्कि उनके दिलों में उसके लिए बुग्ज़ व दुश्मनी पैदा होगी। और इसी तरह वह शराब पीने की वजह से अल्लाह के ज़िक्र व नमाज़ व इबादतों से भी दूर रहेगा। अब शैतान का जो मकसद था वह पूरा हो गया उसने इस इंसान को उसके रब से भी दूर कर दिया और बंदों से भी उसका अब ताल्लुक नहीं रहा। अब आगे कुरआन फ़रमा रहा है:फहल अंतुम मुन्तहून ऐ मेरे बंदो! इतना सब कुछ हो गया तुम्हारे नस्ब उल ऐन की अदायगी में अब तक तसाहीली बरतते रहे अब तो तुम बाज़ आ जाओ अपने इस ग़लत फ़ेल व गंदी आदतों से। ये तो कुरआनी आयतें थीं जिनमें शराब की नहूसत और उसके मंफी असरात का ज़िक्र हुआ।
अब आइए उन अहादीस का जाइज़ा लेते हैं जिनमें सरकार ए दो आलम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने मुनशियात व नशीली अशिया से दूर व नफूर रहने की तलकीन फ़रमाई है और उसके सख्त इबरतनाक अंजाम से आगाह फ़रमाया है।
अहादीस में शराबनोशी के भयानक अंजाम का ज़िक्र
नबी करीम अलैहिस्सलाम ने शराब व दीगर मुनशियात को साफ़ लफ़्ज़ों में हराम क़रार दिया और उसके मुरतकिब को लअन व मरदूद बताया, और सिर्फ़ पीने वाले को नहीं बल्कि शराब से मुनसलिक दस क़िस्म के अफ़राद को मुस्तहिके लअनत क़रार दिया। चुनांचे हदीस शरीफ़ में है अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दस क़िस्म के लोगों पर शराब की वजह से लअनत फ़रमाई इसके निचोड़ने वाले पर निचड़वाने वाले पर और उस पर जिसके लिए निचोड़ी जाए उसे ले जाने वाले पर और उस शख्स पर जिसके लिए ले जाई जाए बेचने वाले पर और उस पर जो इसे खरीदे पिलाने वाले पर और उस पर जिसे पिलाई जाए यहाँ तक कि दसों को आपने गिन कर इस तरह बताया। रवाह तिर्मिज़ी
इस हदीस पाक में नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने गिन गिन कर दस क़िस्म के लोगों को लअनती क़रार दिया जो फ़ेल शराबनोशी में किसी तरह भी शामिल हों। और एक दूसरी हदीस में वईद का यूँ ज़िक्र है जिसने शराब पी उसकी चालीस दिन तक नमाज़ क़बूल नहीं होती। फिर अगर वह तौबा करे तो अल्लाह तआला उसकी तौबा क़बूल कर लेता है। फिर अगर वह दुबारा शराब पीए तो उसकी नमाज़ें चालीस दिन तक क़बूल नहीं होतीं। फिर अगर वह तौबा करे तो अल्लाह तआला उसकी तौबा क़बूल करता है फिर शराब पीए तो उसकी चालीस दिन की नमाज़ें क़बूल नहीं होतीं और वह तौबा करे तो अल्लाह तआला तौबा क़बूल कर लेता है। अगर वह चौथी बार फिर पीए तो उसकी नमाज़ें चालीस दिन तक क़बूल नहीं होतीं और अगर वह तौबा कर ले तो अल्लाह तआला उसकी तौबा को क़बूल भी नहीं करता और उसे नहर ए ख़याल से सराब करता है यानी दोज़ख़ियों का पीप उसे पिलाया जाता है। तिरमिज़ी अबू दाऊद नसाई
नाअउज़ु बिल्लाह मिन ज़ालिक। दोस्तों! देखा आपने किस क़दर संगीन अमल है शराबनोशी और मुनशियात का इस्तेमाल। अल्लाहु अकबर इस क़दर सख़्त तरीन सज़ा कि जो दुनिया में शराब पीएगा उसे जहन्नमियों का पीप पिलाया जाएगा। यह शराबनोशी उस वक़्त आम थी जब इस्लाम का सूरज तुलू नहीं हुआ था। मगर जब हमारे मुस्तफ़ा आफ़ताबे रिसालत व नुबुव्वत बनकर उफुक़ ए काइनात पर जलवागर हुए और कुरआनी अहकामात का नुज़ूल शुरू हुआ तो कुरआन हकीम ने इस पर पाबंदी लगाई और नबी करीम अलैहिस्सलाम ने आम ऐलान फ़रमाया कि मुसलमानों के लिए हर नशाआवर शै हराम है। अगर कोई एक क़तरा भी पीएगा तो उसे इसकी सज़ा मिलेगी।
तो जिन जिन ख़ुशनसीब अफ़राद तक यह हुक्म पहुँचा उन्होंने अम्र ए इलाही के सामने अपना सर ए तसलीम ख़म कर दिया और मुकम्मल तौर पर इस चीज़ से इज्तिनाब करने लगे। मगर अहल ए अरब चूंकि शराब के दिलदादा थे और उनकी तबीयत में यह चीज़ सरायत कर चुकी थी और यही वजह थी कि जब भी किसी की ज़ियाफ़त के लिए दस्तरख़्वान सजाया जाता तो उस पर शराब लाज़िमी थी। बग़ैर शराब के किसी की ज़ियाफ़त ना मुकम्मल तसव्वुर की जाती थी।
इसलिए कुछ लोगों को इस पर अमल करने में थोड़ा वक़्त लगा। जब कुछ लोग इस हवाले से तअज्जुब का शिकार हुए तो हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने इन तमाम बरतनों के इस्तेमाल से भी मना फ़रमाया और एक रिवायत के मुताबिक इन सारे बरतनों को तोड़ने का हुक्म दे दिया ताकि न ये बरतन रहें और न ही उन्हें शराब की याद आए।
जैसा कि मुसनद इमाम अहमद बिन हम्बल की एक रिवायत है हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मर्वी है फ़रमाते हैं कि नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने मुझे हुक्म दिया कि मैं एक छुरी लेकर आऊँ। तो मैं उसे लेकर बारगाह ए रिसालत में हाज़िर हुआ फिर आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने उसे तेज़ कराने के लिए भेजा फिर हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने वो छुरी मुझे दी और फ़रमाया कि कल मैं उसे लेकर आपकी बारगाह में आऊँ। चुनांचे मैंने ऐसा ही किया।
फिर हुज़ूर अलैहिस्सलाम अपने सहाबा के साथ शहर के बाज़ारों की तरफ़ निकले तो क्या देखा कि वहाँ शराब की बोतलें थीं जो शाम से लाई गई थीं। हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने मुझसे छुरी ली और अपनी मौजूदगी में जितने बरतन थे सबको काट दिया चीर दिया। फिर आप ने मुझे वह छुरी इनायत फ़रमाई और अपने साथ वालों को हुक्म दिया कि वो लोग मेरे साथ चलें और मेरी मदद करें और मुझे हुक्म दिया कि तमाम बाज़ारों में जाऊँ और जहाँ कहीं भी शराब की बोतलें नज़र आएँ मैं किसी को सलामत न छोड़ूँ सबको काट दूँ। और मैंने ऐसा ही किया। पूरे बाज़ार में जहाँ कहीं भी शराब का बरतन नज़र आया मैंने उसे चीर दिया।
दोस्तों साथ ही वह हदीस भी आपकी बारगाह में पेश करता हूँ जिनमें सराहत के साथ शराब के बरतनों को तोड़ने का हुक्म दिया गया और सहाबा ने इस पर अमल करते हुए तोड़ दिया। चुनांचे अनस बिन मालिक कहते हैं मैं अबू उबैदा और अबू तल्हा को खजूर की शराब पिलाया करता था। अचानक एक आने वाला आया उसने खबर दी कि शराब अब हराम हो चुकी है। अबू तल्हा ने कहा ऐ अनस उठो और इन मटकों को तोड़ दो। अनस कहते हैं मैंने एक औज़ार पकड़ा और उसके साथ मटकों के निचले हिस्से पर मारना शुरू किया यहाँ तक कि सभी मटके टूट गए। रिवायत: बुखारी 7253, मुस्लिम 1980
और हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने जिन हदीसों में इन बरतनों के इस्तेमाल से मना फ़रमाया वह ये है अन ज़ैनब बिन्त अबी सलमा कालत नहा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अनी दुब्बा वल हन्तम व नकीर वल मुरक़त। यह ज़ैनब बिन्त अबी सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा हैं उन्होंने बयान किया कि नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने दुब्बा हनतम नकीर और मुज़फ़्फ़त के इस्तेमाल से मना फ़रमाया था।
दुब्बा कद्दू के बने हुए बरतन,
हनतम हरे रंग के मिट्टी के बरतन,
नकीर लकड़ी के खोदे हुए बरतन,
मुज़फ़्फ़त तेल से लिपे हुए बरतन थे।
ये चारों शराब के बरतन थे जिनमें अरब शराब बनाया करते थे। जब शराब की मुमनिअत हुई, तो इन बरतनों के इस्तेमाल से भी लोगों को रोक दिया गया। सहीह अल बुखारी
दोस्तों आपने ऊपर लिखी हदीसों और आयतों में देखा कि शराब और नशीली चीज़ें जो सक़र और फ़ितन का वजह हैं उनका इस्तेमाल कितना संगीन है। आज अगर हमारे नौजवान इस बुरी लत के शिकार हैं तो कहीं न कहीं उनकी दीनी और इल्मी कमज़ोरी है। क्योंकि जब कोई मुसलमान नौजवान इस्लामी तालीमात का पेरोकार होता है और फ़रमूदात ए नबवी का जानकार होता है तो वह शराब पीना तो दूर शराब के क़रीब भी नहीं जाता है क्योंकि वह जानता है कि शराब का एक एक क़तरा पेशाब की तरह गंदा और नापाक है।
दोस्तों!आज के इस भयानक दौर में जब हर तरफ़ से मुसलमान दुश्मन ताक़तें हम पर हमलावर हैं और नए नए तरीक़ों से मुसलमान समाज को नापाक करने की साज़िशें की जा रही हैं ख़ासकर मुसलमान नौजवानों को मुखर्रिब ए अख़लाक़ चीज़ों का आदी बनाकर उनकी सोच और उनके इनक़लाबी ख़यालात को दबाने की कोशिश की जा रही है तो ऐसे मुश्किल हालात में हमारी ज़िम्मेदारी क्या है? हमारी ज़िम्मेदारियाँ उस वक़्त और बढ़ जाती हैं, जब कोई भी फ़ितना हमारे घर में दाख़िल होने लगे — और आज यही हो रहा है कि नशे का फ़ितना हमारे घरों तक बड़ी तेज़ी से पहुँच रहा है और मुसलमान नौजवान बड़ी तेज़ी से इसके शिकार हो रहे हैं।
उम्मुल ख़बाइस
वह शराब, जिसे मेरे पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मुल ख़बाइस (बुराइयों की माँ) कहकर इसके क़रीब जाने से भी मना किया अब अगर मुसलमान क़ौम के नौजवान ही शराब को अपनी आदत बना लें तो फिर इससे बड़ी बदकिस्मती और क्या हो सकती है।
शराब व नशीली अशिया के इस्तेमाल के असबाब
अब ज़रा हम इन असबाब के ऊपर तायाराना नज़र डालें जिनकी वजह से हमारी कौम के अफ़राद अपनी दुनिया और आख़िरत खराब कर रहे हैं तो इसके बहुत से असबाब हो सकते हैं मगर चंद वजूहात व इलल को आप के सामने पेश करता हूँ।
शराब जैसी मनहूस व मुखर्रिब अख़लाक़ शै को गले लगाने का जो सबसे अहम सबब है वह है दीन से दूरी और वालिदैन का अपने बच्चों की तर्बीयत के हवाले से ग़ैर हस्सास होना। क्योंकि बच्चों को अगर कुरानी तालीमात व अहादीस ए नबविया के फ़रमूदात के ज़ेवर से आरास्ता कर दिया जाएगा तो यक़ीनन उनके क़दम राह ए रास्त से भटकेंगे नहीं बल्कि वह सिरात ए मुस्तक़ीम का मुसाफ़िर बनकर तरक़्क़ी के मनाज़िल तय करता नज़र आएगा।
अंजाम से ग़ाफ़िल होना नशे की आदत में पड़ने का एक सबब इसके भयानक अंजाम से ग़फलत और दीनी दुनियवी और तिब्बी नुक़्सानात से बेख़बरी भी है। ज़ाहिर है कि जब किसी चीज़ के नुक़्सानात का इल्म न हो तो इंसान उससे बचने की कोशिश क्यों करेगा। इन शराब पीने वालों और नशीली अशिया के इस्तेमाल करने वालों को इस बात का इल्म ही नहीं है कि आख़िरत में इसके भयानक अंजाम हैं और कितनी बड़ी ज़िल्लत व रुसवाई का सामना करना होगा। अगर इन बच्चों को इनसे आगाह कर दिया जाए और इसके मुताल्लिक वारिद शुदा वईदात सुनाई जाए तो उम्मीद है उनके भटके हुए क़दम राह ए रास्त पर आ जाएंगे।
तफरीह के तौर पर नशा करना नशे का आग़ाज़ तफरीहन भी किया जाता है। शुरू शुरू में इंसान किसी की देखा देखी मौज मस्ती के लिए थोड़ा बहुत नशा करता है मगर कुछ ही अर्से बाद उसका जिस्म नशे की कम मिक़दार पर तस्कीन नहीं पाता। लिहाज़ा वह मजबूरन नशे की मिक़दार को बढ़ा देता है और बिला आखिर नशे बाज़ तबाही के दहाने पर जा खड़ा होता है।
बुरी सोहबत व संगत मुनशियात के आदियों की बड़ी तादाद बुरी सोहबत की वजह से नशे में मुब्तिला होती है। जिन लोगों के साथ उसका उठना बैठना होता है वह ऐसे आवारा किस्म के लोग होते हैं जिनकी आदत होती है मुनशियात का इस्तेमाल। इसलिए उनकी मइय्यत में जब कोई शरीफ उन नफ़्स और अच्छे घराने का बच्चा भी वक़्त गुज़ारने लगता है तो इब्तिदा में तो उसे नशा मुफ़्त फराहम किया जाता है कि आज़मा कर तो देखो ग़म दूर हो जाएंगे दुख दर्द भूल जाओगे हवाओं में उड़ने लगोगे वग़ैरह वग़ैरह। उनकी बातों में आकर जब एक मर्तबा नशाआवर चीज़ इस्तेमाल कर लेता है तो नशे के जाल में ऐसा फँसता है कि बआज़ औक़ात मरते दम तक रिहाई नसीब नहीं होती।
इसी वजह से शरीअत ए इस्लामिया ने वालिदैन के ऊपर यह ज़िम्मेदारी भी आइद की है कि वह बच्चों के नशिस्त व बर्खास्त पर भी नज़र रखें और देखें कि वह किसके साथ वक़्त गुज़ारता है और कैसे आदात व अतवार के लोग उसके दोस्तों में शामिल हैं। अगर शुरू से ही इस बंद को बाँध दिया जाए, तो उस बच्चे का मुस्तक़बिल खराब होने से महफ़ूज़ हो जाएगा।
कसरत ए माल एक ऐसा शख़्स जो कसरत ए माल की वजह से फ़ारिग़ उल बाल हो उसके पास माल की फरावानी हो दौलत की रेल पेल हो और उसे खाने पीने की बेफ़िक्री हो हर तरह की आसाइश उसे हासिल हो करने के लिए कोई काम न हो तो वह फिर अपने माल को आग लगाने के लिए कभी सिगरेट नोशी करता है और फिर उससे आगे बढ़कर शराब व दीगर मुनशियात का आदी होकर अपनी ज़िंदगी को तबाही के दहाने पर ले जाता है। फिर धीरे धीरे बतौर फैशन नशे को शुरू करने वाला ऐसा शख़्स न सिर्फ़ अपनी सेहत को बर्बाद करता है बल्कि घर बार और कारोबार से भी तवज्जो हटा लेता है।
अपने जवानों को नशे के दलदल से कैसे निकालें
यह चंद वजूहात थीं जिनकी बुनियाद पर हमारे बच्चे ग़लत सिम्त में चल पड़ते हैं और उनकी दुनिया व आख़िरत तबाह हो जाती है। अब ज़रा अपनी तवज्जो इस अम्र की तरफ़ भी मब्ज़ूल करें कि आखिर इसका इलाज क्या है कैसे हम अपने बच्चों को इस दलदल से बाहर निकालें और उनकी ज़िंदगी खुशगवार हो।
तो इस बारे में समाज के बा असर व ज़िम्मेदारान हज़्रात बाहमी इत्तेफाक़ से कोई लाईहा ए अमल तैयार करें और अपने अपने तौर पर इसको लागू करने की कोशिश भी की जाए। जो बच्चे इसके आदी हो गए हैं उन्हें बुलाया जाए और उन्हें बिठाकर निहायत ही प्यार व मोहब्बत से मुनशियात के नुक़्सानात व अंजाम ए बद के मुताल्लिक़ जानकारी दें। ऐसा नहीं जैसा हमारा मिज़ाज बन गया है कि जो लड़का शराब का आदी हो गया उसको बायकॉट कर दिया जाए उससे कोई बात न करे उसको उसके हाल पर छोड़ दिया जाए वग़ैरह वग़ैरह।
और हमारे एक बुज़ुर्ग ने बड़ी प्यारी बात कही फ़रमाते हैं अगर तुम्हारा पैसा गटर यानी गंदी नाली में गिर जाए तो उसे निकाल लो और अपना हाथ धो लो इसका फ़ायदा यह होगा कि वह ज़ाया होने से बच जाएगा और तुम्हारी किसी ज़रूरत में काम आ जाएगा। ठीक उसी तरह जब हमारा कोई जवान किसी बुरी लत का शिकार हो गया तो वैसे ही उसको ज़िल्लत आमेज़ ज़िंदगी जीने के लिए छोड़ न दिया जाए, बल्कि उसको वहाँ से निकालने की हद ए मक़दूर सई करनी चाहिए। क्योंकि अगर वह इस दलदल से निकल गया तो किसी के काम आए न आए अपने घर वालों के काम ज़रूर आएगा।
इसलिए होना तो यह चाहिए कि हम उसको तलब करें और उसके भयानक अंजाम व नताइज से उसको आगाह करें। क्योंकि नफरत तो गुनाह से करनी है गुनाहगार से नहीं। और यही नबवी व कुरआनी असलूब ए दावत है। अगर हर इलाके और गांव के चंद अफ़राद इस पर अमल दरआमद शुरू कर दें तो यक़ीनन इख़लास में बड़ी ताक़त है। इसके मुसबत नताइज आने शुरू हो जाएंगे और रफ्ता रफ्ता समाज से शराब व नशे की लानत खत्म होती चली जाएगी।
और अब तो जगह जगह मुनशियात के इनसिदाद के सेंटर्स व मराकिज़ भी क़ायम हो गए हैं दवाइयाँ दी जाती हैं इलाज होता है बाज़ाब्ता। इस लिए वालिदैन की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों को समझाएं और उन्हें इस लानत से दूर करने की हर मुमकिन कोशिश करें ताकि अल्लाह जल व अला उसके दिल में शराब व नशीली अशिया की नफ़रत डाल दे और वह इस मनहूस अमल से खुद को बचा सके। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त सबको इस्लामी तालीमात पर अमल की तौफ़ीक़ मरहमत फ़रमाए।
FAQ सेक्शन नशे की लानत के मुताल्लिक़
सवाल 1: इस्लाम नशे और शराब के बारे में क्या तालीम देता है?
जवाब: इस्लाम ने हर उस चीज़ को हराम करार दिया है जो इंसान की अक़्ल को ज़ाएल करे और समाज में फसाद का बाइस बने। शराब और नशीली अशिया को उम्मुल ख़बाइस यानी “बुराइयों की माँ” कहा गया है, क्योंकि इनसे तमाम गुनाह और तबाही की राहें खुल जाती हैं।
सवाल 2: नौजवान पीढ़ी नशे का शिकार ज़्यादातर क्यों हो रही है?
जवाब: इसकी बुनियादी वजहें हैं दीन से दूरी तालीमी कमज़ोरी बुरी सोहबत और वालिदैन की तर्बीयत में लापरवाही। नौजवान जब दीनी तालीम से महरूम हो जाते हैं तो उनकी सोच कमज़ोर हो जाती है और वो फितनों का शिकार बन जाते हैं।
सवाल 3: अगर कोई शख़्स नशे का आदी हो जाए तो क्या किया जाए?
जवाब: उसे छोड़ने या बायकॉट करने के बजाए प्यार और नरमी से समझाना चाहिए। उसे मुनशियात के नुक़्सानात और आख़िरत के भयानक अंजाम से आगाह करना चाहिए। जैसे बुज़ुर्गों ने कहा है गटर में गिरा हुआ पैसा निकालो और अपना हाथ धो लो। यानी गुनाह से नफरत करो गुनाहगार से नहीं।
सवाल 4: समाज से नशे की लानत खत्म करने का असरदार तरीका क्या है?
जवाब: समाज के ज़िम्मेदार अफ़राद को मिलकर अमली लाईहा-ए-अमल तैयार करना चाहिए नशे के ख़िलाफ़ तालीमी मुहिम चलानी चाहिए और नौजवानों को दीनी तालीम से जोड़ना चाहिए। अगर हर मोहल्ले हर गांव में कुछ लोग इख़लास के साथ उठ खड़े हों तो यक़ीनन समाज से शराब व नशे की ये लानत रफ्ता रफ्ता खत्म हो जाएगी।
