कौम ए समूद की हलाकत की दास्तान मेरे अज़ीज दोस्तों इस तहरीर में मैं आप हज़रात के सामने एक ऐसा वाक्रिया रखने जा रहा हूँ जो नसीहत और इबरत से भरपूर है। ये एक ऐसी कौम की दास्तान है जिसे अल्लाह तआला ने अपनी नेमतों से नवाज़ा मगर उन्होंने शिर्क और गुमराही को अपना लिया। ये वाक्रिया कौम ए समूद का है जिन्हें हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के ज़रिए हिदायत दी गई मगर उन्होंने उसकी क़दर न की।
इस तहरीर में हम देखेंगे कि कैसे अल्लाह के हुक्म से एक पत्थर से ऊँटनी निकली जो उनकी निशानी और आज़माइश बनी। मगर अफ़सोस कौम ए समूद ने इस निशानी का एहतराम न किया बल्कि उसके क़त्ल का गुनाह कर बैठे। नतीजतन अल्लाह का अज़ाब उन पर नाज़िल हुआ और वो हलाक हो गए। ये वाक्रिया हमें ये सीख देता है कि अल्लाह के हुक्म और उसके नबियों की तालीमात की पैरवी ही इंसानी सलामती और कामयाबी का रास्ता है। आइए इस वाकिए को पढ़ें सबक़ हासिल करें और अपने ईमान को मज़बूत करें।
हज़रत सालेह और उनकी ऊँटनी
कौम ए समूद अल्लाह की दी हुई नेमतों से मुनहरिफ होकर गुमराही और शिर्क में मुब्तला हो चुकी थी। अल्लाह तआला ने उनकी हिदायत के लिए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को मबऊस फरमाया। आपने उन्हें तौहीद और इबादत ए इलाही की दावत दी। कौम ने आपके दावे को मानने के लिए पत्थर से ऊँटनी निकलने का मोजज़ा मांगा। अल्लाह तआला के हुक्म से पत्थर से एक ऊँटनी निकली मगर कौम ने इसके बावजूद कुफ्र और बगावत का रास्ता न छोड़ा।
कौम ए समूद की गुमराही
जब कौम ए आद कुफ़रान ए नेमत और हक़ ना शनासी की सज़ा के तौर पर गज़ब ए इलाही से गारत हो चुकी तो उसके वीरानों और खंडहरों को कौम ए समूद ने आबाद किया। मोर्रखीन का ख़याल है कि हुबूत ए आदम यानी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के जन्नत से निकलने के बाद तक़रीबन तीन हज़ार साल बाद ये कौम ज़मीन पर आबाद हुई। इसके पास कसरत से ऊँट बकरियाँ और माल ओ दौलत था। इस से वो कौम मग़रूर होकर गुमराह हो गई। उनकी हिदायत के लिए अल्लाह जल्ला शानुहु ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को भेजा। जैसा कि कुरआन मजीद में इरशाद होता है तर्जुमा और बेशक हमने समूद की तरफ उनके भाई सालेह को भेजा।
हज़रत सालेह का मोजज़ा
हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उनको बहुत समझाया मगर उन्होंने अपने कुफ्र ओ शिर्क को न छोड़ा। आख़िर उन्होंने इस राय पर इत्तेफ़ाक किया कि अगर पत्थर से एक कद आवर दस माह की हामिला ऊँटनी निकले और निकल कर बड़ा सा बच्चा दे तो वो हज़रत पर ईमान लाएँगे और ख़ालिक ए हक़ीक़ी की इबादत करने लगेंगे। दुआ क़बूल हुई पत्थर से एक आवाज़ पैदा हुई पत्थर फट गया और उसमें से वैसी ही ऊँटनी निकली जैसी कौम ए समूद चाहती थी। उसने बड़े तन ओ तौश का बच्चा दिया। हज़रत का ये मोजज़ा देखकर कौम के बाअज़ अफराद हल्का बग्रोश ए इस्लाम हो गए मगर बुतख़ाने के मुजावरों ने उन्हें बहकाया कि ये नुबूव्वत का मोजज़ा नहीं बल्कि सहर का जादू है। इस लिए वो गुमराह के गुमराह ही रहे। अलबत्ता उन्होंने ये मान लिया कि एक दिन कुएँ का पानी ऊँटनी पिया करेगी और दूसरे दिन कौम के सब जानवर पानी पिया करेंगे। पानी की इस तक्सीम से बाअज़ लोग नाराज़ हो गए क्योंकि कुएँ से जितना पानी दिन भर निकाला जा सकता था ऊँटनी सब पी जाती थी। वो दूध भी इतना देती कि तमाम कौम को पूरा हो जाता मगर उसकी सूरत ऐसी मुहीब थी कि जब वो चरने के लिए जंगल को निकलती तो सब मवेशी डर कर शहर में भाग आते और जब वो चर कर शहर में आती तो मवेशी जंगल में भाग जाते।
ऊँटनी कैसी थी
इमाम किसाई लिखते हैं ऊँटनी के जिस्म की दराज़ी सौ गज़ थी और उसके पाँव की ऊँचाई डेढ़ सौ गज़ थी। ये हाल देखकर मवेशियों के मालिक बहुत रंजीदा हुए। आख़िर उन्होंने इसे मार डालने का इरादा किया। हज़रत को मालूम हुआ तो फरमाया देखो इस ऊँटनी की सलामती से तुम्हारी सलामती है। अगर तुम इस को सताओगे तो तुम भी चैन नहीं पाओगे और अगर तुम इसे क़त्ल करोगे तो तुम भी हलाक हो जाओगे।
ऊँटनी का क़त्ल और अंजाम
इत्तेफ़ाक से इस कौम में एक बुढ़िया थी जिसके पास कसरत से माल ओ दौलत और बहुत से ऊँट और बकरियाँ थीं। उसने कौम के दो रईस आदमियों को माल का लालच देकर ऊँटनी के क़त्ल पर आमादा कर लिया। वो घात लगाकर बैठ गए। जब ऊँटनी निकली तो उसे तीर मारकर ज़ख्मी कर दिया और उसके पाँव क़लम कर डाले। उसका बच्चा पहाड़ पर भाग गया और वहाँ से गायब हो गया।
अल्लाह का अज़ाब
हज़रत सालेह को जब इसकी इत्तिला मिली तो बहुत रंजीदा हुए। फरमाया अब खैरियत इसी में है कि जाकर उसके बच्चे को ढूँढो मगर वो न मिला। फरमाया तीन दिन बाद तुम सबका ख़ातिमा हो जाएगा। अज़ाब की अलामत ये होगी कि पहले दिन तुम्हारे मुँह ज़ाफ़रान की तरह ज़र्द होंगे दूसरे दिन अरग़वानी की तरह और तीसरे दिन तुम्हारे चेहरे सियाह हो जाएँगे और चौथे दिन तुम पर गज़ब ए इलाही नाज़िल होगा और तुम सब हलाक हो जाओगे।
चौथे दिन एक ऐसी हैबतनाक आवाज़ आई कि सब के सब हलाक हो गए। हज़रत सालेह तशरीफ़ लाए और उनकी बर्बादी को देखकर बहुत रोए। फरमाया अफ़सोस तुम लोगों ने मेरी नसीहत न सुनी।
दोस्तों ऊँटनी का क़त्ल कौम ए समूद की तबाही का सबब बना। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उन्हें आगाह किया था कि ऊँटनी को नुक़सान पहुँचाना उनकी हलाकत की वजह बनेगा मगर उन्होंने आपकी नसीहत को नज़रअंदाज़ कर दिया। नतीजतन चौथे दिन अल्लाह का अज़ाब आया और पूरी कौम हलाक हो गई। ये वाक्रिया हमें ये सबक़ देता है कि अल्लाह के हुक्म और उसके रसूल की तालीमात को मानना इंसानी सलामती और निजात का ज़रिया है।
FAQ सेक्शन-कौम ए समूद की हलाकत से मिलने वाले सबक़
सवाल 1: क़ौम ए समूद को किस नबी अलैहिस्सलाम के ज़रिए हिदायत दी गई थी?
जवाब: अल्लाह तआला ने क़ौम ए समूद की हिदायत के लिए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को मबऊस फरमाया। उन्होंने अपनी क़ौम को तौहीद और अल्लाह की इबादत की दावत दी मगर ज़्यादातर लोगों ने आपकी बात न मानी और कुफ्र-ओ-शिर्क में डटे रहे।
सवाल 2: पत्थर से ऊँटनी निकलने का मोजज़ा क्या था और उसका मक़सद क्या था?
जवाब: जब क़ौम ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से मोजज़ा मांगा तो अल्लाह के हुक्म से पत्थर फटा और उसमें से एक बड़ी हामिला ऊँटनी निकली। ये ऊँटनी अल्लाह की तरफ़ से एक निशानी और आज़माइश थी ताकि क़ौम ईमान लाए और अल्लाह की क़ुदरत को पहचाने। मगर उन्होंने इस निशानी का एहतराम न किया।
सवाल 3: ऊँटनी को क़त्ल करने का अंजाम क्या हुआ?
जवाब: क़ौम के कुछ गुमराह लोगों ने एक बुढ़िया के लालच में आकर ऊँटनी को तीर मारकर ज़ख़्मी किया और उसके पाँव क़लम कर दिए। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उन्हें आगाह किया था कि अगर उन्होंने ऊँटनी को नुकसान पहुँचाया तो अल्लाह का अज़ाब आएगा। तीन दिन बाद अल्लाह का गज़ब नाज़िल हुआ और एक हैबतनाक आवाज़ से पूरी क़ौम हलाक हो गई।
सवाल 4: इस वाक़िए से हमें क्या सबक़ मिलता है?
जवाब: ये वाक्रिया हमें ये सिखाता है कि अल्लाह के हुक्म और उसके नबियों की तालीमात से रुख़ मोड़ना इंसान को तबाही की तरफ़ ले जाता है। जो लोग अल्लाह की निशानियों की क़द्र करते हैं और उसके नबियों की बात मानते हैं, वही निजात और सलामती पाते हैं।
