हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की ज़ात मुबारक सारी कायनात के लिए रहमत है लेकिन आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम की मुहब्बत सबसे ज़्यादा अपनी उम्मत के लिए है , आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी उम्मत के लिए रातों को रोते, उम्मत के गुनाहों पर अफ़सोस फरमाते और उम्मत की हिदायत के लिए अल्लाह से दुआ फरमाते , कुरान और हदीस की रौशनी में अगर देखा जाए तो आपकी उम्मत से मुहब्बत की बहुत सी मिसालें मिलती हैं , जैसा के कुरान करीम में है।
कुरान की रौशनी में मुहब्बत ए रसूल
अल्लाह तआला ने अपने प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत के लिए फ़िक्र और रहम दिली को कुरान में यूँ ब्यान फ़रमाया : लक़द जा,अकुम रसुलुम मिन अन्फुसिकुम अज़ीज़ुन अलैहि मा अनित्तुम हरिसुन अलैकुम बिल मुमिनीना रऊफुर्रहीम। (सुरह तौबा)
तर्जुमा: बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लाए तुम में से वह रसूल जिन पर तुम्हारा मशक्क़त में पड़ना गिरां है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल महरबान।
यह आयत इस बात की गवाही देती है के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उम्मत की तकलीफ गिरां गुज़रती है यानी हर वह बात जो तुम्हें तकलीफ दे और तुम उससे मशक्क़त में पड़ जाओ हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम पर गिरां गुज़रती है सुब्हानअल्लाह कैसा गमख्वार आका मिला है हमको खुदा की क़सम ऐसी शफ़क़त व रहमत मां बाप को भी अपनी औलाद पर नहीं होती जैसी शफ़क़त व रहमत हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम को अपनी उम्मत पर है।
मुहब्बत ए रसूल हदीस की रौशनी में।
उम्मत के लिए रातों की बे करारी
हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम रातों को अपनी उम्मत के गुनाहों की बख्शीश के लिए रोते थे एक हदीस में आता है के आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने अल्लाह से अर्ज़ किया: ऐ अल्लाह मेरी उम्मत, मेरी उम्मत! अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को भेजा और फरमाया के मेरे नबी से पूछो की क्यूँ रो रहे हैं जब आपने अपनी उम्मत की मगफिरत की दुआ की तो अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया, हम तुम्हारी उम्मत के बारे में तुम्हें राज़ी करेंगे और तुम्हें रंजीदा नहीं करेंगे। (सही मुस्लिम)
विसाल के वक़्त उम्मत के लिए दुआ
रिवायतों में आता है के जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाले ज़ाहिरी का वक़्त आया तो उस वक़्त भी आका अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने अपनी उम्मत को दुआ में याद रखा उम्मत के लिए दुआ ए मगफिरत फरमाई।
हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की तमन्ना
हदीस में आता है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मैंने यह ख्वाहिश की के में अपने भाइयों से मिलूं, सहाबा ए किराम ने अर्ज़ किया: या रसूलुल्लाह क्या हम आपके भाई नहीं हैं, आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया तुम मेरे सहाबा हो लेकिन मेरे भाई वह लोग होंगे जो मेरे बाद आएंगे और मुझ पर ईमान लाएंगे जबके उन्होंने मुझे देखा भी नहीं होगा। (मुसनद अहमद)
मुहब्बत ए रसूल वाकिआत की रौशनी में
हज़रत उमर रदी अल्लाहु अन्हु का अर्ज़ करना
हज़रत उमर रदी अल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ की के में सिवाए अपनी जान के आप से हर चीज़ से बढ़कर मुहब्बत करता हूँ तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ए उमर जब तक में तुम्हें तुम्हारी जान से ज़्यादा महबूब न हो जाऊं, तुम्हारा ईमान मुकम्मल नहीं होगा, यह सुनकर हज़रत उमर रदी अल्लाहु अन्हु ने फ़ौरन कहा: हुज़ूर आप मुझे मुझसे भी ज़्यादा प्यारे हो गए हैं, हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया ए उमर अब तेरा ईमान कामिल हो गया! (बुखारी)
क़यामत के दिन उम्मत की शफाअत
क़यामत के दिन जब हर नबी इज़्हबू इला गैरी कहेंगे उस वक़्त नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी उम्मत की शफाअत करेंगे और फरमाएंगे या रब्बी उम्मती या रब्बी उम्मती।
मदीने की गलियों में उम्मत की भलाई
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मदीने की गलियों में चलते तो छोटे बच्चों को देखते ही दुआ देते गरीबों हाजत मंदों की मदद फरमाते और कोई भी साईल आपकी बारगाह से खाली नहीं जाता आप सभी की मुरादें पूरी फरमाते।
नतीजा
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अपनी उम्मत से मुहब्बत बे मिसाल है। आपने दुनिया में भी अपनी उम्मत के लिए रोया, विसाल के वक़्त भी उम्मत की फ़िक्र की, और क़यामत के दिन भी उम्मत की शफाअत फरमाएंगे। हमें चाहिए के हम भी अपने प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मुहब्बत करें, उनकी सुन्नतों और उनकी तालीमात पर अमल करें, इसके अलावा हमें चाहिए के हम अपने किरदार और आमाल से इस मुहब्बत का इज़हार करें और उम्मत की भलाई के लिए काम करें।
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