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surah sajda aur aayatalkursi ki fazilat हदीसे रसूल अलैहिस्सलातु वस्सलाम की रौशनी में


अस्सलामु अलैकुम दोस्तों इस तहरीर में सूरह सज्दा और आयतुल कुर्सी की अहमियत और बरकत व फज़ीलत हदीस की रौशनी में ब्यान की गईं हैं इन सूरतों की फज़ीलत और बरकत जानने के लिए पोस्ट पूरी पढ़ें।

सूरह सज्दा की अहमियत और फज़ीलत

सूरह सज्दा कुरआन मजीद की 32वीं सूरह है। यह सूरह अपनी फज़ीलत और करामत के एतबार से सूरह मुल्क के बहुत मुमासिल है।

हदीस:

 हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम उस वक़्त तक नहीं सोते थे जब तक सूरह सज्दा और सूरह मुल्क की तिलावत ना फरमा लें। (सुनन तिरमिज़ी: मिश्कातुल मसाबीह:)

हदीस:

 यह हदीस भी हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ही से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया: सूरह सज्दा और सूरह मुल्क अपने अंदर कुरआन की दीगर सूरतों के मुकाबले में 60 या 70 गुना ज़्यादा सवाब रखती हैं। (सुनन तिरमिज़ी: मिश्कात: स.189)

हदीस:

 हज़रत खालिद बिन मअदान फरमाते हैं के निजात दिलाने वाली सूरह, यानी सूरह सज्दा की तिलावत किया करो; क्योंकि मैंने एक शख्स के बारे में सुना है कि वह बड़े-बड़े गुनाह करता था, मगर साथ ही वह सिर्फ सूरह  सज्दा की तिलावत का मामूल भी रखता था। तो (कल क़यामत के दिन) यह सूरत उस शख्स के उपर साया फ़िगन होगी और बारगाहे-इलाही में अर्ज़ करेगी:

 "ऐ मेरे परवरदिगार! इसे बख्श दे, क्योंकि यह अक्सर मेरी तिलावत किया करता था।"

 परवरदिगार ए आलम उसकी दरख्वास्त कुबूल करके इरशाद फरमाएगा: "इसके हर गुनाह के बदले इसके हक़ में एक नेकी लिखो और एक दर्जा बुलंद कर दो।" (सुनन दारिमी: मिश्कातुल मसाबीह:)

आ-यतुल कुर्सी की अहमियत और फज़ीलत

आयतुल कुर्सी सूरह बकरा की एक अज़ीम आयत है, जिसे बाज़ उलमा ने इस्म-ए-आज़म का अमीन भी करार दिया है। इसके फज़ाइल और मनाकिब भी बहुत हैं।

हदीस:

 हज़रत उबी बिन काब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि एक मर्तबा ताजदार-ए-कायनात सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने मुझसे पूछा: "अच्छा यह बताओ कि कुरआन करीम में सबसे अज़ीम और जलील आयत कौन-सी है?" मैंने अर्ज़ किया: "अल्लाह और रसूल ही बेहतर जानें।" फिर आपने कई बार यह सवाल दोहरा कर जवाब इनायत फ़रमाया के: "वह आयत आ-यतुल कुर्सी है।" (मुसनद अहमद:, मुसनद अबू अवाना:

हदीस:

 जो शख्स हर फर्ज़ नमाज़ के बाद आ-यतुल कुर्सी पढ़ लिया करे, तो  उसके और जन्नत में दाखिल होने के दरमियान ‘मौत’ के सिवा कोई चीज़ रुकावट नहीं होगी (यानी मरते ही जन्नत में दाखिल हो जाएगा)। (सुनन निसाई कुबरा)

हदीस:

 हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने रमज़ान में ज़कात के गल्ले की हिफाज़त पर मुझे मामूर फ़रमाया। जब रात हुई तो एक चोर आया और ज़कात के माल को अपने दोनों हाथों से बटोरने लगा। मैंने उसे पकड़ लिया और कहा कि कल तुम्हें कल होकर अदालत-ए-रिसालत में पेश करूंगा। इसके बाद हज़रत अबू हुरैरा ने पूरा वाकया बयान किया और आख़िर में फरमाया कि उस चोर ने मुझसे कहा: "मुझे छोड़ दो, मैं तुम्हें एक अमल बताता हूं। और वह यह है के जब तुम बिस्तर पर जाओ तो आ-यतुल कुर्सी पढ़ लिया करो, एक खुदाई मुहाफ़िज़ पूरी रात तुम्हारी निगहबानी करेगा और शैतान किसी सूरत तुम तक नहीं पहुंच सकेगा।" यह सुनकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया: "उस रात वाले चोर ने तुम्हें सच्ची बात बताई, हरचंद के वह खुद बड़ा झूठा है और वह कोई और नहीं, बल्कि खुद शैतान था।" (सुनन निसाई:)

खुलासा

सूरह सज्दा और आ-यतुल कुरसी कुरआन-मजीद की ऐसी आयात और सूरह हैं जिसकी तिलावत में बहुत फज़ीलत और बरकत है। इनकी तिलावत न सिर्फ रूहानी सुकून देती है बल्कि आख़िरत में भी नेजात और कामयाबी का जरिया बनेंगी। हदीस-ए-पाक की रोशनी में, यह वाज़ेह हो जाता है कि इनकी तिलावत से अल्लाह अज्ज़ व जल्ला की-रहमत और हिफाज़त नसीब होती है। आ-यतुल कुर्सी को बाद हर नमाज़ के पढना जन्नत में जाने का ज़रिया बनेगी और सूरह सज्दा की तिलावत गुनाहों की माफी और दरजात की बुलंदी का सबब बनती है।

हमें चाहिए कि इन पाक आयात और सूरह की तिलावत को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएं ताकि हम दुनियावी और उखरुवी कामयाबी हासिल कर सकें।


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