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namaz ke awqat aur unka azeem sawab-फ़जर ज़ुहर असर मग़रिब ईशा

 


नमाज़ के औक़ात और उसका अहम सवाब  

नमाज़ इस्लाम का दूसरा रुक्न है और इसे वक्त मुक़र्रर पर अदा करना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है। अल्लाह तआ'ला ने इरशाद फ़रमाया कि नमाज़ मोमिनों पर वक्त मुक़र्रर में फ़र्ज़ है। इस तहरीर में हर नमाज़ के औक़ात और नमाज़ पंचगाना के अज़ीम सवाब के बारे में  बताने वाला हूँ।  

नमाज़ और कुरान 


इनस्सलात क़ानत अलल-मोमिनीन किताबम मवक़ूता 

तर्जुमा: बेशक नमाज़ मोमिनों पर वक्त मुक़र्रर में फ़र्ज़ है।  


नमाज़ का फ़र्ज़ वक्त पर अदा करना


हर नमाज़ को उसके वक्त में अदा करना चाहिए। जो नमाज़ वक्त से पहले पढ़ी जाएगी वो भी अदा न होगी। और जो बाद में पढ़ी जाएगी वो भी अदा न होगी, बल्कि क़ज़ा होगी।  


 अलग-अलग नमाज़ों के औक़ात 


फ़जर  

नमाज़ फ़जर का वक्त सुब्हे सादिक से शुरूअ होकर आफ़ताब की किरण चिकने तक रहता है। सुबह सादिक वो रौशनी है जो मतला-ए-आफ़ताब के ऊपर आसमान पर फैल जाती है और उजाला हो जाता है।  


ज़ुहर  

नमाज़ ज़ुहर का वक्त आफ़ताब ढलने से शुरू होकर उस वक्त तक रहता है कि हर चीज़ का अलावा असली साया के दो चंद हो जाए। असली साया वो है जो आफ़ताब के ख़त्त-ए-निस्फ़-उन-नहार पर पहुँचने के वक्त होता है।  


असर  

नमाज़ असर का वक्त ज़ुहर का वक्त ख़त्म होने से शुरू होकर आफ़ताब के डूबने तक रहता है। बेहतर यह है कि धूप का रंग ज़र्द होने से पहले नमाज़ अदा कर ली जाए क्योंकि धूप के ज़र्द होने पर वक्त मकरूह हो जाता है अगरचे नमाज़ हो जाएगी।  


मग़रिब

नमाज़ मग़रिब का वक्त ग़ुरूब-ए-आफ़ताब से शुरू होकर ग़ुरूब-ए-शफ़क तक रहता है। शफ़क उस सफेदी का नाम है जो जानिब-ए-मग़रिब सुर्ख़ी डूबने के बाद जुनूबन व शुमालन फैली हुई रहती है।  


ईशा  

नमाज़ ईशा का वक्त ग़ुरूब-ए-शफ़क से शुरू होकर तुलू-ए-फ़जर तक रहता है और नस्फ़ शब के बाद मकरूह हो जाता है। तजुर्बा से साबित हुआ कि बड़ी रातों में नमाज़ मग़रिब के बाद तक़रीबन डेढ़ घंटा और छोटी रातों में तक़रीबन सवा घंटा के बाद ईशा का वक्त शुरू होता है।  


नमाज़ पंचगाना के अज़ीम सवाब


अल्लाह तआ'ला ने हुज़ूर अलाहिस्सलातु-वस्सलाम को पाँच नमाज़ों का तोहफा देकर इरशाद फ़रमाया:  

*“आपकी उम्मत में से जो-शख़्स एक दिन में पाँच-नमाज़ें अदा-करेगा, उसे पचास-नमाज़ों का सवाब अता-करूंगा।*  


हज़रत क़ा'ब अहबार फ़रमाते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर उतरने वाले कलाम में लिखा है:  

अल्लाह तआ'ला ने इरशाद फ़रमाया, ऐ मूसा!  

जो शख़्स हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की उम्मत से दो रकअत नमाज़ फ़जर अदा करेगा, दिन और रात में उसने जितने गुनाह किए होंगे, सब को माफ़ कर दूंगा और वह शख़्स मेरी हिफ़ाज़त में आ जाएगा।  

जो शख़्स हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की उम्मत से चार रकअत नमाज़ ज़ुहर अदा करेगा, पहली रकअत पर उसकी मग़फ़िरत फ़रमा दूंगा, दूसरी रकअत पर उसके मीज़ान-ए-अमल को भारी कर दूंगा, तीसरी पर तस्बीह पढ़ने वाले फ़रिश्ते उनके लिए मुक़र्रर करूंगा, और चौथी रकअत पर उनके लिए आसमान के दरवाज़े खोल दूंगा।  

जो शख़्स हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की उम्मत से चार रकअत नमाज़ असर अदा करेगा, तो ज़मीन व आसमान के तमाम फ़रिश्ते उसके लिए इस्तेग़फार करेंगे, और जिस के लिए फ़रिश्ते इस्तेग़फार मांगें, मैं उसे अज़ाब नहीं करता।  

जो शख़्स हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की उम्मत से मग़रिब की तीन रकअत अदा करेगा, तो वह मुझसे अपनी जिस हाजत का सवाल करेगा, मैं अता करूंगा।  

जो कोई हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की उम्मत से ग़ुरूब-ए-शफ़क यानी ईशा के वक्त चार रकअत पढ़े, यह उनके लिए दुनिया और इसकी कुल कायनात से बढ़कर होगी और यूं गुनाहों से पाक हो जाएंगे जैसे वह बच्चा जो आज ही पैदा हुआ हो।  

दोस्तों

नमाज़ इस्लाम की बुनियाद और अल्लाह का वो हुक्म है, जिसे वक्त मुक़र्रर पर अदा करना हर मोमिन का फर्ज़ है। हर नमाज़ के लिए तय वक्त का लिहाज़ करना ज़रूरी है ताकि वो अदा हो कज़ा न हो। इसके अलावा नमाज़ पंचगाना का सवाब इतना अज़ीम है कि अल्लाह तआ'ला इसे पचास नमाज़ों के बराबर सवाब अता करता है। जो नमाज़ वक्त पर अदा करता है, वह अल्लाह की हिफ़ाज़त में आ जाता है और गुनाहों से पाक होकर अल्लाह की रहमत का मुस्तहिक बनता है। 


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